मैं चतर सिंह जाम, राजस्थान के जैसलमेर के रामगढ़ गांव का रहने वाला हूं। आज किसान ऑफ़ इंडिया मंच के माध्यम से आपको अपने क्षेत्र के कृषि हालातों और उसके हल के लिए मैंने और मेरे समाज ने क्या कदम उठाए हैं, उसके बारे में बताने जा रहा हूं। देश में सबसे कम बरसात वाला क्षेत्र जैसलमेर है और जैसेलमेर में सबसे कम बारिश रामगढ़ गांव में होती है। ऐसे में इस क्षेत्र के लोगों का मुख्य रोजगार खेती न होकर पशुपालन है। पशुपालन से ही हम अपनी आजीविका चलाते हैं।
पानी के आवक स्रोतों को किया जा रहा है खत्म
जैसलमेर में तीन साल में एक बार खेती लायक बरसात होती है। अगर किसान खरीफ़ की फसल करना चाहते हैं तो उसके लिए कम से कम तीन बरसात चाहिए होती हैं, लेकिन जैसलमेर में कभी-कभी एक बरसात भी नहीं होती। इस साल भी यहां की स्थिति टस से मस नहीं हुई है। जैसलमेर की औसतन बरसात 16 सेंटीमीटर रहती है, लेकिन इस साल उतनी भी बारिश नहीं हुई। इस साल भी अकाल की ही स्थिति है। ऐसे में कम बरसात के कारण जैसलमेर में पशुपालन ही मुख्य व्यवसाय है।
जैसलमेर में हो रही खनन प्रक्रिया, सौर्य ऊर्जा, पवन ऊर्जा की गतिविधियों से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा है। खनन प्रक्रिया की वजह से हमारे क्षेत्र में आने वाला पानी रुक जाता है। इस तरह से हमारे क्षेत्र में पानी के आवक स्रोतों को खत्म किया जा रहा है।
पशुपालन ही हमारा मुख्य व्यवसाय
साथ ही जैसलमेर की जो वनस्पति है, वो बिना पत्ती वाली या छोटी पत्ती वाली होती हैं। इन वनस्पतियों का जीवन चार से छह महीने का होता है। कुछ वनस्पतियां जैसे सेवण, मुरट, खींप, फोग, बहुत साल तक जिन्दा रहती हैं, समाधिस्थ अवस्था में पड़ी रहती है, बरसात में हरी हो जाती है, लेकिन अब लगातार अकाल के कारण यह भी कम पड़ गई हैं। ऐसे में पशुधन ही हमारा मुख्य तौर पर आय का स्रोत है। ये पशुधन दूध बाज़ार के लिए नहीं, बल्कि मीट बाज़ार के लिए जाता है। जीवित नर भेड़ और बकरे ही पशुधन मीट मार्केट में जाते हैं। व्यापारी पशु खरीद कर अमृतसर, दिल्ली अहमदाबाद, बैंगलुरु ले जाते हैं।
अगर जैसलमेर में खेती की बात करें तो हमारे यहां खेती अगर होती भी है तो खड़ीन खेती होती है। खड़ीन का मतलब है झील नुमा वो स्थान जहां पानी आकर रुकता है। इसकी नमी चना, गेहूं, तारामीरा और सरसों की फसल की खेती के लिए इस्तेमाल में लाई जाती है। सिंचाई नहीं भी करते हैं तो भी फसल हो जाती है क्योंकि ज़मीन के अंदर मुल्तानी मिट्टी होती है। मुल्तानी मिट्टी होने की वजह से पानी रुक जाता है। जहां पानी रुक जाता है वहां खड़ीन पद्धति से खेती संभव होती है।
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पानी के मुख्य स्रोत तालाब, टोबा, बेरी, पाताली कुआं
