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छोटे किसानों के लिए सिर्फ फसल उत्पादन की बदौलत पूरे साल घर-परिवार चलाना बहुत मुश्किल हो जाता है, क्योंकि इससे उन्हें बहुत ज़्यादा आमदनी नहीं होती है। ऐसे में सीमांत और लघु किसान यदि एकीकृत कृषि प्रणाली यानि Integrated Farming System (IFS) को अपनाते हैं तो सिर्फ एक हेक्टेयर की ज़मीन से भी पूरे साल अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
क्या है एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated Farming System) का सफल मॉडल और इसमें किसान किन-किन गतिविधियों को शामिल कर सकते हैं जानने के लिए किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली ने बात की ICAR-IIFSR के वैज्ञानिक डॉक्टर पी.सी. जाट से।
क्या है एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated farming system-IFS)
यह खेती का एक ऐसा मॉडल है जिसमें एक ही फसल की खेती करने की बजाय अंतर फसली या सह फसली खेती की जाती है यानी एक ही खेत में कई फसल लगाई जाती है जैसे गन्ने के साथ चारा या भिंडी जैसी कोई सब्ज़ी लगाई जाती है। इसके अलावा कृषि से संबंधित अन्य गतिविधिया भी की जाती हैं जैसे मुर्गी पालन, पशुपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन, बागवानी, वानिकी आदि भी इसी का हिस्सा है। डॉ. पी.सी. जाट का कहना है कि यह प्रणाली सीमांत और लघु किसानों के लिए बहुत लाभकारी ही, इस अपनाकर वो पूरे सार आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
कैसे की जाती है एकीकृत कृषि
डॉ. पी.सी. जाट बताते हैं कि वैसे तो एकीकृत कृषि के 8 घटक होत हैं, जैसे फसल उत्पादन, पशुपालन, मछली पालन, मुर्गी पालन, बागवानी, मधुमक्खी पालन, वानिकी, मशरूम उत्पादन आदि। मगर ज़रूरी नहीं है कि किसान इन सबको अपनाएं वो अपनी सुविधानुसार 4, 5 या 6 गतिविधियां कर सकते हैं।
इस (Integrated Farming System) प्रणाली में सभी चीज़ें आपस में जुड़ी होती है। जैसे फसलों के साथ ही पशु चारे का उत्पादन किया जाता है तो अलग से चारा लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती, उसी तरह पशुओं के गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाकर खेतों में इस्तमाल की जाती है तो जैविक खेती हो जाती है और रसायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है।
पशुपालन से अतिरिक्त आमदनी
फसल उत्पादन के अलावा किसान पशुपालन से अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं। डॉ. पी.सी. जाट कहते हैं कि किसान वर्मी कंपोस्ट बनाकर न सिर्फ अपने खेतों में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, बल्कि ज़्यादा मात्रा में उत्पादन करने पर इसे बेच भी सकते हैं, क्योंकि आजकल वर्मी कंपोस्ट की बाज़ार मे बहुत मांग है। इसके अलावा दूध बेचकर भी अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं।
मशरूम उत्पादन
एकीकृत कृषि प्रणाली के तहत कम लागत में मशरूम का उत्पादन भी किया जा सकता है। इसके उत्पादन के लिए किसान फसल अवशेष जैसे गेहूं के भूसे में स्पॉन मिलाकर मशरूम उत्पादन के लिए बेड तैयार कर सकते हैं। इससे न सिर्फ उन्हें रोज़गार मिलेगा, बल्कि वो अपने परिवार की पोषण की ज़रूरतों को भी पूरा कर सकते हैं और अधिक उत्पादन होने पर बेचकर आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
मशरूम उत्पादन के बाद बचे अवशेषों को खाद के रूप में उपयोग किया जाता है। डॉ. जाट कहते हैं कि इस प्रणाली की यही खासियत है कि कि इसमें भी बर्बाद नहीं होता है और हर चीज़ का सही इस्तेमाल हो जाता है जिससे अपशिष्ट बहुत कम मात्रा में निकलते हैं।
