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जेरोम सोरेंग, जो एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर (Retired Professor) हैं, उनके पास कुल 5 एकड़ ज़मीन है, जिसमें से 2 एकड़ अनसिंचित है। अपनी खेती में सुधार करण के लिए, उन्होंने कृषि के पारंपरिक तरीकों को छोड़कर एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated Farming System) को अपनाया और पोल्ट्री पालन को भी इसमें शामिल किया। इस नई दिशा में कदम बढ़ाने के लिए वे कृषि विज्ञान केंद्र, पूर्वी सिंहभूम गए, जहां उन्होंने एकीकृत कृषि प्रणाली, बैकयार्ड पोल्ट्री फ़ार्मिंग (Backyard Poultry Farming), सूअर आधारित कृषि प्रणाली और धान गहनता प्रणाली जैसे विषयों पर प्रशिक्षण लिया। इस प्रशिक्षण से उन्हें खेती के नए और व्यावसायिक तरीकों के बारे में जानकारी मिली।
झारसिम नस्ल की मुर्गियों से की शुरुआत (Started with Jharsim Breed of Chickens)
जेरोम सोरेंग की बैकयार्ड पोल्ट्री फ़ार्मिंग (Backyard Poultry Farming) में रुचि तब और बढ़ी, जब उन्होंने झारसिम मुर्गियों के बारे में जाना। यह मुर्गी की एक विशेष किस्म है, जिसे पहले DBN के नाम से जाना जाता था, और इसे आईसीएआर-एआईसीआरपी ऑन पोल्ट्री ब्रीडिंग, बीएयू, रांची द्वारा विकसित किया गया था। इस किस्म के बारे में और अधिक जानने के लिए उन्होंने रांची वेटरनरी कॉलेज, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, कांके, रांची की पोल्ट्री इकाई का दौरा किया, जहां उन्होंने पोल्ट्री पालन के बारे में और गहरी जानकारी प्राप्त की।
जेरोम सोरेंग ने 2014 के शुरुआत में 100 झारसिम मुर्गियों से बैकयार्ड पोल्ट्री पालन (Backyard Poultry Farming) की शुरुआत की। उन्होंने मुर्गियों के लिए सही आवास, उचित आहार और बीमारी प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया। इस देखभाल और ध्यान के परिणामस्वरूप मुर्गियां जल्दी परिपक्व हुईं, और 3 महीने में उनका वजन 1.4 किलोग्राम तक बढ़ गया। साथ ही, 22 सप्ताह की आयु में मुर्गियों ने पहला अंडा देना शुरू कर दिया। बाद में, उन्होंने 4 महीने की उम्र के बाद 28 मुर्गों को 400 रुपये प्रति पक्षी के हिसाब से बेच दिया। बची हुई 50 मुर्गियों से उन्होंने लगभग 5000 अंडे प्राप्त किए, जिन्हें उन्होंने 7 रुपये प्रति अंडे की दर से बेचा।
आर्थिक लाभ और प्रभाव (Economic Benefits and Impact)
बैकयार्ड पोल्ट्री फ़ार्मिंग (Backyard Poultry Farming) से जेरोम सोरेंग को न केवल अपने खेत के दैनिक खर्चों को पूरा करने में मदद मिली, बल्कि उन्होंने खेत मज़दूरों का सही तरीके से उपयोग भी किया। मार्च 2015 में, उन्हें मुर्गियां बेचकर 60,000 रुपये की सकल आय प्राप्त हुई। इसके बाद, उन्होंने अपने पोल्ट्री पालन को और विस्तार दिया और एक आदर्श मॉडल के रूप में उभरे।
जेरोम सोरेंग ने बैकयार्ड पोल्ट्री फ़ार्मिंग (Backyard Poultry Farming) में स्थानीय संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया, जैसे रसोई और खेत के कचरे का उपयोग मुर्गियों को खिलाने के लिए। साथ ही, उन्होंने समय पर टीकाकरण और दवाइयों का भी सही तरीके से प्रबंधन किया। इस तरह, उन्होंने कृषि समुदाय के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया कि कैसे एक छोटा सा खेत भी व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य, आर्थिक रूप से लाभकारी और टिकाऊ हो सकता है।
