यदि आपके खेतों में आपकी उम्मीद के मुताबिक फसल का उत्पादन नहीं हो रहा हो, तो फ़ौरन अपने खेत की मिट्टी की जाँच करवानी चाहिए। मिट्टी में फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैग्निशियम, सल्फर, कार्बन, हाड्रोजन जैसे रासायनिक पदार्थ होते हैं। इनकी मात्रा यदि सामान्य की अपेक्षा कम या ज्यादा हो तो इससे उत्पादन प्रभावित होता है। इसीलिए समय-समय पर मिट्टी की जाँच और उसका ज़रूरी उपचार भी वैसे ही करवाते रहना ज़रूरी है, जैसे हम लोग अपनी और पशुओं की सेहत की देखभाल करते हैं।
मिट्टी परीक्षण क्या होता है?
मिट्टी की जाँच के लिए सरकार की ओर से देश में हज़ारों मिट्टी परीक्षण केन्द्र चलाये जा रहे हैं। कृषि विश्वविद्यालयों में भी मिट्टी की जाँच होती है। कई निजी क्षेत्र की फर्म भी मिट्टी की जाँच करती हैं। लेकिन इनका मान्यता प्राप्त होना ज़रूरी है। जाँच केन्द्र में मिट्टी की क्षारीयता और अम्लीयता समेत अन्य गुण-दोष की पहचान करके किसानों को ये बताया जाता कि मिट्टी को स्वस्थ और उपजाऊ बनाने के लिए क्या उपाय अपनाना फ़ायदेमन्द होगा? कौन-कौन सी खाद या दवा की कितनी मात्रा का किस ढंग से इस्तेमाल करना चाहिए?
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कैसे लें मिट्टी का नमूना?
मिट्टी परीक्षण के लिहाज़ से इसका नमूना लेना बेहद महत्वपूर्ण होता है। यदि नमूना सही ढंग से लिया जाए तभी जाँच का नतीज़ा सही मिलेगा और मिट्टी के उपचार का सही तरीका भी तय हो पाएगा।
· नमूने के लिए मिट्टी का थोड़ा-थोड़ा अंश खेत के 8 से 10 स्थानों से लेना चाहिए।
· इसके लिए खेत की ऊपरी सतह को पूरी तरह साफ कर लें।
· फिर करीब 10 इंच गहरा गड्ढा खोदकर खुरपी से ऊपर से नीचे तक 2 सेंटीमीटर मोटी मिट्टी का टुकड़ा लेकर उसे साफ़ बाल्टी या टोकरी में डाल लें। ऐसा ही खेत के बाकी स्थानों से मिट्टी लेने के लिए करें।
· फिर पूरी मिट्टी का ढेर बना लें और हाथ से अच्छे से मिला लें। मिट्टी को अच्छे तरह से मिलाने के बाद करीब आधा किलो मिट्टी को प्लास्टिक या कपड़े की थैली में रख लें। इसी नमूनों को मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला में भेजना चाहिए।
ज़रूर ध्यान रखने वाली बातें
· मिट्टी का परीक्षण बुआई के एक माह पहले कराना चाहिए।
· यदि एक ही खेत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग फसल पैदा की जानी है तो मुमकिन है कि अलग-अलग हिस्सों के लिए इस्तेमाल होने वाली खाद की मात्रा भी अलग-अलग हो। इसीलिए, ऐसी दशा में खेत के अलग-अलग नमूनों की जाँच करवाना ज़्यादा उपयोगी साबित हो सकता है।
· फलदार पौधों के लिए 2 मीटर तक मिट्टी का नमूना लेना चाहिए, क्योंकि पेड़ की जड़ें गहराई तक जाती हैं।
· ऐसी जगह से मिट्टी का नमूना नहीं लेना चाहिए जहाँ खाद का ढेर रहा हो। इसी तरह खेत के मेड़ों के पास की मिट्टी का नमूना भी नहीं लेना चाहिए।
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नमूने के साथ मिट्टी का ब्यौरा भी लिखें
नमूने के साथ किसान का नाम, उसके गाँव का नाम, खेत का खसरा नम्बर, सिंचित या असिंचित, पहले ही गई फसल, आगे ली जाने वाले फसल, इलाके के मौसम का ब्यौरा, नमूना लेने वाले का नाम, मिट्टी से जुड़ी क्या समस्याएँ हैं, इसके बारे में मिट्टी जाँच केन्द्र को ज़रूर जानकारी देनी चाहिए।