Polyhouse Farming: पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की खेती, कैसे हो नुकसान कम और कमाई ज़्यादा?

शिमला मिर्च की खेती और उसकी मांग लगातार बढ़ रही है। इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इसका […]

Polyhouse Farming पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की खेती

शिमला मिर्च की खेती और उसकी मांग लगातार बढ़ रही है। इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इसका उत्पादन भी बढ़ाने की ज़रूरत है, लेकिन  खुले खेत में उगाने पर फसल को कई तरह का नुकसान झेलना पड़ता है।  ऐसे में शिमला मिर्च की सुरक्षित खेती और अधिक उत्पादन के लिए पॉलीहाउस तकनीक सबसे कारगर है। शिमला मिर्च जिसे बेल पेपर, कैप्सिकम और पेपर जैसे नामों से भी जाना जाता है, मिर्च की ही एक प्रजाति है। आमतौर पर हरी शिमला मिर्च का इस्तेमाल अधिक होता है, लेकिन इसके अलावा लाल, पीली और बैंगनी शिमला मिर्च की खेती भी किसान कर सकते हैं।

इसका इस्तेमाल कई तरह के व्यंजन बनाने में भी किया जाता है। खासतौर पर चाइनीज़ खाना बनाने वालों के बीच इसकी काफ़ी डिमांड है। इसके पौष्टिक गुणों के कारण लोग इसकी सब्ज़ी और सलाद भी खाना पसंद करते हैं। बच्चों के फेवरेट नूडल्स और पिज़्ज़ा में भी शिमला मिर्च का इस्तेमाल होता है। इसलिए शहरों में तो इसकी मांग काफ़ी ज़्यादा है। डिमांड है, दाम सही मिल जाते हैं, ऐसे में किसानों के लिए शिमला मिर्च की खेती करना फ़ायदेमंद है। खुले खेत में शिमला मिर्च उगाने पर कभी मौसम की मार तो कभी कीटों की वजह से फसल को भारी नुकसान होता है। ऐसे में किसान पॉलीहाउस तकनीक से शिमला मिर्च की खेती कर सकते हैं। इससे अच्छी गुणवत्ता वाली और अधिक फसल प्राप्त होती है।

नेपाल सिंह ने की पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की खेती

मध्यप्रदेश के रहने वाले एक किसान हैं नेपाल सिंह, जो पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की खेती करते हैं। अपनी उपज को वो नज़दीकी दतियां मंडी से लेकर झांसी और ग्वालियर भी भेजते हैं। नेपाल सिंह ने बताया कि जहां उन्हें फसल की अच्छी कीमत मिलती है, वो वहां फसल बेचते हैं। पॉलीहाउस में शिमला मिर्च उगाने को लेकर कुछ ज़रूरी टिप्स उन्होंने दिए।

  • पौधों की रोपाई से पहले वो मिट्टी को तैयार करते हैं। इसके लिए मिट्टी में गोबर की खाद और फर्टिलाइज़र मिलाते हैं।
  • पौधों को खरपतवार से बचाने के लिए  प्लास्टिक मल्चिंग का इस्तेमाल करते हैं। एक एकड़ में मल्चिंग लगाने का खर्च लगभग 9000 रुपये पड़ता है।
  • पॉलीहाउस के अंदर रोग-कीटों का प्रकोप कम से कम हो इसके लिए अंदर जाने वाले व्यक्ति पर एक ख़ास स्प्रे मारा जाता है।
  • नेपाल सिंह हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल खेती में करते हैं। जिसकी कीमत 8 रुपए पड़ती है।
  •  अच्छी फसल के लिए पॉलीहाउस के अंदर का तापमान 27-28 डिग्री रहना चाहिए।

शिमला मिर्च सेहत का खज़ाना

शिमला मिर्च भले ही मिर्च की कैटेगरी की हो, लेकिन ये तीखी नहीं होती है। इसीलिए इसका इस्तेमाल सब्ज़ी और दूसरे व्यंजनों में किया जाता है। इसमें विटामिन सी, विटामिन ए और बीटा कैरोटीन भरपूर मात्रा में होते हैं और कैलोरी बिल्कुल नहीं होती। साथ ही इसमें फ़ाइबर होता है और ये एंटीऑक्सिडेंट का भी बेहतरीन स्रोत है। इन्हीं सब वजहों से इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है, इसलिए किसानों को भी अधिक उत्पादन करने की ज़रूरत है। शिमला मिर्च की खेती वैसे तो पूरे देश में की जाती है, मगर शिमला मिर्च का सबसे ज़्यादा उत्पादन हरियाणा, पंजाब, झारखंड, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक में होता है।

Polyhouse Farming: पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की खेती, कैसे हो नुकसान कम और कमाई ज़्यादा?

