अरंडी और इसके तेल (castor oil) का भारत दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है। इसकी वैश्विक माँग और घरेलू ख़पत भी लगातार बढ़ रही है। किसानों के लिए अरंडी की खेती एक बहुत फ़ायदा का सौदा है, क्योंकि ये व्यावसायिक अखाद्य तिलहनी फसल है।
इसकी बिक्री आसानी से हो जाती है और इसकी खेती में लागत के मुकाबले करीब डेढ़ गुना ज़्यादा कमाई होती है। मुनाफ़े का ये अनुपात किसी भी अन्य खाद्य तिलहनी फसल से बेहतर है। कम जोख़िम के साथ ज़्यादा कमाई पाने के लिए अरंडी की खेती को खरीफ और रबी की अनेक फसलों के साथ अन्त:फसल के रूप में करना भी फ़ायदेमन्द रहता है। एकल फसल प्रणाली में भी अरंडी की खेती लाभप्रद रहती है।
अरंडी की खेती के लिए शुष्क और बारानी इलाकों की गर्म और नमी वाली जलवायु बेहद अनुकूल है। भारतीय खेती में ऐसी जलवायु वाले इलाकों की भरपार है। इसीलिए देश में तिलहनी फसलों के कुल रक़बे में castor की खेती की हिस्सेदारी करीब 70 प्रतिशत की है। अरंडी के बीज से प्राप्त तेल (castor oil) एक महत्वपूर्ण औद्योगिक और व्यावसायिक उत्पाद है। सरफेस कोटिंग, टेलीकॉम, इंजीनियरिंग प्लास्टिक, फार्मा, रबर, केमिकल्स, नाइलॉन, साबुन, हाइड्रोलिक तरल पदार्थ, पेंट और पॉलीमर जैसे क्षेत्रों में इसका भारी माँग रहती है।
अरंडी की खली का जैविक खाद के रूप में उपयोग होता है। गुजरात, देश का सबसे बड़ा अरंडी उत्पादक राज्य है। देश में अरंडी की कुल पैदावार में गुजरात की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत से ज़्यादा है। राजस्थान और आन्ध्र प्रदेश में भी इसकी ख़ूब खेती होती है। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के विशेषज्ञों के अनुसार, हरियाणा के कम सिंचित और सिंचित तथा राजस्थान की सीमा से जुड़े सिरसा, भिवानी, हिसार, फतेहाबाद, महेन्द्रगढ़, रेवाड़ी और गुरुग्राम जैसे शुष्क और बारानी क्षेत्रों में अरंडी की खेती से बढ़िया कमाई पाने की प्रबल सम्भावनाएँ मौजूद हैं।
अरंडी के तेल के वैश्विक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 87 प्रतिशत से ज़्यादा है। देश के 870 हज़ार हेक्टेयर में इसकी खेती होती है। अरंडी की भारतीय किस्मों के बीजों में 48 प्रतिशत तक में तेल की मात्रा होती है। इसकी औसत पैदावार 17.86 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। बारानी इलाकों में अरंडी की पैदावार जहाँ 15-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है वहीं सिंचित खेतों में 30-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज मिल जाती है। शुष्क और बारानी क्षेत्रों में यदि किसान के पास एक या दो सिंचाई का साधन सुलभ है तो अरंडी की खेती बहुत लाभदायक सिद्ध हो सकती है।
अरंडी की अन्त:फसलीय खेती
अरंडी की लाइनों के बीच की दूरी को 5 से 8 फीट तक बढ़ाकर शुरुआती 4-5 महीनों तक अन्त:फसलीय खेती को बहुत कामयाब और लाभदायक पाया गया है। इसीलिए अंरडी के साथ मूँग, ग्वार, मूँगफली, तिल, कपास, अरहर, मोठ, टमाटर, मिर्च, अगेती मेथी, धनिया, मूली, गाजर आदि की अन्त:फसलीय खेती अनेक राज्यों में प्रचलित है। लेकिन कृषि विशेषत्रों ने 2018-19 में किये गये एक अध्ययन में पाया कि अकेले अरंडी की खेती से भी किसान सालाना स्तर पर पारम्परिक फसलों से ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। अन्त:फसलों के साथ अरंडी की खेती करने से मुनाफ़ा और बढ़ जाता है।
वार्षिक फसल चक्र में अरंडी के मुक़ाबले अन्तःफसलीय खेती की लागत और कमाई | |
फसल | लागत-आय अनुपात |
अरंडी | 1.48 |
कपास+सरसों | 1.24 |
ग्वार+सरसों | 1.23 |
कपास+गेहूँ | 1.22 |
ग्वार+गेहूँ | 1.21 |
कपास+जौ | 1.20 |
बाजरा+गेहूँ | 1.17 |
बाजरा+सरसों | 1.17 |
ग्वार+जौ | 1.17 |
बाजरा+जौ | 1.11 |
आँकड़े 2018-19 के एक सर्वे पर आधारित |
कैसे करें अरंडी की उन्नत खेती?
