सहजन (Drumstick) को सेंजन, मुनगा, मोरिंगा भी कहते हैं। इसकी जितनी माँग सब्ज़ी के रूप में है, उतनी ही औषधीय इस्तेमाल के लिए भी है। इसीलिए सहजन की खेती को नकदी और व्यावसायिक लाभ देने वाली फसल माना जाता है। सहजन की खेती में अनाज-सब्ज़ी और बाग़वानी वाली दोनों खूबियाँ हैं, क्योंकि ये साल में कम से कम दो बार उपज देती है। इसका पेड़ पाँच-सात साल तक पैदावार देता है। सहजन की खेती में लागत के मुकाबले काफ़ी अच्छा मुनाफ़ा मिलता है, इसे सिंचाई और रखरखाव की ज़रूरत भी कम ही होती है। इसीलिए देश भर में किसानों की दिलचस्पी सहजन की खेती में तेज़ी से बढ़ रही है।
दक्षिण भारतीय भोजन में सहजन का खूब इस्तेमाल होता है। इसके फूल और फल से भी सब्ज़ी बनायी जाती है तो पत्तियाँ सलाद की तरह खायी जाती हैं। इसीलिए दक्षिणी राज्यों में सहजन की खेती बहुत प्रचलित है। हालाँकि, सहजन की खेती हरेक तरह की मिट्टी और गर्म जलवायु में हो सकती है। इसे ज़्यादा पानी और रखरखाव की ज़रूरत नहीं पड़ती। इसीलिए इससे कम वर्षा वाले इलाकों में भी अच्छी पैदावार ले सकते हैं। विश्व का 80 फ़ीसदी सहजन भारत में पैदा होता है। भारत ही इसका सबसे बड़ा निर्यातक भी है।
सहजन का वानस्पतिक नाम ‘मोरिंगा ओलिफेरा’ है। इसकी पत्ती, फूल, फल, बीज, डाली, छाल, जड़ें जैसे हरेक हिस्से को अनेक रोगों के इलाज़ में गुणकारी माना जाता है। सहजन में 92 तरह के मल्टी विटामिन्स, 46 तरह के एंटी ऑक्सीडेंट, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। इसकी पत्तियाँ दुधारू पशुओं का दूध बढ़ाने और उन्हें कुपोषण तथा ख़ून की कमी से बचाती हैं। सहजन के बीजों के तेल से जैविक ईंधन (बायो फ्यूल) भी बनता है।
कम लागत शानदार मुनाफ़ा
बाज़ार में सहजन के फल, फूल और पत्तियों की माँग हमेशा रहती है। एक हेक्टेयर में सहजन के लगभग 400 से 500 पेड़ लगाए जा सकते हैं। इसकी प्रति हेक्टेयर लागत 70-75 हज़ार रुपये बैठती है। सहजान के एक पेड़ से एक सीज़न में औसतन 200 से 300 फलियाँ प्राप्त होती हैं। इनका वजन 40 से 50 किलो तक होता है। इससे प्रति हेक्टेयर 1600 से 2000 किलो तक सहजन पैदा होता है, जो बाज़ार में एक से दो लाख रुपये तक बिकता है। लेकिन चूँकि सहजन की उपज साल में दो बार मिलती है और इसकी किस्में कम से कम पाँच साल तक उपज देती हैं, लिहाज़ा सहजन की खेती कम लागत में शानदार मुनाफ़ा यानी ‘एक लागत में दस उपज’ देने वाली फसल है।
मिट्टी और जलवायु
सहजन की खेती किसी भी तरह की अम्लीय मिट्टी में की जा सकती है। इसकी ज़्यादातर किस्में शुष्क जलवायु वाली हैं। लेकिन PKM-2 नामक किस्म को पानी की अधिकता वाले इलाकों के लिए विकसित किया गया है। फिर भी सहजन की खेती जलभराव वाली ज़मीन में नहीं करनी चाहिए। सहजन को शुष्क और नम जलवायु पसन्द है। इसे अधिक बारिश नहीं चाहिए। सामान्य से गर्म मौसम में इसके पेड़ों पर ज़्यादा फूल खिलते हैं।
कब करें सहजन की रोपाई?