शिमला मिर्च की उन्नत किस्में

शिमला मिर्च की कुछ उन्नत किस्में हैं जिन्हें लगाने से किसान अच्छा मुनाफ़ा कर सकते हैं। इसमें शामिल हैं-

बॉम्बे (रेड शिमला मिर्च)- शिमला मिर्च की ये किस्म जल्दी  पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म के फलों को बढ़ने के लिए छाया की ज़रूरत होती है। इसके फल गहरे हरे रंग के होते हैं और पकने के समय इनका रंग लाल हो जाता है। इसकी ख़ासियत ये है कि ये जल्दी खराब नहीं होती है।

ओरोबेल (यलो शिमला मिर्च)- इस किस्म को लगाने के लिए ठंडे मौसम की ज़रूरत होती है। पकने के समय इसका फल पीले रंग का हो जाता है। यह बीमारी रोधक किस्म है, जिसे पॉलीहाउस और खुले खेत, दोनों में उगाया जा सकता है।

ग्रीन गोल्ड- शिमला मिर्च की इस किस्म के फल लंबे और मोटे होते हैं। इनका रंग गहरा हरा होता है और वज़न 100 से 120 ग्राम तक होता है।

सोलन हाइब्रिड 1- कैप्सिकम की ये किस्म भी जल्दी तैयार होकर अधिक उत्पादन देती है। साथ ही ये किस्म सड़न रोधी भी है।

सोलन हाइब्रिड 2- अच्छी पैदावार के लिए किसान ये किस्म भी लगा सकते हैं। इसके फल 60-65 दिनों में तैयार हो जाते हैं। सड़न  और जीवाणुओं से उत्पन्न होने वाले रोग का इस पर असर नहीं होता है।

कैलिफोर्निया वंडर- यह किस्म बहुत लोकप्रिय और उन्नत है। इसके पौधों की लंबाई मीडियम होती है और ये सीधे बढ़ते हैं। फल गहरे हरे रंग के और चिकने होते हैं और फलों का छिलका भी मोटा होता है।

अन्य किस्में- शिमला मिर्च की और भी उन्नत किस्में हैं जिन्हें  किसान पॉलीहाउस में लगा सकते हैं जैसे- अर्का गौरव, अर्का मोहिनी, किंग आफ नार्थ, अर्का बसंत, ऐश्वर्या, अलंकर, अनुपम, हरी रानी, पूसा दीप्ती, हीरा आदि।

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पॉलीहाउस के लिए जगह का चयन और मिट्टी

शिमला मिर्च की खेती अगर आप पॉलीहाउस में करना चाहते हैं, तो पॉलीहाउस के लिए जगह का चुनाव करते समय आपको कुछ बातों का ध्यान रखने की ज़रूरत है। जैसे कि पॉलीहाउस ऐसी जगह में न लगाएं जहां बारिश बहुत अधिक होती है और नमी भी बहुत ज़्यादा हो। साथ ही हवा की रफ़्तार भी बहुत तेज़ नहीं होनी चाहिए। इसे निचले इलाकों, नदी और जलधारा के भी पास भी नहीं होना चाहिए।

पॉलीहाउस को तंबाकू के खेत के आसपास भी न लगाएं, वरना एफिड वेक्टर वायरस का खतरा बढ़ जाता है। पॉलीहाउस के अंदर मिट्टी ऐसी होनी चाहिए, जिससे जल निकासी अच्छी तरह हो सके। शिमला मिर्च के लिए रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। मिट्टी का पीएच मान (pH Value)   6-7 के बीच होना चाहिए। दिन का तापमान 20-25 डिग्री और रात का तापमान 18-20 डिग्री के बीच होना चाहिए।