बिजाई का समय: अरंडी की बिजाई का सबसे बढ़िया मौसम जून के अन्त से लेकर मध्य जुलाई तक है। जुलाई के अन्त तक बिजाई ज़रूर पूरी कर लेनी चाहिए, क्योंकि इसके बाद होने वाली बिजाई में सर्दी के मौसम में पाले का प्रकोप अधिक होने से उत्पादन कम हो जाता है। वैसे पाले से बचाव के लिए समय पर बिजाई के अलावा खरपतवार की रोकथाम करना बहुत उपयोगी होता है। ऊँची-नीची टिब्बों वाली ज़मीन में टिब्बों पर फसल लें, पोटाश की पूरी मात्रा दें और दिसम्बर के दूसरे पखवाड़े से लेकर जनवरी के अन्त तक पानी की कमी नहीं होने दें।
अरंडी के बीज की उन्नत किस्में: बारानी और कम सिंचित क्षेत्रों के लिए DCH-177 किस्म को बहुत उम्दा पाया गया है। अरंडी की इस किस्म पर सफ़ेद मक्खी और पाले का कम असर होता है। सिंचित इलाकों के लिए के लिए GCH-7, DCH-177 और DCH-519 की सिफ़ारिश की जाती है।
बीज की मात्रा एवं बिजाई की विधि: बारानी और कम सिंचित क्षेत्रों के लिए 90 से लेकर 120 सेंटीमीटर x 60 सेंटीमीटर की दूरी पर बिजाई करें। प्रति एकड़ के लिए 3 से 4 किलोग्राम बीज का उपयोग करें। सिंचित खेतों में बिजाई के लिए 150 सेंटीमीमीटर x 90 सेंटीमीमीटर की दूरी रखें और प्रति एकड़ 1.6 किलोग्राम बीज का प्रयोग करें। बीजों को मिट्टी की सतह से 2 से 3 इंच की गहराई पर बोया जाना चाहिए।
बीजोपचार: बीजजनित रोगों से बचाव के लिए थीरम या कैप्टॉन 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करना लाभदायक है। बिजाई से पहले बीज को 12 से 24 घंटे पानी में भिगोना भी लाभदायक साबित होता है क्योंकि इससे उनका अंकुरण जल्दी और अच्छी तरह से होता है।
अरंडी की खेती में उर्वरक का इस्तेमाल
बारानी या वर्षा आधारित फसल: बिजाई से पहले प्रति एकड़ में 8 किलोग्राम नाइट्रोजन और 16 किलोग्राम फॉस्फोरस डालें। नाइट्रोजन की 8-8 किलोग्राम मात्रा का इस्तेमाल बिजाई के 35 से 40 और 65 से 70 दिन बाद वर्षा के अनुसार दें।
सिंचित फसल: बिजाई के समय 10 से 12 किलोग्राम पोटाश, 10 किलोग्राम ज़िंक सल्फेट और 100 किलोग्राम जिप्सम भी प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालें। बिजाई के बाद 8 किलोग्राम नाइट्रोजन और 16 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति एकड़ बिजाई के समय तथा नाइट्रोजन 8 किलोग्राम की दर से बिजाई के 35 से 40 और 70 से 80 दिनों बाद दें।
अरंडी की फसल को शुरुआत में ज़्यादा नाइट्रोजन नहीं दें क्योंकि इससे पौधों के अलावा खरपतवार की वृद्धि में अधिक होती है। लेकिन ज़्यादा पैदावार पाने के लिए जब अरंडी के पके हुए गुच्छों की कटाई करें तो इसके बाद सिंचाई के साथ 8 किलोग्राम नाइट्रोजन देना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
निराई-गुड़ाईः बिजाई के चौथे और सातवें सप्ताह में दो बार निराई-गुड़ाई करने से अरंडी की फसल में खरपतवार नियंत्रण हो जाता है। कपास की तरह अरंडी में भी ट्रैक्टर, बैलों या ऊँट से निराई-गुड़ाई की जा सकती है।
