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क्यों बाकला की खेती है किसानों के लिए अच्छा विकल्प? जानिए इसके बारे में सब कुछ

दाल, सब्ज़ी और चारे के रूप में होता है इस्तेमाल

बाकला प्रमुख दलहनी सब्ज़ी है। बाकला की खेती आमतौर पर रबी के मौसम में की जाती है। ये पौष्टिक तत्वों से भरपूर होती है, इसलिए इसकी खेती किसानों के लिए आमदनी बढ़ाने का अच्छा विकल्प हो सकती है।

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बाकला की खेती (Broad Bean Farming): बाकला की फलियों में दूसरी सब्ज़ियों की तुलना में ज़्यादा प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट होता है। ये बहुत ही प्राचीन फल है इसलिए इसे बीन ऑफ़ हिस्ट्री भी कहा जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है जैसे ब्रॉडबीन, फील्डबीन, टिकबीन, कालामटर, जलसेमी आदि। बाकला को सूखे इलाकों में भी आसानी से उगाया जा सकता है, इसलिए इसकी खेती किसानों के लिए लाभदायक साबित हो सकती है।

बाकला का उपयोग दाल और सब्ज़ी दोनों रूपों में किया जाता है। इसकी हरी फलियों को कच्चा या सब्ज़ी बनाकर खाया जाता है। साथ ही हरी फलियां पशुओं और मुर्गियों को भी खिलाई जाती हैं। ये प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत है। इसके बीजों में 24-25 प्रतिशत तक प्रोटीन होता है। बाकला की खेती किस तरह की जानी चाहिए, आइए जानते हैं।

मिट्टी और जलवायु

बाकला की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की ज़रूरत होती है। वैसे तो सभी प्रकार की मिट्टी में इसे लगाया जा सकता है, लेकिन दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। मिट्टी का पी.एच.मान 5.5 से 6 होना चाहिए। बाकला शरद ऋतु वाली फसल है। 20 डिग्री सेल्सियस तापमान बाकला के पौधों की वृद्धि के लिए उपयुक्त होता है। ये दलहनी फसलों की तुलना में पाले के प्रति सहनशील होती है।

बाकला की खेती (Broad Bean Farming)

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खेत की तैयारी

खेत में 2-3 बार जुताई करके मिट्टी को भूरभूरा कर लें और खरपतवार निकाल लें। एक जुताई मिट्टी पतलने वाले हल से और दो जुताई देसी हल से करके खेत को बुआई के लिए तैयार करें।

बुवाई का समय

बाकला की बुवाई अक्टूबर से नवंबर के बीच की जाती है। इससे अधिक पैदावार मिलती है। बुवाई के तीन महीने बाद ही फसल तैयार हो जाती है। एक हेक्टेयर में खेती के लिए 70-100 किलो बीज की ज़रूरत पड़ती है। बीज़ों की बुवाई क्यारियां बनाकर की जाती हैं। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सें.मी. और पौधों से पौधों के बीच 10 सें.मी. की दूरी रखें।

बाकला की खेती 5

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खाद का इस्तेमाल

अच्छी उपज के लिए खेत तैयार करते समय प्रति हेक्टेयर 10-15 टन अच्छी सड़ी गोबर की खाद डालें। उवर्रक का इस्तेमाल खेत में पौधों की बुवाई से पहले करें। प्रति हेक्टेयर 40 किलो फास्फोरस, 40 किलो नाइट्रोजन और 20 किलो पोटाश डालें।

सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण

दूसरी दलहनी फसलों की तुलना में इसे सिंचाई की कम ज़रूरत होती है, लेकिन बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई करें। बाकला के पौधे को 3-4 सिंचाई की ज़रूरत होती है। ज़रूरत के मुताबिक, 18-20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए। फसल को खरपतवार से मुक्त रखना ज़रूरी है, इसलिए बुवाई के 20-25 दिन बाद और फिर 40 दिन बाद हाथ से खरपतवार निकालें। क्योंकि ये फसल ज़्यादा बड़े क्षेत्र में नहीं लगाई जाती है, तो से खरपतवार निकाले जा सकते हैं।

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कितनी होती है पैदावार?

बाकला की औसत पैदावार 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। इसकी फसल 125-140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। सब्ज़ी के लिए छोटे-छोटे क्षेत्रों में लगाई गई फसल की तुड़ाई हाथ से दो-तीन बार करनी चाहिए। यदि बीज के लिए इसे लगाया गया है, तो कटाई हाथ से या मशीन से की जा सकती है। जब फली में दाने भर जाए तो सूखने से पहले ही इसे तोड़ लें, क्योंकि ज़्यादा सूख जाने पर दाने झड़ने लगते हैं, जिससे कम उपज प्राप्त होगी।

बाकला में भरपूर प्रोटीन होता है इसलिए प्रोटीन की कमी के शिकार लोगों के लिए इसका सेवन बहुत फायदेमंद होता है। एनीमिया और पीलिया के मीरजों के लिए भी ये लाभदायक माना जाता है।

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