Biofloc fish farming : इंजीनियरिंग छोड़ मछलीपालक बने पंकज तिवारी, बताई कम जगह में मछली पालन की तकनीक

पंकज महाराष्ट्र में बतौर इंजीनियर नौकरी करते थे, मगर कोविड में नौकरी छोड़ वो गांव आ गए। वो बताते हैं कि उनके पिता जी मछली पालन का काम करते थे, इसलिए उन्हें ये बात पता थी कि इंडिया में फूड का बिज़नेस बहुत अच्छा विकल्प है, जो कभी बंद नहीं होगा। उन्होंने बिज़नेस के प्रॉफिट मार्जिन, कितने लोगों को रोज़गार दे सकते हैं, इन सभी बातों पर विचार करने के बाद इस व्यवसाय को शुरू किया।

Biofloc fish farming : इंजीनियरिंग छोड़ मछलीपालक बने पंकज तिवारी, बताई कम जगह में मछली पालन की तकनीक

मछली पालन (Fish Farming) अब कमाई का अच्छा ज़रिया बन चुका है, तभी तो सिर्फ गांव के लोग ही नहीं, बल्कि शिक्षित युवा भी इस ओर रुख कर रहे हैं। बिहार के वैशाली जिले के दयालपुर गांव के रहने वाले पंकज कुमार तिवारी पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर थें, मगर कोविड में नौकरी छोड़कर गांव आ गए और बायोफ्लोक फिश फार्मिंग (Biofloc fish farming) शुरू कर दी।

अब वो अपने क्षेत्र में इतने सफल हो चुके हैं कि दूसरे युवाओं को भी मदद कर रहे हैं। इंजीनियरिंग से मछली पालन का रुख करने वाले पंकज तिवारी ने मछली पालन की (Biofloc fish farming) इस तकनीक के बारे में विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।

क्यों शुरू किया मछली पालन का व्यवसाय

पंकज महाराष्ट्र में बतौर इंजीनियर नौकरी करते थे, मगर कोविड में नौकरी छोड़ वो गांव आ गए। वो बताते हैं कि उनके पिता जी मछली पालन का काम करते थे, इसलिए उन्हें ये बात पता थी कि इंडिया में फूड का बिज़नेस बहुत अच्छा विकल्प है, जो कभी बंद नहीं होगा। उन्होंने बिज़नेस के प्रॉफिट मार्जिन, कितने लोगों को रोज़गार दे सकते हैं, इन सभी बातों पर विचार करने के बाद इस व्यवसाय को शुरू किया।

कैसे काम करती है बायोफ्लोक तकनीक (Biofloc Technology)

पंकज तिवारी कहते हैं कि Biofloc Technology में बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया जाता है। जो टैंक के अंदर की गंदगी या FCR (Feed Conversion Ratio) को कंट्रोल करने के लिए फ्लॉक बनाते हैं। इसमें कम रेंज में मछली का बढ़िया उत्पादन ले सकते हैं। इसका फायदा बहुत सी चीज़ों में होता है जैसे आप टैंक में फ्लॉक का इस्तेमाल करते हैं तो पानी के पैरामीटर कंट्रोल हो जाते हैं जिससे मछलियों का विकास अच्छा होता है।

टैंक का साइज़

पंकज बताते हैं कि टैंक अलग-अलग साइज में आते हैं। उनका जो टैंक है वो 4 डायमीटर में है। कोई चाहे तो 4,8,12,16 अलग-अलग डायमीटर के टैंक बना सकता है। हर टैंक के साइज के हिसाब से मछली का उत्पादन लिया जाता है। जैसे 4 डायमीटर का टैंक है उसमें 1 से लेकर 2-2.5 क्विंटल तक मछली का उत्पादन लिया जा सकता है। आगे वो बताते हैं कि दूसरी चीज़ है कि जब टैंक में वो मछलियां स्टॉक करते हैं, तो उन्हें पता है कि टैंक में 2 क्विंटल की कैपिसिटी है, तो उसके हिसाब से गिनती करके मछली के बच्चे डालते हैं क्योंकि उनको विकसित होने के लिए थोड़ी जगह भी चाहिए, इसलिए बहुत ज़्यादा बच्चे नहीं डालते हैं।

