Scientific Technique In Farming: खेती में किया वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल, ज़ीरो से 4 लाख तक पहुंची आमदनी

खेती में सफलता पाने के लिए डिग्री की नहीं सही जानकारी की ज़रूरत होती है। इसकी बेहतरीन मिसाल हैं बिहार के अररिया जिले के रहने वाले किसान मोहम्मद हलालुद्दीन, जो सिर्फ नौंवी पास हैं, लेकिन आज लाखों की कमाई कर रहे हैं। मोहम्मद हलालुद्दीन कभी ट्रक ड्राइवर की नौकरी किया करते थें। उससे परिवार का गुज़ारा मुश्किल से होता था। फिर उन्होंने खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों  (Scientific Technique In Farming) को अपनाया और अब वो एक प्रगतिशील किसान बनकर दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं।

Scientific Technique In Farming: खेती में किया वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल, ज़ीरो से 4 लाख तक पहुंची आमदनी

खेती में सफलता पाने के लिए डिग्री की नहीं सही जानकारी की ज़रूरत होती है। इसकी बेहतरीन मिसाल हैं बिहार के अररिया जिले के रहने वाले किसान मोहम्मद हलालुद्दीन, जो सिर्फ नौंवी पास हैं, लेकिन आज लाखों की कमाई कर रहे हैं। मोहम्मद हलालुद्दीन कभी ट्रक ड्राइवर की नौकरी किया करते थें। उससे परिवार का गुज़ारा मुश्किल से होता था। फिर उन्होंने खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों  (Scientific Technique In Farming) को अपनाया और अब वो एक प्रगतिशील किसान बनकर दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं।

कभी उनकी सालाना कमाई सिर्फ 20,000 रुपए थी, लेकिन अब वो खेती और वर्मीकंपोस्ट इकाई की मदद से करीब 4 लाख की कमाई कर लेते हैं। मोहम्मद हलालुद्दीन की सफलता अन्य किसानों के लिए एक प्रेरणा है। दरअसल, मोहम्मद हलालुद्दीन की ज़िंदगी में ये बदलाव खेती में वैज्ञानिक पद्धति (Scientific Technique In Farming) के इस्तेमाल से आया।  इसका श्रेय जाता है कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों को, जिन्होंने उनका सही मार्गदर्शन किया।

वैज्ञानिकों की सलाह और प्रशिक्षण से आया बदलाव

मोहम्मद हलालुद्दीन के पास 2 एकड़ पैतृक ज़मीन थी। इस पर वो धान, गेहूं और जूट की खेती करते थे। इसके अलावा उनके पास 2 भैंस, 2 गाय और 4 बकरियां भी थीं। इससे आमदनी न के बराबर थी, क्योंकि वो पुराने पारंपरिक तरीके से ही खेती करते थे। इसलिए उन्होंने ट्रक ड्राइवर की नौकरी शुरू की। उससे भी ऊब गए, क्योंकि गुज़ारा मुश्किल से हो रहा था।

फिर उन्होंने खेती और उससे जुड़े काम करने की सोची और 2006 में कृषि विज्ञान केंद्र, अररिया के वैज्ञानिकों से मिले। उन्होंने अपनी समस्या पर चर्चा की और वैज्ञानिकों ने उन्हें खेती की वैज्ञानिक तकनीक के बारे में जानकारी दी।

इसके साथ ही उन्होंने वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन तकनीक पर प्रशिक्षण लिया और राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय (RAU), पूसा से औषधीय पौधों पर प्रशिक्षण भी लिया। इसके बाद उन्होंने वैज्ञानिक तरीके से खेती की शुरुआत की और जल्दी ही उनकी ज़िंदगी बदलने लगी।

वैज्ञानिक पद्धति

तैयार की वर्मीकंपोस्ट यूनिट 

मोहम्मद हलालुद्दीन ने 2007 में अपनी वर्मीकम्पोस्ट यूनिट, 10 सब-यूनिट्स के साथ शुरू की। आज उनके पास 70 वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन की सब-यूनिट्स हैं। वो अनमोल पारस वर्मीकम्पोस्ट जैविक खाद के नाम से सिलीगुड़ी के चाय बागानों और अन्य जिलों में भी अपने प्रोडक्ट बेचते हैं।

अपनी वर्मीकम्पोस्ट इकाई में उन्होंने 10 लोगों को नौकरी पर लगाया है और सिर्फ वर्मीकंपोस्ट यूनिट से उन्हें सालाना 2.5 लाख रुपए का मुनाफा हो रहा है।

Scientific Technique In Farming: खेती में किया वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल, ज़ीरो से 4 लाख तक पहुंची आमदनी
तस्वीर साभार- farmingindia

वैज्ञानिक पद्धति की मदद से बढ़ा उत्पादन

उन्होंने धान, गेहूं और जूट की वैज्ञानिक खेती शुरू की और फायदा साफ नज़र आने लगा। आज उनके पास 6.5 एकड़ ज़मीन है और 30 एकड़  ज़मीन लीज पर लेकर खेती कर रहे हैं। 11 एकड़ में वो धान उगा रहे हैं जिससे 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपज होती है। 5 एकड़ में गेहूं उगाते हैं जिससे प्रति हेक्टेयर 38 क्विंटल फसल हो रही है।

3 एकड़ में जूट की खेती कर रहे हैं जिससे 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर फसल होती है। धान की खेती से उन्हें 50,000 रुपये, गेहूं से 30,000 रुपये और जूट से 50,000 रुपए की आमदनी हो रही है। यानी खेती से उन्हें 1.30 हजार रुपए की सालाना आमदनी हो रही है। इसके अलावा उनके पास 9 भैंस, 6 गाय, 3 बैल और 40 बकरियां भी हैं।

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के संपर्क में आने के बाद उनकी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल गई और अब वो एक प्रगतिशील किसान बन चुके हैं। उनकी सफलता से साफ है कि खेती में वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

 

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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