Sustainable Agriculture: सतत कृषि क्या है? राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन कैसे दे रहा अपना योगदान, जानिए विस्तार से

ये तो सभी जानते हैं कि भारत की कृषि का मुख्य आधार वर्षा है। देश की कृषि का कुल बोया क्षेत्र का लगभग 60 फीसदी है। वहीं कुल खाद्य उत्पादन का 40 प्रतिशत है। जो वर्षा आधारित कृषि के विकास और देश में खाद्यान्न की बढ़ती मांगों को पूरा करने की चाभी है। इसी को देखते हुए भारत सरकार की ओर से कृषि उत्पादकता में और तेज़ी लाने के लिए राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) भी तैयार किया गया है। इसके तहत इंटीग्रेटेड खेती, जल का उपयोग, मृदा स्वास्थ्य और उसके प्रबंधन के साथ ही संसाधनों के संरक्षण में पूरा फोकस करने और तालमेल सेट करने के लिए तैयार किया गया है।

Sustainable Agriculture: सतत कृषि क्या है? राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन कैसे दे रहा अपना योगदान, जानिए विस्तार से

हम ये साफ कह सकते हैं कि भारत कृषि का पावरहाउस है। हिंदुस्तान, डेयरी के साथ ही मसालों, कई फसलों जैसे कपास, आलू, अनाज, मछली, सब्जियों और फलों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत कृषि के मामले में कई विकसित देशों को पीछे छोड़ रहा है। ऐसे में सतत कृषि (Sustainable Agriculture) के साथ भारत विकास के रास्ते पर तेजी के साथ बढ़ता जा रहा है।

टिकाऊ इस्तेमाल को बढ़ावा देकर कृषि विकास में बढ़ोत्तरी

ये बात काफी अहम है कि कृषि उत्पादकता को बनाए रखने के लिए मिट्टी और पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की गुणवत्ता और उसकी उपलब्धता को बेहतर तरीके से बनाए रखना चाहिए। प्रकृति के अमूल्य और दुर्लभ संसाधनों के संरक्षण के साथ-साथ उनका टिकाऊ इस्तेमाल को बढ़ावा देकर ही कृषि विकास में बढ़ोत्तरी की जा सकती है।

राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन से कृषि उत्पादकता में तेज़ी  

ये तो सभी जानते हैं कि भारत की कृषि का मुख्य आधार वर्षा है। देश की कृषि का कुल बोया क्षेत्र का लगभग 60 फीसदी है। वहीं कुल खाद्य उत्पादन का 40 प्रतिशत है। जो वर्षा आधारित कृषि के विकास और देश में खाद्यान्न की बढ़ती मांगों को पूरा करने की चाभी है। इसी को देखते हुए भारत सरकार की ओर से कृषि उत्पादकता में और तेज़ी लाने के लिए राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) भी तैयार किया गया है। इसके तहत इंटीग्रेटेड खेती, जल का उपयोग, मृदा स्वास्थ्य और उसके प्रबंधन के साथ ही संसाधनों के संरक्षण में पूरा फोकस करने और तालमेल सेट करने के लिए तैयार किया गया है।

कृषि और खाद्य श्रृंखलाओं को बदलते पैटर्न के साथ कदमताल

जलवायु से संबंधित स्मार्ट कृषि लक्ष्यों को पाने के लिए आर्थिक विकास और टिकाऊ उत्पादन के साथ उपभोग के पैटर्न को बढ़ाना भी ज़रूरी है। कृषि और खाद्य श्रृंखलाओं को बदलते हुए मौसम के साथ कदमताल और अधिक लचीला बनाना भी उपयोगी साबित हो रहा है। राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन भी इन्हीं उद्देश्यों को पूरा कर रहा है।

जलवायु परिवर्तन परिषद (पीएमसीसीसी)

राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन भारत सरकार के द्वारा जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) के तहत आठ मिशनों में से एक है। साल 2010 में प्रधान मंत्री की ओर से जलवायु परिवर्तन परिषद (पीएमसीसीसी) के ‘सैद्धांतिक रूप से’ मंजूरी प्रदान की गई थी। इसका उद्देश्य समन्वय के अनुकूलन उपायों की श्रृंखला को तैयार करते हुए टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देना है।

सतत कृषि (Sustainable Agriculture) के लिए बायोमास इंडिया इनिशिएटिव

सतत कृषि (Sustainable Agriculture) के लिए देश में बायोमास इंडिया इनिशिएटिव शुरू किया गया था, जो निगेटिव क्लाइमेट इंपैक्ट को पॉजिटिव क्लाइमेट प्रोडक्ट में बदल देता है। जिसमें कई तरह के व्यापार मेलों, प्रदर्शनियों और बिजनेस मिशन को लेकर एक साथ आगे बढ़ते हैं।

वहीं सतत कृषि (Sustainable Agriculture) को नया आयाम देने के लिए ‘उन्नत बीज, पशुपालन, मछली पालन, कीट प्रबंधन, कृषि बीमा, किसान क्रेडिट, समेत बाजार तक फसलों की पहुंच शामिल है।