शिमला मिर्च की नर्सरी

पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की खेती के लिए पहले नर्सरी में उन्नत किस्म के बीजों का इस्तेमाल करके शिमला मिर्च की पौध तैयार करें। बीजों की बुवाई के बाद करीब 6-8 दिनों में इनका अंकुरण हो जाता है। 4-6 हफ़्तों में पौध रोपाई के लिये तैयार हो जाती है। बीजों को बुवाई से पहले पानी में लगभग 12 से 15 घंटे के लिए भिगोकर रखें। इसके बाद बीजों को उपचारित कर लें। ध्यान रहे, बीजों को 1 से 2 इंच की गहराई में लगाएं और उनके बीच में 2 से 4 इंच की दूरी ज़रूर हो। नेपाल सिंह बताते हैं कि पौध तैयार करने में एक से सवा लाख रुपये की लागत आ जाती है।

पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की रोपाई

पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की रोपाई मेड़ों पर प्लास्टिक मल्चिंग लगाकर की जाती है। ऐसा करने से सिंचाई के लिए ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं पड़ती है। पौधों के बढ़ते वक़्त, सहारा देने के लिए नायलॉन की तारों से ऊपर की तरफ़ बांधकर सहारा दिया जाता है, ताकि फल ज़मीन पर न लगें। शिमला मिर्च की खेती के लिए उठी हुई मेड़ का इस्तेमाल किया जाता है। इससे  शिमला मिर्च के पौधों की जड़ों को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिलती है और हवा भी आसानी से आ-जा सकती है। मेड़ की उंचाई 30 सेमी. और चौड़ाई 90 सेमी. होनी चाहिए। दो मेड़ के बीच की दूरी 60 सेमी. होनी चाहिए। दो पौधों के बीच 45 से 50 सेमी. की दूरी होनी चाहिए और दो-दो पंक्तियों में 50 सेमी. का अंतराल होना चाहिए। रोपाई के बाद 2-3 हफ़्ते नमी को 80% तक बनाए रखें।

शिमला मिर्च के पौधों की कटाई-छटाई

पौधों की रोपाई के करीब 18 से 22 दिन के बाद पौधों की तेज़ कैंची से छंटाई की जाती है, जिससे शिमला मिर्च के पौधों में दो या चार शाखाएं ही निकलें। इन शाखाओं को सहारा देने के लिए रस्सी से बांध दिया जाता है। शिमला मिर्च के फलों की कटाई आमतौर पर रोपाई के 65 से 90 दिनों के बाद की जाती है। फलों की कटाई उनकी किस्म और रंग के आधार पर अलग-अलग समय पर की जाती है।

शिमला मिर्च की खेती में सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण

पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की फसल की सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई विधि का इस्तेमाल किया जाता है। पॉलीहाउस में खाद और उर्वरक(Fertilizer) भी सिंचाई के माध्यम से डाले जाते हैं। इस विधि को फर्टिगेशन (Fertigation) कहते हैं। शिमला मिर्च की फसल की 2 से 3 बार गुड़ाई करना ज़रूरी है। अच्छी फसल के लिए पहले 30 और फ़िर 60 दिनों के बाद गुड़ाई करनी चाहिए।

शिमला मिर्च फसल की तुड़ाई और उत्पादन

शिमला मिर्च की तुड़ाई  हमेशा फल का पूरा रंग और आकार आने  के बाद ही करनी चाहिए। इसे डंठल के साथ पौधों से काटा जाता है। आमतौर पर रोपाई के 60-65 दिन बाद तुड़ाई की जाती है। तोड़ते समय ध्यान रहे कि पौधे को नुकसान न पहुंचे। पॉलीहाउस में एक बार शिमला मिर्च लगाकर आप 6 महीने तक फसल ले सकते हैं। फलों की कटाई सुबह या शाम के समय की जानी चाहिए। शिमला मिर्च की उपज उसकी किस्म के हिसाब से अलग-अलग होती है। आमतौर पर इसकी पैदावार 700-800 क्विंटल प्रति हेक्टयर होती है।

पॉलीहाउस में खेती करने पर किसानों को पहली बार में ज़रूर अधिक लागत आती है, लेकिन ये खर्च  सिर्फ एक बार का होता है। इसमें खेती करने से फसल पर न तो मौसम की मार पड़ती है, न पशुओं का डर और न ही कीट से फसल को ज़्यादा नुकसान होने का डर रहता है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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