दूध उत्पादक ज़्यादा कमाई के लिए ज़रूर करें नेपियर घास की खेती, जानिये कैसे होगा फ़ायदा?
‘आम के आम, गुठलियों के दाम’ वाली तमाम ख़ूबियाँ मौजूद हैं नेपियर घास में
क़रीब आधा बीघा खेत में नेपियर घास की खेती करके 4-5 पशुओं को पूरे साल हरा चारा उपलब्ध कराया जा सकता है। यदि किसान नेपियर घास की खेती अपनी ज़रूरत से ज़्यादा रक़बे में करे तो इससे नगदी फ़सल वाली कमाई भी हो सकती है।
नेपियर घास की खेती (Napier Grass Farming): किसानों का अपने मवेशियों से हमेशा से चोली-दामन का साथ रहा है। मवेशियों के लिए यदि हरे चारे का सही इन्तज़ाम हो तो उनकी सेहत और उत्पादकता में चार चाँद लग जाते हैं। दूध उत्पादक किसानों के लिए तो हरे चारे की निरन्तर उपलब्धता की अहमियत उतनी ही है जितनी उनके उन्नत पशुधन की होती है, क्योंकि दुधारू पशुओं के स्वस्थ पोषण में ही किसानों की बेहतर आमदनी का नुस्ख़ा मौजूद रहता है।
इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर किसान ऑफ़ इंडिया आपको अब ऐसे हरे चारे की उन्नत खेती के बारे में बता रहा है जिसमें कम लागत में दुध उत्पादक किसानों को ख़ुशहाल बनाने की बेजोड़ सम्भावना है।
वैसे तो किसान हरे चारे के लिए नेपियर, बरसीम, जिरका, गिनी और पैरा जैसी अनेक घास उगाते हैं, लेकिन पोषक तत्वों से भरपूर पशु आहारों में नेपियर घास (Napier Grass) का दर्ज़ा सबसे ऊपर है। ये बहुत तेज़ी से बढ़ती है और जल्द ही इंसानों से भी ऊँची हो जाती है, इसलिए इसे ‘हाथी घास’ भी कहते हैं। इसमें ‘आम के आम, गुठलियों के दाम’ वाली ख़ूबियाँ मौजूद हैं। नेपियर हाईब्रिड घास को सबसे पहले अफ्रीका में तैयार किया गया। भारत में 1912 में तमिलनाडु के कोयम्बटूर में नेपियर हाइब्रिड घास उगाई गयी। फिर 1962 में दिल्ली के पूसा कृषि संस्थान ने इसका हाइब्रिड तैयार करके इसे पूसा जाइंट (Pusa Giant) का नाम दिया।
एक बुआई से पाँच साल पाएँ हरा चारा
नेपियर घास की खेती हर तरह की मिट्टी में होती है। इसे ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती, इसलिए हरे चारे की लागत भी कम बैठती है। इसे एक बार लगाने के बाद पशुपालकों को चार-पाँच साल तक लगातार हरा चारा मिलता रहता है। नेपियर घास की पहली कटाई जहाँ 60-65 दिनों में करते हैं, वहीं इसके बाद हरेक 30-35 दिन पर यानी साल में 6 से 8 बार काट सकते हैं। कम पानी और मिट्टी से कम पोषक तत्वों की अपेक्षा रखने वाली नेपियर भूमि संरक्षण के लिए उपयुक्त है।
इस बहुवर्षीय चारे को परती ज़मीन और एकल फ़सली खेतों में भी आसानी से उगा सकते हैं। इसे खेतों के एक हिस्से या मेड़ पर भी लगा सकते हैं। इसमें प्रोटीन 8-10 फ़ीसदी, रेशा 30 फ़ीसदी और कैल्सियम 0.5 फ़ीसदी होता है। इसे दलहनी चारे के साथ मिलाकर पशुओं को खिलाना चाहिए।
4-5 पशुओं के लिए आधा बीघा खेत
ऐसे दूध उत्पादकों को नेपियर घास की खेती ज़रूर करनी चाहिए, जिनके पास खेती की ज़मीन कम है और जो अपनी गृहस्थी की ज़्यादातर चीज़ें बाज़ार से ख़रीदते हैं। क्योंकि कम ज़मीन होने की वजह से उनकी अनाज और फल-सब्ज़ी की ज़रूरतें तो पूरी नहीं होतीं लेकिन उनके मवेशियों के लिए पर्याप्त हरा चारा ज़रूर पैदा हो सकता है। क्योंकि क़रीब आधा बीघा खेत में नेपियर घास की खेती करके 4-5 पशुओं को पूरे साल हरा चारा उपलब्ध कराया जा सकता है।
यदि किसान नेपियर घास की खेती अपनी ज़रूरत से ज़्यादा रक़बे में करे तो इससे नगदी फ़सल वाली कमाई भी हो सकती है। भूमिहीन दूध उत्पादक किसान भी कम उपजाऊ खेत को किराये पर लेकर वहाँ नेपियर घास उगा सकते हैं। ये उनकी आमदनी बढ़ाने में बहुत मददगार साबित होगा।
कैसे करें नेपियर घास की खेती?
