पशु आहार (Animal Feed): देश को अब क्यों एक ज़बरदस्त चारा-क्रान्ति की ज़रूरत है?

पशुधन और दूध उत्पादन के लिहाज़ से दुनिया में भारत शीर्ष पर है। माँग की तुलना में देश में अब भी क़रीब 36 प्रतिशत हरा चारा, 11 प्रतिशत सूखा चारा तथा 44 प्रतिशत तक सन्तुलित पशु आहार की कमी है। इसीलिए वक़्त आ चुका है कि हरित-क्रान्ति, श्वेत-क्रान्ति और नीली-क्रान्ति की तर्ज़ पर भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था अब चारा-क्रान्ति की दिशा में भी तेज़ी से अपने क़दम आगे बढ़ाये।

पशु आहार चारा-क्रान्ति

पशु आहार (Animal Feed): वक़्त आ चुका है कि हरित-क्रान्ति, श्वेत-क्रान्ति और नीली-क्रान्ति की तर्ज़ पर भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था अब चारा-क्रान्ति की दिशा में भी तेज़ी से अपने क़दम आगे बढ़ाये। क्योंकि भारत भले ही, अपने क़रीब 54 करोड़ पशुधन के साथ दुनिया में सबसे आगे हो, वैश्विक दूध उत्पादन में भी लम्बे अरसे से शीर्ष पर हो और भले ही, देश में पशुधन की सालाना विकास दर 7.9% हो, लेकिन माँग की तुलना में देश में अब भी क़रीब 36 प्रतिशत हरा चारा, 11 प्रतिशत सूखा चारा तथा 44 प्रतिशत तक सन्तुलित पशु आहार की कमी है।

ICAR-Indian Grassland and Fodder Research Institute (IGFRI) या भारतीय चारागाह और चारा अनुसन्धान संस्थान, झाँसी के वैज्ञानिकों अनुमान है कि साल 2050 तक भी देश में 18.4 प्रतिशत हरे चारे की और 13.2 प्रतिशत सूखे चारे की कमी बनी रहेगी। इसका मतलब है कि हरे चारे की खेती और सन्तुलित पशु आहार का उत्पादन ऐसे क्षेत्र हैं जिसमें किसानों के लिए बढ़िया कमाई के ज़ोरदार अवसर हैं। लिहाज़ा, ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को पशु चारा उत्पादन के क्षेत्र में अपनी मेहनत और कौशल को आज़माना चाहिए।

देश में 2 करोड़ लोगों की आजीविका है पशुधन

भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था में पशुधन और पशुपालन की हिस्सेदारी 28.63 प्रतिशत है। देश की 2 करोड़ से ज़्यादा आबादी की आजीविका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पशुधन और पशुपालन पर निर्भर है। छोटे किसानों की आमदनी में पशुपालन का योगदान क़रीब 16 प्रतिशत है तो ग्रामीण आबादी की कुल आय में पशुधन और पशुपालन की भागीदारी क़रीब 14 फ़ीसदी है। इसमें से दो-तिहाई ग्रामीण आबादी की कमाई का काफ़ी बड़ा हिस्सा भी पशुधन के उत्पादों से ही आता है।

पशुधन और पशुपालन का देश की कृषि अर्थव्यवस्था में बेहद अहम योगदान है। देश में गाय-भैंस समेत कुल दुधारू पशु 12.6 करोड़ हैं। इनमें क़रीब 11 करोड़ भैंसें हैं, जो विश्व में सबसे ज़्यादा हैं। बकरी और भेड़ों की तादाद में भी भारत विश्व में क्रमश: दूसरे तथा तीसरे स्थान पर है। लेकिन इतनी उपलब्धियों के विपरीत पशुधन की उत्पादकता के लिहाज़ से भी भारतीय पशुपालन की स्थिति अन्य देशों से ख़ासा काफ़ी पीछे है।

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पशुधन की उत्पादकता में 30% पीछे है भारत

20वीं पशु गणना रिपोर्ट 2019 के अनुसार, देश में गौ-वंशीय पशुओं की सालाना दूध उत्पादकता का वैश्विक औसत जहाँ 2,238 किलोग्राम है वहीं भारतीय गौ-वंश की दूध पैदावार इसकी सिर्फ़ 68.7 प्रतिशत यानी 1,538 किलोग्राम सालाना ही है। पशुधन की औसत वैश्विक उत्पादकता की तुलना में भारत की उपलब्धि का क़रीब 30 फ़ीसदी पीछे रहना निश्चित रूप से बहुत चिन्ताजनक है। इसके लिए पशुधन के विभिन्न रोगों के प्रकोप को काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।