सहजन के बीजों की सीधे खेतों में रोपाई नहीं की जाती। पहले बीजों से नर्सरी में पौधे तैयार करते हैं। खेतों में पौधों की रोपाई जुलाई से सितम्बर के दौरान करनी चाहिए। क्योंकि बारिश के मौसम में पौधे तेज़ी से बढ़ते हैं और इन्हें सिंचाई की ज़रूरत भी नहीं पड़ती। नर्सरी में एक पॉलीथिन बैग में सहजन के दो-तीन बीज रोपना चाहिए। ये बीज 10-12 दिनों में अंकुरित हो जाते हैं। इसके बाद जब पौधों की ऊँचाई डेढ़-दो फीट की हो जाए तब इन्हें खेत में लगाना चाहिए। नर्सरी में पॉलीथिन में पनपे दो से तीन पौधों में से सबसे अच्छी तरह विकसित पौधे को ही खेत की रोपाई के लिए रखें और बाक़ी पौधों को नष्ट कर दें।
खेत की तैयारी, बुआई और तोड़ाई
सहजन की रोपाई से पहले खेत में गहरा हल चलाकर ज़मीन को समतल और भुरभुरा करें। फिर खेत में तीन मीटर यानी दस फ़ीट की दूरी वाली क्यारियों की तरह एक फ़ीट का गड्ढा खोदकर इसकी मिट्टी में गोबर की खाद मिलकर रोपाई करनी चाहिए। रोपाई के दिनों का तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस हो तो बहुत अच्छा है। खरपतवार की रोकथाम के लिए खेत की निराई-गुड़ाई का भी ध्यान रखें। इससे सहजन का पौधे और पैदावार बढ़ती है।
सहजन के पौधे जब तीन से चार फिट के हो जाएँ तब उसके शीर्ष (चोटी) को तोड़ देना चाहिए। इससे पौधों की ऊँचाई बढ़ने की रफ़्तार कम हो जाती है और उसमें ज़्यादा डालियाँ बनने लगती हैं। सहजन के फलों की तोड़ाई के बाद भी पेड़ की कटिंग करके नयी डालियों में बढ़ाना चाहिए। इससे सहजन की पैदावार बढ़ती है। पेड़ों पर जब सहजन के फूल उगें तब सिंचाई कम ही रखनी चाहिए।
बुआई के चौथे महीने से सहजन की उपज मिलने लगती है। इसकी कच्ची फलियों को तब तोड़ें जब उनका रंग हरा और आकर्षक दिखने लगे। फलियों को रेशे बनना शुरू होने के बाद नहीं तोड़ना चाहिए। इन्हें पकने के लिए छोड़ देना चाहिए। सहजन की कई किस्में साल में दो बार पैदावार देती हैं। इसकी पहली तोड़ाई फरवरी-मार्च में तो दूसरी, सितम्बर-अक्टूबर में करनी चाहिए।
सहजन की उन्नत किस्में कौन सी हैं?