रासायनिकः बिजाई के बाद लेकिन फसल उगाने से पहले प्रति एकड़ में 800 मिलीलीटर पेंडीमेथलीन का छिड़काव करने से भी खरपतवार नियंत्रण हो जाता है। बिजाई के 35-40 दिनों बाद उगे खरपतवारों को हाथ से निकाल देना चाहिए।
अरंडी की फसल की सिंचाई
शुरुआती दौर में अरंडी को ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती लेकिन शुष्क दशा में 20-25 दिनों बाद अच्छी बढ़वार के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। सिंचाई से अरंडी की पैदावार के बेहतर होने के आसार बढ़ते हैं। अरंडी की खेती में पानी की उपलब्धता और मिट्टी की जलधारण क्षमता के अनुरूप 3 से 4 सिंचाइयों से लेकर 7 से 8 तक सिंचाइयाँ तक देनी पड़ सकती है। इसीलिए बिजाई से 50-60 और 80-95 दिनों बाद अगर खेत में नमी की कमी नज़र आये तो सिंचाई अवश्य करें।
अरंडी की फसल की कटाई
अरंडी की फसल का पहला गुच्छा बिजाई के 90 से 120 दिनों बाद पककर कटाई के लिए तैयार हो जाता है। गुच्छों की कटाई गर्मी में 15 से 20 दिनों के अन्तराल पर और सर्दी में 25 से 30 दिनों के अन्तराल पर करना चाहिए। अरंडी के गुच्छों में फल (कैप्सूल) का रंग पीला पड़ जाए और करीब एक चौथाई फल पककर सूख जाएँ तभी गुच्छे को काटकर सूखने के लिए डाल देना चाहिए। लगभग 25 से 30 दिनों के अन्तराल पर विभिन्न क्रम के गुच्छे पकते रहेंगे। अत: 4-6 कटाईयाँ करनी पड़ सकती हैं। सिंचित दशा में आख़िरी कटाई अप्रैल के अन्त या मई के पहले सप्ताह तक हो जाती है।
मड़ाई (thrashing): खलिहान में गुच्छों के सूखने के बाद झाड़-पीटकर फलों (कैप्सूल) को डंडियों से अलग कर लें और थ्रेशर से दाने या बीज निकाल लें। बीज को टूटने न दें। इसके बाद इसे मंडी में बेचने के लिए भेजें।
ये भी पढ़ें: सरसों की फसल पर बढ़ रहा कीटों का प्रकोप? फसल सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. आर.पी. सिंह से जानिए बचाव का आसान तरीका
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
ये भी पढ़ें:
- आशीष कुमार राय के जैविक दृष्टिकोण से रासायनिक खेती के जाल से मिली मुक्ति, खेतों में आई हरियालीआशीष कुमार राय धान, गेहूं, चना, मटर, अरहर, तिल, और अलसी जैसी विविध फसलें उगाते हैं। वो अपनी फसलों के पोषण के लिए वर्मी कम्पोस्ट, गोबर की खाद और धैचा (हरी खाद) का उपयोग करते हैं।
- बरेली के युवा किसान आयुष गंगवार बने जैविक खेती में नई सोच: सफ़लता की कहानी और जानकारीबरेली के आयुष गंगवार ने अपनी पारंपरिक खेती छोड़कर जैविक खेती की शुरुआत की। उन्होंने सरकारी योजनाओं और स्थानीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों का लाभ उठाया।
- Carrot Seeds: गाजर के साथ ही गाजर के बीज उत्पादन से होगा किसानों को डबल फ़ायदा?जसपाल हर साल गाजर की खेती करते हैं और आखिर में गाजर के बीज का उत्पादन भी कर लेते हैं जिससे लगभग 100 किलोग्राम बीज तैयार होता है।
