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बिहार के नालंदा जिले के दीपनगर गांव के निवासी सुरेंद्र राम जैविक और प्राकृतिक खेती के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य लाभ की दिशा में एक उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं। परंपरागत खेती के बजाय जैविक खेती को अपनाने के पीछे उनका उद्देश्य केवल आर्थिक लाभ ही नहीं, बल्कि समाज और प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाना भी है।
जैविक खेती की ओर कदम (move towards organic farming)
सुरेंद्र राम ने लगभग 10-12 साल पहले जैविक खेती की शुरुआत की। उनका मुख्य उद्देश्य रसायनमुक्त खेती के माध्यम से न केवल मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखना था, बल्कि फ़सल उत्पादन को भी बेहतर बनाना था। उनका मानना है कि जैविक खेती ही वह माध्यम है जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए शुद्ध भोजन और स्वच्छ पर्यावरण सुनिश्चित किया जा सकता है।
उनका कहना है कि “रसायन आधारित खेती ने न केवल मिट्टी की उर्वरता को घटाया है, बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। जैविक खेती के माध्यम से इन समस्याओं का समाधान संभव है।”
खेती का मॉडल और नवाचार (Farming model and innovation)
सुरेंद्र राम जैविक खेती में कई नवाचारों का उपयोग करते हैं।
- वर्मी कंपोस्ट यूनिट: उन्होंने उद्यान विभाग की सहायता से वर्मी कंपोस्ट यूनिट स्थापित की है। इस यूनिट में जैविक खाद तैयार की जाती है जो फ़सलों के लिए अत्यधिक लाभकारी होती है।
- जीवामृत: देशी गाय के गोबर और गोमूत्र से तैयार किए गए जीवामृत का उपयोग खेतों में किया जाता है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है।
- पेड़ों और पौधों का संरक्षण: सुरेंद्र राम ने अपने खेतों में नीम, अगवन, और अन्य औषधीय पौधों को भी उगाया है, जिनसे जैविक कीटनाशक तैयार किए जाते हैं।
- फ़सल विविधता: गेहूं, चना, हल्दी, और टमाटर जैसी फ़सलों के साथ मसालों की भी खेती करते हैं।
प्रशिक्षण और जागरूकता (Training and Awareness)
सुरेंद्र राम न केवल खुद जैविक खेती कर रहे हैं, बल्कि अपने अनुभवों को अन्य किसानों के साथ साझा भी कर रहे हैं।
– उन्होंने अब तक 20 से अधिक पंचायतों के किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग दी है।
– आत्मा और कृषि विभाग के सहयोग से वे नियमित रूप से प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
– वे किसानों को न केवल जैविक खाद तैयार करने की विधि सिखाते हैं, बल्कि उन्हें मार्केटिंग के तरीके भी बताते हैं।
उनका मानना है कि “अगर किसान जागरूक होंगे और जैविक खेती अपनाएंगे, तो उनके स्वास्थ्य के साथ-साथ उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहतर होगी।”
सरकारी योजनाओं का लाभ (Benefits of government schemes)
सुरेंद्र राम ने कुछ सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया है, जैसे:
- वर्मी कंपोस्ट यूनिट: उद्यान विभाग से सहायता लेकर उन्होंने यह यूनिट स्थापित की।
- स्प्रिंकलर सिस्टम: जल प्रबंधन के लिए उन्होंने स्प्रिंकलर सिस्टम अपनाया, जिससे पानी की बचत होती है।
- प्रशिक्षण कार्यक्रम: कृषि विभाग और अन्य संस्थानों के माध्यम से उन्होंने कई प्रशिक्षण प्राप्त किए हैं।
फ़सल उत्पादन और बिक्री का मॉडल (Crop production and sales model)
उनकी उपज को मंडियों में बेचा जाता है, और कई बार व्यापारी सीधे उनके खेतों से उत्पाद खरीदने आते हैं। हालांकि, वे मानते हैं कि जैविक उत्पादों की उचित कीमत प्राप्त करने के लिए सीधी मार्केटिंग और डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग आवश्यक है।
उनका यह भी कहना है कि “अगर सरकार किसानों को उचित मूल्य देने के लिए बेहतर बाज़ार व्यवस्था सुनिश्चित करे, तो जैविक खेती करने वाले किसानों की संख्या बढ़ेगी।”
भविष्य की योजनाएं (future plans)
सुरेंद्र राम अपने खेती के काम को और विस्तार देना चाहते हैं।
- प्रोसेसिंग यूनिट: उनका सपना है कि वह एक प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करें, जहां टमाटर, आलू, और हल्दी जैसे उत्पादों को प्रोसेस कर बाज़ार में बेचा जा सके।
- फार्म स्किल सेंटर: किसानों को जागरूक करने और उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए एक फार्म स्किल सेंटर स्थापित करने की योजना है।
- डायरेक्ट मार्केटिंग: अपने जैविक उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए वे डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करना चाहते हैं।
चुनौतियां और समाधान (Challenges and Solutions)
जैविक खेती में कई फायदे होने के बावजूद, सुरेंद्र राम बताते हैं कि इसे अपनाने में कई चुनौतियां भी हैं:
- शुरुआती लागत: जैविक खाद और उपकरणों के लिए शुरुआती लागत अधिक होती है।
- मार्केटिंग की समस्या: बिचौलियों के कारण किसानों को उनकी उपज का सही दाम नहीं मिलता।
- प्रशिक्षण की कमी: कई किसानों को जैविक खेती की तकनीकों की जानकारी नहीं होती।
इन समस्याओं को दूर करने के लिए उन्होंने स्थानीय किसानों के साथ मिलकर एक सामूहिक प्रयास शुरू किया है।
किसानों के लिए संदेश (Message for farmers)
सुरेंद्र राम का मानना है कि “खेती केवल मुनाफे का जरिया नहीं है, बल्कि यह हमारी प्रकृति और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उपहार है।”
वे किसानों से अपील करते हैं कि वे रसायनमुक्त खेती अपनाएं और पर्यावरण संरक्षण में योगदान दें।
निष्कर्ष (conclusion)
सुरेंद्र राम जैसे किसान आज जैविक खेती के क्षेत्र में एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। उनके प्रयास न केवल उनकी अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बना रहे हैं, बल्कि अन्य किसानों को भी जागरूक कर रहे हैं। उनका मानना है कि सही दृष्टिकोण, तकनीक, और सरकारी योजनाओं का उपयोग करके खेती को एक लाभदायक और टिकाऊ व्यवसाय बनाया जा सकता है।
उनकी कहानी हर उस किसान के लिए प्रेरणा है, जो खेती को केवल पारंपरिक तरीके से देखते हैं और बदलाव के लिए तैयार हैं।
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