पशुओं को पौष्टिक आहार देना बेहद ज़रूरी है, लेकिन उन्हें मनुष्यों वाला भोजन देना कतई सही नहीं है। कुछ लोग पशुओं को भी ऐसी सभी चीज़ें खिलाना चाहते हैं, जो वो ख़ुद खाते हैं। पशुपालकों को इस बात का ख़ास ख़्याल रखना चाहिए कि पशु आहार उनकी स्वाद ग्रन्थियों और पाचन व्यवहार के अनुकूल हो। क्योंकि मनुष्य के शरीर में जहाँ एक चैम्बर वाला साधारण पाचन तंत्र होता है, वहीं गाय और भैंस जैसे जुगाली करने वाले यानी रोमंथी पशुओं का पाचन तंत्र चार चैम्बरों (कक्ष) वाला होता है।
रोमंथी पशुओं की पाचन प्रक्रिया
मनुष्य का भोजन लीवर (यकृत) से लेकर छोटी आँत तक के अंगों में पचता है। जबकि रोमंथी पशु जो भी खाते हैं वो उनके पेट के पहले और सबसे बड़े चैम्बर ‘रुमेन’ में इकट्ठा होता रहता है। रुमेन में असंख्य सूक्ष्मजीवी, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ और फफूँद वग़ैरह पाये जाते हैं, जो पशु आहार का लगातार किण्वन (fermentation) करते रहते हैं। पशुओं का प्रमुख आहार भूसा और हरा चारा है। भूसे में स्टार्च होता है। पाचन के दौरान इससे वसीय अम्ल बनते हैं। हरे चारे में मौजूद प्रोटीन से अमोनिया बनती है। इससे सूक्ष्मजीवियों की ओर से ‘माइक्रोबियल’ प्रोटीन बनाया जाता है।
पाचन के दौरान यूरिया निर्माण
पशुओं के पाचन तंत्र में बनने वाली कुछ अमोनिया लीवर के ज़रिये यूरिया में परिवर्तित होकर या तो गोबर के रूप में बाहर आती है या फिर सूक्ष्मजीवी इसकी रिसायकिलिंग करके उपयोगी प्रोटीन का निर्माण करते हैं। आहार के रूप में पशुओं के पेट में पहुँचने वाले प्रोटीन रहित नाइट्रोजन का भी यही अंज़ाम होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो रोमंथी पशु कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन और वसा को उनके वास्तविक रूप में ग्रहण नहीं करते बल्कि इन सभी को वसीय अम्लों में बदल देते हैं। इसी से उनकी ऊर्जा की ज़रूरतें पूरी होती हैं।
पशुओं को महँगा प्रोटीन और वसायुक्त आहार खिलाने से कोई फ़ायदा नहीं होता। उल्टा ऐसा करने से डेयरी व्यवसाय की लागत अव्यावहारिक बनती है। दरअसल, पशुओं को तो सिर्फ़ सस्ते स्रोतों से मिलने वाले कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन और वसा खिलाना चाहिए। क्योंकि रोमंथी प्राणी बुनियादी तौर पर अपनी ज़रूरतों को वनस्पतीय चारे से जुटाने में पूरी तरह सक्षम होते हैं। लिहाज़ा, कल्पना करके देखिए कि यदि गाय-भैंस को दूध पिलाकर ही दूध का उत्पादन पाना हो तो फिर ऐसा पशुपालन किया काम का?
