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कई बार ऐसा होता है कि किसान गन्ने की जैविक खेती तो करना शुरू करते हैं, मगर उत्पाद की सही कीमत न मिलने से उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है, ऐसे में वो आगे इस काम को बढ़ाने के लिए प्रेरित नहीं होते है। कुछ ऐसी ही हुआ खा मुरादाबाद के प्रगतिशील किसान अरेंद्र बड़गोती के साथ, मगर उन्होंने इस समस्या का न सिर्फ़ शानदार तोड़ निकाला, बल्कि अपनी फ़सल से कई तरह के उत्पाद बनाकर सीधे ग्राहकों को बेचने लगे और आज वो फैमिली फ़ार्मर नामक FPO के सीईओ हैं। अपने इस सफर के बारे में उन्होंने विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली के साथ।
प्राकृतिक खेती की शुरुआत
प्रगतिशील किसान और फैमिली फ़ार्मर नामक FPO के सीईओ अरेंद्र बड़गोती ने 2016 में गन्ने की जैविक खेती की शुरुआत की और सबसे पहले उन्होंन सब्ज़ियां उगाई। मगर, अफसोस की उन्हें सब्ज़ियों की अच्छी कीमत नहीं मिली। वो बताते हैं कि मंडी की अपनी गन्ने की जैविक सब्ज़ियों को उन्हें केमिकल वाली सब्ज़ियों के भाव ही बेचना पड़ा। 2 साल कोशिश के बाद भी जब नुकसान ही होता रहा, तो उन्होंने सब्ज़ी छोड़कर गन्ने की प्राकृतिक खेती शुरू कर दी। उनका मकसद था केमिकल फ्री गन्ने का उत्पादन ताकि उससे बनने वाले उत्पाद भी केमकिल फ्री रहे।
उन्होंने काम शुरू ही किया था कि कुछ समय बाद कोविड आ गया। उस समय वो मधुमक्खी पालन का भी काम करते थे, तो कोविड में जब हर जगह इम्यूनिटी बूस्टर उत्पादों की मांग बढ़ गई, तो उस दौरान अरेंद्र बड़गोती ने शहद में सीड्स मिलाकर एक उत्पाद तैयार किया और लोगों तक डायरेक्ट पहुंचाया, इसका रिस्पॉन्स बहुत अच्छा मिला, जिससे उनके दिमाग में सीधे ग्राहकों से जुड़ने का आइडिया क्लिक हुआ।
सीधे घर तक पहुंचाई सब्ज़ियां
अरेंद्र बड़गोती बताते हैं कि उन्हें समझ आ गया कि ज़्यादा मुनाफे के लिए अपनी फ़सल को मंडी में नहीं, बल्कि सीधा ग्राहकों को बेचना ज़रूरी है। इसके बाद उन्होंने दोबारा सब्ज़ियां उगानी शुरू की, मगर छोटे पैमाने पर और इसे सीधा ग्राहकों को पहुंचाने लगे। खास बात ये कि वो उसी रेट पर सब्ज़ियां घर पहुंचाते थे जिस रेट पर लोग दुकान से केमिकल वाली सब्ज़ियां खरीदते थे। इसका फ़ायदा ये हुआ कि लोगों को ये खूब भाया और मुरादाबाद में उनकी अच्छी पकड़ बन गई।
ऐसे बना FPO
अरेंद्र बड़गोती कहते हैं कि उनके जनपद के कृषि अधिकारी ने न सिर्फ़ हमेशा काम में उनकी मदद की, बल्कि FPO बनाने की भी सलाह दी। इस तरह से फैमिली फ़ार्मर की शुरुआत हुई। अब वो सब्ज़ियों के साथ ही गन्ने का भी उत्पादन कर रहे थें। उनके पास प्राकृतिक तरीके से उगाए दाल और चावल भी होते थे। आगे वो बताते हैं कि साल 2022 में वो किसानों के लिए बनी एक कंपनी CFEI के साथ संपर्क में आए।
तब उन्हें पता चला कि किसान क्या कर सकते हैं। उस कंपनी में एक्सपर्ट्स बैठे हैं, जो डिजीटल मीटिंग के ज़रिए किसानों को ट्रेनिंग देते हैं और नई तकनीक के बारे मे बताते हैं। वो किसान को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में फ़सल उगाकर खुद ही उसकी प्रोसेसिंग के लिए प्रेरित करते हैं। अरेंद्र का कहना है कि उन्होंने इस कंपनी से बहुत कुछ सीखा। इसके अलावा वो सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय से भी जुड़े हैं, वहां के वैज्ञानिकों से भी उन्हें सहयोग मिलता है।
तीन तरीके से बनते हैं गन्ने के उत्पाद
