जैविक खेती की ‘महागुरु’ 105 साल की पप्पामल ‘अम्मा’ से मिलिए, इस साल मिला पद्मश्री सम्मान
ज़िंदगी के 70 साल खेती को कर दिए समर्पित
छोटी उम्र में माता-पिता को खोया, हालात के आगे हिम्मत न हारते हुए घर की बागडोर संभाली और आज पप्पामल अम्मा ‘लेजेंड्री वुमन’ के नाम से जानी जाती हैं।
अगर मन में कुछ करने की चाह हो तो उम्र का क्या तकाज़ा! इस साल जब पद्म पुरस्कारों का ऐलान हुआ, तो उनमें एक नाम पप्पामल ‘अम्मा’ का भी था। प्यार से लोग उन्हें अम्मा बुलाते हैं। दक्षिण में ‘लेजेंड्री वुमन’ के नाम से भी उन्हें जाना जाता है। हाल ही में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाज़ा।
पप्पामल को ये सम्मान जैविक खेती को बढ़ावा देने और जैविक खादों को बनाने में उनके योगदान के लिए दिया गया। उम्र 105 साल, चेहरे पर झुर्रियां और सफेद बाल, लेकिन उनकी खेती की लगन के आगे ये सब फीका है। कहते हैं कि अगर आपका पैशन, यानी आपका जूनून ही आपका काम बन जाए, तो वो ताउम्र आपके साथ रहता है।
पिछले 7 दशक से पप्पामल जैविक खेती से जुड़ी हैं। वो देश की सबसे बुज़ुर्ग किसान हैं। भले ही उम्र की कुछ बंदिशें हैं, लेकिन दिल में बसे खेत, हरे-भरे खलिहान आज भी उन्हें अपनी मिट्टी की ओर खींचते हैं।
छोटी उम्र में माता-पिता को खोया, संभाली घर की ज़िम्मेदारी
तमिलनाडु के थेक्कमपट्टी गांव की रहने वाली पप्पामल ने 30 साल की उम्र में जैविक खेती की राह चुनी। छोटी उम्र में माता-पिता को खो दिया। उनकी और बहनों की परवरिश दादी के वहां हुई। परिवार की ज़िम्मेदारी उन्होंने अपने कंधों पर ले ली। माता-पिता जो दुकान चलाते थे, उस पर बैठने लगीं। दुकान से ही पूरे घर का खर्च चलाना मुमकिन नहीं हो रहा था। किसान परिवार से आने वाली पप्पामल को खेती-किसानी की समझ थी। दुकान की कमाई से जो पैसे इकट्ठा हुए, उससे गाँव में ही खेती के लिए ज़मीन खरीदी। 10 एकड़ की ज़मीन पर खेती शुरू कर दी। तब से लेकर अब तक वो जैविक खेती से जुड़ी हैं।
सुबह 6 बजे पहुंच जाती हैं खेत में, तंदुरुस्ती का ये है राज
उम्र के इस पड़ाव पर भी वो रोजाना ढाई एकड़ खेत में काम करती हैं। बाजरा, केला और भिंडी जैसी कई अलग-अलग फ़सलें उगाती हैं। पप्पामल दिन की शुरुआत भी पूरे रूटीन के साथ करती हैं। सुबह साढ़े पांच बजे उठती हैं और 6 बजते-बजते खेतों में पहुंचकर काम में लग जाती हैं। पप्पामल उम्र के जिस पड़ाव पर हैं, इस उम्र तक हम और आप पहुंच भी पाएंगे या नहीं, इसकी गारंटी क्या, कोई वारंटी भी नहीं है। खैर! बात तो अम्मा की हो रही है और वो शतक लगा चुकीं हैं। अब ज़रा उनकी डाइट का ज़िक्र कर लेते हैं। आज का वक़्त तो ऐसा है कि कई लोग हरी सब्जी देखते ही अपनी नाक सिकोड़ने लगते हैं। लेकिन पप्पामल 105 साल तक यूँ ही नहीं पहुंचीं। वो अपनी डाइट में खूब सारी हरी सब्जियां शामिल करती हैं। इसे आप उनकी तंदुरुस्ती का राज़ भी कह सकते हैं। पप्पामल अपना खाना किसी बर्तन की बजाए, पत्ते पर खाती हैं। ऐसे में पप्पामल की खेती की तकनीक ही नहीं, लंबी उम्र की छह रखने वाले उनकी डाइट भी फॉलो कर ही सकते हैं।
पप्पामल, तमिलनाडू के कृषि विज्ञान केंद्र से भी जुड़ी हुई हैं। तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय की सलाहकार समिति का हिस्सा भी हैं । वो कृषि से जुड़े कई सम्मेलनों में भाग लेती हैं और जैविक खेती पर लेक्चर देती हैं। इसके अलावा, वो थेक्कमपट्टी पंचायत की पूर्व वार्ड सदस्य और करमादई पंचायत संघ में पार्षद के रूप में भी चुनी गईं।
पप्पामल गाय के गोबर और पौधों के अवशेषों से जैविक खाद बनाने से लेकर, इसकी तकनीक और फ़ायदों के बारे में लोगों को बताती हैं और जागरूक करती हैं। आस-पास के किसानों से मिलने जाती हैं। उनके साथ अपने अनुभव साझा करती हैं। पप्पामल का मानना है कि जो केमिकल खेती में इस्तेमाल होते हैं, वो मिट्टी और लोगों की सेहत पर सीधा असर करते हैं। उनका मानना है कि जब प्रकृति के पास ही जैविक तत्वों का भंडार है, तो इन केमिकल उत्पादों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
पप्पामल उन किसानों की पीढ़ी से आती हैं, जो खुद मेहनत करने में विश्वास रखते हैं। उनका मानना है कि अगर वो इस उम्र में बिना रुके, बिना थके काम कर सकती हैं, तो दूसरों को आखिर क्या चीज़ रोकती है? आज हालात के आगे हिम्मत न हारकर उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से पहचान बनाते हुए शानदार मुकाम हासिल किया है।