नेपियर के तेज़ विकास के लिए गर्मियों की धूप और हल्की बारिश का संयोग बेहतरीन है। सर्दियों में इसकी वृद्धि कुछ धीमी रहती है। नेपियर की बुआई ज़्यादातर जून-जुलाई में करते हैं। सिंचाई की सुविधा हो तो जड़-युक्त तनों की रोपाई फरवरी से जुलाई के बीच भी हो सकती है। बारिश के दिनों में बुआई करने से सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती। अन्य मौसम में बुआई के बाद 20-25 दिनों तक हल्की सिंचाई करनी चाहिए। जल भराव वाले खेत नेपियर के लिए मुफ़ीद नहीं रहते। नेपियर घास की खेती के लिए गहरी जुताई करके खेत के खरपतवार को ख़त्म कर लेना चाहिए। इसे तने की कटिंग करके उसे बोते हैं, क्योंकि इसमें बीज नहीं बनता।
नेपियर की व्यावसायिक खेती
व्यावसायिक स्तर पर यदि नेपियर घास की खेती करनी हो तो प्रति हेक्टेयर में इसके 20 हज़ार बीजों की ज़रूरत पड़ेगी। इसके दो पौधों के बीच क़रीब 50 सेंटीमीटर का फ़ासला होना चाहिए। लेकिन यदि इसे अन्य फसलों के साथ लगाना हो तो इसे थोड़ा बढ़ा देना चाहिए। नेपियर के अधिक उत्पादन के लिए आख़िरी जुताई के वक़्त 125-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से गोबर की खाद के अलावा 40 किग्रा नाइट्रोजन और 60 किग्रा प्रति हेक्टेयर फास्फोरस मिलाना चाहिए तथा प्रत्येक कटाई के बाद 30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन भी डालना चाहिए।
नेपियर घास की कटाई के वक़्त करीब 6 इंच का पेड़ ज़मीन में ही गड़ा हुए छोड़ना चाहिए। प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई ज़रूरी है। बुआई और हरेक कटाई के बाद निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को हटाते रहने से फसल की बढ़वार अच्छी होती है। नेपियर घास को डेढ़ मीटर ऊँचा होने पर काट लेना चाहिए, क्योंकि इससे बड़े पौधों के तने सख्त तथा ज़्यादा रेशेदार होने लगे हैं और पशुओं का कम पसन्द आते हैं।
पूसा जायंट, NB-21, CO-1, CO-3, IGFRI-3, IGFRI-6, IGFRI-7, IGFRI-10, यशवन्त, स्वातिका, गजराज, संकर-1, संकर-2 और शक्ति आदि हैं। इनकी सालाना पैदावार 90 से लेकर 300 टन प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। उत्पादन की मात्रा इस बात पर सबसे ज़्यादा निर्भर करेगी की नेपियर घास की खेती को कितने व्यावसायिक तरीके से किया जाता है। NB-21 को बहुत तेज़ी से बढ़ने वाली और स्वातिका को पाला रोधी किस्म बताया जाता है।
ये भी पढ़ें: फल-सब्ज़ी की खेती में लागत घटाने का बेजोड़ नुस्ख़ा है प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक, जानिए कैसे?