समुदाय पर प्रभाव (Impact on the Community)
जेरोम सोरेंग की कहानी ने न केवल उन्हें व्यक्तिगत रूप से सफलता दिलाई, बल्कि यह अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनी। आजकल, झारखंड के कई स्थानों के किसान उनके खेत का दौरा करते हैं और उनके अनुभव से सीखते हैं। वे जेरोम सोरेंग से उपजाऊ अंडे खरीदते हैं और उन्हें सेने के लिए ब्रूडर मुर्गियों का उपयोग करते हैं।
यह उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण का परिणाम है कि उन्होंने 12 किसानों को बैकयार्ड पोल्ट्री फ़ार्मिंग (Backyard Poultry Farming) शुरू करने के लिए प्रेरित किया और उन्हें इस प्रक्रिया में मदद की। उनके इस कदम से स्थानीय समुदाय में आर्थिक समृद्धि और सामाजिक जागरूकता आई है।
सीख और प्रेरणा (Learning and Inspiration)
जेरोम सोरेंग की सफलता की कहानी से कई महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलती हैं। सबसे पहली और अहम बात यह है कि छोटे पैमाने पर भी एकीकृत कृषि प्रणालियां आर्थिक रूप से लाभकारी हो सकती हैं। उनके द्वारा अपनाए गए वैज्ञानिक तरीके और उचित प्रबंधन ने पोल्ट्री पालन से उन्हें अच्छा लाभ दिलाया।
स्थानीय संसाधनों का अधिकतम उपयोग, जैसे रसोई और खेत के कचरे का पशु आहार के रूप में इस्तेमाल, ने उनकी लागत को कम किया। इसके अलावा, जेरोम सोरेंग का ज्ञान और कौशल अर्जित करने की इच्छा उनकी सफलता की कुंजी बनी। उनकी यह कहानी यह भी दर्शाती है कि सफल मॉडल दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं।
इससे यह भी प्रमाणित होता है कि एक आदिवासी किसान, यदि सही मार्गदर्शन और प्रशिक्षण मिले, तो वह अपनी छोटी सी ज़मीन पर भी बैकयार्ड पोल्ट्री फ़ार्मिंग (Backyard Poultry Farming) जैसी गतिविधियों के माध्यम से अच्छा मुनाफा कमा सकता है। जेरोम सोरेंग का उदाहरण यह दिखाता है कि समर्पण और कड़ी मेहनत से कोई भी किसान अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकता है और समुदाय के विकास में योगदान दे सकता है।
इस प्रकार, जेरोम सोरेंग की कहानी न केवल उनके व्यक्तिगत संघर्ष और सफलता की कहानी है, बल्कि यह आदिवासी किसानों के लिए एक प्रेरणा बन गई है, जो छोटे पैमाने पर कृषि और पोल्ट्री पालन (Backyard Poultry Farming) के जरिए अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने की उम्मीद रखते हैं।
समग्र विकास के लिए आदिवासी किसानों का समर्थन (Supporting Tribal Farmers for Holistic Development)
जेरोम सोरेंग की तरह, अगर आदिवासी किसानों को सही प्रशिक्षण और मार्गदर्शन मिले, तो वे न केवल अपनी आजीविका सुधार सकते हैं, बल्कि अपने समुदाय के लिए भी एक प्रेरणा और आदर्श बन सकते हैं। बैकयार्ड पोल्ट्री फ़ार्मिंग (Backyard Poultry Farming) जैसी गतिविधियां उन्हें आत्मनिर्भर बना सकती हैं और उनके जीवन में स्थायित्व ला सकती हैं।
इसलिए, सरकार और अन्य संस्थाओं को आदिवासी किसानों को इस प्रकार की योजनाओं के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि वे अपनी मेहनत और समर्पण से अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकें। यह कदम आदिवासी समुदायों के समग्र विकास की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगा और इन किसानों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचने में मदद करेगा।
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