क्या देते हैं आहार

पंकज कहते हैं कि वो 3-4 ग्राम के फिश सीड को स्टॉक करते हैं। वो कहते हैं कि बायोफ्लॉक में हर तरह की मछली नहीं होती है। कैट फिश प्रजाति की मछली इसमें अच्छी तरह से विकास करती है। इसके अलाव कॉमन कार्प, अमोल कार्प, रूप चंदा, पंगेशियस आदि भी अच्छी तरह विकसित होती है।

कितना देते हैं आहार

पंकज कहते हैं कि मछली के बच्चों को  सीड स्टॉक करने के बाद बॉडी मास का 3-4 प्रतिशत आहार दिया जाता है। मतलब एक किलो सीड स्टॉक किया है तो उसका 3-4 प्रतिशत आहार देते हैं जिसमें प्रोटीन भरपूर मात्रा में होना चाहिए। क्योंकि शुरुआत में उनका विकास बहुत तेज़ी से होता है तो प्रोटीन की मात्रा आहार में अधिक रखनी होती है।

जहां तक देखभाल का सवाल है तो बायोफ्लॉक में बहुत मैन्युअल देखभाल नहीं करनी होती है। बस पानी के पैरामीटर जैसे अमोनिया, पीएच, टीडीएस को कंट्रोल करना होता है। अगर ये सब नियंत्रित कर लेते हैं, तो मछली पालन में किसी तरह की परेशानी नहीं होगी।

कैसे करते हैं अमोनिया को नियंत्रित

पंकज का कहना है कि बायोफ्लॉक में सबसे ज़्यादा समस्या अमोनिया की आती है, जिसका कारण है गंदगी और ये गंदगी होती है फीड से। अगर अच्छी कंपनी का फीट इस्तेमाल नहीं करते हैं तो बायोफ्लॉक में नीचे सल्ज (गंदगी) जमा हो जाती है और वहां से अमोनिया बढ़ने लगता है।

इसे कंट्रोल करने के लिए फ्लॉक के माध्यम से बैक्टीरिया बनाते हैं। अमोनिया का स्तक 0-2.5 पीपी तक रखा जाता है, लेकिन जब अमोनिया बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है, तो पानी बदलने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं बचता है।

कितनी आती है लागत

बायफ्लॉक के लिए दो-तीन तरह के टैंक आते हैं। पंकज बताते हैं कि आप अगर सस्ता टैंक लेते हैं तो एक टैंक 20-25 हजार में लग जाता है। अगर अच्छा टैंक लेते हैं जो 10 साल चले, तो उसमें पाइप आदि सब लगाकर 30-40 हजार खर्च होता है।

तालाब और टैंक में मछली पालन में भिन्नता

पारंपरिक रूप से तालाब में ही मछली पालन किया जाता है, मगर अब कम जगह में अच्छा उत्पादन लेने के लिए मछली पालक बायोफ्लॉक तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। पंकज कहते हैं कि बायफ्लॉक में अलग-अलग तरह की मछलियों को पाल सकते हैं। ये तकनीक ज़्यादा सुरक्षित है, क्योंकि इसमें अलग-अलग टैंक में अलग-अलग तरह की मछलियों को स्टॉक करके अपनी तरह से विकास करा सकते हैं।

तालाब में बरसात के समय में दिक्कत होती है। पानी में अगर ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाए और उसे कंट्रोल नहीं किया जाए, तो मछलियों के लिए जीवित रहना मुश्किल हो जाता है। साथ ही अचानक से कोई बीमारी आती है तो तालाब में मछलियां जल्दी मरने लगती हैं।

इसके अलावा इसमें मछलियों को विकसित होने में भी ज़्यादा समय लगता है। साथ ही मछलियों को पकड़ने के लिए मजदूर और जाल की ज़रूरत पड़ती है, जिससे खर्च बढ़ जाता है।