रोहित-1: इससे रोपाई के 6 महीने बाद पैदावार मिलती है। एक पेड़ से एक बार में 10 किलो सहजन पैदा होता है। साल में ऐसी दो उपज मिलती है। ये किस्म 7 साल तक पैदावार दे सकती है। इसका गूदा (pulp) स्वादिष्ट, मुलायम और उच्च गुणवत्ता वाला होता है। इसकी फलियाँ एक से सवा फीट लम्बी होती है।
कोयम्बटूर-2: इस किस्म से रोपाई के करीब साल भर बाद उपज मिलती है, लेकिन फिर साल में दो बार फसल मिलती है। इसका पेड़ 5 साल तक पैदावार दे सकता है। इसमें करीब एक फीट वाली 200 से 375 फलियाँ लगती हैं। इसका रंग गहरा हरा और गुदा स्वादिष्ट होता है।
PKM-1: इसका पेड़ 5 फीट ऊँचा होता है और रोपाई के 8-9 महीने बाद पैदावार देने लगता है। इससे साल में दो बार 200 से 350 फलियाँ प्राप्त होती हैं और ये 5 साल तक पैदावार दे सकता है।
PKM-2: सहजन की ये किस्म अधिक पानी वाली ज़मीन के लिए उपयुक्त है। इसकी फली भी हरे रंग की और बहुत स्वादिष्ट होती है। इसकी लम्बाई दो फीट तक हो सकती है। इसके एक पेड़ में एक बार में 400 फलियाँ लग लगती हैं और ये भी साल में दो बार उपज देती है।
ज्योति-1: इस किस्म को गुजरात के मोरबी ज़िले के चूपनी गाँव के किसान रवि सारदीय ने विकसित किया है। इसके एक पेड़ पर करीब 700 फलियाँ लगती हैं। बाक़ी इससे भी साल में दो बार उपज मिलती है।
सहजन में लगने वाले रोग
सहजन मोटेतौर पर रोग प्रतिरोधी फसल है। यानी इस पर बहुत कम रोगों का हमला हो पाता है। लेकिन भुआ पिल्लू नामक कीड़ा इसकी पत्तियाँ खाकर उन्हें नष्ट कर देता है। इसकी रोकथाम के लिए पौधों पर सर्फ के घोल की छिड़काव फ़ायदेमन्द रहता है। इसी तरह फल मक्खी रोग भी सहजन की पत्तियों और फलों का रस चूसकर पेड़ को नुकसान पहुँचाता है। इससे रोकथाम के लिए उचित मात्रा में डाइक्लोरोवास के छिड़काव की सलाह दी जाती है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
ये भी पढ़ें:
- Rose Gardening Tips: घर की बगिया में ऐसे उगाएं गुलाब, हमेशा महकती रहेगी ताजा खुशबूGulab ki Kheti – आइए जानते हैं गुलाब का पौधा लगाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि घर की बगिया में पूरे साल गुलाब के फूल खिलते रहे और उसकी खुशबू से आपका घर महकता रहे।
- Potato Varieties: आलू की 10 बेहतरीन किस्में, जिन्हें उगाने से बढ़ सकती है कमाईये आलू की खुदाई का मौसम है। वैसे हमारे देश के कई इलाकों में तो पूरे साल आलू की पैदावार होती है। यदि आप भी आलू की खेती कर रहे हैं और इससे अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं, तो आलू की कुछ खास किस्मों की खेती करें जिसमें पैदावर अधिक होती है।
- Fish Farming RAS Technique: मछली पालन की RAS तकनीक कैसे काम करती है? 30 गुना बढ़ सकता है उत्पादन!Fish Farming RAS Technique: बड़े स्तर पर अगर कोई मछली पालन करने की सोच रहा है तो मछली पालन की RAS तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं। बशर्ते इसकी पूरी जानकारी हो। जानिए RAS तकनीक में कितना खर्चा लगता है और क्या हैं इससे जुड़े अहम फ़ैक्टर्स।
- Lady Finger Varieties: भिंडी की 10 उन्नत किस्में, जिसे लगाकर किसान कर सकते हैं लाखों की कमाईभिंडी की खेती हर मिट्टी और मौसम में होती है लेकिन दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6 से 6.8 हो, और गर्म जलवायु हो तो सबसे अच्छी पैदावार होती है।
