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जिस तरह इंसानों को स्वस्थ रहने के लिए संतुलित आहार की ज़रूरत होती है, ठीक वैसे ही पशुओं का आहार भी उनके अच्छे स्वास्थ्य, अधिक दूध उत्पादन क्षमता और निरोगी रहने के लिए महत्वपूर्ण है। हमारे देश में ज़्यादातर पशु पालक पशुओं का आहार उतना ध्यान नहीं रख पाते हैं या उन्हें संतुलित आहार देने के बारे में जानकारी की कमी होती है।
तभी तो ज़्यादातर अपने पशुओं को वही भूसा और धान की पुआल ही खिलाते हैं, इससे पशु का पेट तो भर जाता है, लेकिन उन्हें समुचित पोषण नहीं मिल पाता, जिसका असर उनकी दूध उत्पादन क्षमता पर भी पड़ता है और ऐसे पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है। पशुओं का आहार सही तरीके से मिलना ज़रूरी है, ताकि उनकी सेहत ठीक रहे और दूध उत्पादन भी बढ़े। पशुओं को सही पोषण मिले इसके लिए पोषण प्रबंधन ज़रूरी है।
पशुओं के लिए ज़रूरी पोषक तत्व
पशुओं का आहार संतुलित और पौष्टिक होना चाहिए। इसके लिए पशुपालकों को इस बात की जानकारी होना ज़रूरी है कि उन्हें पशुओं का आहार में किन पोषक तत्वों को शामिल करना है ताकि उनका विकास सही तरीके से हो सके और दूध का उत्पादन भी अधिक हो।
कार्बोहाइड्रेट– जैसे हम इंसानों को ऊर्जा के लिए कार्ब्स की ज़रूरत होती है वैसे ही पशुओं का आहार भी ऊर्जा प्रदान करने के लिए कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होना चाहिए। इससे पशु की गतिविधियों में ऊर्जा बनी रहती है। इसके मुख्य स्रोत धान, मक्का, बाजरा जैसे अनाज हैं।
प्रोटीन– दुधारू और दूसरे पशुओं के पशुओं का आहार में प्रोटीन का होना भी बहुत आवश्यक है, क्योंकि यह मांस, दूध और अन्य उत्पादों के निर्माण में मदद करता है। यह मांसपेशियों, हड्डियों, त्वचा और दूसरे अंगों के निर्माण में भी सहायक है। प्रोटीन के स्रोत के रूप में सोयाबीन मील, माखना खली, दालों आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है।
वसा– कार्बोहाइड्रेट के साथ ही ऊर्जी के लिए वसा भी आवश्यक होता है। यह शरीर को गर्म रखने में मदद करता है और कुछ ज़रूरी विटामिनों को अवशोषित करने में भी मदद करता है। गाय के लिए वसा का मुख्य स्रोत वनस्पति तेल है।
विटामिन– पशुओं का आहार में विटामिन्स का होना भी ज़रूरी है। विटामिन ए, डी, ई, एच, क आदि कई प्रकार के होते हैं और ये पशुओं की आंतरिक और बाहरी रोगों से बचाने में सहायक है। विटामिन रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, हड्डियों को मजबूत करता और त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करता है। इसके मुख्य स्रतो हैं घास, पत्तियां, खाद्यान्न आदि।
खनिज– पशुओं का आहार में खनिजों का भी समावेश जरूरी है। कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, जिंक आदि मिनरल्स के स्रोत हैं। मिनरल्स हड्डियों को मजबूत करने, मांसपेशियों को स्वस्थ रखने और रक्त को शुद्ध करने के साथ ही और भी कई लाभ पहुंचाता है।
पशुओं को पौष्टिक आहार की ज़रूरत होती है, लेकिन बछड़ों, व्यस्क पशु और गाभिन पशु की ज़रूरतें अलग-अलग होती है, जिसके बारे में पशुपालकों को पता होना चाहिए।
बछिया और बछड़ों का पोषण
बछड़े/बछिया को जन्म के तुरंत बाद सबसे पहले खीस पिलाई जाती है। खीस जन्म के बाद निकलने वाले गाय/भैंस के पहले दूध को कहते हैं। बछड़े के लिए खीस बहुत अहम होता है, क्योंकि इससे पिलाने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और किसी भी तरह के संक्रामक रोग से बच जाते हैं। आमतौर पर जन्म के 2-4 घंटे के भीतर खीस पिला देनी चाहिए।
