लहसुन की खेती पार्ट 2: कैसे करें लहसुन की बुवाई, इन बातों का रखेंगे ख़्याल तो होगी अच्छी पैदावार

खरपतवार नियंत्रण से लेकर रोग-कीट रोकथाम के तरीकों के बारे में जानें

लहसुन की खेती में कई बातों का ध्यान रखना ज़रूरी होता है। कब बुवाई करनी है, सिंचाई कब करनी है, कैसे खरपतवार का नियंत्रण करना है, इस लेख में इन सबके के बारे में हम आपको बता रहे हैं।

लहसुन की खेती इस समय ज़ोरों पर चल रही है। इसकी खेती के लिए संतुलित मौसम की ज़रूरत होती है। लहसुन की बुवाई का सही समय अक्टूबर से मध्य दिसंबर के बीच माना जाता है। यानी लहसुन की खेती के लिए तापमान न ज़्यादा गरम और न ही ज़्यादा ठंडा होना चाहिए। इन महीनों के दौरान बोए गए लहसुन के कंद का विकास अच्छा होता है। आज इस लेख में हम आपको लहसुन की खेती से जुड़ी हर ज़रूरी जानकारी, जैसे बुवाई से लेकर उपयुक्त खाद-उर्वरक, खरपतवार नियंत्रण के तरीकों और रोगों से बचाव के बारे में बताएंगे। 

लहसुन की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी अच्छी होती है। भारी मिट्टी होगी तो लहसुन के कंदों का विकास अच्छे से नहीं हो पाता। दोमट मिट्टी में फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्व होते हैं। लहसुन की खेती के लिए ध्यान रखें कि मिट्टी का पी.एच. लेवल 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए।

lehsun ki kheti garlic farming and garlic pest and disease लहसुन की खेती और लहसुन के रोग
तस्वीर साभार: apnikheti

लहसुन की खेती के लिए खेत कैसे करें तैयार?

बुवाई करने से पहले खेत की तीन से चार बार 10 से 15 सेंटीमीटर नीचे तक जुताई कर लें। इससे मिट्टी भुरभुरी और ज़मीन समतल हो जाएगी। फिर क्यारियां और सिंचाई की नालियां बना लें। 

बीज कैसे लगाएं और बुवाई कैसे करें? 

लहसुन के बीजों की बुवाई करते समय ध्यान रखें कि बुवाई वाले कंद स्वस्थ और बड़े आकार के होने चाहिए। उन्नत प्रजाति के बीज किसी भी मान्य संस्था या बीज प्रमाणीकरण एजेंसी से ही लें। बीज खरीदते समय पैकेट पर लगे टैग्स अच्छे से जांच लें। 

लहसुन के कन्द में कई कलियां होती हैं। इन्हीं कलियों को एक-एक करके अलग किया जाता है और  बुवाई की जाती है। 8 से 10 मिलीमीटर व्यास वाले बीज या कली बुवाई के लिए सही माने जाते हैं। इसलिए बुवाई के लिए इतनी मोटाई वाली कली ही चुनें। प्रति हेक्टेयर के लिए करीबन 5 से 6 क्विंटल बीज लग जाता है।

बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना ज़रूरी होता है। बुवाई से पहले खेत को छोटी क्यारियों में बांट दें। फिर क्यारियों में हाथ से या डिबलिंग विधि द्वारा लहसुन की बुआई करें।

बोते समय कलियों की आपसी  दूरी 8 सेंटीमीटर और एक कतार से दूसरी कतार की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए। बुवाई के समय कलियों के पतले और नुकीले हिस्से को ऊपर की ओर रखें। कलियों को 5-7 सेंटीमीटर की गहराई में बोएं और हल्की मिट्टी से ढक दें।

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तस्वीर साभार: jungseed

सिंचाई कब करें?

बुआई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई कर दें। फिर 8 से 10 दिन बाद एक सिंचाई और करें। जब फसल पककर तैयार होने लगे, उस समय 10 से 15 दिनों के अंतर से सिंचाई करनी चाहिए। पौधों की पत्तियां पीली और सूखने लग जाएं तो ऐसे में सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। 

खरपतवार पर कैसे करें नियंत्रण?

