कैसे करें जैव उर्वरक का सही इस्तेमाल? डॉ. ममता सिंह से जानिए क्यों फसल और मिट्टी के लिए वरदान हैं Biofertilizers
बीज उपचार के लिए करें बायो फ़र्टिलाइज़र का इस्तेमाल
आज के समय में बायो फ़र्टिलाइज़र की आवश्यकता बहुत बढ़ गयी है। रासायनिक उर्वरकों और कीट नाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से प्राकृतिक जीवाणुओं की संख्या को बड़ा नुकसान पहुंचा है। ऐसे में बेहतर विकल्प है जैव उर्वरक।
पौधों के अच्छे विकास के लिए मुख्य तौर पर 16 तत्वों की आवश्यकता होती है। इसमें नाइट्रोजन और फॉस्फोरस अति आवश्यक तत्व हैं। पौधों की इन्हीं ज़रूरतों को पूरा करता है जैव उर्वरक। ये लाभकारी जीवाणुओं का एक ऐसा उत्पाद है, जो पौधों में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस जैसे तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाता है। साथ ही बीज उपचार के काम सहित मिट्टी की सेहत में सुधार करता है।
आज के समय में बायो फ़र्टिलाइज़र की आवश्यकता बहुत बढ़ गयी है। रासायनिक उर्वरकों और कीट नाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से प्राकृतिक जीवाणुओं की संख्या को बड़ा नुकसान पहुंचा है। मिट्टी के स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ा है। जैव उर्वरकों के इस्तेमाल से कैसे मिट्टी की सेहत को सुधारा जा सकता है? कैसे बीज और जड़ का उपचार किया जा सकता है? इसके बारे में किसान ऑफ़ इंडिया ने मध्य प्रदेश के सागर स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र की कृषि वैज्ञानिक डॉ. ममता सिंह से ख़ास बातचीत की।
बीज उपचार के लिए करें बायो फ़र्टिलाइज़र का इस्तेमाल
कृषि वैज्ञानिक डॉ. ममता सिंह बताती हैं कि बीज उपचार के लिए बायो फ़र्टिलाइज़र का इस्तेमाल सबसे उपयुक्त है। बायो फ़र्टिलाइज़र से बीज उपचार के लिए आधा लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ या गोंद मिलाकर घोल बना लेते हैं। इस घोल में किसी भी एक बायो फ़र्टिलाइज़र जैसे राइजोबियम कल्चर, एजेक्टोबैक्टर, पीएसबी कल्चर को 200 ग्राम मात्रा में मिलाते हैं। इसके बाद 10 किलोग्राम बीज पर तैयार घोल का छिड़काव किया जाता है। छिड़काव इस तरह करें जिससे कि प्रत्येक बीज पर घोल की एक परत बन जाए। इसके बाद उपचारित बीजों को कुछ देर तक छाया में सुखा लेते हैं। सुखने के बाद बीजों की तुरंत बुवाई कर दी जाती है।
इसके आलावा, बीज उपचार की दूसरी तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाता है। इस विधि में सबसे पहले एक लीटर पानी में 125 ग्राम गुड़ को मिलाकर घोल बनाते हैं। घोल को किसी बर्तन में रखकर गाढ़ा होने तक आग पर गरम किया जाता है। इसके बाद घोल को कुछ समय रखकर ठंड कर लेते हैं। जब घोल ठड़ा हो जाता है, उसमे कल्चर को अच्छी तरह से मिला लिया जाता है। इसके बाद बीजों पर घोल का छिड़काव कर दिया जाता है। इन उपचारित बीजों को छाया में कुछ देर तक सुखाते हैं और फिर सुखने के बाद खेतों में तुरंत बुवाई कर देते हैं।
बायो फ़र्टिलाइज़र से करें जड़ और कन्द उपचार
डॉ. ममता सिंह कहती हैं कि रोपाई करने वाले पौधों की बात करें तो उनकी जड़ों को उपचारित करने के लिए चौड़े बर्तन में 5 से 7 लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ को मिलाकर घोल बनाते हैं। इसमें एक किलों एजैक्टोबैक्टर और एक किलों पीएसबी कल्चर मिलाया जाता है। फिर नर्सरी से उखाड़े गए पौधों की जड़ों से मिट्टी साफ करके 50 से 100 पौधों को घोल में 10 मिनट तक डूबोकर उपचारित करते हैं। इसके बाद खेतों में पौधों की रोपाई की जाती है।
इस विधि से धान, टमाटर, फूलगोभी, प्याज इत्यादि फसल के पौधों को उपचारित किया जा सकता है। अगर आप कन्द वाली फसलों जैसे आलू, अदरक, घुइयाँ के अलावा, गन्ने को भी इन जैव उर्वरक से उपचारित कर सकते हैं। वहीं कंदों को उपचारित करने के लिए 20 से 30 लीटर पानी में एक किलो एजैक्टोबैक्टर और एक किलो पीएसबी कल्चर मिलाते हैं और उसमे कन्दों को उपचारित करते हैं। इसके बाद खेतों में कन्दों की बुवाई करते हैं।
जैव उर्वरक से कैसे करें मिट्टी का उपचार?
जैव उर्वरक यानी बायो फ़र्टिलाइज़र के द्वारा फसलों को नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की पूर्ति के लिए मृदा उपचार विधि का इस्तेमाल किया जाता है। इसके तहत सात से दस किलोग्राम जैव उर्वरक एजैक्टोबैक्टर और पीएसबी कल्चर को 100 किलों कम्पोस्ट में मिलाकर रात भर छोड़ दिया जाता है। इसके बाद खेत में अन्तिम जूताई के समय एक हेक्टयर खेत में छिड़काव कर दिया जाता है। जैव उर्वरक का चयन फसलों की किस्म के अनुसार ही करना चाहिए। बायो फ़र्टिलाइज़र का प्रयोग करते समय पैकेट के ऊपर उत्पादन की तारीख, उपयोग की अन्तिम तारीख और फसल का नाम जरूर देख लें। प्रयोग करते समय जैविक उर्वरकों को धूप व गर्म हवा से बचाकर रखना चाहिए।
इन जैव उर्वरकों का प्रयोग धान की फसल की रोपाई के तीसरे चौथे दिन बाद कम्पोस्ट में मिला कर किया जाना चाहिए। इससे फसल की तेज वृद्धि होती है। इसके अलावा, एक ही फसल में कई जैव उर्वरकों का एक ही वक़्त पर प्रयोग किया जा सकता है। इनमें आपस में कोई नेगेटिव क्रिया नहीं होती। आजकल लगभग सभी बायो फ़र्टिलाइज़र तरल रूप में भी मौजूद हैं।
डॉ. ममता सिंह ने सुझाव दिया कि आप बड़े स्तर से लेकर छोटे स्तर पर घरेलू उपयोग के लिए भी इन जैव उर्वरकों का इस्तेमाल कर सकते हैं। ज़रूरी है कि बायो फ़र्टिलाइज़र को ज़्यादा इस्तेमाल में लाया जाए ताकि रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम की जा सके। इससे खेती की लागत में कमी आएगी और फसल उत्पादन ज़्यादा लाभकारी साबित होगा।
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