अगर हमारे किसान साथी खेती-किसानी से जुड़ी कोई भी खबर या अपने अनुभव हमारे साथ शेयर करना चाहते हैं तो इस नंबर 9599273766 या [email protected] ईमेल आईडी पर हमें रिकॉर्ड करके या लिखकर भेज सकते हैं। हम आपकी आवाज़ बन आपकी बात किसान ऑफ़ इंडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाएंगे क्योंकि हमारा मानना है कि देश का किसान उन्नत तो देश उन्नत।
ये भी पढ़ें:
- Agriculture Drone क्या है? कृषि ड्रोन में सब्सिडी के लिए कौन सी योजनाएं चलाई जा रही हैं?Agriculture Drone की खरीद के लिए महिला समूह को ड्रोन की कीमत का 80 प्रतिशत या अधिकतम 8 लाख रुपये तक की मदद दी जा रही है। योजना के तहत SC-ST, छोटे व सीमांत, महिलाओं और पूर्वोत्तर राज्यों के किसानों को ड्रोन का 50 प्रतिशत या अधिकतम 5 लाख रुपये अनुदान दिया जा रहा है।
- कैसे महुआ के उत्पाद बनाकर महिलाओं के इस समूह ने कमाल किया है? Bastar Foods आज बना ब्रांडमहुआ एक तरह का फूल है जिसमें बहुत ही तेज़ महक होती है, आमतौर पर इसे शराब बनाने के लिए जाना जाता है, लेकिन अब इससे कई तरह की स्वादिष्ट और हेल्दी चीज़ें बनाई जा रही हैं। जानिए कैसे महुआ के उत्पाद (Mahua Products) बनाकर बस्तर की गुलेश्वरी ठाकुर और उनकी टीम ने इससे लाखों का बिज़नेस खड़ा कर दिया है।
- अगरवुड पेड़ की खेती (Agarwood Farming): सोने-हीरे से भी ज़्यादा महंगी अगरवुड की लकड़ी!अगरवुड पेड़ की खेती में एक एकड़ में 400 से 450 पौधे लग सकते हैं। 12 फ़ीट चौड़ाई और 10 फ़ीट लंबाई की दूरी पर पौधे को रोपना चाहिए। अगरवुड प्लांट की कीमत 200 रुपए होती है।
- Rose Varieties: छत पर उगा दी गुलाब की 150 किस्में, जानिए Terrace Gardening की टिप्स अनिल शर्मा सेफूलों की सुंदरता भला किसे आकर्षित नहीं करती, मगर हर कोई इसे घर में उगा नहीं पाता है। क्योंकि इसमें मेहनत लगती है, मगर झांसी के अनिल शर्मा ने अपने शौक को पूरा करने के लिए एक दो नहीं, बल्कि छत पर 700 गमले लगाए हुए हैं। जानिए उनसे गुलाब की किस्मों से लेकर Terrace Gardening के टिप्स।
- Hybrid Tomato Varieties In India: हाइब्रिड टमाटर की इन 10 उन्नत किस्मों की खेती कितनी फ़ायदेमंद?भारत में उच्च उपज वाली टमाटर की किस्मों (High Yield Tomato Varieties In India) की खेती से किसान अच्छा लाभ ले सकते हैं। कृषि वैज्ञानिकों की ओर से ऐसी कई किस्में तैयार की गई हैं। पढ़िए ऐसी ही किस्मों में से उन 10 हाइब्रिड टमाटर की किस्मों के बारे में जो टमाटर की अच्छी उपज देने के लिए जानी जाती है।
- Krishi Vigyan Kendra: किस मकसद के साथ शुरू हुए कृषि विज्ञान केन्द्र? देश भर में मनाई गई स्वर्ण जयंतीकृषि विज्ञान केन्द्र (Krishi Vigyan Kendra, KVK) भारत में कृषि और कृषि से जुड़े अन्य आयामों के टेक्नोलॉजी विस्तार का एक केन्द्र है। जहां पर किसानों को खेती-किसानी की नई तकनीकों से लेकर किस्मों की ट्रेनिंग या फ़ार्म विज़िट के माध्यम से नई-नई जानकारियां दी जाती हैं।
