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उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में, जहां चावल और गेहूं की फ़सल प्रणाली प्रमुख है, फ़सल अवशेष प्रबंधन एक लंबी अवधि से एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। किसानों को हर साल धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के बीच केवल एक छोटी सी अवधि मिलती है, जिसके कारण अक्सर वे अपने खेतों में धान के ठूंठ जलाने को मजबूर हो जाते हैं।
अकेले उत्तर प्रदेश में लगभग 20 मिलियन टन धान का भूसा हर साल उत्पन्न होता है, जो पर्यावरण के लिए एक बड़ी समस्या बन चुका है। इस फ़सल अवशेष का कुछ हिस्सा घरेलू ऊर्जा और पशु आहार के रूप में इस्तेमाल होता है, लेकिन अधिकतर हिस्सा या तो बर्बाद हो जाता है या जलाकर नष्ट कर दिया जाता है। यह स्थिति पर्यावरणीय नुक़सान और जैविक पदार्थ के नुक़सान को दर्शाती है, और इसके लिए एक स्थायी समाधान की आवश्यकता थी। यहीं पर आईसीएआर-नेशनल ब्यूरो ऑफ एग्रीकल्चरली इम्पोर्टेंट माइक्रोऑर्गेनिज़म्स (ICAR-National Bureau of Agriculturally Important Microorganisms) द्वारा विकसित Rapid Composting Technology ने किसानों और पर्यावरण दोनों के लिए समाधान प्रदान किया है।
कम्पोस्टिंग की नई तकनीक का उपयोग (Use of new Composting Techniques)
चंद्रपाल चौहान, जो दफेहरी फार्मर्स कंपनी प्राइवेट लिमिटेड (DFPCL) के अध्यक्ष हैं। उन्होंने इस कम्पोस्टिंग तकनीक (Composting Technology) की क्षमता को पहचाना और इसे किसानों के बीच फैलाने का कार्य शुरू किया। उन्होंने Rapid Composting Technology को अपनाने के लिए ICAR-NBAIM के साथ साझेदारी की। इस साझेदारी के तहत, 14 ज़िलों में 500 से अधिक किसानों का नेटवर्क तैयार किया गया।
इन किसानों को कम्पोस्टिंग प्रक्रिया में प्रशिक्षित किया गया, जिसमें फ़सल अवशेषों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटना, उन्हें कुश बायोफास्ट जैसे डिकंपोज़र, गुड़ और गाय के गोबर के साथ मिलाना, और विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए कम्पोस्टिंग बैग्स में रखना शामिल था। केवल 60 दिनों में, ये सामग्री उच्च गुणवत्ता वाली जैविक खाद में बदल गई, जिसे किसानों ने खेतों में इस्तेमाल किया।
प्रभाव और परिणाम (Impact and Consequences)
Rapid Composting Technology का प्रभाव तत्काल और गहरा था। 14 गांवों में 200 से अधिक कम्पोस्टिंग बैग्स स्थापित किए गए, और किसानों ने उत्साहपूर्वक इस तकनीक को अपनाया। पहले जहां वे धान के भूसे को जलाते थे, वहीं अब उन्होंने इसे मूल्यवान खाद में बदल दिया। अधिकतर किसानों ने अपने खेतों में ही इस खाद का इस्तेमाल किया, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ी और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम हुई। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप, लगभग 70 एकड़ कृषि भूमि में खाद का उपयोग हुआ, जिससे रासायनिक इनपुट की लागत में 25-30% की कमी आई। किसानों ने प्रति एकड़ औसतन 5,000 रुपये की वार्षिक बचत की।
Rapid Composting Technology ने न केवल मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार किया, बल्कि किसानों के लिए एक नया आय स्रोत भी बनाया। रिपोर्टिंग अवधि के दौरान, नेटवर्क ने 80 टन खाद का उत्पादन किया, जिसमें से 2 टन खाद बाज़ार में 30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेची गई। इस बिक्री से किसानों को 60,000 रुपये की अतिरिक्त आय प्राप्त हुई, जो उनके लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक मदद साबित हुई।
Rapid Composting Technology के फ़ायदे (Advantages of Rapid Composting Technology)
Rapid Composting Technology ने किसानों की कृषि प्रथाओं में क्रांति ला दी। इस तकनीक को अपनाकर, किसानों ने न केवल पर्यावरण प्रदूषण को कम किया, बल्कि अपनी फ़सल की उत्पादकता और आर्थिक स्थिति में भी सुधार किया। इस पहल ने साबित किया कि स्थायी कृषि प्रथाएं न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी हो सकती हैं, बल्कि वे आर्थिक दृष्टिकोण से भी फायदेमंद हो सकती हैं। यह एक मॉडल बन गया है जिसे अन्य क्षेत्रों में भी अपनाया जा सकता है, जहां फ़सल अवशेष प्रबंधन की समस्या गंभीर रूप से व्याप्त है।
ICAR-NBAIM, DFPCL और मऊ ज़िले के किसानों के बीच इस सफल सहयोग ने यह सिद्ध कर दिया है कि अगर किसानों को सही प्रशिक्षण, तकनीक और समर्थन मिले, तो वे पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान अपने खेतों में ही खोज सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप, वे स्वस्थ मिट्टी प्राप्त कर सकते हैं, कम पर्यावरणीय प्रभाव डाल सकते हैं, और अपनी खेती को अधिक लाभदायक बना सकते हैं।
भविष्य की संभावनाएं (Future Prospects)
Rapid Composting Technology की सफलता ने पूरे उत्तर प्रदेश में अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है। आने वाले वर्षों में, यह उम्मीद की जाती है कि और अधिक किसान इस तकनीक को अपनाएंगे, जिससे फ़सल अवशेष जलाने की प्रथा में कमी आएगी और जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा, इस प्रकार की तकनीकें किसानों को अपने खेतों से अधिक मूल्य प्राप्त करने में मदद करती हैं, जिससे ग्रामीण आजीविका में सुधार और पर्यावरण संरक्षण में योगदान मिलता है।
स्थानीय स्तर पर विकसित और अपनाई गई इस कम्पोस्टिंग तकनीक (Composting Technology) का प्रभाव यह दिखाता है कि कैसे छोटे बदलाव बड़े परिणाम ला सकते हैं। इस पहल ने न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि भारत के अन्य हिस्सों में भी कम्पोस्टिंग तकनीक (Composting Technology) को अपनाने की दिशा में एक प्रेरणा दी है। जहां फ़सल अवशेष प्रबंधन एक महत्वपूर्ण चुनौती बना हुआ है, वहां इस तकनीक को अपनाने से पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान हो सकता है और किसानों के जीवन में सुधार हो सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
Rapid Composting Technology ने यह साबित कर दिया है कि कैसे विज्ञान और नवाचार से कृषि प्रथाओं को बदलकर किसानों के लिए बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। यह एक आदर्श उदाहरण है कि जब हम स्थायी समाधान अपनाते हैं, तो न केवल हमारे पर्यावरण की रक्षा होती है, बल्कि किसानों की आय भी बढ़ती है। इस सफलता को देखकर अन्य क्षेत्र भी इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रेरित होंगे, और इससे भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि और स्थिरता आएगी।
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