मूंग के बाद धान की खेती क्यों है फ़ायदेमंद और खेत में ही कैसे स्टोर कर सकते हैं प्याज़, जानिए प्रगतिशील किसान सत्यवान से

मूंग के बाद धान की खेती से उपज बढ़ती है और मिट्टी उपजाऊ रहती है। जानिए कैसे सत्यवान खेत में ही प्याज़ स्टोर कर लाभ कमा रहे हैं।

मूंग के बाद धान की खेती Paddy cultivation after moong

दिल्ली के दरियापुर गांव के प्रगतिशील किसान सत्यवान आधुनिक कृषि पद्धतियों का इस्तेमाल करते हैं। साथ ही गर्मियों में खाली खेत में वो मूंग की खेती करते हैं, जिससे मिट्टी की नाइट्रोजन की ज़रूरत पूरी हो जाती है और खेत में यूरिया डालने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। साथ ही सत्यवान देसी जुगाड़ से खेत में ही प्याज़ का भंडारण भी करते हैं और वहीं से उसे बेचते भी हैं। अपनी खेती के आधुनिक मॉडल, प्याज़ के भंडारण और गर्मियों में मूंग की खेती के फ़ायदों पर उन्होंने चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।

गर्मियों में मूंग लगाने के फ़ायदे

सत्यवान एक प्रगतिशील किसान हैं जो सिर्फ़ फ़सल उगाने ही नहीं, बल्कि उसकी प्रोसेसिंग और उसे सीधे बेचने मे यकीन रखते हैं जिससे अच्छी आमदनी हो सके और वो बाकी किसानों को भी अपना बाज़ार खुद बनाने की सलाह देते हैं। वो स्मार्ट खेती में यकीन रखते हैं तभी तो उनका कहना है कि गर्मियों में जब आमतौर पर खेत खाली होता है तो किसानों को मूंग लगाना चाहे। इस मौसम में मूंग की खेती फ़ायदेमंद होती है। उन्होंने खुद 2-3 एकड़ में मूंग लगाई है। वो बताते हैं कि मूंग की जड़ों में राइजोबियम बैक्टीरिया पनपने हैं, जो पौधों को खाना बनाने में मदद करते हैं।

दरअसल, 78 प्रतिशत नाइट्रोजन वायुमंडल में है तो, मगर उस रूप में नहीं है जो पौधों को चाहिए। इसलिए इस बैक्टीरिया की मदद से पौधे खाना बनाते हैं। जिस खेत में मूंग लगी है उसके बाद उसमें धान लगाने पर फ़सल अच्छी होती है क्योंकि उसकी नाइट्रोजन की ज़रूरत पूरी हो जाती है। सत्यवान कहते हैं कि हमारे पूर्वज भी वैज्ञानिक ही थे क्योंकि वो कहते थे पहले मूंग, फिर लगाए धान, उसे कहते चतुर किसान।

धान की फ़सल में यूरिया की ज़रूरत नहीं पड़ती

सत्यवान बताते हैं कि मूंग की फ़सल लेने के बाद पौधे का बाकी हिस्सा खेत में ही मिला दिया जाता है, जो हरी खाद का काम करता है।  इससे मिट्टी का पीएच संतुलन बना रहता है, इसकी उर्वरा शक्ति बढ़ती है और अगली फ़सल की नाइट्रोजन की पूर्ति हो जाती है। जिस खेत में दलहनी फ़सल लगाई जाती है उसमें लगने वाली अगली फ़सल का उत्पादन भी अच्छा होता है।

मूंग के बाद धान लगाने पर उसमें ज़्यादा कुछ करने की ज़रूरत नहीं होती है। कीट का खतरा भी कम हो जाता है। दरअसल, जब धान की फ़सल में यूरिया ज़्यादा डाला जाता है तो कच्चापन रहता है जिससे कीट आते हैं। जब फ़सल को प्राकृतिक तरीके से नाइट्रोजन मिलेगा और वो परिवपक्व होगी तो कीट का प्रकोप नहीं होगा। सत्यवान कहते हैं कि वो ज़्यादातर तरावड़ी बासमती 19 लगाते हैं जो बहुत खुशबूदार है।

प्याज़ स्टोरेज का देसी जुगाड़

प्याज़ को कई महीनों तक सुरक्षित रखने के लिए आमतौर पर कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है, मगर सत्यवान प्याज़ को देसी तरीके से स्टोर करते हैं। उनका कहना है कि अगर किसानों को प्याज़ की अच्छी क़ीमत चाहिए तो उसका स्टॉक ज़रूरी है। क्योंकि जब फ़सल अधिक होती है और तुरंत बाज़ार में आती है तो अच्छी क़ीमत नहीं मिलती है। उन्होंने प्याज़ के भंडारण के लिए खेत में ही बांस की एक टाटी जैसा स्ट्रक्चर बनाया हुआ है। वो कहते हैं कि प्याज़ की कटाई से पहले ही उसे बना लिया जाता है। इसे ज़मीन से थोड़ा ऊपर बनाया जाता है और नीचे ईंट लगी होती है ताकि बारिश का पानी इसमें न जाए।

