अडानी ग्रुप ने कहा, नहीं की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और न करेंगे, जानिए पूरा मामला

अडानी समूह की कंपनी अडानी एग्री लाजिस्टिक्स ने फार्म बिल प्रोटेस्ट पर चुप्पी तोड़ी है। अडानी एग्री लॉजिस्टिक्स ने एक […]

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अडानी समूह की कंपनी अडानी एग्री लाजिस्टिक्स ने फार्म बिल प्रोटेस्ट पर चुप्पी तोड़ी है। अडानी एग्री लॉजिस्टिक्स ने एक स्पष्टीकरण जारी किया है। स्पष्टीकरण में कहा गया है कि कंपनी किसानों से सीधे अनाज नहीं खरीदती है, और ना कांट्रेक्ट खेती का काम करती है। भविष्य में भी कंपनी का ऐसा कुछ करने का इरादा नहीं है।

अडानी एग्री लॉजिस्टिक्स का कहना है कि वो किसानों से अनाज नहीं खरीदती, बल्कि वह अनाज भंडारण की सेवाएं देती है। कंपनी ने अनाज भंडारण के लिए जो गोदाम (साइलो) बनाए हैं, वह प्रोजेक्ट उसने 2005 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की निविदा के तहत ऑक्शन में हासिल किया। बता दें, 2005 में केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार सत्ता में थी।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ना किया, ना करने का है इरादा

फार्म बिल प्रोटेस्ट में बिल के माध्यम से उद्दोगपतियों को फायदा पहुंचाने की बात जोरों से उठायी गयी है। आरोप लगे हैं कि बड़ी कंपनियों को पहले से इस बिल के बारे में जानकारी थी। इस बाबत बड़ी कंपनियां कृषि क्षेत्र में कारोबार करने लगी। इन आरोपों को अडानी एग्री लॉजिस्टिक्स के उपाध्यक्ष पुनीत मेंहदीरत्ता ने नाकार दिया है। उन्होंने कहा कि,”कंपनी ठेका खेती का काम नहीं करती है। भविष्य में भी कंपनी का ऐसा कोई इरादा नहीं है। यह आरोप भी गलत है कि ठेका खेती के लिए कंपनी पंजाब-हरियाणा में जमीन अधिग्रहण कर रही है।”

15 सालों से दे रहे भंडारण की सुविधा

गोदामों के बारे मेंहदीरत्ता बताते हैं कि कंपनी कृषि बुनियादी ढांचा क्षेत्र में कई सालों से काम कर रही है। अडानी एग्री लॉजिस्टिक्स देश की पहली एकीकृत भंडारण और परिवहन परियोजना है। इसके लिए 2005 में सरकार ने निविदा की प्रक्रिया पूरी की थी। कंपनी ने सात जगहों पर अनाज भंडारण के लिये गोदाम तैयार किए हैं। रेलवे तक अनाज पहुंचाने के लिए रेलवे साइडिंग्स बनाये गए हैं।अडानी एग्री लाजिस्टिक्स भंडारण सुविधाओं का निर्माण पिछले 15 साल से कर रही है।

क्या होती है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग?

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसान किसी कंपनी के लिए अपनी जमीन पर खेती तो करता है। इसमें किसान का पैसा खर्च नहीं होता है। कोई कंपनी या फिर कोई आदमी किसान के साथ अनुबंध करता है। किसान की फसल को कॉन्ट्रैक्टर एक तय दाम में खरीदता है। इसमें खाद और बीज से लेकर सिंचाई तक, सारे खर्च कॉन्ट्रैक्टर के होते हैं।

किसान क्यों कर रहे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का विरोध?

कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का प्रदर्शन जारी है। किसानों की आशंका है कि इन कानूनों की वजह से उनकी खेती पर कॉर्पोरेट कंपनियों का कब्जा हो जाएगा। किसानों का यह भी कहना रहा है कि कंपनी के साथ किसी विवाद की स्थिति में उन्हें कोर्ट जाने की अनुमति नहीं है। स्थानीय प्रशासन पर उन्हें भरोसा नहीं है। कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग को लेकर किसान चिंतित और डरे हुए हैं। उधर, सरकार का कहना है कि यह बिल किसानों को उनकी फसलों की कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचाएगा।

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