Government Schemes for Tribal Farmers: भारत में आदिवासी किसानों के समर्थन में सरकारी योजनाएं और पहल

आदिवासी किसानों के लिए सरकारी योजनाएं (Government schemes for tribal farmers) कृषि उत्पादकता बढ़ाने, वित्तीय सुरक्षा और सतत कृषि को बढ़ावा देती हैं।

Government Schemes for Tribal Farmers आदिवासी किसानों के लिए सरकारी योजनाएं

हमारे देश में बड़ी संख्या में आदिवासी खेती और इससे जुड़े कार्यों में लगे हुए हैं। आदिवासी किसान पारंपरिक और आजीविका आधारित कृषि करते हैं, जो जंगल के संसाधनों, स्थानांतरण खेती और छोटे पैमाने की खेती पर निर्भर होती है। कई आदिवासी समूहों के लिए खेती केवल आर्थिक गतिविधि नहीं, बल्कि उनके सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने से गहराई से जुड़ी होती है। ज्वार-बाजरा, दालें, कंद-मूल और औषधीय पौधे उनके आहार और आय के प्रमुख स्रोत हैं। इसके अलावा, कई आदिवासी समुदाय लघु वन उपज (MFP) जैसे शहद, बाँस, तेंदू पत्ता और औषधीय जड़ी-बूटियों पर निर्भर करते हैं, जो उनकी आर्थिक स्थिरता में योगदान देते हैं।

मजबूत कृषि परंपरा के बावजूद, आदिवासी किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे भूमि अधिकारों की कमी, कमजोर सिंचाई सुविधाएँ, सीमित बाज़ार पहुंच और अपर्याप्त वित्तीय सहायता। जलवायु परिवर्तन और वनों की कटाई उनकी पारंपरिक कृषि पद्धतियों के लिए अतिरिक्त ख़तरा हैं। इन चुनौतियों को समझते हुए, भारत सरकार ने कई योजनाएँ और पहल शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य कृषि उत्पादकता बढ़ाना, वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना और आदिवासी किसानों के लिए सरकारी योजनाएं (Government Schemes for Tribal Farmers) के माध्यम से सतत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना है। इन प्रयासों का लक्ष्य विकास की खाई को पाटना और आदिवासी समुदायों को दीर्घकालिक आर्थिक मजबूती दिलाना है।

आदिवासी किसानों को सशक्त बनाने में सरकार की भूमिका  

आदिवासी किसानों के लिए सरकारी योजनाएं (Government Schemes for Tribal Farmers) में सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसके लिए सरकार अलग-अलग नीतियाँ, योजनाएँ और पहल लागू करती है, जिससे खेती की उपज बढ़े, आर्थिक स्थिरता बनी रहे और खेती को टिकाऊ बनाया जा सके। आदिवासी समुदायों के सामने आने वाली सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए, आदिवासी किसानों के लिए सरकारी योजनाएं (Government Schemes for Tribal Farmers) मुख्य रूप से आर्थिक सहायता, कौशल विकास, बाज़ार तक पहुंच और बुनियादी ढाँचे के विकास पर केंद्रित हैं।

