Plant Nursery Business: प्लांट नर्सरी शुरू करना चाहते हैं, तो आपके बहुत काम आएंगे अनिल थडानी के बताए टिप्स

अनिल थडानी नई और उन्नत तकनीक विकसित करने में यकीन रखते हैं और इसलिए वो हमेशा नए-नए पौधों प्लांट नर्सरी (Plant Nursery Business) शुरू करना चाहते हैं, तो आपके बहुत काम आएंगे अनिल थडानी के बताए टिप्स को लेकर भी एक्सपेरिमेंट करते रहते हैं। उनकी नर्सरी में बहुत से ऐसे पौधें हैं जिन्हें उन्होंने बेचने के लिए नहीं, बल्कि एक्सपेरिमेंट के लिए रखा है। वो बताते हैं कि उनके पास पौधों की कई वैरायटी है जिन्हें सेल नहीं करना है, बल्कि एक्सपेरिमेंट के लिए रखा है जैसे ड्रैगन फ्रूट, यूफोरबिया, एग्ज़ोरा, एग्ज़ोरा की कटिंग करके उन्होंने पहले बाहर लगाई थी और फिर उसे इनडोर जगह में डेवलप कर रहे हैं।

Plant Nursery Business: प्लांट नर्सरी शुरू करना चाहते हैं, तो आपके बहुत काम आएंगे अनिल थडानी के बताए टिप्स

जिन लोगों को पेड़-पौधों से लगाव तो है और उसे ही अपनी कमाई का ज़रिया बनाना चाहते हैं, मगर वो पारंपरिक खेती (Traditional Farming) नहीं करना चाहतें, तो ऐसे लोगों के लिए प्लांट नर्सरी (Plant Nursery Business) एक अच्छा बिज़नेस साबित हो सकता है। जयपुर के रहने वाले अनिल थडानी जो असिस्टेंट प्रोफेसर से किसान बन चुके हैं, वो अपने नर्सरी बिज़नेस (Plant Nursery Business) को लगातार बढ़ाने में लगे हुए और उनके साथ 2500 से ज़्यादा किसान जुड़ चुके हैं।

वो नर्सरी बिज़नेस (Plant Nursery Business) किस तरह से कर रहे हैं और कैसे वो नई-नई किस्मों का विकास भी कर रहे हैं, इस बारे में उन्होंने विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता अक्षय दुबे के साथ।

नई किस्मों का विकास (Development Of New Varieties)

अनिल थडानी नई और उन्नत तकनीक विकसित करने में यकीन रखते हैं और इसलिए वो हमेशा नए-नए पौधों को लेकर भी एक्सपेरिमेंट करते रहते हैं। उनकी नर्सरी में बहुत से ऐसे पौधें हैं जिन्हें उन्होंने बेचने के लिए नहीं, बल्कि एक्सपेरिमेंट के लिए रखा है। वो बताते हैं कि उनके पास पौधों की कई वैरायटी है जिन्हें सेल नहीं करना है, बल्कि एक्सपेरिमेंट के लिए रखा है जैसे ड्रैगन फ्रूट, यूफोरबिया, एग्ज़ोरा, एग्ज़ोरा की कटिंग करके उन्होंने पहले बाहर लगाई थी और फिर उसे इनडोर जगह में डेवलप कर रहे हैं। उनके पास बहुत अलग-अलग किस्म के पौधे हैं जैसे उन्होंने यूएस से आए एक खास किस्म के टमाटर को उगाया है जिसका स्वाद वाइन की तरह आता है।

अब वो इस किस्म को विकसित करके देख रहे हैं कि क्या इसके बीज बन सकते हैं। उन्होंने अलग-अलग किस्म के पौधों को टैग किया हुआ है और ट्रायल बेसिस पर बहुत सी नई चीज़ें उगा रहे हैं।

ऐसी ही एक नई लेमन ग्रास की वैरायटी है, जिसके बारे में उनका कहना है कि उसकी चाय बनाकर देखा तो स्वाद उन्हें बहुत पसंद आया तो अब इस किस्म को विकसित कर रहे हैं।

यही नहीं वो रूद्राक्ष की तरह ही दिखने वाले एक पौधे को विकसित कर रहे हैं जिसे भद्राक्ष कहते हैं, दिखने में तो रुद्राक्ष की तरह ही होता है मगर इसकी पूजा नहीं होती है।

22 तरह के एडेनियम (22 Types Of Adenium)

अनिल थडानी की नर्सरी में कई अनोखे फूलों के भी पौधे हैं। वो बताते हैं कि उनके पास एडेनियम की 22 किस्में हैं, सभी हाइब्रिड है और सबसे अलग-अलग कलर के फूल आते हैं। वो इन पौधों की देसी एडेनियम में ग्राफ्टिंग करके सक्सेस रेट देखना चाहते हैं। फिर एक पौधे में ही 2-3 ग्राफ्टिंग करके देखेंगे कि क्या उसमें अलग-अलग रंग के फूल आ रहे हैं।

पानी के हिसाब से पौधों का विभाजन (Division Of Plants According To Water)

जिन जगहों पर पानी की कमी है, वहां के लोग अनिल थडानी की तरकीब अपना सकते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने पानी की ज़रूरत के हिसाब से पौधों को अलग-अलग रखा है। जैसे जिन पौधों को एक दिन में 10 लीटर पानी चाहिए उन्हें एक साथ लगाया है और जिन्हें हफ्ते में 10 लीटर चाहिए उन्हें एक साथ लगाया है। साथ ही पौधों के नीचे पॉलिथिन डाली है क्योंकि पानी की कमी है, तो जब पॉलीथिन के साथ जब पानी डाला जाता है, पानी सिर्फ पौधा ही पीता है मिट्टी नहीं। इसके अलावा जब बारिश होती है तो इसे बीच से तोड़कर नाली बना देते हैं जिससे एक्स्ट्रा पानी निकालकर इकट्ठा कर लेते हैं।