पानी की कमी के कारण मेरे क्षेत्र के लोग पानी को संजोकर रखते हैं। बरसाती पानी को तालाब और टोबा में सरंक्षित कर रखा जाता है। तालाबों से दो से चार महीने के पानी का बंदोबस्त हो जाता है। इन तालाबों में पशु और इंसान पानी पीते हैं। तालाब 100 मीटर बाय 100 मीटर आकार के होते हैं, जिसकी गहराई एक से डेढ़ मीटर तक होती है। वहीं तालाब का छोटा रूप कहे जाने वाला टोबा का आकार 20 मीटर बाय 20 मीटर का होता है। टोबा की गहराई एक मीटर से कम होती है। इसमें भी सरंक्षित किया गया पानी दो से चार महीने तक चल जाता है। ऐसे ही बेरी में भी पानी को इकट्ठा किया जाता है, जिसे आप एक तरह का कुआं कह सकते हैं। बेरी 8 से लेकर 50 फीट तक के होते हैं। एक बार की बरसात होने पर ये 40 फीट का भराव लेती है और 8 फीट वाली बेरी 5 फीट तक का भराव दे देती है। बरसात का जो पानी धरती के अंदर है, वाष्पीकरण नहीं हो रहा है तो उसके लिए ये बेरियां खोदी जाती हैं।
समाज के सहयोग से तैयार किए पानी के स्रोत
ऐसे ही समाज के सहयोग से मैंने रामगढ़ में 200 बेरियाँ तैयार करवाई हैं। इन बेरियों से हम पशुओं को ही पानी पिलाते हैं, इन बेरियों का पानी खेती के लिए इस्तेमाल नहीं होता। साथ ही हमने अपने इस पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए गांव में ही 200 कुएं (5 फ़ीट से लेकर 50 फ़ीट तक),10 पाताली कुएं, करीबन 100 खड़ीन, 50 तालाब समाज के सहयोग से पिछले 10 सालों में बनाए हैं। वहीं पाताली कुआं के ज़रिए भी पानी की व्यवस्था की जाती है। पाताल में पानी 200-250 फ़ीट से लेकर 300 फ़ीट पर रहता है। इन पाताली कुंओं से ऊंटों और बैलों की मदद से चमड़े की रस्सी बांधकर पानी निकाला जाता है।
खुद को अकाल की स्थिति से निपटने के लिए तैयार करते हैं ग्रामवासी
इंदिरा गांधी नहर में भी इस साल पानी कम है। इसके पानी से दो प्रतिशत भी खेती नहीं हो सकती। वैसे तो कानूनी रूप से खरीफ़ की फसल में नहर का पानी नहीं दिया जाता है, इसका पानी पेयजल के लिए इस्तेमाल होता है, लेकिन इसमें पेयजल के लिए तक भी पानी नहीं है। वहीं पौंग बांध में भी भराव क्षमता 1400 फ़ीट के मुकाबले 1347 फ़ीट ही पानी है। इस साल रबी की फसल के लिए भी पानी की कमी के संकेत हैं।
देश में सबसे ज़्यादा गर्मी जैसलमेर में पड़ती है। पूरे देश के मॉनसून को जैसलमेर जिले का तापमान प्रभावित करता है। जितनी ज़्यादा गर्मी होगी, उतना ज़्यादा मॉनसून होगा। इस साल मई-जून में जैसलमेर में गर्मी कम पड़ी। ऐसे में हमारे क्षेत्र के लोगों ने महसूस किया कि इस वजह से बरसात नहीं होगी या कम होगी। अकाल की पूर्व तैयारी का आभास समाज कर लेता है। फिर ग्रामीण वासियों ने अपने आप को मानसिक रूप से अकाल के लिए तैयार कर लिया।
औरण, गोचर, खड़ीन आदि हमारे पुराने पारंपरिक तालाब हैं, इनका सरंक्षण हमें करना चाहिए। हमें अपने जंगलों और जल को बचाने के लिए आगे आना चाहिए क्योंकि यही हमारी आजीविका का मुख्य स्रोत था, स्रोत है और रहेगा। (किसान ऑफ़ इंडिया के किसान एक्सपर्ट चतर सिंह जाम के साथ दीपिका जोशी की रिपोर्ट)