बाड़मेर की सीमावर्ती ज़मीन पर 29 साल बाद किसानों का हक़ हुआ बहाल

विभाजन के बाद भारतीय किसान जहाँ तक अपनी ज़मीन का इस्तेमाल करते थे, वो 1992 की बाड़बन्दी के बाद घट गयी। बदले में सरकार ने किसानों को कोई मुआवज़ा भी नहीं दिया। किसानों की ओर से सालों-साल अपने नुकसान की भरपाई के लिए जब सरकारों से कोई राहत नहीं मिली तो किसान ने राजस्थान हाईकोर्ट में गुहार लगायी। 2013 में हाईकोर्ट ने किसानों के हक़ में उन्हें ज़मीन या मुआवज़ा देने का आदेश दिया। लेकिन सरकारी तंत्र तो अपनी कछुआ चाल से ही चलता रहा।

बाड़मेर की सीमावर्ती ज़मीन पर 29 साल बाद किसानों का हक़ हुआ बहाल - Kisan of India

राजस्थान के बाड़मेर ज़िले में भारत-पाक सीमा पर 29 साल पहले हुई बाड़बन्दी में अपनी 11,468 बीघा ज़मीन गँवाने वाले किसानों को अब खेती और सिंचाई की सुविधा बहाल होने वाली है। वहाँ अन्तर्राष्ट्रीय सीमा की निगरानी कर रहे सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने अब खाताधारी किसानों को अपने खेतों तक जाने-आने और फसल पैदा करने की सुविधा देने का फ़ैसला किया है।

1992 में पैदा हुई समस्या

साल 1992 में भारत सरकार ने भारत-पाक सीमा पर बाड़बन्दी करवाने का काम शुरू किया। इसी प्रक्रिया में बाड़मेर ज़िले के सीमावर्ती गाँवों की 11,468 बीघा खेतीहर ज़मीन ज़ीरो प्वाइंट और बाड़बन्दी में बीच फँस गयी, क्योंकि बाड़बन्दी को ज़ीरो प्वाइंट से 100 मीटर पहले बनाया गया। जबकि 1947 में भारत-पाक विभाजन के वक़्त बने ज़ीरो प्वाइंट के लिए किसानों को सिर्फ़ 4 मीटर ज़मीन का मुआवज़ा मिला था।

हाईकोर्ट का आदेश भी काम नहीं आया

विभाजन के बाद भारतीय किसान जहाँ तक अपनी ज़मीन का इस्तेमाल करते थे, वो बाड़बन्दी के बाद घट गयी। बदले में सरकार ने किसानों को कोई मुआवज़ा भी नहीं दिया। किसानों की ओर से सालों-साल अपने नुकसान की भरपाई के लिए जब सरकारों से कोई राहत नहीं मिली तो किसान ने राजस्थान हाईकोर्ट में गुहार लगायी। 2013 में हाईकोर्ट ने किसानों के हक़ में उन्हें ज़मीन या मुआवज़ा देने का आदेश दिया। लेकिन सरकारी तंत्र तो अपनी कछुआ चाल से ही चलता रहा।

2020 में सरकार की आँख खुली

किसानों की तकलीफ़ की आवाज़ें विधानसभा और संसद में भी उठीं तो 27 सितम्बर 2019 को केन्द्रीय गृह मंत्रालय के सीमा प्रबन्धन विभाग ने स्वीकार किया कि बाड़बन्दी में फँसी ज़मीन पर किसानों का हक़ है। इसके बाद 15 जून 2020 को गृह मंत्रालय ने बाड़बन्दी से जुड़े गेट नम्बर 97 और 98 के बीच एक और गेट बनाने का फ़ैसला लिया। ये नया गेट अब गेट बनकर तैयार है। बाड़बन्दी के हरेक 4-5 किलोमीटर पर एक गेट है।

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बाड़मेर की सीमावर्ती ज़मीन पर 29 साल बाद किसानों का हक़ हुआ बहाल
BSF ने तय किया है कि सीमावर्ती किसानों के बाक़ायदा पास बनाकर गेट पार जाकर खेती करने की अनुमति दी जाएगी।

सिंचाई की भी सुविधा होगी

अब BSF ने तय किया है कि सीमावर्ती किसानों के बाक़ायदा पास बनाकर गेट पार जाकर खेती करने की अनुमति दी जाएगी। ये खेती सिर्फ़ बरसाती पानी पर निर्भर नहीं रहेगी, बल्कि वहाँ ट्यूबवैल का पानी भी पहुँचाया जा सकेगा। इसके लिए बाड़बन्दी के उस पार पाइपलाइन भी पहुँचाने की सुविधा दी जाएगी। लेकिन सुरक्षा के लिहाज़ अपनी खातेदारी वाली ज़मीन पर आने-जाने वाले किसानों पर कड़ी निगरानी भी रखी जाएगी।

महिला किसानों की जाँच के लिए BSF की महिला सिपाहियों को तैनात किया जाएगा। किसानों के लिए बाड़बन्दी का गेट सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक यानी 8 घंटे के लिए खोला जाएगा। हाल ही में बाड़मेर में तैनात BSF के DIG विनीत कुमार ने किसानों के साथ संवाद करके उन्हें पास बनवाने की प्रक्रिया और अन्य शर्तों के बारे में जानकारी दी।

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अनसुलझा सवाल

वैसे किसानों के हितों के लिहाज़ से देखें तो अभी ये तस्वीर साफ़ नहीं है कि 1992 से लेकर अब तक किसानों का जो नुकसान हुआ उसका कोई हर्ज़ाना उन्हें सरकार की ओर से दिया जाएगा या नहीं? अलबत्ता, हाईकोर्ट के फ़ैसले की भावना के मुताबिक़, बाड़बन्दी में फँसी ज़मीन पर खेती करने का हक़ भले ही बहाल हो रहा है, लेकिन सरकारी की साफ़ नीति नहीं होने की वजह से किसानों को 29 साल तक अपनी ज़मीन के लाभ से तो वंचित रहना ही पड़ा है।

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