गुग्गल का पौधा बहुत फ़ायदेमंद है, पूजा से लेकर दवा बनाने तक में इसका इस्तेमाल होता है। गुग्गल का वानस्पतिक नाम कॉमीफोरा (Commiphora) है। इसकी ख़ास बात ये है कि ये पौधा सूखे व बंजर इलाकों में भी उग जाता है, ऐसे में किसान अपनी खाली पड़ी ज़मीन पर भी इसकी खेती कर सकते हैं। बाज़ार में गुग्गल के गोंद की मांग है, क्योंकि इसका इस्तेमाल कई तरह की आयुर्वेदिक, एलोपैथी और यूनानी दवाओं में किया जाता है। औषधीय गुणों से भरपूर गुग्गल का संरक्षण ज़रूरी है और सरंक्षण के लिए ज़रूरी है गुग्गल की खेती को बढ़ावा देना।
गुग्गल की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी
गुग्गल की खेती गर्म और शुष्क मौसम में अच्छी होती है। ये 40-45 डिग्री से लेकर 3 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर सकता है। पहाड़ी इलाकों में ये जगलों में झाड़ियों की तरह उग आता है। इसका पौधा 1 से 3 मीटर ऊंचा होता है। पौधे झाड़ीनुमा और शाखाएं कंटीली होती हैं। ठंड के मौसम में इसके पत्ते झड़ जाते हैं। इसके फल छोटे बेर की तरह दिखते हैं। इस पौधे के तने व शाखाओं से जो गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलता है, उसे ही गुग्गल कहते हैं। ताज़े गुग्गल का रंग पीला और पुराना होने पर काला हो जाता है। इसकी खेती लवणीय और सूखी ज़मीन में भी की जा सकती है। दोमट व बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी.एच. मान 7.5 से 9.0 के बीच हो, उसमें भी इसकी अच्छी खेती की जा सकती है। काली मिट्टी में भी इसे उगाया जा सकता है।
गुग्गल की खेती में रोपई\बुवाई
गुग्गल के बीज द्वारा या कलम लगाकर पौधे तैयार किए जाते हैं। ठंड के मौसम के अलावा पूरे साल इसके बीज बनते रहते हैं। लेकिन जुलाई से सितंबर के बीज प्राप्त होने वाले बीज अच्छे माने जाते हैं, क्योंकि यह जल्दी अंकुरित हो जाते हैं। इसके अलावा, कटिंग यानी कलम लगाकर भी गुग्गल की खेती की जाती है। बीज की अपेक्षा कलम लगाने से पौधों का विकास जल्दी होता है। कलम काटते समय ध्यान रहे कि ये आपकी उंगली जितना मोटा हो, लेकिन अंगूठे से ज़्यादा मोटा न हो। कलम से तैयार पौधों को 3X3 मीटर की दूरी पर लगाएं, इसके लिए 30X30X30 सेंटीमीटरके गड्ढे तैयार कर लें और उसमें सड़ी हुई गोबर की खाद डालें। रोपाई जुलाई महीने में बारिश होने के बाद करें।
पौधों की देखभाल
गुग्गल के पौधों को पहले एक साल अधिक देखभाल की ज़रूरत पड़ती है। नियमित रूप से खरपतवार प्रबंधन करें और ज़रूरत के मुताबिक एक या दो सिंचाई करें।
गोंद कैसे निकालें?
आमतौर पर 6-8 साल बाद ही गुग्गल का पेड़ तैयार होता है। तभी आप इसकी शाखाओं से गोंद निकाल सकते हैं। गोंद निकालने के लिए मुख्य तने या शाखाओं पर 1.5 सेंटीमीटर गहरा वृत्ताकार चीरा 30 सेंटीमीटर और 60 डिग्री कोण पर समान दूरी पर लगाएं। चीरा लगाने वाली जगह से सफेद व पीला खुशबूदार गोंद निकलता है, जो धीरे-धीरे ठोस होने लगता है। गोंद को इकट्ठा करते समय सफ़ाई का ख़ास ध्यान रखें। 6 से 8 साल पुरानी गुग्गल की झा़ड़ियों से 300-400 ग्राम गोंद निकल जाता है। गुग्गल का गोंद 900 रुपये प्रति किलो की दर से बाज़ार में बिक सकता है।
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