‘कन्याकुमारी लौंग’ को जीआई टैग, किसानों को कैसे होगा फ़ायदा?

लौंग के पेड़ की कलियों, गिरी हुई पत्तियों और तनों का भी तेल बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। लौंग की कली और उसके तेल का इस्तेमाल दवा, चिकित्सा और इत्र बनाने में किया जाता है।

कन्याकुमारी लौंग ( kanyakumari clove )

तमिलनाडु के कन्याकुमारी ज़िले की पहाड़ियों में उगाई जाने वाली लौंग को जीआई टैग (Geographical Indication) मिला है। कन्याकुमारी लौंग को ये जीआई टैग उसकी विशेष तरह की सुगंधित तेल के लिए मिला है। जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक तरह का लेबल होता हैजिसमें किसी वस्तु को विशेष भौगोलि‍क पहचान दी जाती है।

ये जीआई टैग दरअसल प्रॉडक्‍ट से ज्‍यादावो जिस जगह का हैउसकी पहचान होता है।

कन्याकुमारी लौंग ( kanyakumari clove )
तस्वीर साभार: TOI

ज़्यादा खुशबूदार होता है कन्याकुमारी लौंग

लौंग कन्याकुमारी जिले की प्रमुख मसाला फसलों में से एक है। कन्याकुमारी जिले के पहाड़ी इलाकों की जलवायु लौंग की खेती के लिए अनुकूल होती है। इस क्षेत्र को पूर्वोत्तर और दक्षिण-पश्चिम मानसून, दोनों से लाभ होता है। इसके अलावा, समुद्री धुंध फसल के लिए आवश्यक नमी का काम करती है।

कन्याकुमारी जिले में मध्यम तापमान के कारण, लौंग में मौजूद सुगंध कम मात्रा में वाष्पित होती है, जिससे उच्च गुणवत्ता वाला तेल मिलता है। अच्छी बारिश, विशेष आर्द्र जलवायु परिस्थितियां, सड़ी पत्तियों की मिट्टी, इसके रंग, आकार और गुणवत्ता को बढ़ाती हैं। जैविक पोषक तत्वों से भरपूर काली मिट्टी लौंग की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है।

कन्याकुमारी लौंग ( kanyakumari clove )
तस्वीर साभार: idukkivalley

'कन्याकुमारी लौंग' को जीआई टैग, किसानों को कैसे होगा फ़ायदा?अकेले कन्याकुमारी जिले में 750 मीट्रिक टन लौंग का उत्पादन

लौंग के पेड़ की कलियों, गिरी हुई पत्तियों और तनों का भी तेल बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। लौंग की कली और उसके तेल का इस्तेमाल दवा, चिकित्सा और इत्र बनाने में किया जाता है। भारत में लौंग का कुल उत्पादन 1,100 मीट्रिक टन है। इसमें से हर साल हज़ार मीट्रिक टन तमिलनाडु में होता है। अकेले कन्याकुमारी जिले में 750 मीट्रिक टन लौंग का उत्पादन होता है।

कन्याकुमारी लौंग की कलियों में वाष्पशील तेल की मात्रा 21 फ़ीसदी

लौंग की कलियों में वाष्पशील तेल की मात्रा अधिक होने के कारण जिले में उगाई जा रही फसल की काफी मांग है। कन्याकुमारी जिले में खेती की जाने वाली लौंग, यूजेनॉल एसीटेट से भरपूर होती है, जिससे लौंग की कलियों को बेहतर सुगंध और स्वाद मिलता है। आमतौर पर लौंग में वाष्पशील तेल की मात्रा लगभग 18% होती है, कन्याकुमारी लौंग की कलियों में वाष्पशील तेल की मात्रा 21 फ़ीसदी है, जिसके कारण 86 फ़ीसदी तक इसमें यूजेनॉल पाया जाता है।

मरमलाई प्लांटर्स और ब्लैकरॉक हिल प्लांटर्स एसोसिएशन के प्रयासों से कन्याकुमारी लौंग को ये जीआई टैग मिला। लॉ फ़र्म मेसर्स पुथरान एसोसिएट्स ने जीआई आवेदन प्रक्रिया में प्लांटर निकायों की मदद की।

कन्याकुमारी लौंग ( kanyakumari clove )
तस्वीर साभार: TOI

'कन्याकुमारी लौंग' को जीआई टैग, किसानों को कैसे होगा फ़ायदा?मजबूत होगा अंतरराष्ट्रीय बाज़ार

कन्याकुमारी लौंग को जीआई टैग मिलने से क्षेत्र के किसानों को फ़ायदा मिलेगा क्योंकि अब ये उनके क्षेत्र की विशेष पहचान बन गया है। क्षेत्र में लौंग की खेती कर रहे किसान अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। इससे क्षेत्र के लौंग को अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता और व्यापारियों का बाज़ार मिलेगा, जिससे किसानों की आय में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। बता दें कि 100 मिलिलीटर लौंग के तेल का बाज़ार में दाम करीबन 3 हज़ार के आसपास है।

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