Chikori Ki Kheti: चिकोरी की खेती से पशुओं को हरा चारा भी उपलब्ध, कितना उपयोगी और क्या फ़ायदे?

चिकोरी, जिसे कासनी भी कहा जाता है, भारत में खेती के लिए नगदी फसल के रूप उगाया जाता है। इसको पशुओं के लिए हरे चारे की फ़सल के रूप में उगाया जाता है। इसमें कच्चे प्रोटीन का स्तर 10 से 32 फ़ीसदी तक होता है। भारत में चिकोरी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और कश्मीर में पाया जाता है।

Chikori Ki Kheti चिकोरी की खेती

चिकोरी का पौधा प्रोटीन, कार्बाेहाइड्रेट, खनिज और फाइटोबायोएक्टिव तत्वों की अच्छी मात्रा होने के कारण पशु और इंसान, दोनों के लिये लाभदायक है। कासनी एक ऐसी फ़सल है जिसके कई उपयोग हैं। इसका इस्तेमाल हरे चारे के अलावा औषधीय रूप में कैंसर जैसी बीमारी में किया जाता है। खाने में इसका इस्तेमाल कॉफ़ी के साथ किया जाता है। कॉफ़ी में इसकी जड़ों को भुनकर मिलाया जाता है जिससे कॉफ़ी का स्वाद बदल जाता है। इसकी जड़ मूली जैसी  दिखाई देती है। 

चिकोरी, जिसे कासनी भी कहते हैं भारत में खेती के लिए नगदी फसल के रूप उगाया जाता है। भारत में अधिकतर इसको पशुओं के लिए हरे चारे की फ़सल के रूप में उगाया जाता है। चिकोरी की खेती, समशीतोष्ण (Even Temperate) और शीतोष्ण (Temperate) दोनों तरह की जलवायु में बड़े आराम से की जाती है।  चिकोरी या कासनी के पौधे पर नीले रंग के फूल निकलते हैं, जो देखने में भी खूबसूरत नज़र आते हैं। इन फूलों से ही बीज निकाला जाता है। ये बीज छोटे, हल्के भूरे और  सफेद रंग के होते हैं। भारत में चिकोरी उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, कश्मीर में पाया जाता है। 

चारागाहों के लिए चारे के रूप में चिकोरी का इस्तेमाल

चिकोरी का इस्तेमाल चारागाहों में पशुओं के भोजन के रूप में होता है।  इसमें उच्च पोषण और परजीवी विरोधी विशेषताएं होती हैं, जो पशुधन के चारे के लिए लाभकारी होती हैं।   

चिकोरी क्या है?

यूरोप में पैदा होने वाली चिकोरी सैकड़ों साल से इस्तेमाल में लाई जा रही है। ये लोकप्रिय कॉफी का एक अच्छा विकल्प भी रहा है। साथ ही इसको  पत्तेदार सब्जी के रूप में भी उपयोग में लाया जाता है।  भारत में इसका अधिकतर इस्तेमाल चारागाहों में पशुओं के लिए पोषण से भरपूर चारे के विकल्प के रूप में किया जाता है।

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चिकोरी पौधे के बारे में

चिकोरी का वैज्ञानिक नाम सिकोरियम इंटीबस एल है। चिकोरी या कासनी चौड़ी पत्ती वाली जड़ी-बूटी है जो सूरजमुखी परिवार से आती है। चिकोरी को ब्लू डेज़ी, ब्लू सेलर, वाइल्ड बैचलर बटन, इटालियन डेंडेलियन के नाम से भी जाना जाता है। चिकोरी खनिज पदार्थों से भरपूर होती है जो बढ़ते मौसम में  उच्च प्रोटीन चारा प्रदान करती है।

चिकोरी पशुओं के लिए उच्च गुणवत्ता वाला चारा होता है। इसमें कच्चे प्रोटीन का स्तर 10 से 32 फ़ीसदी तक होता है। कासनी की पत्तियों से पशुओं की पाचनशक्ति मज़बूत होती है। चिकोरी में उच्च स्तर के खनिज होते हैं जो पशुधन को पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर, जिंक और सोडियम प्रदान करते हैं।

चिकोरी का चारा बकरी और भेड़ पालकों में खास तौर से लोकप्रिय है। ऐसा माना जाता है कि इसमें बकरियों और भेड़ों में होने वाले आंतरिक परजीवियों (Internal Parasites) को कम करने की ताक़त होती है।  

