Dairy Farming: दुधारू पशु करें अधिक दूध उत्पादन, डॉ. राजपाल दिवाकर से जानिए कैसे अपनाएं आहार प्रबंधन

अगर पशुओं को अच्छी देखरेख और सही आहार प्रबंधन न मिले तो इसे उनके दूध उत्पादन पर असर पड़ता है। कैसे मवेशियों के दूध उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, कैसे सही रखरखाव करें? इसपर किसान ऑफ़ इंडिया की नरेन्द्र देव कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविश्वविद्यालय कुमार गंज अयोध्या के पशुचिकित्सा एंव पशुपालन महाविद्यालय के सहायक अध्यापक और पशु विशेषज्ञ डॉ. राजपाल दिवाकर से ख़ास बातचीत।

Dairy Farming: दुधारू पशु करें अधिक दूध उत्पादन

दूधारू पशुओं से दूध उत्पादन प्राप्त करने में उनके संतुलित आहार की अहम भूमिका है। दुधारू पशुओं के पालन में कुल लागत का लगभग 60-70 प्रतिशत आहार के रूप में खर्च हो जाता है। पशुओं से उनकी उत्पादन क्षमता के अनुरूप उत्पादन लेने के लिए ज़रूरी है कि उनके आहार का प्रबंधन वैज्ञानिक दृष्टि से किया जाए। अगर बछियों का सही से प्रबंधन किया जाए तो आगे चलकर वो अधिक दूध उत्पादन देने वाली दूधारू पशु बन सकती हैं। इस पर किसान ऑफ़ इंडिया ने नरेन्द्र देव कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविश्वविद्यालय कुमार गंज अयोध्या के पशुचिकित्सा एंव पशुपालन महाविद्यालय के सहायक अध्यापक और पशु विशेषज्ञ डॉ. राजपाल दिवाकर से ख़ास बातचीत की।

Dairy Farming: दुधारू पशु करें अधिक दूध उत्पादन

डॉ. राजपाल दिवाकर कहते हैं कि किसी भी डेयरी विकास कार्यक्रम की सफलता का आधार बछियों का पालन-पोषण और उचित प्रबंधन है। जन्म के बाद शुरुआती दिनों में पर्याप्त पोषण स्तर, तेजी से विकास और दूधारू पशु बनने मदद करता है। सही शरीर के वजन को बनाए रखने के लिए बछड़ों की सावधानीपूर्वक निगरानी की जानी चाहिए ताकि वे युवावस्था में अपने परिपक्व शरीर को प्राप्त कर सकें।

बेहतर विकास के लिए नवजात बछियों का पोषण प्रबंधन ज़रूरी

डॉ. राजपाल दिवाकर ने बताया कि अगर किसान को पशुपालन वेवसाय से आय बढ़ानी है तो उसके लिए आवश्यक है कि बछड़े और बछियों का पोषण प्रबंध अच्छा हो। सही पोषण प्रबंध न होने से बछड़े और बछिया मर जाती है। कुछ की वृद्धि दर कम हो जाती है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक तीन या चार बच्चों में से एक बच्चा मर जाता है, परन्तु अगर पोषण प्रबंध सही हो तो इसको रोका जा सकता है।

बछियों का प्रति दिन के हिसाब से आधा किलों शरीर भार बढ़ना चाहिए

डॉ. राजपाल दिवाकर ने बताया कि बछड़े और बछियों की शरीर वृद्धि दर संकर नस्लों में 500-600 ग्राम व देसी नस्लों में 300-400 ग्राम प्रतिदिन होनी चाहिए। यह वृद्धि दर तभी प्राप्त की जा सकती है जब बछड़े और बछियों का पोषण प्रबंधन ठीक होगा।

उन्होंने बताया कि दुधारू पशु के जन्म के तुरंत बाद 2 घंटे के अंदर बछियों को गाय का पहला दूध यानी कि खीस पिलाना अत्यंत ज़रूरी है, क्योंकि खीस से बच्चे की बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त होती है। ऐसा न करने से बच्चों की मृत्यु दर बढ़ सकती है। दूध की मात्रा 2.5 किलोग्राम से शुरू कर के बच्चे के देह भार के 1/10 हिस्से के बराबर देनी चाहिए। इस मात्रा को गाय की दुग्ध उत्पादन क्षमता के अनुसार 1, 2, 3 या 4 थनों का दुध पिलाकर पूरा किया जाना चाहिए। इस प्रकार बच्चे दूध से ज़रूरी पोषण प्राप्त कर लेते हैं। परन्तु कृत्रिम विधि द्वारा जब बछड़े या बछिया को माँ से अलग रख कर पाला जाता है तो इस बात का महत्व और बढ़ जाता है कि बच्चों को दूध उसके देह भार के अनुरूप दिया जाए। उम्र के शुरू सप्ताहों में दूध बच्चे के लिये संपूर्ण आहार का कार्य करता है और उसे समुचित मात्रा में दूध उपलब्ध होना चाहिए।

