Animal Husbandry: सस्ता, सुलभ और पौष्टिक पशु आहार (Animal Feed) क्या हो और कैसा हो?
पशुओं का प्रमुख आहार भूसा और हरा चारा है। उन्हें मनुष्यों वाला भोजन नहीं खिलाना चाहिए।
पशुओं को ऐसा आहार खिलाने से बचना चाहिए जो हम खाते हैं। कभी-कभार रसोई में बची हुई रोटी या हरी सब्जी के छिलके वग़ैरह तो पशु आहार के रूप में खिलाये जा सकते हैं, लेकिन पशुओं को दूध, शहद, बादाम, किशमिश, देसी घी आदि महँगी खाद्य सामग्री खिलाना समझदारी नहीं है। इनसे पशुओं को कोई नुकसान भले ना हो, लेकिन फ़ायदा बिल्कुल नहीं होता।
पशुओं को पौष्टिक आहार देना बेहद ज़रूरी है, लेकिन उन्हें मनुष्यों वाला भोजन देना कतई सही नहीं है। कुछ लोग पशुओं को भी ऐसी सभी चीज़ें खिलाना चाहते हैं, जो वो ख़ुद खाते हैं। पशुपालकों को इस बात का ख़ास ख़्याल रखना चाहिए कि पशु आहार उनकी स्वाद ग्रन्थियों और पाचन व्यवहार के अनुकूल हो। क्योंकि मनुष्य के शरीर में जहाँ एक चैम्बर वाला साधारण पाचन तंत्र होता है, वहीं गाय और भैंस जैसे जुगाली करने वाले यानी रोमंथी पशुओं का पाचन तंत्र चार चैम्बरों (कक्ष) वाला होता है।
रोमंथी पशुओं की पाचन प्रक्रिया
मनुष्य का भोजन लीवर (यकृत) से लेकर छोटी आँत तक के अंगों में पचता है। जबकि रोमंथी पशु जो भी खाते हैं वो उनके पेट के पहले और सबसे बड़े चैम्बर ‘रुमेन’ में इकट्ठा होता रहता है। रुमेन में असंख्य सूक्ष्मजीवी, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ और फफूँद वग़ैरह पाये जाते हैं, जो पशु आहार का लगातार किण्वन (fermentation) करते रहते हैं। पशुओं का प्रमुख आहार भूसा और हरा चारा है। भूसे में स्टार्च होता है। पाचन के दौरान इससे वसीय अम्ल बनते हैं। हरे चारे में मौजूद प्रोटीन से अमोनिया बनती है। इससे सूक्ष्मजीवियों की ओर से ‘माइक्रोबियल’ प्रोटीन बनाया जाता है।
पाचन के दौरान यूरिया निर्माण
पशुओं के पाचन तंत्र में बनने वाली कुछ अमोनिया लीवर के ज़रिये यूरिया में परिवर्तित होकर या तो गोबर के रूप में बाहर आती है या फिर सूक्ष्मजीवी इसकी रिसायकिलिंग करके उपयोगी प्रोटीन का निर्माण करते हैं। आहार के रूप में पशुओं के पेट में पहुँचने वाले प्रोटीन रहित नाइट्रोजन का भी यही अंज़ाम होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो रोमंथी पशु कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन और वसा को उनके वास्तविक रूप में ग्रहण नहीं करते बल्कि इन सभी को वसीय अम्लों में बदल देते हैं। इसी से उनकी ऊर्जा की ज़रूरतें पूरी होती हैं।
पशुओं को महँगा प्रोटीन और वसायुक्त आहार खिलाने से कोई फ़ायदा नहीं होता। उल्टा ऐसा करने से डेयरी व्यवसाय की लागत अव्यावहारिक बनती है। दरअसल, पशुओं को तो सिर्फ़ सस्ते स्रोतों से मिलने वाले कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन और वसा खिलाना चाहिए। क्योंकि रोमंथी प्राणी बुनियादी तौर पर अपनी ज़रूरतों को वनस्पतीय चारे से जुटाने में पूरी तरह सक्षम होते हैं। लिहाज़ा, कल्पना करके देखिए कि यदि गाय-भैंस को दूध पिलाकर ही दूध का उत्पादन पाना हो तो फिर ऐसा पशुपालन किया काम का?
