किसानों का Digital अड्डा

पान के पत्तों (Betel Leaves) की उम्दा क्वालिटी के लिए जैविक खेती को अपनाएँ तो होगी ज़्यादा कमाई

पान की बुआई के दो महीने बाद से इसकी उपज मिलने लगती है, पान का कोई बीज नहीं होता है

हरेक 15-17 दिन पर पान की लताओं पर उगी निचली पत्तियों को तोड़ा जाता है क्योंकि वो पर्याप्त रूप से विकसित हो जाती हैं। इस तरह पान की उपज पूरे साल मिल सकती है। हरेक दो सप्ताह बाद पान के पत्तों को बेचकर कमाई करने का मौका मिलता रहता है।

0

बिहार कृषि विश्वविद्यालय से जुड़े नालन्दा ज़िले के इसलामपुर में मौजूद मगही पान अनुसन्धान केन्द्र के प्रभारी वैज्ञानिक (पौधा रोग) प्रभात कुमार का पान उत्पादक किसानों के लिए मशविरा है कि गुणवत्तायुक्त पान के पत्तों की पैदावार के लिए जैविक खेती की विधियों को अपनाना बेहद उपयोगी और फ़ायदेमन्द है। जैविक खेती में पान के पत्तों की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए नाइट्रोजन की भरपाई जैविक खाद (वर्मी कम्पोस्ट), सरसों, अरंडी, तिल और नीम की खली तथा जीवाणु खाद (एजोटोबैक्टर) के ज़रिये की जानी चाहिए। मटका खाद (संजीवनी खाद) का इस्तेमाल भी पान के निरोगी पत्तों की अच्छी पैदावार में सहायक होता है। रासायनिक खाद के लिहाज़ से देखें तो प्रति हेक्टेयर 200 किग्रा नाइट्रोजन और 100-100 किग्रा फॉस्फोरस तथा पोटाश के इस्तेमाल करना चाहिए।

पान की पैदावार के लिए खेत का चुनाव

वैसे तो पान की लताएँ हरेक तरह की मिट्टी में उगायी जाती हैं। लेकिन मिट्टी को उपजाऊ यानी खनिज और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर होना चाहिए। पान के खेत की स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि वहाँ किसी भी हालत में पानी जमा नहीं हो सके। फिर चाहे ये पानी नियमित सिंचाई का हो या बारिश का। पान को ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है, इसीलिए खेत को चुनते वक़्त पानी के निरन्तर स्रोत का ध्यान रखना चाहिए। पान की लताएँ बहुवर्षी होती हैं। इसकी नयी फसल लगाने पर पैदावार ज़्यादा मिलती है जो आगामी वर्षों में घटती जाती है। इसीलिए पेशेवर पान उत्पादक किसान एक बुआई से तीन से ज़्यादा फसलें लेना पसन्द नहीं करते।

ये भी पढ़ें – पान की खेती (Betel Leaf Farming) को सुरक्षित और किफ़ायती बनाने के लिए ‘शेड-नेट हाउस’ की तकनीक अपनाएँ और बढ़ाएँ कमाई

पान की नयी फसल बोने से पहले खेत को मिट्टी जनित रोगों से मुक्त करना बहुत ज़रूरी है। नयी बुआई के लिए खेत में अप्रैल-मई गहरी जुताई करनी चाहिए। इससे कड़ी धूप से मिट्टी के हानिकारक कीड़े, उनके अंडे, लार्वा और प्यूपा मर जाएँगे तथा मिट्टी जनित फफूँद, रोगवाहक जीवाणु, कृमि और खरपतवार से मुक्त हो जाएगी। बरेजा निर्माण से 25 दिन पहले अन्तिम जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लेते हैं। फिर 0.25% बोर्डेक्स मिश्रण और गोबर की खाद तथा ट्राइकोडर्मा विरिडी पाउडर भी डाला जाता है। इससे मिट्टीजनित रोग ख़त्म हो जाते हैं और पैदावार अच्छी मिलती है।