- अक्टूबर माह में कब और कहां हो रहा है Kisan Mela और कहां मिलेगा रबी फसलों के उन्नत किस्मों का बीजदेश के अलग-अलग कृषि संस्थाओं ने अपने आस पास के कृषि मौसम के मिज़ाज को देखते हुए किसान मेले (Kisan Mela) की डेट जारी कर दी हैं। संचार के अलग अलग माध्यमों से किसानों तक किसान मेले का निमंत्रण पहुंचा रहा है, ये इसलिए भी किया जा रहा है ताकी ज्यादा से ज्यादा किसान अपने… Read more: अक्टूबर माह में कब और कहां हो रहा है Kisan Mela और कहां मिलेगा रबी फसलों के उन्नत किस्मों का बीज
- Ginger processing: अदरक प्रसंस्करण की स्वदेशी तकनीक अपनाकर किसान कर रहे लाखों की कमाईहिमालय की तलहटी में बसा है कलसी ब्लॉक जो उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मौजूद है। ये पूरा इलाका लगभग 270 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यहां पर होने वाले अदरक प्रसंस्करण ने कलसी ब्लॉक दूसरे इलाकों से काफी आगे बढ़ा दिया है। जिससे यहां की अर्थव्यवस्था मज़बूत हुई है। अदरक प्रसंस्करण की स्वदेशी… Read more: Ginger processing: अदरक प्रसंस्करण की स्वदेशी तकनीक अपनाकर किसान कर रहे लाखों की कमाई
- जानिए कैसे बनी पप्पामल अम्मा जैविक खेती की महागुरु,109 साल की उम्र में निधनपद्मश्री से सम्मानित तमिलनाडु की किसान पप्पामल (रंगम्मल) का 109 वर्ष की आयु में निधन हो गया। पीएम मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।
- गहत की खेती: उत्तराखंड में गहत की फसल बनी ब्रांड, भारत समेत वैश्विक रूप से बढ़ी मांगभारत में एक बहुमूल्य फसल का उत्पादन होता है जो अपनी परम्परागत तरीके के लिए भी जानी जाती है। इसका नाम गहत (Horse gram Farming) है जो देव भूमि उत्तराखंड में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण फसल है। भारत में गहत की फसल का इतिहास काफी पुराना है। दुनियाभर में कुल 240 प्रजातियों में से… Read more: गहत की खेती: उत्तराखंड में गहत की फसल बनी ब्रांड, भारत समेत वैश्विक रूप से बढ़ी मांग
- मिर्च की जैविक खेती: सिक्किम के लेप्चा समुदाय ने पारंपरिक खेती से लिखी सफलता की कहानीहिमालय के दिल में बसा है सिक्किम और यहां के द्ज़ोंगू क्षेत्र के देसी लेप्चा समुदाय जो काफी लंबे वक्त से पारंपरिक जैविक खेती (Organic Farming) करता आ रहा है। ये लोग केमिकल फ्री, बारिश पर आधारित मिश्रित खेती को करते हैं जो उनकी सांस्कृतिक विरासत को गहराई से दिखाता है। लेप्चा समुदाय इस क्षेत्र… Read more: मिर्च की जैविक खेती: सिक्किम के लेप्चा समुदाय ने पारंपरिक खेती से लिखी सफलता की कहानी
- Success Story of CFLD on Oilseed: सरसों की नई किस्म से विजेंद्र सिंह खेती में लाए क्रांतिविजेंद्र सिंह का एक मामूली किसान से लेकर ज़िले में फेमस कृषि (Success Story of CFLD on Oilseed) में नयापन लाने का सफ़र किसी प्रेरणा से कम नहीं है। 1972 में फिरोजाबाद के टूंडला में टी.बी.बी सिंह इंटर कॉलेज से अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने अपने परिवार का भरण-पोषण करने… Read more: Success Story of CFLD on Oilseed: सरसों की नई किस्म से विजेंद्र सिंह खेती में लाए क्रांति