  1. आर्थिक सहायता और सब्सिडी  : सरकार वनबंधु कल्याण योजना (VKY) और आदिवासी उपयोजना के लिए विशेष केंद्रीय सहायता (SCA to TSP) जैसी योजनाओं के जरिए सीधे आर्थिक सहायता देती है, जिससे खेती में सुधार हो सके। नाबार्ड और आदिवासी सहकारी विपणन विकास संघ (TRIFED) जैसी संस्थाओं के माध्यम से रियायती दरों पर ऋण और कर्ज़ उपलब्ध कराए जाते हैं, ताकि आदिवासी किसानों के लिए सरकारी योजनाएं (Government Schemes for Tribal Farmers) उन्हें आधुनिक तकनीक और खेती के संसाधनों में निवेश करने का मौका दें।
  2. भूमि अधिकार और कानूनी सुरक्षा : वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA) आदिवासी समुदायों के पारंपरिक भूमि अधिकारों को मान्यता देता है, जिससे वे अपनी भूमि के स्वामित्व और खेती का अधिकार पा सकें। आदिवासी किसानों के लिए सरकारी योजनाएं (Government Schemes for Tribal Farmers) आदिवासी भूमि को अतिक्रमण और शोषण से बचाने में मदद करती हैं।
  3. सिंचाई और बुनियादी ढाँचे का विकास : प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के तहत बेहतर सिंचाई सुविधाएँ दी जाती हैं, जिससे आदिवासी किसानों के लिए सरकारी योजनाएं (Government Schemes for Tribal Farmers) उनकी भूमि के लिए जल उपलब्धता सुनिश्चित कर सकती हैं। ग्रामीण सड़कें, कोल्ड स्टोरेज और गोदामों जैसे बुनियादी ढाँचे के विकास से बाज़ार तक आसान पहुंच मिलती है और फ़सल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
  4. बाज़ार तक पहुंच और उचित दाम : लघु वन उपज (MFP) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय किया गया है, जिससे आदिवासी किसानों के लिए सरकारी योजनाएं (Government Schemes for Tribal Farmers) उनके उत्पाद का सही मूल्य सुनिश्चित करती हैं। TRIFED और राज्य आदिवासी विकास निगम किसानों को बाज़ार से जोड़ने में मदद करते हैं, जिससे वे अपने उत्पादों को बेहतर दाम पर बेच सकें।
  5. टिकाऊ और पारंपरिक खेती को बढ़ावा : राष्ट्रीय बाँस मिशन और मिलेट्स (श्री अन्न) एवं जैविक खेती को प्रोत्साहन देने वाले कार्यक्रम आदिवासी किसानों के लिए सरकारी योजनाएं (Government Schemes for Tribal Farmers) में शामिल हैं, जो आदिवासी किसानों को उनकी पारंपरिक फ़सलों से लाभ कमाने में मदद करते हैं। टिकाऊ खेती और जलवायु अनुकूल खेती की ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे आदिवासी किसानों के लिए सरकारी योजनाएं (Government Schemes for Tribal Farmers) उन्हें आधुनिक और पर्यावरण के अनुकूल खेती अपनाने में मदद करती हैं।
  6. कौशल विकास और शिक्षा : एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) और कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से आदिवासी युवाओं को कृषि और संबंधित क्षेत्रों में शिक्षा व व्यावसायिक कौशल प्रदान किए जाते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) आदिवासी किसानों के लिए सरकारी योजनाएं (Government Schemes for Tribal Farmers) के अंतर्गत आधुनिक खेती, पशुपालन और कृषि-आधारित व्यवसायों की ट्रेनिंग देकर किसानों को सशक्त बनाते हैं।

प्रमुख सरकारी योजनाएं और पहल

2.1 वनबंधु कल्याण योजना (VKY)

वनबंधु कल्याण योजना (VKY) को जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है। यह योजना जनजातीय समुदायों के समग्र विकास के लिए बनाई गई है। इसका मुख्य उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, बुनियादी ढाँचे और कौशल विकास को बढ़ावा देना है, जिससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति सुधर सके।

जनजातीय किसानों के लिए प्रमुख लाभ:

  • वित्तीय सहायता और बुनियादी ढांचा: सिंचाई, ग्रामीण सड़कें और कृषि विकास के लिए सहायता।
  • आजीविका संवर्धन: स्वरोजगार, कृषि आधारित उद्योगों और उन्नत खेती के साधनों की सुविधा।
  • कौशल विकास: आधुनिक और टिकाऊ कृषि तकनीकों का प्रशिक्षण जिससे उत्पादकता बढ़े।
  • बाज़ार से जुड़ाव: आदिवासी किसानों के लिए सरकारी योजनाएं (Government Schemes for Tribal Farmers) जनजातीय किसानों को सरकारी खरीद योजनाओं और उचित बाज़ारों से जोड़ती हैं।

 जनजातीय खेती पर प्रभाव:  

– सिंचाई की बेहतर सुविधा, जिससे वर्षा आधारित खेती पर निर्भरता कम हो।  

– पर्यावरण-अनुकूल और जलवायु-रोधी खेती के प्रशिक्षण में सुधार।  

– कृषि आधारित रोजगार और स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से आर्थिक सुरक्षा।  

