पेन कल्चर तकनीक अपनाकर कैसे उन्नत मछली पालन कर रहे मणिपुर के ये आदिवासी मछुआरे

मणिपुर की जनजातीय आबादी की आजीविका का मुख्य स्रोत खेती और मछली पालन है। मछली उनका मुख्य भोजन भी है। मगर राज्य की आबादी की जरूरतें अपने जल स्रोतों से पूरी नहीं हो पाती थी जिस कारण दूसरे राज्यों से मछली मंगानी पड़ती थी, मगर पेन कल्चर तकनीक अपनाने के बाद न सिर्फ़ आदिवासियों की आजीविका में सुधार हुआ, बल्कि मछली का उत्पादन भी बढ़ा।

पेन कल्चर तकनीक

पेन कल्चर तकनीक से मछली पालन (Fish Farming with Pen Culture or aquaculture system): भारत के पूर्वी कोने में बसे छोटे से राज्य मणिपुर की जनजातीय आबादी के लिए कृषि और मछली पालन ही आजीविका का मुख्य साधन है। मगर यहां के जल स्रोतों का पूरी तरह से उपयोग न होने के कारण दूसरे राज्यों से मछलियां मंगानी पड़ती थीं।

राज्य में तालाब, झील, जलाशय तो बहुत हैं, मगर उनकी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं हो पाता। राज्य की करीब 95 प्रतिशत आबादी मछली का सेवन करती है, मगर उनकी ज़रूरत सिर्फ़ राज्य के उत्पादन से पूरी नहीं हो पा रही थी, खासतौर पर मैपिथेल बांध बनने के बाद एक बड़ी आबादी विस्थापित हो गई और भूमि का बड़ा हिस्सा जलमग्न हो गया।

इससे खेती से गुज़र बसर करना मुश्किल हो गया और राज्य की बड़ी जनजातीय आबादी को आजीविका के दूसरे विकल्पों की तलाश करनी पड़ी। ऐसे में मछली पालन में ही अधिक संभावना नज़र आई। इसलिए ICAR-CIFRI ने इनकी आजीविका में बढ़ोतरी के लिए पेन कल्चर तकनीक से मछली पालन को बढ़ावा देने की पहल की।

पेन कल्चर तकनीक अपनाकर कैसे उन्नत मछली पालन कर रहे मणिपुर के ये आदिवासी मछुआरे

मैपिथेल बांध से प्रभावित आबादी

मणिपुर में मैपिथेल बांध बनने के कारण विस्थापन की बड़ी समस्या सामने आई। साथ ही आजीविका का संकट भी आया। ऐसे में प्रभावित लोगों ने एक साथ मिलकर “The Mapithel Dam Affected Fishery Co-operative Society” नाम से एक को-ऑपरेटिव सोसाइटी बनाई और 370 सदस्यों को रजिस्टर्ड किया। विस्थापित लोगों के लिए आजीविका का प्रमुख स्रोत मछली पालन ही था, लेकिन जलाशयों में मछली का स्टॉक नहीं था।

पेन कल्चर तकनीक
पेन कल्चर तकनीक से मछली पालन (तस्वीर साभार: ICAR)

विस्थापित जनजातीय आबादी की मदद

जनजातीय लोगों की आजीविका में सुधार के लिए ICAR-CIFRI की ओर से पहल की गई और इसके तहत दो ICAR-CIFRI Pen और HDPE pens (0.1 हेक्टेयर आकार का पेन) देने के साथ ही 50,000 मछली के बीज, 2 टन पेलेटेटेड फीड स्टॉकिंग सामग्री के रूप में दी गई। ये कदम इसलिए उठाया गया ताकि जलाशय में मछलियों की संख्या में बढ़ोतरी हो सके। इसके अलावा, ICAR-CIFRI की ओर से 10 मीटर लंबी एक मोटरयुक्त FRP नाव भी दी गई। ICAR-CIFRI की इस पहल का मकसद मछली पालन को बढ़ावा देकर जनजातीय आबादी की आजीविका में सुधार करना था।

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पहले दिया प्रशिक्षण

जलाशयों में पेन कल्चर से मछली पालन की शुरुआत करने से पहले जुलाई 2022 में ICAR-CIFRI ने 14 आदिवासी मछुआरों को “उत्पादन वृद्धि के लिए जलाशय मत्स्य प्रबंधन” पर प्रशिक्षण दिया। इसके साथ ही जलाशय मत्स्य प्रबंधन के बारे में मछुआरों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए रामरेई गांव, मापीथेल जलाशय स्थल पर जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया।

जलाशय में ICAR-CIFRI Pen और HDPE दोनों पेन को इंस्टॉल किया गया। ऊंचाई को इस तरह एडजस्ट किया गया कि मॉनसून में मचलियां बहकर न चली जाएं। स्टॉक्ड इंडियन मेजर कार्प्स (आईएमसी) की पेन कल्चर तकनीक को सोसाइटी की ओर से पीपीपी मोड में मैनेज किया गया।

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पेन कल्चर तकनीक
पेन कल्चर तकनीक से मणिपुर के जनजातीय मछली पालकों दे साथ ICAR टीम (तस्वीर साभार: ICAR)

मछलियों की संख्या में बढ़ोतरी

इंडियन मेजर कार्प बीजों को पेन में 250 फिंगरलिंग प्रति स्क्वायर मीटर की दर से 2:1:1 के अनुपात के साथ स्टॉक किया गया था। सितंबर 2022 से जनवरी 2023 तक 5 महीने के लिए मछलियों को अच्छा पोषण दिया गया, जिससे 2601 किलो की कतला और 898.8 किलो की रोहू मछली प्राप्त हुई।

पेन से प्राप्त इन मछलियों को जलाशय में छोड़ा गया ताकि मछलियों की संख्या बढ़े और जनजातीय आबादी की आजीविका भी बढ़े। पेन कल्चर तकनीक से मछलियों की संख्या में अच्छी बढ़ोतरी हुई, जिससे मणिपुर की जनजातीय आबादी को उम्मीद की नई किरण दिखी।

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