बस्तर में कॉफी की खेती से किसानों की बढ़ी आय

बस्तर में कॉफी की खेती ने किसानों की आय में वृद्धि की है, जिससे उनकी जीवनशैली में सुधार और क्षेत्रीय विकास हो रहा है। नए कृषि तकनीकों से बस्तर में समृद्धि आ रही है।

कॉफी की खेती Coffee cultivation

भारत के कृषि और उद्यानिकी क्षेत्र में निरंतर बदलाव हो रहा है, और इन बदलावों का असर ख़ासकर ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में देखा जा सकता है। पहले जहां खेती में पुराने तरीकों का इस्तेमाल होता था, अब वहां नई तकनीकों और उन्नत कृषि पद्धतियों के माध्यम से विकास हो रहा है। इस बदलाव का प्रभाव बस्तर जैसे दूरदराज और वनांचल क्षेत्रों पर भी पड़ा है।

बस्तर में एक समय था जब असुरक्षा का माहौल व्याप्त था। यह क्षेत्र न केवल शांति की दृष्टि से चुनौतियों का सामना कर रहा था, बल्कि यहां के किसानों को भी पारंपरिक खेती की समस्याओं का सामना करना पड़ता था। लेकिन अब, स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है। आज, बस्तर के किसान अपनी मेहनत और नए कृषि तकनीकी उपायों के जरिए न केवल अपनी आर्थिक स्थिति सुधार रहे हैं, बल्कि यहां की कृषि क्षेत्र में विविधता और समृद्धि भी आ रही है।

बस्तर में अब कॉफी की खेती के जरिए एक नया आय का रास्ता भी खुला है, जिससे न केवल किसानों की जीवनशैली में बदलाव आ रहा है, बल्कि इस क्षेत्र का आर्थिक विकास भी हो रहा है। इस बदलाव ने बस्तर के किसानों को एक नया आत्मविश्वास और नई दिशा दी है, जिससे वे अब खुद को और अपने परिवार को एक बेहतर भविष्य की ओर ले जा रहे हैं।

बस्तर में कॉफी की खेती की शुरुआत (Coffee cultivation started in Bastar)

बस्तर के इलाके, ख़ासकर कोलेंग और दरभा की पहाड़ियां, अब कॉफी की खेती के लिए प्रसिद्ध हो चुकी हैं। छत्तीसगढ़, जिसे पहले धान का कटोरा कहा जाता था, अब कॉफी की खेती के लिए भी जाना जाएगा। इस क्षेत्र में किसानों ने नई किस्मों की कॉफी उगाने का काम शुरू किया है, जिनमें अरेबिका सेमरेमन, चंद्रगरी, द्वार्फ, एस-8 और एस-9 कॉफी रोबूस्टा-सी. एक्स. आर. जैसी दुर्लभ किस्में शामिल हैं।

कॉफी की खेती से किसानों को हो रहा लाभ (Farmers are getting benefits from coffee cultivation)

बस्तर के किसान अब “बस्तर कॉफी” के नाम से कॉफी को बाज़ारों में बेचते हैं। एक एकड़ भूमि पर कॉफी की खेती करने से किसानों को सालाना 40 से 50 हजार रुपये का अतिरिक्त लाभ हो रहा है। इसके अलावा, कॉफी की खेती में मूंगफली और काली मिर्च जैसी फ़सलों को भी जोड़ा गया है, जिससे किसानों को और भी अधिक फ़ायदा मिल रहा है।

बस्तर की कॉफी की पहचान (Identification of Bastar Coffee)

कॉफी की खेती की जानकारी और प्रशिक्षण किसानों तक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय और छत्तीसगढ़ के बागवानी विभाग द्वारा पहुंचाई जा रही है। बस्तर के किसान अब माओवादी दहशत के बावजूद कॉफी के उत्पादन में अपनी रुचि दिखा रहे हैं और वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से अधिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

कॉफी की खेती के लिए अनुकूल जलवायु (Favourable climate for coffee cultivation)

बस्तर का दरभा क्षेत्र कॉफी की खेती के लिए एकदम अनुकूल है। यहां की पहाड़ियां 600 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं और इन क्षेत्रों में स्लोप वाली खेती की जगह भी उपलब्ध है। इस क्षेत्र में बारिश और नमी का सही संतुलन है, जो कॉफी के पौधों के लिए एकदम उपयुक्त है।

कॉफी के साथ अन्य फ़सलों का उत्पादन (cultivation of other crops along with coffee)

बस्तर में कॉफी की खेती के साथ-साथ अन्य फ़सलें जैसे आम, कटहल, सीताफल, और काली मिर्च भी उगाई जा रही हैं। कॉफी के पौधों को छाया की आवश्यकता होती है, और इसके लिए बड़े वृक्ष लगाए जाते हैं, जो अन्य फ़सलों के लिए भी सहारा प्रदान करते हैं। इस तकनीक का प्रयोग छत्तीसगढ़ में पहली बार हो रहा है, जिससे यहां के किसान और भी अधिक लाभ कमा रहे हैं।

बस्तर कॉफी का भविष्य (The future of Bastar coffee)

बस्तर कॉफी के उत्पादन से किसानों की जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव आ रहा है। जल्द ही बस्तर कॉफी एक बड़ा ब्रांड बनकर न केवल भारतीय बाज़ारों में बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में भी निर्यात होगी। किसानों द्वारा कॉफी के फल तोड़कर उसके बीज को सुखाने के बाद प्रसंस्करण इकाइयों के जरिए कॉफी तैयार की जाती है। फिर इसे भूनकर पीने योग्य बनाया जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

बस्तर में कॉफी की खेती के जरिए किसानों की आय में वृद्धि हो रही है और उन्हें नए रोज़गार के अवसर मिल रहे हैं। यह बदलाव बस्तर के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है और बस्तर के किसानों की मेहनत और कड़ी लगन के परिणामस्वरूप कॉफी की खेती ने उनकी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया है। कॉफी की खेती अब बस्तर और छत्तीसगढ़ के लिए एक प्रमुख आय का स्रोत बन चुकी है और इसके माध्यम से किसानों की खुशहाली की दिशा में एक नया कदम बढ़ाया गया है।

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