शिमला मिर्च एक ऐसी सब्ज़ी है, जिसकी मांग पिछले कुछ समय में बहुत बढ़ी है। चाइनीज़ व्यंजन तो शिमला मिर्च के बिना अधूरे हैं। इसके अलावा सलाद के रूप में भी लोग शिमला मिर्च खाना पसंद करते हैं। इसमें विटामिन सी, ए और बीटा कैरोटीन की भरपूर मात्रा होती है। इसलिए लोग इसे किसी न किसी रूप में अपनी डाइट में ज़रूर शामिल करते हैं। शिमला मिर्च की बढ़ती मांग को देखते हुए यह किसानों के लिए मुनाफ़े का सौदा साबित हो सकती है। देश के वैज्ञानिक शिमला मिर्च की उन्नत किस्में विकसित करते रहे हैं, जिससे किसानों को अधिक लाभ मिले।
हमारे देश में शिमला मिर्च की खेती काफ़ी समय से हरियाणा, पंजाब, झारखंड, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक में की जाती रही है, लेकिन अब तो पूरे भारत में इसकी खेती होने लगी है। शिमला मिर्च मुख्य तौर पर हरी, लाल और पीली रंग की होती हैं। अगर आप भी शिमला मिर्च की खेती करने की सोच रहे हैं, तो इसकी कुछ उन्नत किस्मों की जानकारी होना ज़रूरी है।
शिमला मिर्च की उन्नत किस्में
बॉम्बे (रेड शिमला मिर्च)- शिमला मिर्च की यह किस्म जल्दी तैयार हो जाती है। इसके पौधे लंबे, मज़बूत होते हैं जबकि शाखाएं फैली हुई होती है। यह किस्म छायादार जगह में अच्छी तरह विकसित होती है। पहले इस मिर्च का रंग गहरा हरा होता है, लेकिन पकने के बाद यह लाल रंग का हो जाता है। इसकी ख़ासियत यह है कि यह जल्दी खराब नहीं होता।
ओरोबेल (यलो शिमला मिर्च)- शिमला मिर्च की यह किस्म ठंडे मौसम में अच्छी तरह विकसित होती है। इसके फलों का रंग पकने के बाद पीला हो जाता है और इसका वज़न करीब 150 ग्राम होता है। इस किस्म में जल्दी बीमारियां नहीं पकड़ती और यह किस्म ग्रीन हाउस और खुले खेत दोनों में ही विकसित की जा सकती है।
अर्का गौरव- इस किस्म की शिमला मिर्च के पत्ते पीले और हरे होते हैं और फल मोटे गूदे वाला होता है। एक फल का औसतन वजन 130-150 ग्राम तक होता है। पकने के बाद फल का रंग नारंगी या हल्का पीला हो जाता है। यह किस्म 150 दिनों में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 16 टन होता है।
यलो वंडर- इस किस्म की शिमला मिर्च के पौधे मध्यम उंचाई वाले और पत्ते चौड़े होते हैं। इसके फल गहरे हरे रंग के होते हैं, जिसके ऊपर 3-4 उभार होता है। औसत उपज क्षमता 120-140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
सोलन हाइब्रिड 2- अधिक उपज वाली यह हाइब्रिड किस्म हैं, जिसके फल 60 से 65 दिनों में तैयार हो जाते है। इसके पौधे ऊंचे और फल चौकोर होते हैं। यह किस्म सड़न रोग और जीवाणु रोग से सुरक्षित रहती है। औसतन उपज क्षमता 325-375 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
कैलिफोर्निया वंडर- इस किस्म की शिमला मिर्च के पौधे मध्यम ऊंचाई वाले होते हैं। यह किस्म काफ़ी लोकप्रिय है और पैदावार भी अच्छी देती है। इसके फल गहरे हरे रंग के और चमकदार होते हैं। फलों का छिलका मोटा होता है। 75 दिन में फसल तोड़ने लायक हो जाती है। इसकी औसत उपज क्षमता 125-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
शिमला मिर्च की खेती
इसकी खेती खुले खेत और पॉलीहाउस दोनों जगह की जा सकती है। चिकनी दोमट मिट्टी इसके लिए अच्छी मानी जाती है। इसके अलावा, बलुई दोमट मिट्टी में अच्छी मात्रा में खाद डालकर और सही समय पर सिंचाई करके, इसमें भी शिमला मिर्च की खेती की जा सकती है। इस बात का ध्यान रहे कि खेत में पानी न जमा हो पाए।
इसकी खेती क्यारियां बनाकर की जाती है तो शिमला मिर्च की खेती के लिए जमीन की सतह से ऊपर उठाई और समतल क्यारियां ज्यादा अच्छी मानी जाती है। आमतौर पर 65-70 दिनों बाद शिमला मिर्च की फसल तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है, लेकिन कुछ किस्म को तैयार होने में 90 से 120 दिन का भी समय लग सकता है।
बाज़ार में रंगीन शिमला मिर्च की अधिक मांग है। यह 100 से 250 रुपये प्रति किलो तक बिक जाती है, जबकि हरी शिमला मिर्च 40 से 80 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है।
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