महँगा पशु आहार खिलाने से कोई फ़ायदा नहीं
किसानों को ये समझना बेहद ज़रूरी है कि वो चाहें गाय-भैंस को शहद खिलाएँ, दूध पिलाएँ, प्रोटीन या शीरा दें, इन सबका रुमेन में ही किण्वन ही होगा और उससे वसीय अम्ल ही बनेंगे। इसी तरह प्रोटीन चाहे फलीदार फसलों के चारे का हो या तिलहनों की खली का हो या बादाम का हो, सभी के अपघटन (पाचन) से अमोनिया ही मिलेगी, जो रुमेन में माइक्रोबियल प्रोटीन के निर्माण करेगी। इसी तरह चाहे उन्हें तेल या घी खिलाएँ या कोई अन्य वसायुक्त आहार, उससे भी वसीय अम्लों का ही निर्माण होगा। लिहाज़ा, पशुओं को काजू-बादाम जैसा महँगा ड्राई फ्रूट या अंगूर-शहद जैसी चीज़ों को खिलाने से कोई अतिरिक्त फ़ायदा नहीं होता।
ICAR-भारतीय डेयरी अनुसन्धान संस्थान, करनाल के विशेषज्ञ के अनुसार, वैज्ञानिक तथ्य तो ये हैं कि रोमंथी पशुओं का पाचन तंत्र इस प्रकार से नियोजित होता है कि ये कम गुणवत्ता वाले प्रोटीन खाकर भी बेहतरीन किस्म के प्रोटीन का निर्माण करने में सक्षम होते हैं। यही वजह है कि कई बार पशुओं को यूरिया से उपचारित भूसा भी खिलाया जाता है ताकि उनके रुमेन में मौजूद सूक्ष्मजीवी यूरिया के अंश से नाइट्रोजन बनाने वाले प्रोटीन का निर्माण कर सकें। लेकिन इसका कतई ये मतलब नहीं कि पशुओं को सिर्फ़ यूरिया उपचारित भूसा ही खिलाया जाए। वैसे बाज़ार में प्रोटीन के अनेक सस्ते स्रोत भी उपलब्ध होते हैं, जिन्हें पशु आहार के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए।
ये भी पढ़ें: सेवण घास (Sewan Grass): दुधारू पशुओं और पशुपालकों के लिए लाजबाब
पशु आहार से जुड़ी भ्रान्तियाँ
कुछेक पशुपालकों को ये ग़लतफ़हमी है कि साँड को देसी घी, दूध-बादाम और मेवा खिलाने से वह ताक़तवर बनेगा और उसकी प्रजनन क्षमता बेहतर होगी। दरअसल, रोमंथी पशु अपने आहार को जल्दी-जल्दी निगल लेते हैं और बात में जुगाली करके उसे चबाते रहते हैं। इनकी स्वाद ग्रन्थियाँ मनुष्यों की तरह अत्यधिक विकसित नहीं होतीं। इसीलिए पशुओं को ऐसा आहार खिलाने से बचना चाहिए जो हम खाते हैं। कभी-कभार रसोई में बची हुई रोटी या हरी सब्जी के छिलके वग़ैरह तो खिलाये जा सकते हैं, लेकिन पशुओं को दूध, शहद, बादाम, किशमिश, देसी घी आदि महँगी खाद्य सामग्री खिलाना समझदारी नहीं है। इनसे पशुओं को कोई नुकसान भले ना हो, लेकिन फ़ायदा बिल्कुल नहीं होता।
ख़ुराक़ बढ़ाने में शीरा का उपयोग
बाज़ार में उपलब्ध अनेक पशु आहार में बेहतर स्वाद के लिए शीरा भी मिलाया जाता है। इसीलिए पशु इसे ज़्यादा पसन्द करते हैं। पशुपालक भी ज़्यादा दूध देने वाली गायों को रोज़ाना करीब 3 किलोग्राम तक शीरे को पानी की बराबर मात्रा में मिलाकर चारे पर छिड़ककर खिला सकते हैं। पशु इसे बड़े चाव से खाते हैं। इससे उनकी दूध उत्पादन क्षमता बढ़ती है, उनका आहार सुपाच्य बनता है और दूहते वक़्त वो आसानी से दूध छोड़ते हैं। कम गुणवत्ता वाले आहार के साथ शीरा देने से पशु स्वस्थ रहते हैं और गर्मियों के तनाव से उनका बचाव होता है। इसीलिए जिन पशुपालकों के पशु कम आहार खाते हैं, वो आहार में शीरा मिलाकर पशुओं की ख़ुराक़ आसानी से बढ़ा सकते हैं। लेकिन शीरे की मात्रा को असीमित नहीं होना चाहिए। ये हानिकारक भी साबित हो सकता है।