– बेहतर सड़कों और बाज़ारों से संपर्क, जिससे उत्पाद आसानी से बेचे जा सकें।  

2.2 लघु वनोपज (MFP) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)

लघु वनोपज (MFP) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसका उद्देश्य वनों से प्राप्त उत्पादों का उचित मूल्य सुनिश्चित करना है, जो जनजातीय समुदायों द्वारा एकत्र किए जाते हैं। इसे TRIFED (जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ) के तहत जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा संचालित किया जाता है। यह योजना आदिवासी किसानों के लिए सरकारी योजनाएं (Government Schemes for Tribal Farmers) के अंतर्गत जनजातीय किसानों को न्यूनतम कीमत की गारंटी देकर बिचौलियों के शोषण से बचाती है।

 इस योजना के तहत शामिल प्रमुख लघु वनोपज:  

– शहद, इमली, तेंदू पत्ते, महुआ फूल, बांस, साल बीज और औषधीय जड़ी-बूटियाँ।  

– ये उत्पाद जनजातीय किसानों की आजीविका का मुख्य स्रोत हैं।  

 इस योजना के लाभ:  

– आय में स्थिरता: किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने से उनकी आमदनी स्थिर रहती है।  

– टिकाऊ दोहन: प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग सुनिश्चित किया जाता है।  

– आर्थिक सशक्तिकरण: सरकार बाज़ार से जोड़ती है, मूल्य संवर्धन (प्रोसेसिंग) करवाती है और प्रशिक्षण देती है, जिससे किसान अधिक लाभ कमा सकें।  

यह योजना जनजातीय किसानों की आर्थिक सुरक्षा बढ़ाने, वनों पर आधारित टिकाऊ आजीविका को प्रोत्साहित करने और उन्हें सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

2.3 प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)  

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) को 2015 में शुरू किया गया था ताकि सिंचाई सुविधाओं में सुधार हो और किसानों को, खासकर आदिवासी क्षेत्रों में, पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। यह योजना “हर खेत को पानी” के नारे के साथ काम करती है और सूक्ष्म सिंचाई (ड्रिप, स्प्रिंकलर) तथा जल संरक्षण तकनीकों को बढ़ावा देती है।  

 आदिवासी किसानों को होने वाले मुख्य लाभ  

  1. सिंचाई सुविधाओं का विस्तार:  

   – आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सिंचाई संरचना का विकास।  

   – चेक डैम, फार्म तालाब और वर्षा जल संचयन संरचनाओं का निर्माण।  

  1. सूक्ष्म सिंचाई (प्रति बूंद अधिक फ़सल):  

   – ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई को प्रोत्साहित कर पानी की बर्बादी को कम करना।  

   – वर्षा आधारित खेती वाले आदिवासी क्षेत्रों में पैदावार बढ़ाना।  

  1. जल संरक्षण और प्रबंधन:  

   – भूजल पुनर्भरण के लिए वाटरशेड विकास को बढ़ावा देना।  

   – वनीकरण और मिट्टी में नमी बनाए रखने की तकनीकों को अपनाना।  

  1. वित्तीय सहायता और सब्सिडी:  

   – छोटे और सीमांत किसानों, खासकर आदिवासी किसानों को सिंचाई उपकरणों पर सब्सिडी।  

   – आदिवासी स्वयं सहायता समूह (SHG) और किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को आधुनिक सिंचाई तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहन।  

2.4 राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY)  

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) को 2007 में शुरू किया गया था ताकि राज्यों को उनकी कृषि योजनाओं के अनुसार वित्तीय सहायता दी जा सके। इस योजना का उद्देश्य कृषि उत्पादकता बढ़ाना, ग्रामीण आजीविका को मजबूत करना और खेती में जोखिम को कम करना है, जिससे विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों, जैसे कि आदिवासी किसानों को लाभ हो।  

आदिवासी किसानों को होने वाले मुख्य लाभ  

  1. बुनियादी ढांचे का विकास:  

   – आदिवासी क्षेत्रों में फार्म तालाब, चेक डैम और ग्रामीण सड़कों का निर्माण।  

   – भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाओं में सुधार ताकि फ़सल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।  