इसकी चौड़ाई 2.5 से 3 फीट होती है और ऊंचाई 6 फीट की होती है, जिसमें 5 फीट तक प्याज़ रख सकते हैं। जो बांस टाटी बनाते हैं उसके ऊपर वॉटर प्रूफ कपड़ा लगाया जाता है ताकि बारिश का पानी प्याज़ पर न जाए। प्याज़ को बीच-बीच में चेक करते रहना भी ज़रूरी और अगर दुर्गेंध आए तो खराब प्याज़ निकालकर उसे जल्दी मंडी में बेंच दे। इस तरीके से प्याज़ को 4-5 महीने तक के लिए स्टोर किया जा सकता है, लेकिन छंटाई करके सिर्फ़ अच्छे प्याज़ को ही स्टोर करना चाहिए, इससे वो लंबे समय तक टिकते हैं। सत्यावन कहते हैं कि किसानों को अच्छी वैरायटी के प्याज ही लगाने चाहिए जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक हो।

कितना होता है मुनाफ़ा?

सत्यावन कहते हैं कि वो अपनी फ़सल को खेत से बेचते हैं जिससे ट्रांसपोर्ट का खर्च भी बच जाता है। वो कहते हैं कि एक खेत से उन्हें करीब 120 क्विटंल प्याज़ मिलता है, जिसे 30 रुपए किलो के हिसाब से बेचते हैं यानी 3.60 हजार का प्याज़ बेचते हैं। इसमें से 70-80 हजार रुपए की लागत निकाल दें तो 2.5 लाख का मुनाफ़ा होता है। इतना ही मुनाफ़ा उन्हें गन्ने की खेती से भी हो जाता है। सत्यवान कहते हैं कि वो पूरी तरह से आत्मनिर्भर हैं क्योंकि नर्सरी भी उनकी अपनी है, बीज भी अपना है, फ़सल बेचते भी अपने खेत से हैं।

मूंग के बाद धान की खेती क्यों है फ़ायदेमंद और खेत में ही कैसे स्टोर कर सकते हैं प्याज़, जानिए प्रगतिशील किसान सत्यवान से

कृषि विज्ञान केंद्र किसान की पाठशाला है

सत्यवान कहते हैं कि किसानों कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण लेकर सूझ-बूझ से खेती करनी चाहिए तो वो कभी घाटे का सौदा नहीं रहेगी। सत्यावन का कहना है कि वो पहले पारंपरिक तरीके से नर्सरी लगाते थे, अब उभरी हुई नर्सरी बनाते हैं, फव्वारा तकनीक से पानी देते हैं, एक रोलर बनवाया है जिससे कितनी दूरी पर कितना बीज डालना है ये देखते हैं, उसमें ट्राइकोडर्मा और गोबर की खाद मिलाने पर कैसे फ़सल को फंगस से बचाया जा सकता है। ये सारी चीज़ें उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से सीखी और बाकी सब अपने अनुभव से सीखा है। हमेशा कुछ नया करते रहते हैं, कुछ में सफलता मिली, तो कुछ में असफल भी रहे, मगर सीखना बंद नहीं किया।

सत्यवान महीने के आखिरी रविवार को किसानों को ट्रेनिंग देते हैं। जिसों वो दूसरे किसानों के अनुभव को भी सुनते हैं और सबको साथ लेकर चलते हैं। वो कहते हैं कि किसान ने उगाना सीख लिया, लेकिन बेचना नहीं सीखा। किसानों को खुद ही तराजू भी उठाना होगा तभी बिचौलिया मुक्त बाज़ार बनेगा और इससे किसान और ग्राहक दोनों को फायदा होगा। अगर किसान अपनी क़ीमत खुद तय करे तो उन्हें घाटा नहीं होगा। सत्यवान फ़सल उगाने के साथ ही फ़सलों की प्रोसेसिंग भी करते हैं जैसे वो गन्ने से सिरका बनाकर बेचते हैं। उनका कहना है कि इससे क़ीमत अच्छी मिलती है और किसानों को ज़्यादा मुनाफ़ा होगा।

ये भी पढ़ें : HindXR दे रहा VR तकनीक से ट्रेनिंग, किसानों के लिए कितनी फ़ायदेमंद है ये तकनीक जानिए कंपनी के फाउंडर आदित्य वालिया से

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top