अरेंद्र बड़गोती का कहना है कि बहुत से लोगों को पता ही नहीं होगा कि तीन तरह से गन्ने के उत्पाद बनाए जाते हैं। पहला गन्ने को गर्म करके गुड़, खांड आदि बनता है। दूसरा उसे ठंडा करके आइसक्रीम बनाई जाती है। गन्ने के रस में जलजीरा मिलाकर या उसमें दूध मिलाकर अलग-अलग फ्लेवर की आइक्रीम बनाई जाती हैं और तीसरा गन्ने को फर्मेंट करके सिरका बनाया जाता है।
गन्ने के साथ मिलेट्स
अरेंद्र बड़गोती बताते हैं कि जब सरकार की ओर से मिलेट्स का कार्यक्रम शुरू हुआ उसी दौरान उनका एफपीओ भी बन चुका था। क्योंकि उनका इलका गन्ने की खेती वाला है, तो सरकार के कहने पर किसान मिलेट्स उगाने की हामी तो भर देते थे, मगर उगाते नहीं थे, क्योंकि गन्ने का उत्पादन उन्हें अधिक सुरक्षित लगता था। ऐस में अरेंद्र ने मिलेट्स का उत्पादन करने का नया तरीका निकाला। उन्होंने गन्ने की दो पंक्तियों के बीच दूरी बढ़ाई और बीच में मिलेट्स का उत्पादन किया। उन्होंने दूसरे किसानों को भी मिलेट्स की पौध बांटकर उन्हें गन्ने के साथ मिलेट्स उत्पादन के लिए प्रेरित किया।
गन्ने के उत्पाद
अरेंद्र बड़गोती फ़सल उगाने के साथ ही गन्ने से कई तरह की चीज़ें बनाकर बेच रहे हैं। जैसे लड्डू, सिरका आदि। गन्ने के लड्डू बनाने के लिए गन्ने के रस को पकाकर चाश्नी बनाई जाती है। इसका लड्डू बहुत सॉफ्ट बनता है। इसमें किसी तरह का केमिकल नहीं होता है। इसके अलावा वो सेब का सिरका, रागी के बिस्किट, ज्वार का समोसा जिसमें मूंग दाल की स्टफिंग होती है, भी बना रहे हैं। उनका कहना है कि मिलेट्स से बने उत्पादों में नमी न लगे इसके लिए सही तरीके से पैकिंग करना बहुत ज़रूरी है।
कितने किसान जुड़े हैं
फैमिली फ़ार्म FPO से 150 से अधिक किसान तो जुड़े है हीं, साथ ही पुराने किसान साथी भी कंपनी के साथ जुड़े हुए हैं। वो बताते हैं कि जब उन्होंने जैविक गन्ने की खेती में लोगों को जोड़ना शुरू किया, तो किसान जल्दी आगे नहीं आए। जब 2-3 साल बाद उन्होंने अरेंद्र का काम देखा तो उन्होंने भी छोटे पैमाने पर जैविक खेती शुरू की। वो किसानों से कहते हैं कि पहले बस इतना उगाओ कि उनका परिवार खा सके, जब वो खुद खाएंगे और फ़सल की शुद्धता का पता चलेगा तो वो दूसरों के लिए भी उगाने के लिए प्रेरित होगें।
कैसे करते हैं मार्केटिंग
प्रगतिशील किसान अरेंद्र बड़गोती कहते हैं कि फ़सल को सीधे मंडी में लाने से ज़्यादा मुनाफ़ा नहीं होता है। उन्होंने अपनी फ़सल की मार्केटिंग के लिए अनोखी तरकीब निकाली। ट्रायल के लिए उन्होंने 2 महीने तक अपनी पहचान वालों को मुफ्त में पालक खिलाई, फिर जब दूसरी सब्ज़ियां तैयार हो गई, तो सबको बताया कि बाज़ार भाव पर ही आपको घर तक जैविक सब्ज़ियां पहुंचा दी जाएगी।
जब कोई एक ये सब्ज़ी खाता है तो अपने आप-पास के दूसरे लोगों क बताता है, जिससे माउथ पब्लिसिटी हो जाती है और ग्राहकों को जोड़ने का ये बेहतरीन तरीका है। अरेंद्र कहते हैं कि उनके उत्पाद पूरी तरह से प्रिज़र्वेटिव फ्री और ऑर्गेनिक है, इसलिए एक बार इस्तेमाल करने वाले इसके साथ जुड़ जाते हैं।
अरेंद्र बड़गोती किसानों को सलाह देते हैं कि जैविक खेती की शुरुआत अपने परिवार की ज़रूरत पूरी करने के लिए करें और जब उन्हें इसकी आदत हो जाए और कुछ साल में ज़मीन भी इसके लिए तैयार हो जाती है, फिर इसकी खेती करें। वहीं वो शहरी लोगों से अपील करते हैं कि वो उनके जैसे किसानों द्वारा तैयार जैविक उत्पादों को खरीदें, भले ही वो थोड़ा महंगा लगे आपको मगर वो सेहत के लिए फ़ायदेमंद होता।
अगर आप भी अरेंद्र बड़गोती से जैविक उत्पाद मंगवाना चाहते हैं या उनके FPO से जुड़ना चाहते हैं तो इस व्हाट्सअप नंबर पर संपर्क कर सकते हैं- 8954622048
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