रोपण के लिए जगह की तैयारी

चिकोरी की खेती मौसम को देखकर की जाती है। जुताई वाली मिट्टी में चिकोरी उगाना आसान है। इसको बिना जुताई के भी लगाया जा सकता है, लेकिन ये मुश्किल होता है।  

चिकोरी को  2 से 3 एकड़ में तिपतिया घास जैसी फलियों के साथ बोने पर,  बीज मिश्रण कम किया जा सकता है।  रोपण की गहराई करीब ⅛ से ¼ इंच होती है। इसके पौधों को विकास के लिए सामान्य तापमान की आवश्कता होती है। वैसे  कासनी की खेती के लिए सर्दियों का मौसम सबसे अच्छा माना जाता है।  

चिकोरी का पौधा कब लगाएं

चिकोरी को वसंत (Spring) या मध्य पतझड़ (Mid Autumn) में लगाना बेहतर होता है। बीज को अंकुरित होने में 7  से 21 दिन लगते हैं।  

चिकोरी फ्रॉस्ट सीडिंग

बुआई से पहले पतझड़ में रोपण की जगह तैयार करें। इसके बाद चिकोरी की फ्रॉस्ट सीडिंग वसंत की शुरुआत में करें। बीज को हाथ से या ब्रॉडकास्टर से फैलाएं।

चिकोरी में बीज मिश्रण

आमतौर पर चिकोरी को  अकेले बोने के बजाय मिश्रित चारे के बीज के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। ये फलियों के साथ अच्छी तरह से मिक्स हो जाते हैं। फलियों में नाइट्रोजन स्थिर करने की क्षमता होती है।

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चिकोरी की लाइफ साइकिल

अगर इसे अच्छी तरह से मैनेज किया जाए तो चिकोरी की लाइफ साइकिल 3 से 7 साल की होती है। आइडियल रूप से चिकोरी को लगभग 8 से 10 इंच की ऊंचाई पर ही चराना चाहिए।  आधा चराओ और आधा छोड़ो के सामान्य नियम के साथ उपयोग करके ज़्यादा चरे जाने से इसे बचा सकते हैं। कई पौधों की प्रजातियों की तरह, एक बार जब चिकोरी में फूल आ जाएं तो इसकी चारे की गुणवत्ता कम होने लगती है। चारागाहों के  प्रबंधन और चराई करवाते वक़्त  इसको ध्यान में रखें।

वहीं, अगर आप बकरियों और भेड़ों जैसे छोटे जुगाली करने वाले जानवरों को चरा रहे हैं, तो पौधे के विकास और परजीवी चक्र के आधार पर चिकोरी को चराने के लिए लौटने से पहले कम से कम 30 दिन इंतज़ार करें। 

चिकोरी के फ़ायदे और उपयोग 

  • चिकोरी के पौधे का इस्तेमाल एक्ज़िमा, जलन और मुंहासे जैसी त्वचा की  समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है। कासनी में सूजन-रोधी (anti-inflammatory)  और जीवाणुरोधी (anti-bacterial) गुण पाए जाते हैं। चमकती त्वचा के लिए भी सका यूज होता है।  
  • चिकोरी की पत्तियों का उपयोग स्वादिष्ट सलाद तैयार करने में  किया जाता है।  
  • चिकोरी की जड़ों का उपयोग चिकोरी कॉफ़ी तैयार करने में होता है, जो बहुत  स्वादिष्ट मानी जाती है।  
  • इसके अलावा, चिकोरी कई व्यंजनों जैसे सूप, स्ट्यू और पास्ता (Soup, Stew and Pasta)  में भी इस्तेमाल होती है।  
  • चिकोरी का  पाउडर या कैप्सूल के रूप में स्वास्थ्य के लिए लाभकारी गुणों में भी उपयोग होता है।  
  • मुख्य रूप से कासनी की जड़ को औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। कासनी का सेवन भूख की कमी, पेट में परेशानी, कब्ज़, दिल की तेज धड़कन व अन्य कई बीमारियों के लिए फ़ायदेमंद होता है।
  • चिकोरी या कासनी सिर्फ़ एक चारा नहीं है। स्वास्थ्य के लिए  लाभकारी गुणों के कारण, ये सच्चा सुपरफूड है। 
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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