मछली पालन में पानी की रिसाइकलिंग
IFS मॉडल में मछली पालन के लिए इस्तेमाल होने वाली पानी की भी रिसाइकलिंग की जाती है, पुराने पानी को खेत में छोड़ा जाता है, क्योंकि इसमें कई तरह के पोषक तत्व होते हैं जिससे फसल उत्पादन अच्छा होता है। वहीं समय-समय पर तलाबा में ताज़ा पानी डालते रहने से मछलियों का उत्पादन अच्छा होता है।
कमाई का बढ़िया ज़रिया है मुर्गी पालन
डॉ. पी. जाट कहते हैं कि एक हेक्टेयर की भूमि वाले छोटे किसान खेती के साथ मुर्गी पालन करते अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। वो अगर 20 मुर्गियां रखते हैं, तो एक साल में मुर्गियों से करीब 3 हजार अंडे मिलेंगे और इन अंडों से लगभग 30 हजार की कमाई होगी।
ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल
चूंकि IFS मॉडल का मकसद ही है उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम इस्तेमाल ऐसे में सिंचाई के लिए ड्रिप विधि का इस्तेमाल किया जाता है जिससे पानी की बर्बादी नहीं होती है। डॉ. पी.सी. जाट बताते हैं कि इस सिंचाई विधि से सभी फसलों को बराबर पानी मिलता है।
सह फसली खेती में जैसे गन्ने जैसी फसल का ज़्यादा पानी चाहिए और उसके साथ दूसरी लगाई गई फसल को कम पानी चाहिए तो ऐसी में ड्रिप सिंचाई उपयोगी है। इससे सभी पौधों को ज़रूरत के हिसाब से पानी मिल जाता है।
IFS मॉडल का भविष्य
डॉ. पी.सी. जाट का मानना है कि हर जगह रोजगार की कमी हो रही है, ऐसे में यदि किसानों को अपने घर में ही आदमनी का अच्छा ज़रिया मिल जाए तो उन्हें कहीं जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और घर के बाकी लोगों को भी रोज़गार मिलेगा। उनका कहना है कि ICAR-IIFSR का मकसद है किसानों को एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाने के लिए प्रेरित करना। साथ ही वो ये भी कहते हैं कि ज़रूरी नहीं कि किसान 8 चीज़ों को इसमें शामिल करें, वो अपनी सुविधानुसार 4-5 गतिविधियों मिलाकर भी ये मॉडल अपना सकता है जैसे अंतर फसल, मुर्गी पालन, मछली पालन, बागवानी, पशुपालन आदि।
प्रशिक्षण की व्यवस्था
डॉ. पी.सी. जाट बताते हैं कि किसानों को एकीकृत कृषि प्रणाली से संबंधित ट्रेनिंग दी जाती है, साथ ही ऑर्गेनिक और नेचुरल फार्मिंग पर भी प्रशिक्षण दिया जाता है। उनका कहना है कि संस्थान ने 7-8 फसलों का पैकेज बना रखा है जिसमें कौन-सी फसल के साथ क्या-क्या चीज़ डालनी है आदि बताया जाता है। उनका कहना है कि वो उनका संस्थान एनजीओ की रिक्वेस्ट पर भी किसानों को प्रशिक्षण देता है।
ICAR-IIFSR से जानकारी के लिए संपर्क
अगर कोई किसान उनसे प्रशिक्षण या किसी अन्य जानकारी के संबंध में संपर्क करना चाहे तो ICAR-IIFSR निदेशक के नाम पर पत्र लिख सकता है या ICAR-IIFSR की वेबसाइट (https://iifsr.icar.gov.in/) पर जाकर जानकारी प्राप्त कर सकता है।
यदि किसी किसान के पास मात्र एक हेक्टेयर की ज़मीन है तो भी वो एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाकर आराम से पूरे साल अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकता है। हां, उसे अपने सीमित संसाधनों का सर्वोत्तम इस्तेमाल करने के लिए अपने नज़दीकी कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क करना चाहिए। IFS मॉडल सीमांत और लघु किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
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