- Greenhouse Farming Techniques: ग्रीनहाउस खेती क्या है? सब्सिडी से लेकर प्रशिक्षण तक जानें सब कुछइतिहास की किताबों के अनुसार, रोमन किंग टाइबेरियस ककड़ी जैसी दिखने वाली सब्जी रोज़ खाते थे, रोमन किसान सालभर इसे उगाते थे, जिससे वो सब्जी उनकी खाने की प्लेट में हमेशा रहे। ये सब्जी ग्रीनहाउस तकनीक के ज़रिये ही उगाई जाती थी।
- Modern Farming Methods: खेती की आधुनिक तकनीकें जिसे अपनाकर किसान कर सकते हैं सफ़ल खेतीआज के इस मॉर्डन युग में तकनीक का इस्तेमाल हर क्षेत्र में बढ़ा है, ऐसे में भला कृषि कैसे इससे पीछे रह सकती है। आधुनिक तकनीकों से लेकर उपकरणों तक के इस्तेमाल ने किसानों के लिए खेती को न सिर्फ आसान बना दिया है, बल्कि इसे अधिक मुनाफे का सौदा बना दिया है।
- Rice Bran Oil vs Sunflower Oil: जानिए राइस ब्रान ऑयल-सनफ्लॉवर ऑयल में अंतर और ख़ूबियों के साथ इसका बाज़ारराइस ब्रान ऑयल को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार नेफेड के फोर्टिफाइड ब्रैन राइस ऑयल को ई-लॉन्च किया है।राइस ब्रैन ऑयल की मार्केटिंग सभी नेफेड स्टोर्स और ऑनलाइन प्लेटफार्म पर हो रही है।वहीं साल 2024-2032 के दौरान इंडियन सनफ्लावर ऑयल मार्केट 7 फीसदी की CAGR प्रदर्शित करेगा।
- Lemongrass: जानिए लेमनग्रास की खेती में जुड़ी अहम बातें प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज लवानिया से, उत्पादन से लेकर प्रोसेसिंग तकबुंदेलखंड जैसे इलाके में जहां पानी की समस्या है और बड़ी मात्रा में ज़मीन बंजर पड़ी रहती है, लेमनग्रास की खेती यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। इसकी खेती कम पानी में भी आसानी से की जा सकती है।
- Eucalyptus Farming: सफेदा की क्लोनल किस्मों से किसान कर सकते हैं बढ़िया कमाई, जानिए खेती की तकनीकसफेदा की खेती लकड़ी के लिए की जाती है। इसकी लकड़ी का उपयोग बड़े सामान की लदाई करने वाली पेटियां बनाने के साथ ही ईंधन, फर्नीचर, हार्डबोर्ड और पार्टिकल बोर्ड बनाने में किया जाता है। इसकी मांग हमेशा ही रहती है।
- कैसे औषधीय पौधों की खेती पर किसानों की मदद करता है ये कृषि विश्वविद्यालय, प्रोफ़ेसर विनोद कुमार से बातचीतबुंदेलखंड के किसानों को पारंपरिक खेती के अलावा औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रेरित करने के मकसद से झांसी के रानी लक्ष्मीबाई कृषि विश्वविद्यालय में औषधीय पौधों का उद्यान बनाया गया है।
- Aeroponic Technique से बंद कमरे में केसर की खेती, हिमाचल के गौरव ने इंटरनेट से सीख कर शुरू किया केसर उत्पादनगौरव Aeroponic Technique से केसर की खेती करते हैं। इस तकनीक में बंद कमरे में केसर को उगाते हैं। बंद कमरे में कश्मीर के वातावरण को बनाने की कोशिश करते हैं। ये तकनीक मिट्टी रहित होती है।
- Soil Health Management: मिट्टी की जांच से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप? मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना ज़रूरी?आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि नींव मज़बूत होगी, तभी तो मज़ूबत इमारत बनेगी। ठीक इसी तरह मिट्टी की सेहत अच्छी रहेगी, तभी तो अधिक उपज प्राप्त होगी। रसायनों के बढ़ते इस्तेमाल से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति लगातार घट रही है, ऐसे में इसकी सेहत बनाए रखने के लिए मृदा प्रबंधन बहुत ज़रूरी… Read more: Soil Health Management: मिट्टी की जांच से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप? मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना ज़रूरी?
