सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए फूट ककड़ी की खेती क्यों है फ़ायदेमंद? 45-48 डिग्री में भी उग जाए

पिछले कुछ साल में फूट ककड़ी की उन्नत किस्मों के विकास और नई तकनीक के प्रयोग से फूट ककड़ी की खेती में इज़ाफा हुआ है। अगर व्यावसायिक तौर पर किसान इसकी खेती कर उत्पाद तैयार करते हैं तो ये अतिरिक्त आमदनी का अच्छा स्रोत बन सकती है।

फूट ककड़ी की खेती

फूट ककड़ी की खेती (Fruit Cucumber Cultivation): शुष्क क्षेत्रों के लिए बागवानी फसलों में फूट ककड़ी एक महत्वपूर्ण सब्जी है। फूट ककड़ी को काकड़िया, फूट, काचरा, डांगरा आदि नाम से भी जाना जाता है। इसके सूखे फलों को उपहार के रूप में देने का भी चलन है। इन सूखे फलों को खेलड़ा/खेलरी कहा जाता है। फूट ककड़ी को रायता, सब्ज़ी और सलाद के रूप में खान के साथ ही सुखाकर रखने पर पूरे साल इस्तेमाल किया जा सकता है।

हालांकि, यह सब्ज़ी अन्य सब्ज़ियों की तरह लोकप्रिय नहीं है, मगर केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर ( ICAR-Central Institute for Arid Horticulture, Bikaner) द्वारा इसकी कुछ उन्नत किस्मों और नई तकनीक के विकास से पिछले कुछ साल में इसकी खेती में बढ़ोतरी हुई है। कई किसान इससे मुनाफ़ा कमाने में सफल रहे हैं। फुट ककड़ी की खेती अतिरिक्त आमदनी कमाने का अच्छा विकल्प है।

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मिट्टी और जलवायु

फूट ककड़ी गर्म और शुष्क मौसम की फसल है। इसलिए राजस्थान का वातावरण इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। यह फसल 45-48 डिग्री तापमान में भी उग जाती है। बीजों के अंकुरण के लिए 20-22 डिग्री सेल्सियस और पौधों व फलों के विकास के लिए 32-38 डिग्री सेल्सियस तापमान की ज़रूरत होती है। इसकी खती गर्मियों में अच्छी होती है। इसकी खेती के लिए रेतीली व बलुई-दोमट मिट्टी उपयुक्त हैं और खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। 6.5-8.5 तक पी.एच. मान वाली कम उपचाऊ मिट्टी में भी फूट ककड़ी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।

फूट ककड़ी की खेती के लिए खेत को कैसे करें तैयार? 

मॉनसून से पहले ही जून में खेत की गहरी जुताई करके इसे तैयार कर लेना चाहिए। जून के अंतिम हफ़्ते में भेड़-बकरी या गोबर की खाद मिलाकर एक बार फिर से जुताई करें। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को बुवाई के लिए तैयार करें। गर्मियों में बुवाई के लिए खेत को जनवरी-फरवरी में दो बार कल्टीवेटर से जुताई करके पाटा लगाएं।

फूट ककड़ी की खेती
तस्वीर साभार: ICAR

कैसे करें फूट ककड़ी की खेती?

खेतों की सिंचाई, नाली या बूंद-बूंद सिंचाई विधि से की जाती है। वैज्ञानिक तरीके से फूट ककड़ी की खेती में नाइट्रोजन आधी मात्रा, फॉस्फोरस, पोटाश व अन्य रसायन व खाद का इस्तेमाल खेत में नालिया व क्यारियां बनाने से पहले किया जाता है। नाइट्रोजन की बाकी बची आधी मात्रा को 50 किलो यूरिया प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 3 हिस्सों में बांटकर बुवाई के 18-21, 30-35 और 45-50 दिन बाद सिंचाई के साथ नालियों में छिड़का जाता है।

बूंद-बूंद सिंचाई विधि में यूरिया को 4-6 भागों में विभाजित करके 10-20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई के साथ देना फायदेमंद होता है। समय-समय पर इसकी निराई-गुड़ाई करते रहना भी ज़रूरी है।

फूट ककड़ी की उन्नत किस्में

एएचएस 10- इस किस्म के फलों का छिलका चिकना होता है और फल हल्के पीले व धब्बेदार होते हैं। बुवाई के 65-70 दिनों बाद फल तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 215-230 क्विंटल है।