  1. आदिवासी अनुकूल फ़सलें और बागवानी को बढ़ावा:  

   – मिलेट्स (मोटे अनाज), दलहन, औषधीय पौधों और वनों में मिलने वाली उपज को बढ़ावा देना।  

   – बागवानी और बांस की खेती को प्रोत्साहित कर आय बढ़ाना।  

  1. कौशल विकास और क्षमता निर्माण:  

   – कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) और किसान उत्पादक संगठनों (FPO) के माध्यम से प्रशिक्षण कार्यक्रम।  

   – आदिवासी क्षेत्रों में जैविक खेती और टिकाऊ कृषि तकनीकों को बढ़ावा देना।  

  1. बाज़ार से जोड़ना और वित्तीय सहायता:  

   – आदिवासी किसानों को बेहतर बाज़ारों तक पहुंच दिलाने के लिए सहकारी समितियों और स्वयं सहायता समूहों (SHG) को सहायता।  

   – आदिवासी किसानों को ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाज़ार) से जोड़कर सीधे बिक्री का अवसर देना।  

  1. सतत कृषि और जलवायु अनुकूल खेती:  

   – जल संरक्षण, मिट्टी की सेहत को बनाए रखने और कृषि वानिकी को बढ़ावा देना।  

   – अनियमित मौसम से निपटने के लिए जलवायु अनुकूल खेती की तकनीकों को अपनाना।  

2.5 राष्ट्रीय बांस मिशन (NBM) 

राष्ट्रीय बांस मिशन (NBM) को बागवानी के एकीकृत विकास मिशन (MIDH) के तहत शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य बांस की खेती, प्रसंस्करण और बाज़ार से जोड़ने को बढ़ावा देना है। बांस आदिवासी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि कई आदिवासी समुदाय आजीविका, हस्तशिल्प और निर्माण सामग्री के लिए इस पर निर्भर करते हैं।  

 आदिवासी किसानों के लिए प्रमुख लाभ  

  1. बांस की खेती को बढ़ावा  

   – जंगल और गैर-जंगल क्षेत्रों में बांस के बागानों के लिए वित्तीय सहायता।  

   – व्यावसायिक उपयोग के लिए उपयुक्त उच्च उत्पादकता वाले बांस की प्रजातियों को बढ़ावा।  

   – उत्पादन बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक खेती तकनीकों का प्रशिक्षण।  

  1. आदिवासी समुदायों के लिए रोजगार सृजन  

   – बांस आधारित उद्योगों (हस्तशिल्प, फर्नीचर, कागज और जैव-ऊर्जा) को बढ़ावा।  

   – आदिवासी कारीगरों और स्वयं सहायता समूहों (SHG) को बांस उत्पाद निर्माण में सहयोग।  

   – आदिवासी युवाओं के लिए कौशल प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण।  

  1. बाज़ार से जोड़ने और मूल्य संवर्धन  

   – फर्नीचर, फर्श और कागज उद्योग के लिए बांस प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना।  

   – निर्यात बाज़ार से जोड़ने और बांस आधारित उद्यमिता को प्रोत्साहन।  

   – बेहतर दाम के लिए आदिवासी सहकारी विपणन विकास महासंघ (TRIFED) में भागीदारी को बढ़ावा।  

  1. पर्यावरण अनुकूल और टिकाऊ लाभ  

   – आदिवासी क्षेत्रों में कृषि वानिकी और पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित करना।  

   – कार्बन अवशोषण और जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण में सहायता।  

2.6 जनजातीय उपयोजना के लिए विशेष केंद्रीय सहायता (SCA to TSP)  

जनजातीय उपयोजना के लिए विशेष केंद्रीय सहायता (SCA to TSP) केंद्र सरकार की एक योजना है, जिसका उद्देश्य आदिवासी समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करना है। यह विशेष रूप से कृषि, पशुपालन और सहायक क्षेत्रों में वित्तीय सहायता प्रदान कर आदिवासियों की आजीविका को मजबूत करने और गरीबी को कम करने के लिए बनाई गई है।  

