लातूर के किसान महादेव गोमारे ने बांस की खेती और पोषण गार्डन मॉडल से बदली क़िस्मत

महादेव गोमारे ने लातूर में बांस की खेती और पोषण गार्डन मॉडल से बदली किसानों की तक़दीर, बने समाज बदलाव की अनूठी मिसाल।

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 महाराष्ट्र के लातूर जिले का नाम आते ही सूखा, पानी की किल्लत और खेती की समस्याएं सामने आ जाती हैं। लेकिन इसी इलाके के एक किसान ने न केवल अपनी क़िस्मत बदली, बल्कि समाज में बड़ा बदलाव लाने की मिसाल कायम की। इस कहानी के केंद्र में हैं – महादेव गोमारे और उनके साथी शंतनु, जो ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ के साथ मिलकर बांस की खेती और पोषण गार्डन मॉडल के ज़रिए किसानों और महिलाओं की ज़िंदगी संवार रहे हैं।

बांस की खेती बनी सूखे में उम्मीद की हरियाली (Bamboo farming became a ray of hope in the drought) 

किसान बताते हैं, “हमारे यहां सबसे बड़ी चुनौती पानी की कमी और मिट्टी का बहाव था। हर साल बारिश के साथ उपजाऊ मिट्टी बह जाती थी।” इसी मुश्किल को दूर करने के लिए उन्होंने अपनाई बांस की खेती। बांस को ‘ग्रीन गोल्ड’ कहा जाता है – इसकी जड़ें मिट्टी को मज़बूती देती हैं, पानी को संजोकर रखती हैं और हवा की तेज़ रफ्तार से फ़सलों को बचाती हैं।

महादेव गोमारे के मुताबिक, “बांस किसान का बॉडीगार्ड है। यह न केवल मिट्टी बचाता है, बल्कि हर साल कटाई के बाद किसानों को नियमित आय भी देता है।” वे बताते हैं कि अब तक लातूर में 400 से अधिक किसान बांस की खेती से लाभ उठा रहे हैं।

सिर्फ़ पौधे नहीं, रोज़गार भी दे रही है बांस की खेती (Bamboo farming is not only providing plants but also providing employment)

बांस की खेती सिर्फ़ फ़सलों की सुरक्षा और पर्यावरण के लिए फ़ायदेमंद नहीं है, यह रोज़गार का भी बड़ा साधन बन रही है। महादेव गोमारे ने योजना बनाई है कि वे एक ऐसा स्किल सेंटर शुरू करें, जहां ग्रामीण युवा और महिलाएं बांस से बने उत्पाद बनाना सीख सकें – जैसे फर्नीचर, सजावट के सामान और घरेलू उपयोग की चीज़ें। यह पहल गांवों में स्वरोज़गार की एक नई राह खोल सकती है।

पोषण गार्डन मॉडल है कम ज़मीन में अधिक उपज और बेहतर सेहत

महादेव गोमारे की दूसरी बड़ी पहल है – पोषण गार्डन मॉडल। यह मॉडल खासतौर पर उन किसानों और महिलाओं के लिए है जिनके पास ज़मीन और संसाधन सीमित हैं। पोषण गार्डन मॉडल को एक गनथा (750 वर्ग मीटर) ज़मीन पर तैयार किया जा सकता है और इसमें हर दिन ताज़ी, पोषण से भरपूर सब्जियों की खेती की जाती है।

इस मॉडल की ख़ासियत:

  • इसमें सात गोलाकार घेरे होते हैं, जिन्हें हफ्ते के सात दिनों के हिसाब से अलग-अलग सब्जियों के लिए बांटा जाता है।
  • बीच का हिस्सा पपीता या केला जैसे फलों के लिए होता है, या खाद के गड्ढे के रूप में इस्तेमाल होता है।
  • सबसे बाहरी घेरा बड़े पौधों के लिए उपयुक्त होता है।
  • इन गोल घेरे के रास्तों को बांस की छतरियों से ढका जाता है, जिससे चढ़ाई वाले पौधे जैसे लौकी, करेला आदि आसानी से उगते हैं।