अगर किसी वजह से खीस न मिले तो दूसरी गाय का खीस भी पिलाया जा सकता है। या फिर एक अंडा, 250 मि.ली. पानी, आधा चम्मच अरंडी का तेल और आधा लीटर दूध को मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें और इसे ही पिलाएं। इसकी मात्रा नवजात के शरीर के वज़न के हिसाब से प्रति 10 किलो पर 1 किलो खीस दिन में 2-3 बार में पिलाई जानी चाहिए।
15 दिनों तक खीस देना ज़रूरी है। उसके बाद 2 महीने की उम्र तक 1.5 लीटर दूध रोज़ाना देना चाहिए, धीरे-धीरे इसे एक लीटर तक कम कर दें। 6 महीने से एक साल तक के बछड़े को आधा किलो दाना मिश्रण और 1-1.5 साल तक को 1 किलो दाना मिश्रण दिया जाना चाहिए।
गर्भवती गाय और भैंस का आहार
गर्भवती गाय और भैसों को खास देखभाल के साथ ही अधिक पोषण की ज़रूरत होती है, क्योंकि जब वो स्वस्थ रहेंगी तभी बच्चा भी स्वस्थ होगा। गर्भित पशु के ब्याने की तिथि से करीब 60 दिन पहले ही उसका दूध निकालना बंद कर देना चाहिए और 1-1.5 किलो दाना मिश्रण रोज़ाना खिलाना चाहिए। इन्हें दूर तक टहलाना अच्छा होता है। ऐसे पशु को ब्याने से पहले 60 ग्राम मिनरल्स और 100 मि.ली. कैल्शियम का घोल रोज़ाना देना ज़रूरी है। जबकि बच्चा होने के बाद उन्हें आसानी से पचने वाली चीज़ें जैसे गेहूं का चोकर, गुड़ और हरा चना आदि खिलाना चाहिए। इस बात का ध्यान रहे कि इस समय पशुओं का आहार में ठंडा पानी न पिलाएं।
दुधारु पशुओं का आहार
दूध देने वाली गाय और भैसों को दलहनी और गैर-दलहनी चारा का मिश्रण खिलाना चाहिए। जो गाय/भैंस 5 लीटर तक दूध देती है, उन्हें सिर्फ हरा चारा खिलाया जा सकता है, लेकिन इससे ज़्यादा दूध देने वाले पशुओं को प्रति 2 या 2.5 लीटर दूध पर एक किलो अतिरिक्त दाना खिलाना चाहिए। दाने में एक भाग खली, एक भाग अनाज और एक भाग चोकर मिलाएं।
ये मिश्रण सस्ता और पौष्टिक होता है। दाने में 2 प्रतिशत मिनरल्स और 1 प्रतिशत नमक होना ज़रूरी है। बरसीम और दूसरे दलहनी चारे को भूसे में मिलाकर दें। पशुओं का आहार में दाना और चारा मिलाकर खिलाना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि चारे को हमेशा बारीक काटकर ही दाने में मिलाएं।
हरे चारे के साथ दूसरे विकल्प
पशुओं का आहार में हरे चारे का प्रबंध बहुत ज़रूरी है। अगर सिर्फ दाना खिलाया जाए तो ये बहुत महंगा पड़ता है। हरा चारा खिलाना पशुओं का आहार में पौष्टिक होता है और ये सस्ता विकल्प होता है। मगर हमेशा हरा चारा उपलब्ध नहीं होता है, ऐसे में पशुपालकों के लिए कई दूसरे विकल्प भी हैं।
सूखा हरा चारा– मई-जून और नवंबर-दिसंबर में हरे चारे की कमी हो जाती है। ऐसे में किसान पहले उगाए गए अतिरिक्त हरे चारे को फूल निकलते समय काट लें और इसे सुखाकर रख लें। इससे कमी वाले महीनों में इसे हरे चारे के विकल्प के रूप में दिया जा सकता है।
यूरिया उपचारित आहार– जिन इलाकों में किसानों को हरा चारा उपलब्ध नहीं होता है, वहां किसान यूरिया उपचारित सूखा चारा अच्छा विकल्प है, इससे दूध का उत्पादन बढ़ता है। यूरिया उपचार के बाद सूखे चारे में प्रोटीन की मात्रा 3-4 से बढ़कर 7-8 प्रतिशत हो जाती है। इससे यह आसानी से पच जाता है।
यूरिया-शीरा-खनिज ईंट– ऐसे पशु तो सिर्फ गेहूं का भूसा और पुआल ही खाते हैं, उनके लिए ये ईंट बहुत उपयोगी है। यह यूरिया, खनिज मिश्रण, सीमेंट, साधारण नमक और शीरा से मिलाकर बनता है। ये पशुओं का आहार में अहम और सूक्ष्म खनिज लवण के साथ ही नाइट्रोजन और ऊर्जा भी प्रदान करता है। इस ईंट को पशु की नांद पर रख दिया जाता है जिससे वो अपनी इच्छानुसार इसे चाटता रहे।
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