- गहत की खेती: उत्तराखंड की पौष्टिक दाल और इसके फ़ायदेजानें पहाड़ी इलाकों में गहत की खेती के फ़ायदे, पोषण मूल्य और इसके अनोखे गुण। गहत, एक पौष्टिक दाल है और सेहत के लिए बेहद फ़ायदेमंद होती है।
- टिड्डी प्रबंधन: सबसे खतरनाक रेगिस्तानी टिड्डियों से कैसे करें फसलों का बचाव?भारत में पाई जाने वाली रेगिस्तानी टिड्डी सबसे ज़्यादा खतरनाक होती है। इनका झुंड जब खेतों, हरे-भरे घास के मैदानों में आता है और ज़्यादा विनाशकारी रूप ले लेता है।
- रबी सीज़न 2024-25 के लिए फॉस्फेटिक और पोटैसिक उर्वरकों पर सब्सिडी, किसानों को क्या लाभ?केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि रबी सत्र में ₹24,475 करोड़ की उर्वरक सब्सिडी से किसानों की लागत कम होगी और आय बढ़ेगी।
- किसानों के लिए बनी ‘पीएम-आशा’ योजना में शामिल किए गए 4 मुख्य घटक‘पीएम-आशा’ योजना से मूल्य को नियंत्रित करने में मदद मिल पाएगी। इस मद में 15वें वित्त आयोग के दौरान 2025-26 तक कुल वित्तीय व्यय 35 हजार करोड़ रुपये होगा।
- National Bamboo Mission: देश के किसानों के लिए राष्ट्रीय बांस मिशन, जानिए योजना, सब्सिडी और लाभों के बारें मेंभारत सरकार के राष्ट्रीय बांस मिशन योजना (National Bamboo Mission) के अंतर्गत किसानों को बांस की खेती के लिए 50 हजार रुपये की सब्सिडी मिलती है।
- World Food India 2024: वर्ल्ड फ़ूड इंडिया 2024 का काउंटडाउन शुरू, फ़ूड इनोवेशन का ग्लोबल मंचभारत में मेगा फ़ूड इवेंट- वर्ल्ड फ़ूड इंडिया 2024 (World Food India 2024) होने जा रहा है। ये इवेंट राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 19 से 22 सितंबर तक आयोजित किया जाएगा।
- कृषि में मकड़ियों का महत्व: कीट प्रबंधन और जैविक खेती में उनका योगदानमकड़ियां कभी भी फ़सलों को नुकसान नहीं पहुंचाती है बल्कि कृषि में मकड़ियों का महत्व होता है। साथ ही मकड़ियां पर्यावरण के स्वास्थ्य के सूचक भी होती हैं।
- Uses Of Moringa In Fish Farming: मछली पालन आहार में मोरिंगा का उपयोग है फ़ायदेमंदमछली पालन आहार में मोरिंगा का उपयोग मछलियों के लिए एक तरह का सुपरफूड है। यह मछलियों को बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है।
- Milky Mushroom Farming Success Story: दूधिया मशरूम की खेती में सफलता कैसे मिली इस किसान को, पढ़िए कहानीBCT कृषि विज्ञान केंद्र, हरिपुरम के STRY Program द्वारा कालापूरेड्डी गणेश को दूधिया मशरूम की खेती को अपनी आमदनी का मुख्य तरीका बनाने का हौसला मिला।
- Maize Cultivation Methods: जानिए मक्का की खेती के तरीकेवैज्ञानिकों ने मक्का की खेती के कई नए तरीके खोजे हैं जिनसे कम मेहनत में ज़्यादा फ़सल मिल सकती है और इन नए तरीकों से किसान कम ख़र्च में ज़्यादा मक्का उगा सकते हैं।
- Integrated Aquaculture Poultry Goat Farming System: एकीकृत जल कृषि पोल्ट्री बकरी पालन प्रणाली से कमाएं मुनाफ़ाएकीकृत जल कृषि पोल्ट्री बकरी पालन एक ऐसा तरीक़ा है जिसमें मछली पालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन और खेती करना सभी कार्य एक साथ किए जाते हैं।