यह अनोखी बनावट न केवल खेती को सुंदर बनाती है, बल्कि उत्पादन भी ज़्यादा देती है। और खास बात – इसके लिए पानी की खपत बहुत कम होती है, जो लातूर जैसे क्षेत्रों में बहुत फायदेमंद है।

महिलाओं के लिए बदलाव की शुरुआत (The beginning of change for women)

पोषण गार्डन मॉडल ने गांव की महिलाओं के लिए आजीविका और आत्मनिर्भरता के रास्ते खोल दिए हैं। कम पानी और कम लागत में महिलाएं अब खुद अपने घर की पोषण जरूरतें पूरी कर रही हैं और साथ ही अतिरिक्त उपज से आय भी अर्जित कर रही हैं।

महादेव गोमारे बताते हैं, “हमने लातूर के ज़िला परिषद स्कूलों में भी यह मॉडल लागू किया है, ताकि बच्चे भी सीख सकें कि पोषण क्या होता है और पेड़ों-पौधों की अहमियत क्या है।”

पर्यावरण के लिए भी वरदान (A boon for the environment too)

बांस की खेती और पोषण गार्डन मॉडल दोनों ही पर्यावरण के लिए वरदान साबित हो रहे हैं। बांस 30% अधिक ऑक्सीजन देता है और हवा से कार्बन डाइऑक्साइड को ज्यादा मात्रा में अवशोषित करता है। वहीं पोषण गार्डन मॉडल जैविक खेती को बढ़ावा देता है, जिससे रसायनों का उपयोग कम होता है और ज़मीन की गुणवत्ता बेहतर बनी रहती है।

आर्ट ऑफ लिविंग की भूमिका (Role of Art of Living)

‘आर्ट ऑफ लिविंग’ संस्था ने न केवल किसानों को प्रशिक्षित किया, बल्कि बांस की खेती और पोषण गार्डन मॉडल जैसे नवाचारों को ज़मीनी स्तर तक पहुंचाया। संस्था का उद्देश्य है – किसानों को आत्मनिर्भर बनाना, गांवों में रोज़गार के अवसर बढ़ाना और महिलाओं को सशक्त बनाना।

आम के पेड़ों से गांवों में लौटेगी हरियाली और विरासत (Mango trees will return greenery and heritage to villages)

महादेव गोमारे ने ‘Ek Laksh Aam Vruksh’ पहल की शुरुआत की है, जिसके तहत लातूर में एक लाख आम के पेड़ लगाए जाएंगे। यह अभियान न केवल पर्यावरण सुधार की दिशा में एक कदम है, बल्कि गांवों में आम की छांव और जैव विविधता को फिर से लौटाने की कोशिश भी है।

किसानों के लिए आम का पेड़ बनेगा स्थायी आमदनी का जरिया (Mango tree will become a permanent source of income for farmers)

आम का पेड़ कम पानी में पनपता है और लंबे समय तक फल देता है। महादेव गोमारे इसे किसानों के लिए एक तरह की ‘पेंशन योजना’ मानते हैं, जिससे उन्हें हर साल लाखों की आय हो सकती है — वो भी प्राकृतिक खेती के जरिए।

निष्कर्ष (Conclusion)

महादेव गोमारे जैसे किसानों की सोच और मेहनत यह दिखाती है कि अगर इरादा नेक हो और दिशा स्पष्ट हो, तो खेती सिर्फ़ जीविका का साधन नहीं, बल्कि समाज में बदलाव की ताकत बन सकती है। बांस की खेती और पोषण गार्डन मॉडल लातूर जैसे सूखा प्रभावित इलाकों में न केवल खेती को जीवित रखे हुए हैं, बल्कि एक समृद्ध, सतत और स्वावलंबी समाज की ओर ले जा रहे हैं। महादेव गोमारे की यह पहल सिर्फ़ एक किसान की नहीं, बल्कि हजारों गांवों की कहानी बन सकती है – अगर हम इसे अपनाएं और आगे बढ़ाएं।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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