लहसुन के फसल की निराई-गुड़ाई करते रहनी चाहिए। बीज बोने के 25 से 30 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई  करनी चाहिए। फिर दूसरी निराई-गुड़ाई 45 से 50 दिन के अंतराल के बाद करनी चाहिए। लहसुन की फसल को खरपतवार से  बचाना बहुत ज़रूरी होता है।

फसल के अंकुरित होने से पहले खरपतवार की रोकथाम के लिए एक किलोग्राम पेड़ामेंथिलीन दवा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर सकते हैं।

फसल कब तक हो जाती है तैयार? 

लहसुन की फसल औसतन 130 से 180 दिनों में तैयार हो जाती है। खुदाई कर कंदों को 3 से 4 दिनों तक छाया में सुखाया जाता है। फिर कंदों के ऊपरी ओर  2 से 3 सेंटीमीटर छोड़कर ऊपर की पत्तियों को अलग कर दिया जाता है। अच्छे से सूख जाने के बाद इन कंदों को 70 प्रतिशत की नमी वाले क्षेत्र में 6 से 8 महीनों तक स्टोर करके रखा जा सकता है। लहसुन की उपज इसकी किस्म पर निर्भर करती है। इसकी औसत उपज 100 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रहती है।

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तस्वीर साभार: theenglishgarden

लहसुन की फसल पर लगने वाले रोग-कीट और उनका इलाज

थ्रिप्स कीट: ये दिखने में छोटा और पीले रंग का होता है। ये पत्तियों का रस चूसकर पौधे को पूरी तरह नष्ट कर देता है। पत्तियों पर धब्बे पड़ जाते हैं और सूखकर गिरने लगते हैं। 

इलाज: इस कीट से बचाव के लिये मेटासिसटॉक्स दवा की 1.5 एम.एल. मात्रा को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 1 ग्राम सेंडोविट दवा इसमें घोल दें। इस घोल का तीन से चार बार छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करें।

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तस्वीर साभार: krishisewa

शीर्ष छेदक कीट: ये कीट अपने में से लार्वा छोड़ता है, जो कंदों के अंदर जाकर सड़न पैदा कर देता है। 

इलाज: 5 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड दवा और एक ग्राम सेंडोविट को 15 लीटर पानी में मिलाकर हर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चहिए।

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तस्वीर साभार: wildmillfarm & mofga

झुलसा रोग: इस रोग में पत्तियों के ऊपरी हिस्से पर हल्के नारंगी रंग के धब्बे बनने लगते हैं। ये रोग पैदावार को प्रभावित करता है। 

इलाज: 2.5 ग्राम मैकोजेब दवा या एक ग्राम कार्बेंडिज़म को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए।

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तस्वीर साभार: krishisewa

नील लोहित रोग: इस रोग की शुरुआत में पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो धीरे-धीरे फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। 

इलाज: इस रोग से बचाव के लिए 2.5 ग्राम इन्डोफिल एम-45 दवा को प्रति लीटर पानी में मिला लें। फसल पर इस घोल का 15 दिन के अंतराल पर दो से तीन बार छिड़काव करें।

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तस्वीर साभार: patrika

मृदु रोमल फफूंदी रोग: इस रोग में पत्तियों की सतह और डंठल पर बैगनी रंग के रोयें बनने लगते हैं। ये एक तरह का फंगस होता है। 

इलाज: 3 ग्राम जिनेव दवा या 2.5 ग्राम इन्डोफिल एम-45 दवा का एक लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर दो छिड़काव करें।

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तस्वीर साभार: krishisewa

लहसुन की फसल पर लगने वाले रोग-कीट और उनका इलाज किसी विशेषज्ञ की निगरानी या सलाह लेकर करें।

ये भी पढ़ें- लहसुन की खेती पार्ट 1: कैसी मिट्टी और जलवायु में होती है इसकी अच्छी पैदावार

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