सस्ता और सन्तुलित हो पशु आहार
आहार का लागत मूल्य सीमित रखने के लिए पशुओं को सस्ता चारा खिलाकर उनकी कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, वसा और खनिज तत्वों की भरपायी करनी चाहिए। पशुओं को सिर्फ़ खली खिलाना ही पर्याप्त है। उन्हें तेल पिलाना न सिर्फ़ महँगा पड़ता है बल्कि इससे रुमेन में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीवियों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। वैसे आजकल बाज़ार में ‘बाईपास वसा’ भी आसानी से उपलब्ध है। इसका इस्तेमाल गर्भावस्था के शुरुआती महीनों में किया जा सकता है, क्योंकि तब पशुओं की भूख ज़रा घट जाती है।
पशुओं को ज़्यादा स्टार्चयुक्त या घुलनशील शक्करयुक्त पदार्थ जैसे दाना वग़ैरह खिलाने से रुमेन में अम्लता बढ़ जाती है। इससे किण्वन औऱ पाचन की रफ़्तार प्रभावित होती है और पशुओं में लंगड़ेपन या एसिडोसिस जैसे विकार के पनपने का ख़तरा पैदा हो सकता है। कई पशु भूसा कम खाते हैं तो पशुपालक किसान उन्हें घुलनशील प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट्युक्त पदार्थ देने लगते हैं। इससे उनका पाचन असामान्य हो सकता है। दुधारू पशुओं को भूसा खिलाना ही बेहतर है क्योंकि इससे उनके दूध में वसा का अंश बेहतर होता है। दरअसल, पशु आहार में कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज के अलावा रेशों का बेहद महत्व है, जो सिर्फ़ भूसे से ही प्राप्त होता है।
‘मोलासिस’ से पशु आहार बनें पोषक
‘मोलासिस’ अथवा शीरा, शुगर मिल से निकलने वाला एक उत्पाद है, जो बेहद सस्ते दाम पर मिलता है। लेकिन इसकी तुलना गुड़ से नहीं हो सकती। गुड़ महँगा भी पड़ता है। आहार की गुणवत्ता को शीरे के इस्तेमाल से बहुत कम खर्च में बेहतर बनाया जा सकता है क्योंकि शीरे में 74 प्रतिशत शुष्क पदार्थ, 6.5 प्रतिशत प्रोटीन, 6.5 प्रतिशत शक्कर तथा 12.5 मेगा जूल ऊर्जा प्रति किलोग्राम शुष्क भार के आधार पर मिलती है। इसमें सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, सल्फर की ज़्यादा मात्रा होती है तो फॉस्फोरस कम होता है। शीरे में करीब एक प्रतिशत तक कैल्शियम और ताँबा, जस्ता, मैंगनीज तथा लोह तत्व जैसे सूक्ष्म खनिज भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं।
पशुओं को आहार देते समय ध्यान देने योग्य बातें
पशुओं को सन्तुलित आहार देते वक़्त आहारीय रेशे की पर्याप्त मात्रा का ध्यान रखना चाहिए। गाय को अपने आहार में करीब 18 प्रतिशत एसिड डिटर्जेंट तथा 25 प्रतिशत न्यूट्रल डिटर्जेंट फाइबर की आवश्यकता होती है। यदि गाय की ख़ुराक़ कम हो तो उसके आहार में बाईपास वसा के ज़रिये ऊर्जा का घनत्व बढ़ा देना चाहिए, ताकि कम मात्रा के बावजूद उसकी ऊर्जा आवश्यकता पूरी हो सके। अन्यथा, उसका दूध कम हो सकता है। दुधारू अवस्था में भूसे के साथ हरा चारा मिलाकर देने से फ़ायदा होता है। पशु आहार में 7 प्रतिशत से ज़्यादा वसा नहीं होनी चाहिए अन्यथा यह सेल्युलोजयुक्त आहार जैसे भूसे की पाचन क्षमता को घटा सकता है।
