सरोगेसी यानी भ्रूण स्थानांतरण तकनीक (Embryo transfer technology) अच्छी नस्ल के जानवरों के संरक्षण के लिए एक वरदान बनकर आई है। अब इसका प्रयोग घोड़ों पर भी किया जा रहा है। देसी नस्ल के घोड़ों की संख्या पिछले कुछ सालों से लगातार कम होती जा रही है। ऐसे में उनके सरंक्षण के लिए वैज्ञानिक नई नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने बहुत ही ख़ास मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों (Marwari Horse) की संख्या बढ़ाने के लिए एक सफ़ल प्रयोग किया। उन्होंने इंसानों की तरह ही घोड़ी में Embryo transfer technology यानी भ्रूण स्थानांतरण तकनीक का इस्तेमाल किया जिससे देश के पहले मारवाड़ी घोड़े का जन्म हुआ। इस तकनीक की सफलता ने भविष्य में घोड़ों की संख्या बढ़ाने के लिए एक नई राह दिखाई है।
‘राज-प्रथमा’ का जन्म
सरोगेसी के बारे में तो आप सभी जानते ही हैं। जब कोई महिला गर्भधारण नहीं कर पाती है, तो उसके अंडों को दूसरी महिला के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। वो दूसरी महिला सरोगेट मदर कहलाती है। इसी तरह की तकनीक का इस्तेमाल अब घोड़ों की संख्या बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। ICAR-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान के बीकानेर स्थित इक्वाइन प्रोडक्शन कैंपस (Equine Production Campus) में पहली बार मारवाड़ी नस्ल की घोड़ी में भ्रूण स्थातंरण तकनीक का प्रयोग किया गया।
यानी एक घोड़ी के एग्स को फर्टिलाइज़ करके सरोगेट मां (घोड़ी) में स्थानांतरित किया गया। इससे देश के पहले मारवाड़ी घोड़े के बच्चे का जन्म हुआ, जिसका नाम रखा गया ‘राज-प्रथमा’। इस तकनीक में ब्लास्टोसिस्ट चरण (गर्भाधान के 7.5 दिन बाद) में एक निषेचित भ्रूण यानी फर्टिलाइज़्ड एम्ब्रो को एक घोड़ी से लेकर सरोगेट मां में स्थानांतरित कर दिया गया।
मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की घटती संख्या
पशुधन गणना, डीएएचडी 2023 के मुताबिक, देश में मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों (Marwari breed Horses) की संख्या तेज़ी से घट रही है। साल 2019 में हुई 20वीं पशुगणना के मुताबिक़ देश में मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की संख्या 33,267 है। घोड़ों और टट्टुओं की सभी नस्लों की संख्या करीब 3 लाख 40 हज़ार है जो 2012 में करीब 6 लाख 40 हज़ार थी। ज़ाहिर सी बात है कि दूसरी नस्लों से साथ साथ मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की संख्या भी कम हो रही है।
ऐसे में सरोगेसी यानी भ्रूण स्थानांतरण तकनीक की सफलता, उम्मीद की किरण बनकर उभरी है। इसकी मदद से घोड़ों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। देश में घोड़ों के सरंक्षण और प्रसार के लिए ICAR-NRCE काफी प्रयास कर रहे हैं। इसी कोशिश के तहत पिछले साल राष्ट्रीय पशुधन मिशन में मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों के भ्रूण सरंक्षण के लिए एक करोड़ रुपए की परियोजना को मंजूरी दी गई।
भ्रूण स्थानांतरण तकनीक से मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की संख्या बढ़ाई भी जा सकती है। वैज्ञानिकों की टीम ने अब तक 10 मारवाड़ी घोड़ों के भ्रूणों का विट्रिफिगेशन सफलतापूर्वक किया है और आगे इन्हीं का भ्रूण संरक्षित भी किया जाएगा ।
मारवाड़ी नस्ल की खासियत
घो़ड़ों की इस नस्ल का नाम राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र पर पड़ा है, क्योंकि ये नस्ल मारवाड़ क्षेत्र में ही पाई जाती है। मारवाड़ क्षेत्र में राजस्थान के उदयपुर, जालोर, जोधपुर और राजसमंद जिले के साथ ही गुजरात के कुछ नज़दीकी क्षेत्र भी शामिल हैं। मारवाड़ी घोड़ों को खासतौर पर सवारी और खेल के लिए पाला जाता है। ये दिखने में बहुत आकर्षक होते हैं।
मारवाड़ी घोड़ों का शरीर 130-140 सेमी. लंबा होता है, जबकि ऊंचाई 152-160 सेमी. तक होती है। इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी दूसरे घोड़ों से अधिक होती है, और ये काठियावाड़ी घोड़ों की तुलना में लंबे होते हैं। मज़बूत और आकर्षक होने के कारण ही इस नस्ल के घोड़े, घुड़सवारों की पहली पसंद होते हैं।