पशुओं में लम्पी त्वचा रोग राजस्थान, गुजरात, पंजाब के बाद अब उत्तर प्रदेश में दस्तक दे चुका है। देश में तेज़ी से फैल रहे पशुओं में लम्पी स्किन रोग से सरकार से लेकर पशुपालक परेशान हैं। राजस्थान जैसे दूसरे राज्यों में दूधारू पशुओं की भारी क्षति न हो, इसके लिए केन्द्र सरकार लेकर राज्य सरकारें अलर्ट मोड में आ चुकी हैं। पशुपालकों को पशुपालन विभाग की को तरफ से जानकारी दी जा रही है। वेटरनरी हॉस्पिटल, हरसौली, जिला जयपुर के पशु चिकित्सक और प्रभारी डॉ. बंशीधर यादव ने लम्पी स्किन रोग के इलाज के दौरान फ़ील्ड के अनुभव किसान ऑफ़ इंडिया के साथ साझा किए। साथ ही शुरुआती लक्षण दिखने पर घरेलू उपचार के कुछ तरीके भी बताए।
कैसे पशुओं में लम्पी त्वचा रोग के लक्षण दिखना शुरू होते हैं?
डॉ. बंशीधर यादव ने जानकारी दी कि लम्पी त्वचा रोग के शुरुआती लक्षणों में पशु लंगडा कर चल रहे हैं। इसके बाद पैरो में सूजन, शरीर पर एक से डेढ़ इंच की गांठे बन रही हैं। पशु को 105 डिग्री तक तेज बुखार हो रहा है। इसके साथ पशु के मुहं से लार गिरना और खाने-पीने की क्षमता कम हो रही है ।दूध कम दे रहे हैं और बीमारी से ग्रसित पशु का शरीर कमजोर हो रहा है।
डॉ. बंशीधर यादव ने बताया कि लम्पी त्वचा रोग गायों में कैंप्री पॉक्स वायरस के संक्रमण से होता है। यह पशुओं को लार, जूठे जल एवं पशु के चारे के द्वारा फैलता है। संक्रमित पशु के शरीर पर बैठने वाली किलनी, मच्छर व मक्खी से भी यह फैलता है। बीमार पशुओं को एक दूसरे जगह ले जाने या उसके संपर्क में आने वाले स्वस्थ पशु भी संक्रमित हो जाते हैं। पशु चिकित्सक ने बताया कि लम्पी स्किन बीमारी का प्रकोप गर्म एवं नमी वाले मौसम में अधिक होता है। मौजूदा समय में जिस तरह से गर्मी व उमस बढ़ रही है उससे रोग फैलने का खतरा भी बढ़ा है। हालांकि, ठंड के मौसम में इसका प्रभाव कम हो जाता है।
लम्पी त्वचा रोग का घरेलु उपचार
डॉ. बंशीधर बताते हैं कि अगर किसान को कोई भी शुरुआती लक्षण दिखने लगे तो पहले तुरंत घरेलु इलाज शुरू कर दें। उन्होंने बताया कि 500 ग्राम हल्दी, 500 ग्राम काली जीरी, 100 ग्राम काली मिर्च, 300 ग्राम अजवायन, नीम के पत्ते, गिलोय के पत्ते और एक किलो गुड़ को पांच लीटर पानी में मिलाकर गर्म करके करके बीमार पशु को सुबह-शाम 150 मिलीलीटर देने से पशुओं में सुधार देखा गया है।
डॉ. बंशीधर यादव आगे कहते हैं कि लम्पी त्वचा रोग से जो घाव बन रहे हैं, उस घाव पर घरेलु दवा तैयार कर पशुओं के शरीर पर लगाने से काफ़ी राहत मिलेगी। उन्होंने बताया कि एक मुट्ठी सीताफल की पत्तियां, लहसुन की 10 कलियां, एक मुट्ठी नीम की पत्तियां, एक मुट्ठी मेंहदी के पत्ते, 20 ग्राम हल्दी पाउडर, एक मुट्ठी तुलसी के पत्ते को मिलाकर पेस्ट बना लें और 500 मिलीलीटर नारियल या 500 ग्राम तिल तेल मिलाकर उबाल कर ठंडा कर कर लें। फिर गाय के घावों को अच्छे से साफ करने के बाद इस ठंडे मिश्रण को सीधे घावों पर लगाएं। वहीं अगर घाव में कीड़े लग जाएं तो सबसे पहले नारियल के तेल में कपूर मिलाकर लगाएं। या फिर सीताफल के पत्तों को पीसकर उसका पेस्ट बना लें और घाव पर लगाएं इससे पशुओं को घाव से राहत मिलती है।
लम्पी स्किन रोग से बचने के लिए क्या क्या सावधानी रखें?
दूधारू पशुओं के फ़ार्म और परिसर में सख्त जैविक सुरक्षा उपाय अपनाएं। बीमार पशु से नए दूधारू पशुओं को अलग किया जाना चाहिए। लम्पी स्किन रोग के घावों की जांच की जानी चाहिए। लम्पी स्किन रोग से प्रभावित क्षेत्र में दूधारू पशुओं की आवाजाही से बचें। प्रभावित पशुओं को चारा, पानी और उपचार के साथ झुंड से अलग रखना चाहिए। ऐसे जानवरों को चरने नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि मच्छरों और मक्खी के काटने पर नियंत्रण के लिए उपयुक्त कीटनाशकों का उपयोग करें। वेक्टर ट्रांसमिशन के जोखिम को कम करने के लिए नियमित रूप से वेक्टर विकर्षक का उपयोग करें। खेत के पास वेक्टर प्रजनन स्थलों को सीमित करने के लिए बेहतर प्रबंधन ज़रूर करें। लम्पी स्किन रोग के प्रसार को नियंत्रित करने और इसे रोकने के लिए स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण ज़रूर करवाएं।
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लम्पी त्वचा रोग लगने पर इन उपचारों से पशु की स्थिति में अगर सुधार नहीं हो रहा है तो तुरन्त पशु चिकित्सक की सलाह लें।
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