ये भी पढ़ें: हर्बल फीड एडिटिव्स (Herbal Feed Additives) से बढ़ाएँ पशु आहार की गुणवत्ता, पाएँ ज़्यादा कमाई
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
ये भी पढ़ें:
- Milky Mushroom Farming Success Story: दूधिया मशरूम की खेती में सफलता कैसे मिली इस किसान को, पढ़िए कहानीBCT कृषि विज्ञान केंद्र, हरिपुरम के STRY Program द्वारा कालापूरेड्डी गणेश को दूधिया मशरूम की खेती को अपनी आमदनी का मुख्य तरीका बनाने का हौसला मिला।
- Maize Cultivation Methods: जानिए मक्का की खेती के तरीकेवैज्ञानिकों ने मक्का की खेती के कई नए तरीके खोजे हैं जिनसे कम मेहनत में ज़्यादा फ़सल मिल सकती है और इन नए तरीकों से किसान कम ख़र्च में ज़्यादा मक्का उगा सकते हैं।
- Integrated Aquaculture Poultry Goat Farming System: एकीकृत जल कृषि पोल्ट्री बकरी पालन प्रणाली से कमाएं मुनाफ़ाएकीकृत जल कृषि पोल्ट्री बकरी पालन एक ऐसा तरीक़ा है जिसमें मछली पालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन और खेती करना सभी कार्य एक साथ किए जाते हैं।
- 7 कृषि योजनाओं को मंज़ूरी, करीब 14 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च करेगी सरकारप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला किया गया है कि सरकार किसानों पर 14 हजार करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है।
- Goat Farming in Bihar: बिहार में बकरी पालन बन रहा पशुपालकों का मुख्य व्यवसायबिहार में बकरी पालन किसानों के लिए एक लाभदायक कारोबार बन गया है। ये न केवल उनकी आय बढ़ा रहा है, बल्कि उन्हें आर्थिक स्थिरता भी दे रहा है।
- Poultry Management : गोवा के किसान ने कैसे की पोल्ट्री प्रबंधन से कमाई, पढ़ें उनकी सफलता की कहानीगोवा के अरम्बोल गांव में रहने वाले सबाहत उल्ला खान पोल्ट्री प्रबंधन से कमाई (Earning from Poultry Management) करके अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रहे हैं।
- Apple Farming In Plain Areas: मैदानी इलाकों में सेब की खेती होने लगी, जानिए किस्मों के बारे मेंमैदानी इलाकों में सेब की खेती (Apple Cultivation in plain Areas) के लिए कई किस्में उगाई जा सकती हैं, जैसे एचआर एमएन-99, इन शेमर, माइकल, बेबर्ली हिल्स आदि।
- Rashtriya Vigyan Puraskar-2024: कृषि क्षेत्र में अहम योगदान देने वाले वैज्ञानिकों को राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कारराष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार 2024 के लिए कृषि क्षेत्र में असाधारण योगदान देने वाले वैज्ञानिकों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सम्मानित किया।
- Solar Powered Irrigation System: जानिए सौर ऊर्जा आधारित सिंचाई के बारे मेंसौर ऊर्जा आधारित सिंचाई (Solar Power Irrigation System) प्रणाली सोलर पैनल से संचालित होती है, जो खेतों में बिजली की जगह पानी की आपूर्ति करती है।
- अंतर्राष्ट्रीय बाज़र में रंगीन आम की बढ़ती मांग, आम की उन्नत किस्म को तैयार करने में कितना समय लगता है?भारत आम उत्पादन (Mango Production) में अग्रणी है। रंगीन आमों (Colorful Mango Varieties) की बढ़ती मांग को देखते हुए वैज्ञानिकों ने नई हाइब्रिड किस्में विकसित की।