महँगा पशु आहार खिलाने से कोई फ़ायदा नहीं
किसानों को ये समझना बेहद ज़रूरी है कि वो चाहें गाय-भैंस को शहद खिलाएँ, दूध पिलाएँ, प्रोटीन या शीरा दें, इन सबका रुमेन में ही किण्वन ही होगा और उससे वसीय अम्ल ही बनेंगे। इसी तरह प्रोटीन चाहे फलीदार फसलों के चारे का हो या तिलहनों की खली का हो या बादाम का हो, सभी के अपघटन (पाचन) से अमोनिया ही मिलेगी, जो रुमेन में माइक्रोबियल प्रोटीन के निर्माण करेगी। इसी तरह चाहे उन्हें तेल या घी खिलाएँ या कोई अन्य वसायुक्त आहार, उससे भी वसीय अम्लों का ही निर्माण होगा। लिहाज़ा, पशुओं को काजू-बादाम जैसा महँगा ड्राई फ्रूट या अंगूर-शहद जैसी चीज़ों को खिलाने से कोई अतिरिक्त फ़ायदा नहीं होता।
ICAR-भारतीय डेयरी अनुसन्धान संस्थान, करनाल के विशेषज्ञ के अनुसार, वैज्ञानिक तथ्य तो ये हैं कि रोमंथी पशुओं का पाचन तंत्र इस प्रकार से नियोजित होता है कि ये कम गुणवत्ता वाले प्रोटीन खाकर भी बेहतरीन किस्म के प्रोटीन का निर्माण करने में सक्षम होते हैं। यही वजह है कि कई बार पशुओं को यूरिया से उपचारित भूसा भी खिलाया जाता है ताकि उनके रुमेन में मौजूद सूक्ष्मजीवी यूरिया के अंश से नाइट्रोजन बनाने वाले प्रोटीन का निर्माण कर सकें। लेकिन इसका कतई ये मतलब नहीं कि पशुओं को सिर्फ़ यूरिया उपचारित भूसा ही खिलाया जाए। वैसे बाज़ार में प्रोटीन के अनेक सस्ते स्रोत भी उपलब्ध होते हैं, जिन्हें पशु आहार के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए।
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पशु आहार से जुड़ी भ्रान्तियाँ
कुछेक पशुपालकों को ये ग़लतफ़हमी है कि साँड को देसी घी, दूध-बादाम और मेवा खिलाने से वह ताक़तवर बनेगा और उसकी प्रजनन क्षमता बेहतर होगी। दरअसल, रोमंथी पशु अपने आहार को जल्दी-जल्दी निगल लेते हैं और बात में जुगाली करके उसे चबाते रहते हैं। इनकी स्वाद ग्रन्थियाँ मनुष्यों की तरह अत्यधिक विकसित नहीं होतीं। इसीलिए पशुओं को ऐसा आहार खिलाने से बचना चाहिए जो हम खाते हैं। कभी-कभार रसोई में बची हुई रोटी या हरी सब्जी के छिलके वग़ैरह तो खिलाये जा सकते हैं, लेकिन पशुओं को दूध, शहद, बादाम, किशमिश, देसी घी आदि महँगी खाद्य सामग्री खिलाना समझदारी नहीं है। इनसे पशुओं को कोई नुकसान भले ना हो, लेकिन फ़ायदा बिल्कुल नहीं होता।
ख़ुराक़ बढ़ाने में शीरा का उपयोग
बाज़ार में उपलब्ध अनेक पशु आहार में बेहतर स्वाद के लिए शीरा भी मिलाया जाता है। इसीलिए पशु इसे ज़्यादा पसन्द करते हैं। पशुपालक भी ज़्यादा दूध देने वाली गायों को रोज़ाना करीब 3 किलोग्राम तक शीरे को पानी की बराबर मात्रा में मिलाकर चारे पर छिड़ककर खिला सकते हैं। पशु इसे बड़े चाव से खाते हैं। इससे उनकी दूध उत्पादन क्षमता बढ़ती है, उनका आहार सुपाच्य बनता है और दूहते वक़्त वो आसानी से दूध छोड़ते हैं। कम गुणवत्ता वाले आहार के साथ शीरा देने से पशु स्वस्थ रहते हैं और गर्मियों के तनाव से उनका बचाव होता है। इसीलिए जिन पशुपालकों के पशु कम आहार खाते हैं, वो आहार में शीरा मिलाकर पशुओं की ख़ुराक़ आसानी से बढ़ा सकते हैं। लेकिन शीरे की मात्रा को असीमित नहीं होना चाहिए। ये हानिकारक भी साबित हो सकता है।