 वित्त पोषण और विकास के प्रमुख क्षेत्र  

  1. कृषि विकास

   – आदिवासी क्षेत्रों में बीज वितरण, मिट्टी संरक्षण और जैविक खेती के लिए सहायता।  

   – बाजरा, दलहन और पारंपरिक फ़सलों को बढ़ावा देकर खाद्य सुरक्षा में सुधार।  

   – सिंचाई सुविधाओं का विस्तार और जल संरक्षण परियोजनाएं।  

  1. पशुपालन और डेयरी फार्मिंग  

   – आदिवासी गांवों में कुक्कुट पालन, बकरी पालन और गौ-पालन के लिए वित्तीय सहायता।  

   – डेयरी फार्मिंग और चारा विकास के लिए प्रशिक्षण और बुनियादी ढांचे का सहयोग।  

   – पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार के लिए पशु चिकित्सा सेवाएं और टीकाकरण कार्यक्रम।  

  1. सहायक क्षेत्र और कौशल विकास  

   – आय के स्रोतों में विविधता लाने के लिए मधुमक्खी पालन, रेशम उत्पादन और मत्स्य पालन को बढ़ावा।  

   – आदिवासी युवाओं के लिए कृषि प्रसंस्करण, हस्तशिल्प और उद्यमिता में प्रशिक्षण कार्यक्रम।  

   – किसान उत्पादक संगठन (FPO) और स्वयं सहायता समूह (SHG) की स्थापना।  

 कार्यान्वयन और प्रमुख परियोजनाएं  

– जनजातीय मामलों का मंत्रालय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उनकी आदिवासी जनसंख्या के आधार पर SCA to TSP फंड आवंटित करता है।  

– ये परियोजनाएं राज्य की जनजातीय विकास विभागों और स्थानीय निकायों के सहयोग से लागू की जाती हैं।  

– कम मानव विकास सूचकांक (HDI) वाले दूरस्थ आदिवासी क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।  

– बाज़ार तक पहुंच बढ़ाने के लिए ई-मार्केट प्लेटफॉर्म (e-NAM, TRIFED) और ग्रामीण बैंकिंग योजनाओं से एकीकरण। 

2.7 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) और कृषि कौशल विकास  

एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) सरकार द्वारा वित्तपोषित स्कूल हैं, जिनका उद्देश्य जनजातीय छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है। ये विद्यालय जनजातीय कार्य मंत्रालय के तहत संचालित होते हैं और शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण व कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इनमें कृषि संबंधी शिक्षा भी शामिल है, जिससे जनजातीय युवाओं को सशक्त बनाया जा सके।  

EMRS में कृषि कौशल विकास को कैसे बढ़ावा दिया जाता है  

  1. आधुनिक खेती की तकनीकों से परिचय  

   – पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक कृषि, जैविक खेती और कृषि वानिकी (एग्रोफोरेस्ट्री) शामिल हैं।  

   – मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, फ़सल चक्र और जल संरक्षण का प्रशिक्षण दिया जाता है।  

  1. व्यावहारिक प्रशिक्षण  

   – स्कूल में कृषि फार्म और डेमोंस्ट्रेशन प्लॉट बनाए गए हैं, जहां छात्र वास्तविक अनुभव प्राप्त करते हैं।  

   – जनजातीय युवाओं को कृषि आधारित उद्यमिता अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है।  

  1. सहायक कृषि क्षेत्रों में कौशल विकास  

   – डेयरी फार्मिंग, मधुमक्खी पालन, पोल्ट्री और मत्स्य पालन का प्रशिक्षण।  

   – खाद्य प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन (वैल्यू एडिशन) से बाज़ार में बेहतर अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं।  

  1. सरकारी योजनाओं से जुड़ाव  

   – राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) और राष्ट्रीय बांस मिशन जैसी योजनाओं के माध्यम से विशेष प्रशिक्षण।  

   – कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) के साथ सहयोग, जिससे विशेषज्ञों से मार्गदर्शन मिल सके।  

  1. करियर के अवसर और स्व-रोजगार  

   – छात्र कृषि स्टार्टअप, सहकारी समितियों और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के बारे में सीखते हैं।  

   – ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा मिलता है और शहरों की ओर पलायन कम होता है।

जनजातीय किसानों को सरकारी योजनाओं का फ़ायदा क्यों नहीं मिल पाता?

