फसलों में केमिकल उर्वरक इसलिए डाली जाती है ताकि,फसलों से अच्छी उपज मिले। मगर अच्छी उपज के लालच में केमिकल उर्वरकों (Chemical Fertilizers) का किसानों द्वारा जरूरत से ज़्यादा इस्तेमाल करने से फसल बेहतर होने के बजाय खराब होने लगी। दरअसल, हर पौधे की अपने विकास के लिए पोषक तत्वों की अपनी मांग होती हैं, लेकिन फसलो को कब और कितनी उर्वरक की जरूरत पड़ेगी यह बड़ा सवाल किसानों के सामने थी।
विशेष तौर पर देश में सबसे ज्यादा बोई जाने वाली गेहूं, धान और मक्का की फसलों में, नाईट्रोजन (Nitrogen) यानि यूरिया के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि यूरिया के ज़्यादा इस्तेमाल से गेहूं, धान और मक्का पर कीटों और बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है, और साथ ही उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, वहीं दूसरी ओर किसानों की लागत भी बढ़ जाती है।
कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित की तकनीक
फसलों में यूरिया के अत्यधिक इस्तेमाल को कंट्रोल करने के उद्देश्य से कृषि वैज्ञानिकों ने कस्टमाइजड लीफ-कलर-चार्ट (सीएलसीसी) तकनीक विकसित की है। इस चार्ट के माध्यम से किसान फसलों में दी जाने वाली यूरिया का सटीक अनुमान लगाकर उचित मात्रा का इस्तेमाल कर सकते हैं । किसान सीएलसीसी तकनीक का इस्तेमाल कर अपनी धान गेहूं और मक्का की फसल में लागत कम करते हुए बेहतर उत्पादन ले सकते हैं।
पत्तियों के रंग से नाइट्रोजन (यूरिया) की अधिकता और कमी की पहचान
दरअसल, इस काम में गेहूं, धान और मक्का के पत्तियों का रंग बहुत मददगार होता है, इसमे पत्तियों की हरियाली को सकेंत सूचक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। फसल को मिट्टी से नाइट्रोजन की उचित मात्रा मिल रही है या नहीं, पत्तियों के हल्के और गहरे हरे रंग के आधार पर तय किया जाता है। सीएलसीसी तकनीक में लीफ कलर चार्ट (Leaf Color Chart) एक प्लास्टिक शीट है, जिसमें 6 कॉलम गहरे हरे से पीले-हरे रंग तक के बने होते हैं। प्रत्येक कालम की नंबरिग होती है और पत्तियों के मिलान के बाद निर्धारित कॉलम नंबर के अनुसार फसल में यूरिया की मात्रा दी जाती है।
ये चार्ट बाजारों में आसानी से 50-60 रुपये में मिल जाते हैं, चार्ट के अनुसार पत्तियों का रंग जितना गहरा होगा, उसमें नाइट्रोजन की मात्रा उतनी ही अधिक होगी। जाहिर है कि, फसल में यूरिया की जरूरत कम होगी, अगर पौधों में नाइट्रोजन की मात्रा कम होगी तो फसल की पत्तियों का रंग भी हल्का हरा या पीला होगा।
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गेहूं की फसल में सीएलसीसी तकनीक के संतुलित मात्रा में यूरिया का प्रयोग
इस समय रबी सीजन में गेहूं की फसल शुरुआती दौर में खेतों में खड़ी है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा के फसल विज्ञान के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि, समय पर बोए गए गेहूं की फसल के लिए बुवाई के समय 40 किलों यूरिया प्रति एकड़ दर से प्रयोग करना चाहिए। 15 दिसंबर के बाद यानि देर से बोई गई गेहूं फसल के लिए 25 किलो यूरिया प्रति एकड़ डालना चाहिए, इसके बाद गेहूं की फसल में दूसरी सिंचाई के समय फसल में यूरिया का प्रयोग सीएलसीसी तकनीक के आधार पर करना बेहद फायदेमंद होता है ।
डॉ. राजीव के अनुसार पहले एक ही गेहूं के खेत के अलग–अलग जगह से 10 स्वस्थ प्रतिनिधि पौधों का चुनाव करें, अगर इन चयनित छह या अधिक प्रतिनिधि पौधों की पत्तियों का रंग एलएससी के कॉलम 5 या 6 से मेल खाता है, तो 15 किलो यूरिया प्रति एकड़ का उपयोग करना चाहिए, और प्रतिनिधि पौधों की पत्तियां एलएससी कॉलम पांच से साढ़े चार के रंग से मिलती हैं, तो 30 किलो यूरिया प्रति एकड़ इस्तेमाल करना होता है।
कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव के अनुसार अगर प्रतिनिधि पौधे की पत्तियों का रंग चार्ट के कॉलम 4 से 4.5 तक से मेल खाता हो तो, 40 किग्रा यूरिया प्रति एकड़ देना होता है, और पत्तियों का रंग क़ॉलम चार से कम हो तो किसानों को गेहूं के खेत में 55 किग्रा यूरिया प्रति एकड़ देना चाहिए। किसान को इस प्रक्रिया को 10 दिनों के अंतराल पर गेहूं के खेत में दोहराना चाहिए और यूरिया का खेतों तब करना चाहिए जब गेहूं के पौधे को नाइट्रोजन की जरूरत हो।
लीफ कलर चार्ट (एलसीसी) प्रयोग करते समय सावधानियां
डॉ राजीव कुमार सिंह ने कहा कि,एलसीसी का उपयोग करते समय कुछ सावधानियों पर ध्यान देने की जरूरत होती है। जैसे, सुबह 8-10 बजे या शाम में 2 से 4 बजे के बीच पत्तियों के रंगों का एलसीसी चार्ट से मिलान करे, एलसीसी से मिलान वाली पत्तिया पूरी तरह से रोग मुक्त हो, पत्ती के रंग का मिलान करते समय एलसीसी को शरीर की छाया में रखना चाहिए, और पत्ती के मध्य भाग को एलसीसी के ऊपर रखना चाहिए। एलसीसी के साथ पत्ती का मिलान करते समय सूर्य का प्रकाश चार्ट पर नहीं पड़ना चाहिए. गेहूं के खेत में पानी जमा होने पर यूरिया का प्रयोग न करें।
सीएलसीसी तकनीक के प्रयोग से लाभ
इस सीएलसीसी तकनीक के इस्तेमाल से होने वाले फायदों पर चर्चा करते हुए मुख्य वैज्ञानिक डॉ राजीव ने कहा कि, फसल को अनावश्यक यूरिया देने से किसान बचेंगे, और गेहूं की खेती की लागत में कमी आएगी.इस तकनीक के इस्तेमाल से प्रति एकड़ 20 से 30 किलों यूरियाको बचाया जा सकता है। दूसरी ओर खेतों की उर्वरता बनी रहेगी और ज्यादा यूरिया के बोझ से फसल खराब नहीं होगीऔर भूजल की गुणवत्ता को भी बिगड़ने से रोका जा सकेगा। इसीएलसीसी तकनीक का उपयोग करके गेहूं की खेती में किसान आसानी से गेहूं की फसल लागत कम कर सकते हैं और अपनी फसलों से अच्छी पैदावार लेकर अपने लाभ को बढ़ा सकते हैं।
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