जैविक खेती (Organic Farming): यूरिया, कीटनाशकों और खरपतवार नाशक रसायनों की खरीद में किसानों को काफ़ी खर्च करना पड़ता है, जिससे उनकी खेती की लागत काफ़ी बढ़ जाती है। यही नहीं रसायनों के लगातार उपयोग से न सिर्फ़ मिट्टी की उर्वरता कम होती जाती है, बल्कि ऐसी फसल उपयोग करने वालों की सेहत पर भी इसका बुरा असर पड़ता है।
कुछ लोग ऐसे हैं जो धीरे-धीरे अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं और अपने साथ ही दूसरे किसानों को भी जैविक खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं। ऐसे ही एक युवा हैं दिल्ली के संचित अग्रवाल। अपने इस सफ़र के बारे में उन्होंने विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ़ इंडिया की संवाददाता इंदु कश्यप से।
कॉरपोरेट नौकरी छोड़ क्यों अपनाई जैविक खेती
कंप्यूटर साइंस में ग्रेजुएट और AI में मास्टर्स कर चुके संचित डेटा साइंटिस्ट के रूप में हाई प्रोफाइल नौकरी कर चुके हैं। मगर कुछ सालों बाद ही उन्होंने अपने पेशा पूरी तरह से छोड़कर फुल टाइम खेती करने की सोची और आज एक सफल उद्यमी बन चुके हैं,। साथ ही दूसरे किसानों की भी जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
कॉरपोरेट छोड़ खेती को पेशे के रूप में चुनने के बारे में संचित का कहना है कि अपने खेती से जुड़े एक प्रोजेक्ट की स्टडी के दौरान उन्हें ये देखना था कि मंडी में सब्ज़ियों का रेट क्या रहता है और किसानों को किस तरह की समस्या होती है। इस स्टडी के दौरान उन्हें पता चला कि किसान हर चीज़ बाहर से लाता है जैसे बीज, यूरिया, कीटनाशक, खरपतवारनाशी रसायन आदि, जिससे लागत बहुत बढ़ जाती है। फिर जब किसान बाज़ार में फसल बेचने जाता है तो कीमतों में बदलाव हो जाता है जिससे उन्हें मुनाफ़ा नहीं हो पाता।
संचित आगे बताते हैं कि उन्होंने फिर एग्रीकल्चर में ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन में डिप्लोमा कोर्स किया जिससे उनकी रुची जैविक खेती में बढ़ने लगी। उन्होंने छत पर कुछ सब्ज़ियां उगाई और फिर 2019 में तय किया कि नौकरी छोड़कर पूरा समय खेती को ही देना है।
पहले होती है मार्केटिंग
संचित बताते हैं कि उन्होंने एक एकड़ की ज़मीन खरीदकर खेती शुरू की। पहले साल में 75 से ज़्यादा सब्ज़ियां उगाईं। खेती शुरू करने से पहले उन्होंने पहचान के कुछ लोगों से पूछा कि हम अगर जैविक तरीके से चीज़ें उगाएंगे तो क्या आप उसे लेंगे? लोग इसके लिए तैयार हो गए, क्योंकि उन्हें शुद्ध चीज़ें मिल रही थीं।
बाज़ार की समस्या दूर करने के लिए संचित ने एक परिवार से कहा कि आप एक किसान को गोद ले लो, जो आपको केमिकल मुक्त अनाज उगाकर देगा। इसके लिए वो तैयार हो गए। इस तरह से लोगों और किसानों दोनों की समस्या दूर हो गई। इस तरह से किसानों को फसल तैयार होने के बाद तुरंत पैसे मिल जाते हैं।
संचित की जैविक खेती के इस मॉडल में पहले ही मार्केटिंग हो जाती है और किसान फसल बाद में उगाता है। यानी अगर 50 परिवार है और वो कहते हैं कि उनको 10 या 20 किलो गेहूं चाहिए, तो उसके हिसाब से किसान को फसल उगाने के लिए कहा जाता है। जैविक खेती के तहत उगाई फसल का दाम भी अच्छा मिलता है। संचित फसल की अगल-अलग किस्मों की खेती को भी प्रमोट कर रहे हैं जैसे- सोनामोती गेहूं, काला गेहूं, बंसी, काठिया, काला चावल, लाल चावल उगा रहे हैं। आगे ज्वार, बाजरा उगाने का भी सोच रहे हैं।
किसानों को कैसे तैयार किया
संचित कहना है कि आज की तारीख में किसानों को जैविक खेती के लिए तैयार करना आसान नहीं है, क्योंकि उन्हें लगता है कि बिना यूरिया के तो फसल होगी ही नहीं। इसलिए उन्होंने वर्कशॉप आयोजित किए और किसानों को जैविक खेती के बारे में समझाया। वो बताते हैं कि जैविक खेती के लिए 4 चीज़ें बहुत ज़रूरी है। पहला देसी गाय, जिसका गोबर, मूत्र आदि सब खेती के काम आता है। दूसरा देसी बीज, आजकल किसानों को बार-बार बीज लाना पड़ता है, जबकि पहले एक बार बीज उगाए जाते थे और सालों-साल चलते थे। तीसरा है आसपास मौजूद जड़ी-बूटियों से कीटनाशक बनाना और चौथी चीज़ है मल्टीक्रॉपिंग यानी बहु फसल विधि अपनाना।
धीरे-धीरे होती है जैविक खेती की प्रक्रिया
संचित बताते हैं कि जब किसान जैविक खेती के लिए तैयार होता है, तो वो एक साथ पूरी ज़मीन पर जैविक खेती के लिए तैयार नहीं होते। ऐसे में हम उन्हें बताते हैं कि वो एक एकड़ में खेती कर सकते हैं और जब वो तैयार होते हैं तो पहले हम पालक लगाते हैं, क्योंकि ये मिट्टी से रसायनों को अवशोषित कर लेता है। पहली फसल को हम नष्ट कर देते हैं, क्योंकि ये शुद्ध नहीं होती। उसके बाद अगली फसल लगाते हैं और धीरे-धीरे ये प्रक्रिया आगे बढ़ती जाती है। क्योंकि एक बार में ही हम खेत को केमिकल फ़्री नहीं कर सकते।
कुदरती तरीके से करते हैं फसल स्टोर
फसल काटने के बाद उसे सही तरीके से स्टोर करना भी ज़रूरी है, वरना फसल खराब हो सकती है। तो इसके लिए भी संचित किसी तरह की गोली या पाउडर नहीं, बल्कि गोबर और नीम जैसी कुदरती चीज़ों का इस्तेमाल करते हैं। जो किसान संचित के साथ जुड़कर जैविक खेती कर रहे हैं, उनका कहना है कि पहले और अब आमदनी में बहुत फ़र्क आया है, साथ ही अब उन्हें भी शुद्ध चीज़ें मिल रही हैं, जो पूरी तरह से केमकिल फ़्री हैं।