सस्ता और सन्तुलित हो पशु आहार
आहार का लागत मूल्य सीमित रखने के लिए पशुओं को सस्ता चारा खिलाकर उनकी कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, वसा और खनिज तत्वों की भरपायी करनी चाहिए। पशुओं को सिर्फ़ खली खिलाना ही पर्याप्त है। उन्हें तेल पिलाना न सिर्फ़ महँगा पड़ता है बल्कि इससे रुमेन में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीवियों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। वैसे आजकल बाज़ार में ‘बाईपास वसा’ भी आसानी से उपलब्ध है। इसका इस्तेमाल गर्भावस्था के शुरुआती महीनों में किया जा सकता है, क्योंकि तब पशुओं की भूख ज़रा घट जाती है।
पशुओं को ज़्यादा स्टार्चयुक्त या घुलनशील शक्करयुक्त पदार्थ जैसे दाना वग़ैरह खिलाने से रुमेन में अम्लता बढ़ जाती है। इससे किण्वन औऱ पाचन की रफ़्तार प्रभावित होती है और पशुओं में लंगड़ेपन या एसिडोसिस जैसे विकार के पनपने का ख़तरा पैदा हो सकता है। कई पशु भूसा कम खाते हैं तो पशुपालक किसान उन्हें घुलनशील प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट्युक्त पदार्थ देने लगते हैं। इससे उनका पाचन असामान्य हो सकता है। दुधारू पशुओं को भूसा खिलाना ही बेहतर है क्योंकि इससे उनके दूध में वसा का अंश बेहतर होता है। दरअसल, पशु आहार में कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज के अलावा रेशों का बेहद महत्व है, जो सिर्फ़ भूसे से ही प्राप्त होता है।
‘मोलासिस’ से पशु आहार बनें पोषक
‘मोलासिस’ अथवा शीरा, शुगर मिल से निकलने वाला एक उत्पाद है, जो बेहद सस्ते दाम पर मिलता है। लेकिन इसकी तुलना गुड़ से नहीं हो सकती। गुड़ महँगा भी पड़ता है। आहार की गुणवत्ता को शीरे के इस्तेमाल से बहुत कम खर्च में बेहतर बनाया जा सकता है क्योंकि शीरे में 74 प्रतिशत शुष्क पदार्थ, 6.5 प्रतिशत प्रोटीन, 6.5 प्रतिशत शक्कर तथा 12.5 मेगा जूल ऊर्जा प्रति किलोग्राम शुष्क भार के आधार पर मिलती है। इसमें सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, सल्फर की ज़्यादा मात्रा होती है तो फॉस्फोरस कम होता है। शीरे में करीब एक प्रतिशत तक कैल्शियम और ताँबा, जस्ता, मैंगनीज तथा लोह तत्व जैसे सूक्ष्म खनिज भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं।
पशुओं को आहार देते समय ध्यान देने योग्य बातें
पशुओं को सन्तुलित आहार देते वक़्त आहारीय रेशे की पर्याप्त मात्रा का ध्यान रखना चाहिए। गाय को अपने आहार में करीब 18 प्रतिशत एसिड डिटर्जेंट तथा 25 प्रतिशत न्यूट्रल डिटर्जेंट फाइबर की आवश्यकता होती है। यदि गाय की ख़ुराक़ कम हो तो उसके आहार में बाईपास वसा के ज़रिये ऊर्जा का घनत्व बढ़ा देना चाहिए, ताकि कम मात्रा के बावजूद उसकी ऊर्जा आवश्यकता पूरी हो सके। अन्यथा, उसका दूध कम हो सकता है। दुधारू अवस्था में भूसे के साथ हरा चारा मिलाकर देने से फ़ायदा होता है। पशु आहार में 7 प्रतिशत से ज़्यादा वसा नहीं होनी चाहिए अन्यथा यह सेल्युलोजयुक्त आहार जैसे भूसे की पाचन क्षमता को घटा सकता है।
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