  1. योजनाओं की जानकारी नहीं होती – बहुत सारे जनजातीय किसानों को सरकारी योजनाओं के बारे में पता ही नहीं चलता क्योंकि जागरूकता अभियान कम होते हैं और पढ़ाई-लिखाई की दर भी कम होती है।
  2. जमीन से जुड़े कानूनी पचड़े – बहुत से किसान अपनी जमीन के मालिक नहीं होते या फिर सरकारी कागजी काम में फंसे रहते हैं, जिससे उन्हें योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता।
  3. सड़क और बाज़ार की समस्या – गांवों से बाज़ार दूर होते हैं, सड़कें खराब होती हैं और भंडारण की सुविधा नहीं होती, जिससे किसानों को अपने उत्पाद का सही दाम नहीं मिलता।
  4. सरकारी काम में देरी – सरकारी योजनाओं में फंड आने और फाइल पास होने में इतना वक्त लग जाता है कि किसानों को समय पर मदद ही नहीं मिल पाती।
  5. बैंक और कर्ज की दिक्कत – बैंक दूर होते हैं, कर्ज लेने के लिए कागजी औपचारिकताएँ बहुत होती हैं, और गारंटी देना मुश्किल होता है, जिससे किसानों को आसानी से कर्ज नहीं मिल पाता।
  6. मौसम की मार – बारिश का सही समय पर न होना, जंगलों की कटाई और मिट्टी की खराबी से खेती मुश्किल होती जा रही है।
  7. नई तकनीक से दूरी – किसानों को नई तकनीक, मशीनें और आधुनिक खेती के तरीके सीखने का मौका नहीं मिलता, जिससे उनकी पैदावार कम होती है।
  8. बिचौलियों का खेल – किसानों की सीधी बाज़ार तक पहुंच नहीं होती, इसलिए बिचौलिए उनसे सस्ते में माल खरीदकर खुद ज्यादा मुनाफा कमा लेते हैं।
  9. महिलाओं को कम मौके – जनजातीय समुदाय की महिलाओं को खेती में बराबरी का हक नहीं मिलता, जिससे वे योजनाओं और नई तकनीक से दूर रह जाती हैं।
  10. छोटे-छोटे खेत, बड़ी परेशानी – खेत छोटे और बिखरे हुए होते हैं, जिससे मशीनों का इस्तेमाल और बड़े पैमाने पर खेती 

