कासनी की खेती | हमारे जंगलों में कई बहुमूल्य वनस्पतियां हैं जो पशुओं के लिए बेहतरीन हरा चारा होने के साथ ही हमारे स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है, मगर इसकी जानकारी न होने के कारण किसान इसका लाभ नहीं उठा पाते हैं। जानकारी के अभाव में ही बहुत सी वनस्पतियां अपना अस्तित्व खोने की कगार पर पहुंच चुकी हैं। ऐसी ही एक वनस्पति है कासनी।
ये मुख्य रूप से उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के निचले इलाकों, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू और कर्नाटक में उगाई जाती है। कासनी की खेती में कीटनाशकों और खरपतवाररोधी दवाओं के अधिक इस्तेमाल से इसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। कासनी को बचाने के लिए रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान, हल्द्वानी ने कासनी की खेती को बढ़ावा देने का काम शुरू किया है। कासनी को कई जगहों पर चिकोरी भी कहा जाता है, इसके फूल नीले रंग के होते हैं।
कासनी के उपयोग
कासनी की पत्तियों का इस्तेमाल हरे चारे के रूप में किया जाता है। कई आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं में भी इसका उपयोग होता है। कासनी को सेहत के लिए बहुत फ़ायदेमंद माना जाता है। कई जगहों पर कासनी की चाय, काढ़ा, इसके पत्तों का रस का सेवन किया जाता है। इतना ही नहीं, कासनी की पत्तियों को उबालकर और पत्तियों को निचोड़कर इसकी सब्ज़ी भी बनाई जाती है। कासनी की जड़ों को भूनकर कॉफ़ी में डालकर भी पिया जाता है।
मिट्टी और जलवायु
हमारे देश में औषधीय गुणों से भरपूर वनस्पतियों की भरमार है, इन्हीं में से एक वनस्पति है कासनी, जो हरे चारे के साथ ही औषधि बनाने में भी इस्तेमाल की जाती है। कासनी भले ही बहुत लोकप्रिय न हो, मगर किसानों के लिए इसकी खेती फ़ायदेमंद साबित हो सकती है।
वैसे तो कासनी की खेती किसी भी तरह की उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन आप अगर व्यवसायिक रूप से इसकी खेती करना चाहते हैं, तो बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है, क्योंकि इससे उत्पादन अधिक प्राप्त होता है। इसे समशीतोष्ण और कम ठंडी वाली जगहों पर अच्छी तरह उगाया जा सकता है। गर्म इलाकों में इसकी खेती शरद और बसंत ऋतु में की जा सकती है। अधिक गर्मी में इसके पौधों का सही विकास नहीं पो पाता है। इसकी फसल को ज़्यादा बारिश की भी ज़रूरत नहीं होती है। बीजों के अंकुरण के लिए करीब 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है और पौधों के अच्छे विकास के लिए तापमान 10 डिग्री होना चाहिए।
खेत की तैयारी और बुवाई
कासनी की बुवाई से पहले खेत की मिट्टी पलटकर एक बार गहरी जुताई कर लें। फिर पाटा चलाकर मिट्टी को बराबर कर लें। पत्तों के अच्छे विकास के लिए खेत में प्रति हेक्टेयर 1-2 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद ज़रूर मिलाएं। फिर ज़ररूत के हिसाब से रासायनिक उर्वरक डालकर हैरो या देसी हल से अच्छी तरह मिला लें। कासनी के बीजों को छिड़काव विधि से भी लगाया जा सकता है, लेकिन अच्छी उपज के लिए पंक्तियों में बुवाई करना उपयुक्त होगा। पंक्ति से पंक्ति के बीज 30 सेंटीमीटर की दूरी रखें और पौधों से पौधों की दूरी 10-15 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
इसके पौधों को नियमित सिंचाई की ज़रूरत होती है। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई कर दें। बीजों के अंकुरण के लिए खेत में नमी होना ज़रूरी है इसलिए इस दौरान नियमित रूप से सिंचाई करें। चारे के लिए अगर फसल उगा रहे हैं, तो 5-7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें और व्यापारिक रूप से अगर फसल उगा रहे हैं 20 दिन के अंतराल में पौधों को पानी दें। खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से किया जाना चाहिए। इसके लिए पहली गुड़ाई बीज बोने के 25 दिन बाद करें और बाद में 20 दिन के अंतराल पर गुड़ाई करें।
कब करें कटाई?
अगर आप हरे चारे के लिए फसल उगा रहे हैं, तो बुवाई के 25 से 30 दिन बाद फसल काट सकते हैं। लेकिन आप अगर इसकी कंद के लिए फसल उगा रहे हैं, तो कटाई बुवाई के 3-4 महीने बाद करें। कासनी की खेती में प्रति हेक्टेयर करीब 20 टन कंद और 5 क्विंटल तक बीज प्राप्त होता है।
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