Dairy Farming: दुधारू पशु करें अधिक दूध उत्पादन
तस्वीर साभार: tnau

बछियों को 22 दिन की अवस्था के बाद चारा-दाना देना शुरू करें 

बछियों ओर बछड़ो को 22 से 35 दिन तक प्रतिदिन के हिसाब से 100 ग्राम आसानी से पचने वाला दाना खिलाना चाहिए। शुरू में दूध बछियों के शरीर भार का 15वां हिस्सा देना चाहिए यानी अगर 15 किलो शरीर भार की बछिया है तो दिन भर में 1.5 किलो दूध पिलाना चाहिए। इसके बाद दो महीने तक बछिया के शरीर भार का बीसवें भाग के बराबर दूध पिलाना चाहिए। इसके बाद दो महीने तक आसानी से पचने वाला दाना 300 से 400 ग्राम प्रतिदिन देना चाहिए। पचने योग्य हरा और सुखा चारा इच्छानुसार देना चाहिए। इसके बाद 3-4 माह की अवस्था पर 3-4 किलो दूध, 500-600 दाना और इच्छानुसार सुखा और हरा चारा देना चाहिए। 4-5 महीने की अवस्था वाले बछड़े-बछियों को 2 से 3 किलो दूध पिलाना चाहिए। 800 ग्राम से लेकर एक किलो दाना, हरा चारा और सुखा चारा देना चाहिए।5-6 माह की अवस्था के बछड़े-बछियों को 1.5- 2 किलो दूध, 1.2-1.5 किलोग्राम दाना और इच्छानुसार हरा चारा और सुखा चारा देना चाहिए।

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बछियों का 6 महीने की उम्र तक 100 से 125 किलों शरीर भार जरूरी

डॉ. राजपाल ने बताया कि अच्छी तरह से खिलाई-पिलाई करने पर बच्चों में आरंभिक महीनों में 500-600 ग्राम प्रतिदिन की शरीर वृद्धि होती है। एक महीने की उम्र के बाद बच्चा कुछ सुपाच्य हरा चारा खाने लगता है। इस अवस्था में उसके रोमंथ का विकास होने लगता है एवं 5-6 महीनों में उसका रोमंथ पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है। रोमंथ के समुचित विकास को सुनिश्चित करने के लिए दो माह के बाद दाने के साथ-साथ हरा चारा देना शुरू कर देना चाहिए। इस प्रकार पाले गये बच्चों का छः माह की उम्र में शारीरिक भार 100 से 125 किलो तक हो जाता है। इस अवस्था में दिये जाने वाले दाने (काफ स्टार्टर) में प्रोटीन की मात्रा 20-25 प्रतिशत एवं कुल पाचक तत्वों की मात्रा 70-75 प्रतिशत अवश्य होनी चाहिए जो निम्न प्रकार से बनाया जा सकता है-

  1. दलिया मक्का, जौ या ज्वार- 40 प्रतिशत
  2. मूंगफली या अलसी की खली- 35 प्रतिशत
  3. गेहू का चोकर या चावल की भूसी-22 प्रतिशत
  4. संपूर्ण मिनरल मिक्चर- 02 प्रतिशत
  5. नमक- 01 प्रतिशत
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तस्वीर साभार: tnau

छः माह से व्यस्क होने तक बछियों का पोषण प्रबंधन कैसे करे

इस अवस्था में पशु के शरीर में मांसपेशियों व हड्डियों का विकास अधिक होता है। इस अवस्था में समुचित देह भार वृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए बछियों के उत्तम आहार की सही व्यवस्था होना बहुत ज़रूरी है ताकि बछियों की प्रथम गर्भधारण आयु कम तथा देह भार अधिक हो। बढ़ती अवस्था में प्रतिदिन 500-600 ग्राम शरीर भार वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए उन्हें प्रतिदिन भरपेट मौसमी हरा चारा 15-25 किलोग्राम, 1-3 किलो सूखा भूसा व 2-3 किलोग्राम संतुलित दाना देना चाहिए।

हरे चारे की मात्रा को पशु के खाने की क्षमता के अनुसार 1-1 किलोग्राम बढ़ाते रहना चाहिए।  इसी प्रकार भूसे की मात्रा को भी आवश्यकतानुसार बढ़ाते रहें और दाने की मात्रा को 2 किलोग्राम से शुरू कर के प्रति तिमाही 250 ग्राम की दर से बढ़ाकर 3 किलोग्राम तक कर देना चाहिए। इस प्रकार पाली गई बछियों का देह भार 18 माह की उम्र में बढ़कर 250-300 किलो हो जाता हैं। बछियों को दिए जाने वाले दाने में खनिज मिश्रण व नमक की उपयुक्त मात्रा अवश्य मिलानी चाहिए। इससे कम उम्र में अधिक देह भार प्राप्त करने में सुविधा होती है एवं बछियों के जननांगो का समुचित विकास भी होता है और उन्हें गर्भधारण करने में आसानी होती है।

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