जनजातीय किसानों के लिए आसान और कारगर उपाय

  1. जागरूकता बढ़ाना – गांवों में छोटे-छोटे मिलन कार्यक्रम, सामुदायिक बैठकें और स्थानीय भाषाओं में जानकारी देकर किसानों को सरकारी योजनाओं के बारे में बताया जाए, ताकि वे आसानी से इनका लाभ उठा सकें।
  2. जैविक खेती को अपनाना – पारंपरिक बीजों का उपयोग, जैविक प्रमाणन और प्राकृतिक खेती तकनीकों से मिट्टी की सेहत सुधरेगी, जैव विविधता बढ़ेगी और किसानों की आमदनी में इजाफा होगा।
  3. डिजिटल सेवाओं को आसान बनाना – सरल मोबाइल ऐप, कॉल सेंटर और गांवों में डिजिटल सहायता केंद्र से किसानों को योजनाओं की जानकारी, आवेदन की सुविधा और सही समय पर मार्गदर्शन मिल सकेगा।
  4. सहकारी समितियों को मजबूत करना – छोटे किसानों को जोड़कर सामूहिक खेती और सहकारी व्यापार से उनकी सौदेबाजी की ताकत बढ़ेगी, जिससे उन्हें फ़सल का बेहतर दाम मिलेगा और बिचौलियों पर निर्भरता घटेगी।
  5. किसानों को आसान ऋण उपलब्ध कराना – कागजी प्रक्रिया को सरल बनाकर, बिना ब्याज वाले छोटे ऋण देकर और गांवों में बैंकिंग सेवाएं पहुंचाकर किसानों को खेती में निवेश करने के लिए मदद दी जा सकती है।
  6. बाज़ार और बुनियादी सुविधाएं बढ़ाना – अच्छी सड़कों, कोल्ड स्टोरेज और फ़सल प्रसंस्करण केंद्रों से किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य मिलेगा और फ़सल खराब होने का ख़तरा कम होगा।
  7. कौशल विकास और प्रशिक्षण – कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) के जरिए आधुनिक खेती, मशीनों के इस्तेमाल और नई तकनीकों पर ट्रेनिंग देकर किसानों की उत्पादकता और आत्मनिर्भरता बढ़ाई जा सकती है।
  8. पैसों के सही इस्तेमाल और योजनाओं की निगरानी – फंड पारदर्शी तरीके से बांटे जाएं, GIS मैपिंग से प्रगति पर नजर रखी जाए और स्थानीय प्रशासनिक निकायों की भागीदारी से योजनाओं को सही समय पर लागू किया जाए।
  9. जलवायु परिवर्तन से बचाव – सूखा-सहिष्णु फ़सलें, जल संरक्षण तकनीक और पेड़-पौधों को खेती का हिस्सा बनाकर किसानों को बदलते मौसम से निपटने में मदद मिलेगी।
  10. पारंपरिक और आधुनिक खेती का मेल – वैज्ञानिक नवाचारों को पारंपरिक खेती के तरीकों से जोड़कर खेती को अधिक टिकाऊ बनाया जा सकता है और सांस्कृतिक पहचान भी बनी रहेगी।
  11. महिला किसानों की भागीदारी बढ़ाना – महिलाओं को विशेष प्रशिक्षण, आर्थिक मदद और नेतृत्व की भूमिकाएं देकर उनके आत्मनिर्भर बनने और परिवार की आय बढ़ाने में मदद की जा सकती है।
  12. ऑनलाइन बाज़ार से जोड़ना – ई-नाम (e-NAM), ट्राइफेड (TRIFED) और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म से किसानों को सीधे खरीदारों तक पहुंचने और अपनी उपज का बेहतर दाम पाने में मदद मिलेगी।

सरकार की अच्छी तरह से बनाई गई योजनाओं के ज़रिए आदिवासी किसानों को सशक्त बनाना उनकी आर्थिक स्थिरता, खाद्य सुरक्षा और सतत विकास के लिए बहुत ज़रूरी है। वंवबंधु कल्याण योजना, पीएमकेएसवाई, आरकेवीवाई, राष्ट्रीय बांस मिशन और टीएसपी के लिए विशेष केंद्रीय सहायता जैसी योजनाओं ने खेती की उत्पादकता और आजीविका सुधारने में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन जागरूकता की कमी, बुनियादी ढांचे की समस्याएँ, सीमित वित्तीय पहुंच और प्रशासनिक देरी जैसी चुनौतियाँ इनका पूरा लाभ उठाने में बाधा बनती हैं।  

इन कमियों को दूर करने के लिए जमीनी स्तर पर जागरूकता बढ़ाना, डिजिटल समावेशन, आर्थिक सशक्तिकरण और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देना ज़रूरी है। सहकारी समितियों, स्वयं सहायता समूहों (SHG) और बाज़ार से जुड़ाव को मजबूत कर आदिवासी किसानों की आय के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं, जिससे उनकी बिचौलियों पर निर्भरता कम होगी। साथ ही, पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक तकनीक से जोड़कर और जलवायु अनुकूल खेती पर ध्यान देकर दीर्घकालिक कृषि स्थिरता सुनिश्चित की जा सकती है।  

अगर सरकारी योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन, पारदर्शिता और स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी हो, तो ये पहल सच में आदिवासी किसानों को आगे बढ़ा सकती हैं, जिससे खेती सिर्फ़़ जीविका का साधन ही नहीं बल्कि समृद्धि और आत्मनिर्भरता का रास्ता भी बन सके। 

 ये भी पढ़ें: निकोबार द्वीप के आदिवासी किसानों के लिए एकीकृत खेती बनी सफलता की नई पहचान

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगो तक पहुंचाएंगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top