सतत कृषि (Sustainable Agriculture) के साथ भारत को फायदा

  1. सतत कृषि (Sustainable Agriculture) के साथ पर्यावरण को संरक्षण देना
    सतत कृषि पर्यावरण को संरक्षण प्रदान करने का काम बखूबी कर रही है। जिसमें इकोसिस्टम, मिट्टी, पानी के साथ ही बायोडायवर्सिटी पर पड़ने वाले गंभीर प्रभाव को कम करने का काम किया है। सतत कृषि की मदद से पानी की समस्या को दूर करने का काम किया जा रहा है। इसके साथ ही मृदा की गुणवत्ता को भी बेहतर किया जा रहा है।
  2.  रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को कम करना
    सतत कृषि के साथ रासायनिक उर्वरकों के प्रभाव को कम किया जाता है। इससे मृदा की गुणवत्ता को नियोजित किया जाता है। कीटनाशकों के इस्तेमाल से बचाव होता है। फसल चक्र को व्यवस्थित किया जाता है।
  3. सतत कृषि (Sustainable Agriculture) के ज़रीये मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन
    सतत कृषि के अंतर्गत मृदा स्वास्थ्य का बेहतर तरीके से प्रबंधन करना, पोषक तत्वों का प्रबंधन, मृदा की उर्वरता को जांचने के साथ जैविक खेती पद्धतियों को बढ़ावा देना शामिल है। बडे़ स्तर पर फील्ड पर वैज्ञानिकों के द्वारा सर्वेक्षणों के आधार पर भूमि और मृदा मानचित्रों और डाटाबेस को बनाना। इसके साथ ही भौगोलिक सूचना प्रणाली के ज़रीये नई पद्धतियों को भी विकसित किया जाता है।
  4. जल का सही इस्तेमाल और खरपतवार नियंत्रण
    सतत कृषि के साथ फसलों में जल के उचित प्रबंधन को बेहत किया जाता है। इसके साथ ही साथ भूमि पर खरपतवारों को भी नियंत्रित किया जाता है। जिसमें नाषी रसायनों के जैविक तरीके भी इस्तेमाल करते हैं, जिससे प्रदूषण को बढ़ने से रोका जा सके।
  5. फसल चक्र के जरीये किसानों को लाभ पहुंचाना
    फसल चक्र भारत में लगभग 30 मिलियन हेक्टेयर भूमि को कवर करता है। इसके साथ लगभग 15 मिलियन किसानों का साथ देता है। कृषि वानिकी (agroforestry) जो अभी बड़े किसानों के बीच फेमस है सतत कृषि की मदद से छोटे और मध्यम किसानों को भी लाभ देने की कोशिशों में लगी है।
  6. सतत कृषि (Sustainable Agriculture)  ऑप्शन 
    टिकाऊ कृषि और पारंपरिक इनपुट-सघन (input-intensive) कृषि के लिए एक बहुत जरूरी ऑप्शन देता है। जिसमें लंबे प्रभावों में ऊपरी मिट्टी का ख़राब होना, भूजल स्तर में गिरावट और जैव विविधता में कमी शामिल है।

राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (National Sustainable Agriculture Mission) का उद्देश्य

  • सतत कृषि में मृदा की उर्वरता को न सिर्फ बनाये रखता हैं बल्कि उसमें बढ़ोत्तरी भी करता है।
  • सतत कृषि के ज़रीये फसलों में पोषक तत्वों को संतुलित किया जाता है और उनको उपयोगी बनाया जाता है।
  • भूमिगत जल स्तर को बेहतर ढ़ग से बनाए रखना।
  •  केमिकल के बहुत ज्यादा इस्तेमाल से प्रदूषण का कम होना।
  • प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर तरीके से इस्तेमाल करना

राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (National Sustainable Agriculture Mission) के कार्यात्मक क्षेत्र

राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के कई कार्य क्षेत्र हैं, जिसके अंतर्गत रिसर्च और डेवलपमेंट, टेक्नोलॉजी, प्रोडक्ट, बुनियादी ढांचे और क्षमता निर्माणओं का निर्माण करना शामिल है। ये मिशन अपने कामों के आधार पर अलग-अलग 10 आयामों के आस-पास घूमता है।  जिसमें बेहतर कृषि पद्धतियों की बढ़ोत्तरी के लिए बीजों का चयन और पानी का छिड़काव शामिल है। इसके साथ ही कीट व पोषक तत्वों व कृषि पद्धतियों अच्छे ढंग से लागू करना, ऋण, बीमा, बाजार, सूचना और आजीविका विविधीकरण ( Livelihood Diversification ) भी इसमें आते हैं। वहीं रिस्क मैनेजमेंट, नॉलेज, रिसर्च, जैव-प्रौद्योगिकी, ड्राईलैंड एग्रीकल्चर इस मिशन के अहम वर्क एरिया है।

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