पान में लगने वाले रोग और कीट
रोग और कीट रोग का कारकलक्षण/पहचानउपचार और प्रबन्धन
1. पत्ती सड़न और पद गलन रोगफफूँद: फाइटोपथोरा पैरासिरिका किस्म पाइपरिनाबरसात में पत्तियों पर गोल काले या भूरे रंग के धब्बे बनना, बेल के जड़ और तने के बीच के भाग यानी कॉलर भाग में सड़न या गलन से पौधों का मर जानाजल निकासी की उत्तम व्यवस्था, रोपाई से पहले पान की बेल को 0.5% ब्रोडो के घोल से उपचारित करे और 1% ब्रोडो या ट्राइकोड्रमा विरीडी को नीम की खली के (1:100) साथ मिलाकर खेत में डालें
2. उकठा / तना गलन/ कॉलर गलन रोगफफूँद: स्केलेरोशियम रोल्फसाईपौधे के कॉलर भाग पर उजले रंग के कवक जाल जिसमें सरसों के दाने के समान काले ‘स्कलेरोशियम’ का पाया जाना और इससे पौधों का सूखनाबरेजा में साफ़-सफ़ाई रखना, रोगग्रस्त पत्तियों, तना और बेल को नष्ट करना तथा ट्राइकोड्रमा विरीडी को नीम के खली को खेत में डालना
3. पत्र-लाँछन/ श्यामवर्ण रोगफफूँद: कोलेटोट्राइकम केपसीसीपत्तियों पर काले-भूरे रंग का ऐसा गोल धब्बा बनना जिसके किनारे पीले हों।  इससे पत्तियाँ बदरंग दिखती हैं।कार्बेल्डाजीम (1%) घोल का 15 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव
4. चूर्णित आसिता रोग (पाउडरी मिल्डीप)फफूँद: ओएडियम पाइपरिसपत्तियों की ऊपरी सतह पर सफ़ेद पाउडर और हल्के रंग का धब्बा बनना तथा पत्तियों का सूख जानासल्फेक्स (0.2%) घोल का 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव
5. लाँछन/ पत्ती झुलसा/ तना कैंसर रोगजीवाणुः जैन्थोमोनस कमेस्ट्रिस किस्म-वेटलीकोलापत्तियों के सतहों पर जलधारित अनियमित आकार की शिराओं से सटे भूरे रंग के धब्बे, जिनके किनारे पीले होते हैं।कॉपर आक्सीक्लोराईड (0.25%) या 0.5% स्ट्रेपटोसाइक्लीन घोल का 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव
6. दीमकरेड स्पाईडर माइट (टेट्रानिक्स स्पेसिस)पत्तियों का पीला पड़ना और सूख जानासल्फेक्स (0.15%) + नीम तेल (0.03 %) घोल का छिड़काव
7. कीट (मिली बग)मिली बग (फेरिसिया विरगाटा)ये कीट नये पत्तियों और तना के अग्रभाग को चूसता है, जिससे पत्तियाँ मुड़ जाती हैं।नीम का तेल या सीड करनेल इक्सट्रेट 5% या 0.5% तेल का छिड़काव
8. सूत्रकृमि (nematode)मेलाइडोगाईनी इनकोगनिटा और रोटीलेन्कस स्पेसिसपत्तियों का पीला पड़ना तथा पौधों को छोटा होनापेसिलोमाइसीज लिलेसिनस का नीम के खली (0.5 टन प्रति हेक्टेयर) के साथ मिट्टी में मिलाना
स्रोत: मगही पान अनुसन्धान केन्द्र, इसलामपुर, नालन्दा

पान की लताओं की बुआई

पान की बेलें ही उसके बीज का काम करती हैं। इसकी रोपाई के लिए दो मौसम उपयुक्त हैं – पहला फरवरी के आखिरी सप्ताह से मार्च के मध्य तक तथा दूसरा, जून के तीसरे सप्ताह से अगस्त तक। नयी फसल के बीज के रूप में पिछली फसल के बेल के ऊपरी 1 मीटर लम्बे टुकड़े को काटकर ही इसे ज़मीन में रोप देते हैं। एक हेक्टेयर के लिए 1-3 गाँठ वाली 1.5 लाख बीजक लताओं की ज़रूरत पड़ेगी। रोपाई से पहले बीजक लताओं को रोगों से बचाने के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के घोल (3 ग्राम दवा 10 लीटर पानी में) में डालने के बाद 0.5 % बोर्डो मिश्रण या डायथेन एम-45 के घोल (25 ग्राम दवा 10 लीटर पानी) या 0.5% ट्राइकोड्रमा विरीडी में 15-20 मिनट तक उपचारित किया जाता है।

बुआई के बाद जो लताएँ ज़मीन में पनप नहीं पाएँ और मर जाएँ उनकी जगह यथाशीघ्र नयी बीजक लताओं की रोपाई करनी चाहिए। रोपाई के बाद सूखे पुआल को साफ़ पानी में भींगाकर पान की बेलों को ढका जाता है। मल्चिंग की इस प्रक्रिया से मिट्टी की नमी देर तक टिकती है। रोपाई के वक़्त एक से दूसरे सपरा के बीच एक मीटर की दूरी होनी चाहिए। सपरा और नाली की चौड़ाई 50-50 सेमी होनी चाहिए। नाली का उपयोग सिंचाई तथा अन्य कार्यों के लिए करते हैं। सपरा पर दो कतारों के बीच 30 सेमी की दूरी तथा पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी होनी चाहिए।

