चने की खेती करने वाले किसान यदि फसल की अधिक पैदावार चाहते हैं, तो उन्हें पौधों को कीटों के साथ ही बीमारियों से भी बचाना होगा। इसके लिए उन्हें चने के पौधों को लगने वाले रोग और उसकी रोकथाम का तरीका पता होना चाहिए।
स्तंभ मूल संधि विगलन (Sclerotium rolfsii)
चने में होने वाला यह रोग फफूंदी की वजह से होता है। इसकी वजह से पौधा पीला पड़ जाता है और पत्तियां व नाज़ुक शाखाएं झड़ने लगती हैं। फंफूद की वजह से जड़ें भी सफेद पड़ जाती हैं । इस रोग की संभावना बुवाई के समय अधिक नमी और गर्म मौसम में ज़्यादा होती है।
कैसे करें रोकथाम?
- बुवाई करने से पहले खेत को अच्छी तरह साफ करके पहले की फसल के अवशेषों को हटा दें।
- गर्मी के मौसम में बुवाई से पहले खेतों की गहरी जुताई करें।
- बुवाई के समय मिट्टी में ज़्यादा नमी नहीं होनी चाहिए।
- ट्राइकोडर्मा समृद्ध गोबर की कंपोस्ट खाद 5 टन/हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें।
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उकठा (Fusarium oxysporum f. sp. ciceris)
बुवाई के 3 हफ्ते के भीतर उस रोग के लक्षण दिखने लगते हैं। इसमें पौधे पीले पड़ जाते हैं और पत्तियां गिरने लगती है। इस रोग से ग्रसित अंकुरित होने वाले पौधे जमीनी सतह के ऊपर सिकुड़ने लगते हैं और गिरकर मर जाते हैं। थोड़े बड़े पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और शाखाएं नीचे मुड़कर सूखने लगती हैं।
कैसे करें रोकथाम?
- एक बार यदि यह रोग लग गया है तो उस जगह पर तीन साल बाद ही दोबारा खेती करें।
- ट्राइकोडर्मा समृद्ध गोबर की कंपोस्ट खाद 5 टन/हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें।
- बीज की बुवाई से पहले उसे ट्राइकोडर्मा, कार्बेन्डाजिम या थायरम से उपचारित/शोधित कर लें।
- अलसी या सरसों के साथ चने की मिश्रित खेती करके भी इस रोग से बचाव किया जा सकता है।
- यदि फसल में यह रोग हो गया है, तो कार्बेन्डाजिम 50 WP (एक घुलने वाला पाउडर) का छिड़काव पौधों पर करें। एक लीटर पानी में 1 ग्राम पाउडर डालें।
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शुष्क मूल- विगलन (Rhizoctonia bataticola)
यह बीमारी पौधों के अंकुरित होने के बाद होती है। जमीन के ऊपर उगे पौधों के कॉलर क्षेत्र में पहले भूरे धब्बे दिखते हैं, जो बाद में शाखाओं पर फैल जाते हैं। पहले तो इस रोग से ग्रसित पौधे पीले पड़ जाते हैं, फिर जड़ और तना सड़ने लगता है।
कैसे करें रोकथाम
- गर्मी के मौसम में बुवाई से पहले खेतों की गहरी जुताई से इस रोग से बचाव किया जा सकता है।
- गोबर की कंपोस्ट खाद के इस्तेमाल से भी इस रोग में कमी आती है।
- पूसा 372, आई.सी.सी.वी 10, आई.सी.सी.वी 37, सद्भावना और जे.जे 130 जैसी प्रजातियां शुष्क मूल विगलन प्रतिरोधी हैं, इनकी बुवाई की जा सकती है।
- बीज की बुवाई से पहले उसे ट्राइकोडर्मा, कार्बेन्डाजिम, कार्बोक्सिन या थिरम से उपचारित/शोधित कर लेना चाहिए।
- अलसी या सरसों के साथ चने की मिश्रित खेती करके भी इस रोग से बचाव किया जा सकता है।
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स्तंभन रोग (Chickpea stunt virus)
यह रोग एफिड से फैलता है। इससे ग्रसित पौधों की लंबाई नहीं बढ़ती है, वह बौने दिखते हैं। साथ ही तना और पत्तियां मोटे व कठोर हो जाते हैं। ऐसे पौधों में फलियां भी नहीं लगती हैं।
कैसे करें रोकथाम?
- इससे बचाव के लिए बुवाई देरी से करनी चाहिए।
- नाशीजोवी लीफ हॉपर और एफिड के प्रबंधन की व्यवस्था करें।
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रस्ट (Uromyces ciceris-arietini)
इस रोग का असर फसल के पकने के दौरान अधिक दिखता है। बीमारी की शुरुआत में पौधे की पत्तियों और शाखाओं पर भूरे काले रंग के चित्ते दिखाई देने लगते हैं और धीरे-धीरे पौधों का विकास रुक जाता है।
कैसे करें रोकथाम?
- इससे बचाव के लिए बुवाई नवंबर के पहले पखवाड़े में ही कर लें।
- रोग का असर दिखने पर तुरंत क्रार्बेन्डाजिम या बेलिटान का पानी के साथ घोल बनाकर छिड़काव करें। ऐसा 8 दिनों के अंतराल पर करें।
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इन रोगों के अलावा कटुआ, दीमक, आर्मीवर्म, सेमीलुपर, चनाफली भेदक, लीफमाइनर जैसे कई कीट भी चने के पौधों की फसल को खराब कर देते हैं, इसलिए समय-समय पर इन कीटों से पौधों को बचाने के लिए कीटनाशकों का छिड़काव ज़रूर करना चाहिए।
स्टोरी साभार: ICAR – National Centre for Integrated Pest Management
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