एएचएस 82- इस किस्म की फुट ककड़ी का आकार बड़ा, फलों का छिलका चिकना व फल पीले व केसरिया रंग के होते हैं। यह बुवाई के 66-72 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। प्रति हेक्टेयर उपज क्षमता 232-248 क्विंटल है।

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फूट ककड़ी की खेती में ध्यान रखें ये बातें

  • बुवाई के बाद पौधों से परिपक्व फलों की तुड़ाई 65-71 दिनों बाद की जाती है।
  • फलों की तुड़ाई उपयोग के आधार पर करें जैसे सब्ज़ी व रायता बनाने के लिए पूरी तरह से विकसित फल और सलाद व सुखाने के लिए पूरी तरह से पके फल (जब फल खुद ही पौधे से अलग हो जाए)।
  • फलों की तुड़ाई के बाद उन्हें 3-4 दिनों तक हवादार खुली जगह पर रखा जा सकता है।
  • इन्हें कोल्ड स्टोरेज में 10-12 दिनों के लिए भंडारित किया जा सकता है।
  • फलों को सुखाकर पूरे साल इस्तेमाल के लिए भी भंडारित किया जा सकता है।

फूट ककड़ी में कीट और रोगों का प्रबंधन

फूट ककड़ी को जंगली छिपकली, गिलहरी व पक्षियों से  नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। ऐसे में ज़रूरी है कि बुआई के बाद और फल आने के समय फसल की रखवाली करें।

पौधों में लाल व ऐपीलेकना भंग, सफेद व फल मक्खी और रस चूसने वाले कीटों के प्रकोप की आशंका बनी रहती है। इनसे बचाव के लिए एक किलोग्राम कीटनाशी या नीम पत्ती चूर्ण को 10 किलोग्राम राख के मिश्रण को टाट की थैली में भरकर सुबह के समय पौधों पर भुरकाव करें। फसल में समेकित रोग-कीट नियंत्रण के लिए बुआई के बाद 18-25, 30-35 व 45-50 दिनों के क्रम में इमिडाक्लोरोपिड, मिथाइल डिमेटोन एवं डाइमिथोऐट दवा का छिड़काव करना फ़ायदेमंद रहता है।

फुट ककड़ी से तैयार कर सकते हैं कई उत्पाद

फूट ककड़ी के पके फलों को ज़्यादा दिनों तक ताजा सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। इसलिए तुड़ाई के बाद लंबे समय तक उपयोग में लाने के लिए इनकी प्रोसेसिंग किसान कर सकते हैं। फूट ककड़ी के फलों के गूदे से कैच-अप, जैम एवं निर्जलीकरण (सुखाना) से खेलड़ा तथा बीजों से गिरी तैयार की जा सकती है। इस तरह से घरेलू स्तर पर मूल्य संवर्धन से स्वरोजगार और लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
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सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए फूट ककड़ी की खेती क्यों है फ़ायदेमंद? 45-48 डिग्री में भी उग जाए

कितनी होती है आमदनी

कम संसाधनों में भी फूट ककड़ी की खेती की जा सकती है। 2014 से 2018 तक फूट ककड़ी के उत्पादन और मार्केट पर किए गए अध्ययनों से साबित हुआ है कि कम बारिश या सिंचाई के बावजूद प्रति हेक्टेयर किसानों को 165-225 क्विंटल फल प्राप्त होता है। इसे बेचकर वह 65 हज़ार से लेकर एक लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं।

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तस्वीर साभार: ICAR

इतना ही नहीं, फूट ककड़ी की खेती की वैज्ञानिक तकनीकें अपनाकर इसकी बुवाई जनवरी से मार्च और जून-जुलाई में की जा सकती है। इसके ताजा फलों की बाजार में उपलब्धता मार्च के अंत से नवम्बर महीने तक रखी जा सकती है। फूट ककड़ी उत्पादन और प्रोसेसिंग तकनीकी से ताजा फल विपणन, सूखाकर खेलड़ा बनाना, बीज, जैम व कैच-अप जैसे घरेलू उत्पादों से प्रति हेक्टेयर 2 लाख से लेकर ढाई लाख रूपये तक की आय प्राप्त की जा सकती है।

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