- जानिए कैसे FPO गठन के ज़रिए आदिवासी किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित कर रहे जगन्नाथ तिलगामकिसान उत्पादक संगठन यानी Farmers Producer Organization (FPO) छोटे किसानों के लिए बहुत फ़ायदेमंद माना जाता है। इससे जुड़कर किसानों को न सिर्फ़ फसल की अच्छी कीमत मिलती है, बल्कि दूसरी सुविधाएं भी मिलती हैं। छत्तीसगढ़ के एक किसान जगन्नाथ तिलगाम ने अपने इलाके में FPO की शुरुआत की और FPO गठन के ज़रिए कैसे कउन्होंने आदिवासी किसानों को नई राह देखिए, पढ़िए इस स्टोरी में।
- मक्के की फसल का इस्तेमाल कई चीज़ों के लिए किया जाता है, जानिए मक्के की खेती से जुड़ी अहम जानकारीमक्के की फसल की खेती रबी, खरीफ़ और जायद सीज़न में आराम से की जा सकती है, लेकिन खरीफ़ के मौसम में मक्के की फसल बारिश पर निर्भर करती है। मक्के की फसल 3 महीने का वक्त लेती है।
- Pig Farming In India: सूअर पालन व्यवसाय को लेकर क्या है बाज़ार? सरकार देती है सब्सिडी और लोनसूअर की खाल से मैट, पैराशूट, मोम, उर्वरक, क्रीम, मलहम और रसायन बनाने के लिए इसका इस्तेमाल होता है। बटन, जूते के फीते, दवाइयां, सॉसेज, थाइमस, अग्न्याशय, अग्न्याशय, थायरॉयड, अग्न्याशय से संबंधित दवाईयां इससे बनती हैं। पशु चारा, उर्वरक, और कपड़ों की रंगाई और छपाई के लिए भी उपयोग में लाया जाता है। सूअर पालन के लिए सरकार लोन देती है।
- Jowar Crop: ज्वार की फसल की उन्नत खेती करके कम लागत में पाएं ज्यादा मुनाफ़ा, जानें संपूर्ण जानकारीभारत में ज्वार की फसल प्रमुख उपज है और ये खरीफ़ सीजन में उगाई जाती है। ये फसल वर्षा आधारित होती है। ज्वार में पौष्टिक तत्व कूट-कूट कर भरे होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद होते हैं।
- Foxtail Millet: कैसे कंगनी फसल की उन्नत खेती से बिहार के किसानों को लाभ, कैसे करें बुवाई? जानें पूरी जानकारीकंगनी फसल की उन्नत खेती: जिस रफ़्तार से मोटे अनाज भारतीय किसानों और उपभोक्ताओं की थाली से दूर हुए थे, अब उसी रफ़्तार से वो वापस आ रहे हैं। सरकार और वैज्ञानिकों की कोशिशों का ही नतीजा है कि अब न सिर्फ़ उपभोक्ता इसे अपनी डेली डाइट में शामिल करने के लिए बेताब हैं, बल्कि किसान भी इसकी खेती से मुनाफ़ा कमा रहे हैं। मोटे अनाज में एक बहुत ही ख़ास अनाज है कंगनी जिसे Foxtail Millet भी कहा जाता है।
- Kodo Millet: कोदो की उन्नत खेती में बीजोपचार से लेकर खाद व उर्वरक की अहम भूमिकाकोदो की उन्नत खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। कोदो को चावल की तरह खाया जा सकता है। इसमें प्रोटीन, फाइबर, खनिज, आयरन, कैल्शियम और मैग्नीशियम भरपूर मात्रा में होता है। कोदो मिलेट (Kodo Millet In Hindi) और इसकी उन्नत खेती में बारे में जानिए।
- Dangerous Plants: जानिए क्यों बेहद ज़रूरी है बबूल, गाजरघास और पंचफूली जैसी आतंकी फ़सलों का फ़ौरन सफ़ायाविलायती बबूल, गाजरघास और पंचफूली – जैसे पर्यावरण के दुश्मन बुनियादी तौर पर विदेशी घुसपैठिये हैं। लेकिन आज इनका साम्राज्य देश में करोड़ों हेक्टेयर तक फैल चुका है। ये तेज़ी से हमारी मिट्टी को बंजर बनाकर हज़ारों देसी पेड़-पौधों की प्रजातियों को ख़त्म कर चुके हैं। इसके प्रकोप से खेती की उत्पादकता भी बहुत कम हो जाती है। ऐसे आतंकियों का फ़ौरन सफ़ाया बेहद ज़रूरी है।