- Crop Rotation Strategies: खेती में फसल चक्र की कितनी अहम भूमिका? डॉ. राजीव कुमार सिंह ने दिया IFS Model का उदाहरणखेती से अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसानों को इसकी कुछ बुनियादी नियमों के बारे में पता होना चाहिए। जैसे कि फसल चक्र। ये मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और उत्पादन बढ़ाने के लिए बहुत ज़रूरी है, मगर बहुत से किसान इस नियम को भूलकर लगातार एक ही फसल उगा रहे हैं जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है।
- क्या हैं Urban Farming Trends? कैसे शहरी खेती बन रही कमाई का ज़रिया?जब शहरों में लोग अपने शौक से थोड़ा आगे बढ़कर घर की छत, बालकनी, कम्यूनिटी गार्डन और घर के नीचे की जगह या घर के अंदर की खाली जगह में वर्टिकल गार्डन बनाकर खेती करने लगते हैं, तो इसे ही शहरी खेती कहा जाता है।
- Integrated Pest Management: क्यों एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM तकनीक) फसलों के लिए है ज़रूरी? जानिए विशेषज्ञ सेखेती की लागत को कम करने और इसे ज़्यादा लाभदायक बनाने के लिए प्रमाणित व उपचारित बीजों का इस्तेमाल, सही मात्रा में उर्वरकों के उपयोग और सिंचाई की उचित व्यवस्था के साथ ही एकीकृत कीट प्रबंधन यानि Integrated Pest Management भी ज़रूरी है।
- Agriculture Equipment : Bed Maker Machine किसानों के लिए है कितनी उपयोगी और मिलेगी कितनी Subsidy?मल्टी पर्पस Bed Maker Machine किसानों के समय की बचत करने के साथ-साथ उनकी आमदनी बढ़ाने में मदद करती है।
- Fish Farming Business: मछली पालन व्यवसाय से जुड़ी अहम जानकारी, जानिए क्या है विशेषज्ञों और अनुभवी मछली पालकों की राय?मछली पालन उद्योग का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। देश के मछुआरों और मछली पालन उद्योग एक बड़े सेक्टर के रूप में उभर कर आया है। भारतीय मत्स्य पालन की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1980 के दशक में जो मछली उत्पादन 36 फ़ीसदी था, वो बढ़कर आज के वक्त में 70 फ़ीसदी पर पहुंच गया है। जानिए मछली पालन से जुड़े अहम बिंदुओं के बारे में।
- Ragi Crop: रागी की फसल से क्या-क्या तैयार किया जा सकता है? रागी की खेती से जुड़ी अहम जानकारीरागी की फसल (Ragi Crop) मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में सबसे ज़्यादा खेती होती है। केरल, कर्नाटक राज्यों में इसे मुख्य भोजन के रूप में खाया जाता है।
- Sindoor Plant: सिंदूर की खेती कैसे होती है? सिंदूर के पौधे से क्या-क्या बनता है और कहां से लें ट्रेनिंग?आपने अभी तक कई चीज़ों की खेती के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या कभी सिंदूर की खेती के बारे में सुना है? कम ही लोग जानते हैं कि सिंदूर का पौधा भी होता है, जिससे ऑर्गेनिक लाल रंग का सिंदूर बनता है। साथ ही और कई उत्पाद बनाए जाते हैं। जानिए सिंदूर का पौधा कैसे उगाया जाता है और सिंदूर की खेती से जुड़ी अहम जानकारियां सीधा एक्सपर्ट से।
- Agriculture Drone क्या है? कृषि ड्रोन में सब्सिडी के लिए कौन सी योजनाएं चलाई जा रही हैं?Agriculture Drone की खरीद के लिए महिला समूह को ड्रोन की कीमत का 80 प्रतिशत या अधिकतम 8 लाख रुपये तक की मदद दी जा रही है। योजना के तहत SC-ST, छोटे व सीमांत, महिलाओं और पूर्वोत्तर राज्यों के किसानों को ड्रोन का 50 प्रतिशत या अधिकतम 5 लाख रुपये अनुदान दिया जा रहा है।