पान की बेलें ही उसके बीज का काम करती हैं
पान की बेलें ही उसके बीज का काम करती हैं

पान की पत्ती तोड़ना, वर्गीकरण और भंडारण

पान की बुआई के दो महीने बाद से इसकी उपज मिलने लगती है। लेकिन इससे पहले जैसे ही पानी की लताएँ अपनी जड़ें मिट्टी में जमा लेती हैं वैसे ही पान बंधाई का काम करते हैं। इसके तहत हरेक लता को डोरियों से बाँधकर तेज़ी से ऊपर बढ़ने के प्रोत्साहित करते हैं। इससे लताएँ तेज़ी से बढ़ती हैं और पत्तियाँ जल्द ही तोड़ने लायक बन जाती हैं। बुआई के समय कटिंग के साथ जो पत्ते लगे रहते हैं, उन्हें सबसे पहले तोड़ा जाता है। इन्हें पेड़ी का पान कहते हैं।

हरेक 15-17 दिन पर पान की लताओं पर उगी निचली पत्तियों को तोड़ा जाता है क्योंकि वो पर्याप्त रूप से विकसित हो जाती हैं। जनवरी-फरवरी में पान की आख़िरी तुड़ाई की जाती है। यदि पान अच्छा और बीज लायक है तो मार्च माह में लताओं को तोड़कर ज़मीन पर लिटा देते हैं। इनके नयी बेलें बनने तक हल्की सिंचाई की जाती है। उपज लेने के लिए होने वाली तुड़ाई के बाद पान के पत्तों की सफ़ाई-धुलाई करके इन्हें पत्तों की आकार के हिसाब से छाँटा जाता है। फिर बाँस से बनी टोकरियों में गीले कपड़े या जूट से बने हवादार खोल के बीच क्रमबद्ध ढंग से सज़ाकर रखते हैं और इसे पुआल या घास से ढककर उसके ऊपर पानी छिड़ककर नमी को पर्याप्त बनाकर रखते हैं।

पान उत्पादक किसान इन्हीं टोकरियों को पान की मंडी यानी पान दरीबा में पहुँचाते हैं। वहीं इनका कारोबार होता है। नये पान की फसल से 100 से 125 क्विंटल (औसतन 80 लाख) प्रति हेक्टेयर पान के पत्तों का उत्पादन होता है, जबकि दूसरे और तीसरे साल की फसल से 80 से 120 क्विंटल (औसतन साठ लाख) प्रति हेक्टेयर पान के पत्ते प्राप्त होते हैं।

पान के पत्तों की प्रोसेसिंग

चौरसिया बिरादरी के लोग पुश्तैनी तौर पर पान के खेती से लेकर इसके कारोबार की हरेक गतिविधि में अपना दबदबा रखते हैं। इनके ही पुरखों ने बनारसी पान के सफ़ेद पत्ते को तैयार करने या पकाने की तकनीक विकसित की है। इसमें पान के पत्तों वाली बाँस निर्मित टोकरी को ‘पान भट्टी’ में पकाया जाता है। ‘पान भट्टी’ उस कमरे को कहते हैं जिसमें ज़मीन से 1.5 फीट ऊँचे तख़्त पर टोकरियों में पान के पत्तों को रखा जाता है। फिर वहाँ जलते कोयले के चूल्हों को रख दिया जाता है, ताकि ‘पान भट्टी’ का तापमान 60 से 70 डिग्री सेल्सियस हो जाए।

इस गर्म माहौल में पान की टोकरी को 5-6 घंटे तक रखने के बाद ठंडा होने दिया जाता है। इस प्रक्रिया को तीन-चार बार करने से पान के हरे पत्ते सफ़ेद हो जाते हैं। इसके बाद पकाये गये पत्तों को छाँट लेते हैं और अधपके पत्तों को फिर से ‘पान भट्टी’ की प्रक्रिया से गुज़ारा जाता है। इस तरह तैयार हुए सफ़ेद पान को बनारसी पान कहते हैं। ये पान मुलायम, स्वादिष्ट और काफ़ी महँगे होते हैं। इसे हरे पत्तों के मुकाबले इन्हें ज़्यादा दिनों तक सुरक्षित रख सकते हैं।

ये भी पढ़ें: कुसुम की खेती: क्यों फसल चक्र में बेजोड़ है कुसुम (safflower)? क्या है बढ़िया कमाई पाने की उन्नत तकनीक?

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.