- Elaichi Plant: कैसे तैयार होता है इलायची का पौधा? जानिए इलायची की उन्नत खेती का तरीकाइलायची को मसालों की रानी भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी खुशबू बहुत अच्छी होती है और बाज़ार में महंगी भी बिकती है। इसलिए इलायची की उन्नत खेती किसानों को अच्छा मुनाफ़ा दे सकती है। साथ ही इस लेख में जानिए कैसे इलायची का पौधा (Elaichi Plant) तैयार किया जाता है।
- जायद की फसल का चयन कैसे करें? फसल की देखरेख और बुवाई के बारें में जानिए एक्सपर्ट विशुद्धानंद सेजायद की फसल के लिए 6 से 7 घंटे की सूरज की रोशनी की ज़रुरत पड़ती है। जायद की फसल में सब्जियों का उत्पादन लेने के लिए किसानों को लोम मिट्टी (दोमट मिट्टी) का इस्तेमाल करना चाहिए। जानिए कृषि विशेषज्ञ डॉ. विशुद्धानंद से जायद फसलों के बारे में विस्तार से जानकारी।
- अनाज भंडारण प्रबंधन: भंडारित अनाज में लगने वाले मुख्य कीट कौन से हैं? कैसे रोकें फसल बर्बादी?फसल का अच्छा उत्पादन होने भर से ही किसानों की मुश्किलें कम नहीं हो जाती, क्योंकि अच्छे उत्पादन के बावजूद अगर भंडारण ठीक तरह से नहीं किया जाए, तो फसल के एक बड़े हिस्से को कीट नष्ट कर देते हैं। इससे अनाज की बर्बादी के साथ ही उसकी पौष्टिकता भी कम हो जाती है। जानिए अनाज भंडारण प्रबंधन के बारे में कि कैसे कीटों के प्रकोप से फसल को बचाया जा सकता है।
- गोबर से लकड़ी बनाने की मशीन बनाई पटियाला के इस इंजीनियर ने, जानिए कीमत और ख़ासियतअगर आप इनोवेटिव है, तो कमाई का कोई न कोई ज़रिया आप निकाल ही लेंगे। इस बात की बेहतरीन मिसाल हैं पंजाब के पटियाला के रहने वाले इंजीनियर कार्तिक पाल, जिन्होंने गोबर का अनोखा इस्तेमाल करके पर्यावरण और किसानों की बेहतरी की दिशा में अच्छा प्रयास किया है। उन्होंने गोबर से लकड़ी बनाने की मशीन बनाई और ख़ासतौर पर पशुपालकों की एक बड़ी समस्या हल करने की कोशिश की।
- Nitrogen Management: कैसे स्मार्ट नाइट्रोजन प्रबंधन सफल कृषि की कुंजी है?जहां तक नाइट्रोजन प्रबंधन का संबंध है, कृषि क्षेत्र एक दुष्चक्र में है। मिट्टी में नाइट्रोजन मौजूद होता है जो पौधों और फसलों को बढ़ने में मदद करता है। इसका उपयोग विशेष रूप से उर्वरकों और कीटनाशकों में किया जाता है जो पौधों को बढ़ने में और बेहतर उपज पाने में मदद करते हैं।
- Hydroponic Farming At Home: हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती में घर की छत पर उगाएं फल-सब्जियांHydroponic Farming At Home | सब्जियों को हाइड्रोपोनिकली उगाने वाली ये विदेशी तकनीक है। 1859-1875 में जर्मन वनस्पतिशास्त्री जूलियस वॉन सैक्स और विल्हेम नोप की खोज से मिट्टी रहित खेती की ये तकनीक ईज़ाद हुई। बता दें कि हाइड्रोपोनिक एक ग्रीक शब्द है, जिसका मतलब होता है बिना मिट्टी और सिर्फ़ पानी के जरिए खेती करना। जानिए हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती के बारे में।
- वर्मीवॉश उत्पादन: जैविक खेती की उपज बढ़ाने और भूमि-सुधार में बेजोड़जैविक खेती की ओर लौटने के लिए वर्मीवॉश, एक बेहद शानदार, किफ़ायती और घरेलू विकल्प है। पैदावार बढ़ाने वाली जैविक खाद के अलावा वर्मीवॉश, एक प्राकृतिक रोगरोधक और जैविक कीटनाशक की भूमिका भी निभाता है। इसका उत्पादन केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) निर्माण के दौरान ही या फिर अलग से भी किया जाता है। जानिए वर्मीवॉश उत्पादन से लेकर इसके बारे में अन्य जानकारियां।