विकास अनुपात में फर्क

पंकज का कहना है कि तालाब और बायोफ्लॉक में मछलियों के ग्रोथ रेशियों यानी विकास अनुपात में ज़्यादा फर्क नहीं आता है। टैंक में 6-7 महीने में मछलियां 500 ग्राम की हो जाती हैं। जबकि तालाब मे वही साइज 7-8 महीने में होता है। अगर एक 4 डायमीटर के टैंक की बात करें मतलब 13-14 फीट में डेढ़ से दो क्विंटल मछली का उत्पादन ले सकते हैं, जोकि तालाब में ये संभव नहीं है। हां, इसमें ग्रोथ के लिए पानी का फ्लो हमेशा अच्छा होना चाहिए, पानी ब्रेक होना चाहिए। इसके लिए रिंग ब्लोअर से या एविएटर से हवा प्रदान करते हैं जिससे ऑक्सीजन लेवल और पानी का मूवमेंट अच्छा रहता है जो मछलियों के विकास के लिए ज़रूरी है।

बिना प्रशिक्षण के किया काम

पकंज ने मछली पालन का काम शुरू करने से पहले किसी तरह की ट्रेनिंग नहीं ली है, क्योंकि उनके पिता जी मछली पालन का काम करते थे, तो उन्हें इसके बारे में पता था। उनका कहना है कि फर्क सिर्फ इतना है कि पिता जी तालाब में मछली पालन करते थे। वो बताते हैं कि अगर कोई किसान मछली पालन का काम शुरू करना चाहे तो उसे प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत केंद्र की ओर सब्सिडी मिलती है।

सब्सिडी की राशि महिलाओं/अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए 60 प्रतिशत है जबकि सामान्य कैटेगरी के लिए 40 प्रतिशत है। सब्सिडी की लाभ उठाने के लिए किसान के पास या तो खुद की ज़मीन होनी चाहिए या उसे 10 साल का लीज़ एग्रीमेंट बनवा होगा।

सब्सिडी के लिए ऑनलाइन आवेदन करके सारे ज़रूरी कागज़ात जमा करा दे। ऑनलाइन एप्लिकेशन जमा होने के बाद सरकारी विभाग मीटिंग आदि करती है और जो लोग योजना की कैटेगरी में आते हैं, उन्हें फोन करके काम का ऑर्डर दिया जाता है, जिसे एक निश्चित समय जैसे 2 महीने में पूरा करना होता है।

काम खत्म हो जाने पर बिल के साथ एप्लीकेशन जमा करना होगा कि काम खत्म हो गया है और सीड स्टॉक करने के लिए आपको पैसे चाहिए। उसके बाद 2-3 किश्त में सरकार की ओर से पैसा अकाउंट में आ जाता है।

मछलियों के रोग

पंकज का कहना है कि मछलियों में सबसे ज़्यादा फंगल इंफेक्शन का खतरा होता है। इससे बचाव के लिए पोटैशियम परमैगनेट या वॉटर सैनिटाइज़र का इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर इससे काम नहीं चलता है तो एंटी बायोटिक का उपयोग कर सकते हैं।

बायोफ्लॉक में बीमार मछली की पहचान आसान होती है क्योंकि वो अलग दिखने लगती है तो उनकी पहचान करके रोग का इलाज आसान हो जाता है।

कितना होता है मुनाफा

पंकज कहते हैं कि अगर बहुत खराब स्थिति भी हो तो एक टैंक से आराम से 20-25 हजार बचा सकते हैं। अगर एक टैंक से 20 हजार की बचत हो रही है तो 10 टैंक से 2 लाख एक बार में मुनाफा कमाया जा सकता है। उनके पास कुल 70 टैंक है तो कम से कम 14 लाख वो आसानी से बचा लेते हैं, मुनाफा इससे ज़्यादा भी हो सकता है।

पंकज बेरोजगार युवाओं को सलाह देते हैं कि एक बार मछली पालन के क्षेत्र में उतरकर देखे, इसमें कम समय में वो अच्छी आमदनी कमा सकते हैं

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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