देसी प्लांट का कलेक्शन (Collection Of Native Plants)

अनिल थडानी के पास पौधों का बहुत बड़ा कलेक्शन है जिसमें ढेर सारे देसी पौधें भी शामिल है, जैसे गुलाब, लाल-गुलाबी गुड़हल, लेमन ग्रास, एलोवेरा 2-3 तरह का (लाल, हरा, कड़वा वाला जिससे दवा बनती हैं, स्टीविया आदि। इसके अलावा उनके पास आंवला, गुलमोहर की तरह के कई देसी फूलों के पौधे, सदाबहार, सीज़नल फूलों के पौधे आदि भी हैं।

वो बताते हैं कि उनकी नर्सरी में कसावा (एक तरह का पौधा) भी है, जिसे साबुदाना बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा वो कई तरह के मेडिसिन प्लांट भी डेवलप कर रहे हैं।

वॉटर प्लांट्स (Water Plants)

अनिल की नसर्री में कई वॉटर प्लांट्स भी हैं, जैसे अजोला जिसे पशु आहार की तरह इस्तेमाल किया जाता है, वॉटर कैबेज आदि। वो बताते हैं कि वॉटर कैबेज अपनी जड़ों अंदर शैवाल को पकड़ लेती है और जब पौधे को बाहर निकाला जाता है तो शैवाल भी निकल जाता है। वो तालाब में मछलियां भी डालते हैं, साथ ही कमल का फूल निकलने के बाद पौधे का जो हिस्सा बचता है उसे भी पानी में डाल देते हैं, जिससे और नई पौधे विकसित होते रहते हैं।

अनिल कहते हैं कि यदि कोई कमल उगाना चाहता है तो एक छोटा तालाब बनाए और उमसें चिकनी काली मिट्टी डालकर उसमें खाद मिला ले फिर उसमें रॉक फॉस्फेट डाले, उसके बाद बोन मील यानी हड्डी का चूरा डालकर एक दिन के लिए छोड़ दे। फिर इसमें लोटस बल्ब लगा दे। वो कहते हैं कि जब गर्मी ज़्यादा होगी तो फूल खिलने लगेंगे। अनिल बताते हैं कि उनके पास कमल की कई किस्में है जिनकी कीमत 300 से 2500 रुपे तक है।

हाइड्रोपोनिक तकनीक में कौन-कौन से पौधे लगाए जा सकते हैं (Which Plants Can Be Grown Using Hydroponic Technology?)

अनिल हाइड्रोपोनिक खेती की भी ट्रेनिंग देते हैं, क्योंकि शहरी इलाकों में जहां जगह की कमी है, वहां के लिए ये तकनीक बहुत उपयोगी है। मगर इस तकनीक की अपनी कुछ सीमाएं हैं, क्योंकि इसमें तरह के पौधे नहीं लगाए जा सकतें।

अनिल कहते हैं कि इसमें लेट्यूस, टमाटर, मिर्ची, लौकी, बैंगन, खीरा, स्ट्रॉबेरी, धनिया, पालक, मेथी, (सारी पत्तेदार सब्ज़ियां हो सकती हैं) आसानी से लगाए जा सकते हैं। जहां तक फलों की बात करें तो चेरी और स्ट्रॉबेरी ही उगाई जा सकती हैं। अन्य पौधों को लेकर अभी रिसर्च जारी है।

ऑर्गेनिक दवाइयां (Organic Medicines)

पौधों का विकास अच्छी तरह हो और उसमें किसी तरह का रोग न लगे, इसके लिए अनिल ने अपनी नर्सरी के पास ही लैब भी बनाई हुई है, जिसमें वो कई तरह की ऑर्गेनिक दवाइयां तैयार करके हैं। वो नई-नई दवाइयां बनाकर उनका ट्रायल करते हैं और यदि उसका पौधों पर अच्छा असर होता है तो उसे बाहर बेचते हैं।

पौधों में लगने वाले फंगस की समस्या को खत्म करने के लिए भी उन्होंने दवा बनाई है। वो कहते हैं कि ऑर्गेनिक दवाइयों का पूरा असर तभी होता है जब उसे सही समय पर इस्तमाल किया जाए, यानी किसी रोग की शुरुआत में ही दवा डालने पर वो काम करेगी, न कि जब रोग पूरे पौधे में फैल जाए तब इसका इस्तेमाल किया जाए। उनका कहना है कि किसानों को सबसे पहले पौधों की समस्या की सही पहचान करना बहुत ज़रूरी है, तभी वो सही दवा का इस्तेमाल कर पाएंगे।

नर्सरी बिज़नेस को कैसे बैलेंस रखें (How To Balance A Nursery Business)

अनिल का कहना है कि नर्सरी बिज़नेस अच्छा चले इसके लिए बहुत ज़रूरी है कि आपके ग्राहक सही हों और आपकी बाज़ार तक अच्छी पहुंच हो। साथ ही आपको नई-नई चीज़ें बनाकर सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों तक जानकारी पहुंचानी होगी, तभी लोग आपके पास आएंगे। ये एक डेकोरेटिव बिज़नेस है तो हर बार ट्रेंड बदलना होगा और नए-नए किस्म के पौधे उगाने होंगे।

आमतौर पर गर्मी में ये बिज़नेस डाउन हो जाता है, तो गर्मी में मेंटेनेंस बढ़ जाती है। जबकि बारिश में ज़्यादा से ज़्याद पौधे कलेक्ट करने चाहिए, क्योंकि इस समय पौधा आसानी से लग जाते हैं।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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