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चिन्ताजनक है घटता पशुचारा उत्पादन

पशुधन की विशाल आबादी को पर्याप्त पोषक आहार उपलब्ध करवाना एक बेहद अहम चुनौती भी है, क्योंकि सूखा-बाढ़ जैसी आपदाओं के अलावा जलवायु परिवर्तन की वजह से भी पशुचारा उत्पादन में कमी आ रही है। दूध उत्पादन में संकर पशुओं के बढ़ते चलन की वजह से देसी नस्लों के पशुओं की संख्या भी लगातार कम हो रही है। देश के बड़े हिस्से में पशु चिकित्सकों और पशु चिकित्सालयों का पर्याप्त नेटवर्क नहीं होने की वजह से भी पशु स्वास्थ्य और उत्पादकता प्रभावित होती है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है, पोषक तत्वों से भरपूर पशु आहार की कमी। क्योंकि ये पशुधन की सेहत और उत्पादकता पर सबसे प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

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चारागाहों का इलाका भी घट रहा है

साल 2020 में जारी कृषि विभाग के आँकड़ों के अनुसार, देश में चारागाहों का कुल क्षेत्रफल 103.4 लाख हेक्टेयर है। लेकिन ये भी साल दर साल घट ही रहा है। इसी प्रकार, चारे की कुल माँग में से 54 प्रतिशत हिस्सेदारी फ़सल अवशेषों की है जो चारा उत्पादन भी महज़ 18 फ़ीसदी माँग पूरी करता है। ये आँकड़ा बताता है कि पशुपालन के क्षेत्र में सुधार, प्रगति, रोज़गार और कमाई की अपार सम्भावनाएँ हैं।

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फ़सल अपशिष्ट का सदुपयोग है बेहद ज़रूरी

IGFRI की ‘विजन 2050’ रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2050 तक भारत में हरे और सूखे चारे की माँग बढ़कर क्रमश: 101 और 63 करोड़ टन तक पहुँच जाएगी। इस चुनौती का मुक़ाबला करने के लिए देश को वक़्त रहते चारा उत्पादन के वर्तमान क्षेत्रफल को बढ़ाने के अलावा कम समय में तैयार होने वाली चारा फ़सलों का विकास करना होगा। साथ ही, साल दर साल बड़े पैमाने पर बर्बाद हो रहे फ़सल अपशिष्टों से पशु आहार तैयार करने जैसे उपायों पर भी भरपूर ध्यान देना ज़रूरी है।

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पशु आहार की चुनौतियों को देखते हुए, पशुपालक किसानों को परम्परागत चारा फ़सलों के अलावा नये चारा विकल्पों ख़ासकर अजोला, चिकोरी, रेमी, चारा चुकन्दर, बेबीकॉर्न, सहजन आदि का उत्पादन बढ़ाने की ज़ोरदार कोशिश करनी होगी। इसके अलावा वार्षिक चारा उत्पादन मॉडल तथा बहुवर्षीय दलहनी प्रजातियों से प्राप्त होने वाली चारा फ़सलों की पैदावार की ओर भी और ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है।

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हरा चारा और पशु आहार से सम्बन्धित लेख

हरा चारा और पशु आहार को लेकर किसान ऑफ़ इंडिया अनेक बेजोड़ सामग्री मौजूद है। उनमें से कुछ चुनिन्दा लेखों लिंक हमने इस लेख में ऊपर भी पेश किये है और आख़िर में लिख रहे हैं। इन्हें क्लिक करके पशुपालकों और चारा उत्पादक किसानों को सभी लेखों को ज़रूर पढ़ना चाहिए। इससे उन्हें ये तय में आसानी होगी कि उनकी विशेष परिस्थितियों में पशु चारा के लिए क्या करना उचित होगा? कृषि विशेषज्ञों से मिली जानकारियों पर आधारित इन अनमोल लेखों का यदि किसान फ़ायदा उठाएँगे तो निश्चित रूप से उनकी आमदनी में भी इज़ाफ़ा होगा।

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