- Fish Farming Business Plan: मछली पालन व्यवसाय की योजना बना रहे हैं तो डॉ. अनूप सचान से जानिए सबकुछमछली पालन व्यवसाय की योजना (Fish Farming Business Plan) बनाकर शुरुआत करने से नुकसान को कम कर फ़ायदे को बढ़ाया जा सकता है।
- High Yielding Crop Varieties: अच्छी उपज देने वाली 61 फसलों की 109 उन्नत बीजों की किस्में जारी, जानिए इनके बारे मेंपीएम मोदी ने नई दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में 61 फसलों की 109 उन्नत बीजों की किस्में (High Yielding Crop Varieties) जारी की।
- भारत में मछली पालन (Fish Farming In India): आर्थिक लाभ और टिकाऊ प्रबंधन की रणनीतियांभारत में मछली पालन (Fish Farming In India) एक लाभकारी व्यवसाय है, जो किसानों और उद्यमियों को अच्छा मुनाफ़ा देता है। इसे लेकर कई सब्सिडी और योजनाएं भी चलाई जा रही हैं।
- Crops To Grow In Mixed Farming: जानिए मिश्रित खेती में कौन-कौनसी फ़सलें उगाएंजानते हैं कि मिश्रित खेती में कौन-कौनसी फ़सलें उगाएं (Crops To Grow In Mixed Farming) जो आपकी खेती में सबसे कारगर साबित हो सकती हैं।
- Water Management In Natural Farming Tips: प्राकृतिक खेती में जल प्रबंधन कैसे करें?प्राकृतिक खेती में जल प्रबंधन (Water Management In Natural Farming) से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है, फसल की गुणवत्ता सुधरती है और जल संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।
- Fig Farming: बिहार में अंजीर की खेती पर अनुदान, बागवानी क्षेत्र का होगा विस्तारबिहार के कटिहार ज़िले में पहली बार अंजीर की खेती (Fig Farming) शुरू हो गई है। इसके लिए अनुदान भी दिया जा रहा है। 4 से 5 साल बाद अंजीर के पेड़ से 15 किलो तक अंजीर की पैदावार ले सकते हैं।
- Equipments For Hydroponic Farming: जानिए हाइड्रोपोनिक खेती के उपकरणों के बारे मेंहाइड्रोपोनिक खेती के उपकरणों (Hydroponic Farming Equipments) में ग्रो लाइट्स, पंप, नली, पीएच मीटर, पोषक तत्व समाधान, ग्रो बेड्स, और कंटेनर शामिल होते हैं।
- Poultry Health Management: पोल्ट्री की देखभाल और प्रबंधन कैसे करें? जानिए कुछ प्रभावी टिप्सपोल्ट्री स्वास्थ्य प्रबंधन (Poultry Health Management) रोगों से बचाव, उत्पादकता बढ़ाने, गुणवत्ता सुधारने और आर्थिक नुकसान कम करने के लिए ज़रूरी है।
- Budget 2024: Agriculture Sector में सरकार की मुख्य घोषणाएं, कृषि क्षेत्र के बजट में बढ़ोतरीइस साल कृषि क्षेत्र के लिए बजट (Budget 2024) को बढ़ाकर 1.52 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। जानिए आम बजट 2024 में कृषि क्षेत्र के लिए मुख्य ऐलान।
- National Mango Day 2024: मल्लिका, आम्रपाली और प्रतिभा समेत पूसा की उन्नत आम की किस्मेंहमारे देश में लगभग 1500 से अधिक आम की किस्में (Mango Varieties) पाई जाती हैं, जो उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक फैली हुई हैं।