Zero Tillage Farming: किसान जगदीश यादव ने बदला खेती का तरीका, ज़ीरो टिलेज फ़ार्मिंग से कर रहे उन्नत खेती

ज़ीरो टिलेज फ़ार्मिंग, जिसे नो-टिल खेती भी कहा जाता है, एक आधुनिक कृषि तकनीक है जिसमें मिट्टी की जुताई किए बिना सीधे बीज बोए जाते हैं। पारंपरिक खेती में खेत की कई बार जुताई करनी पड़ती है, लेकिन ज़ीरो टिलेज में ये प्रक्रिया पूरी तरह से बदल जाती है। इस तकनीक में एक ख़ास मशीन "नो-टिल ड्रिल" का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे बीज को सीधे मिट्टी में डालकर ढक दिया जाता है।

Zero Tillage Farming: किसान जगदीश यादव ने बदला खेती का तरीका, ज़ीरो टिलेज फ़ार्मिंग से कर रहे उन्नत खेती

भारत में खेती सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि किसानों की जीवनशैली और परंपरा का हिस्सा है। परंपरागत खेती (Traditional Farming) में खेत की जुताई, बुआई और फसल उगाने में बहुत मेहनत और लागत लगती है। लेकिन क्या हो अगर बिना जुताई किए ही बेहतरीन फसल उगाई जा सके? जी हां, यह संभव है ज़ीरो टिलेज फ़ार्मिंग (Zero Tillage Farming)  से।

झारखंड के कोडरमा जिले के किसान जगदीश यादव की प्रेरणादायक कहानी ज़ीरो टिलेज फ़ार्मिंग (Zero Tillage Farming)  से कनेक्टेड है। उन्होंने इस अनोखी ज़ीरो टिलेज फ़ार्मिंग (Zero Tillage Farming)  तकनीक  को अपनाकर अपनी पैदावार बढ़ाई और लागत को कम किया।

 जगदीश यादव की नई शुरुआत

जगदीश यादव, कोडरमा के एक जागरूक किसान हैं। उनके पास 12 एकड़ कृषि भूमि है और वे वर्षों से पारंपरिक खेती करते आ रहे थे। लेकिन खेती में बढ़ती लागत और लगातार घटते उत्पादन ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया।

एक दिन, उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र में ज़ीरो टिलेज फ़ार्मिंग पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया। वहां उन्होंने जाना कि इस तकनीक से खेत की जुताई की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे समय और पैसे दोनों की बचत होती है। उन्होंने ठान लिया कि इस तकनीक को अपनाकर अपनी खेती को एक नई दिशा देंगे।

 क्या है ज़ीरो टिलेज फ़ार्मिंग?

ज़ीरो टिलेज फ़ार्मिंग, जिसे नो-टिल खेती भी कहा जाता है, एक आधुनिक कृषि तकनीक है जिसमें मिट्टी की जुताई किए बिना सीधे बीज बोए जाते हैं। पारंपरिक खेती में खेत की कई बार जुताई करनी पड़ती है, लेकिन ज़ीरो टिलेज में ये प्रक्रिया पूरी तरह से बदल जाती है। इस तकनीक में एक ख़ास मशीन “नो-टिल ड्रिल” का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे बीज को सीधे मिट्टी में डालकर ढक दिया जाता है।
इस पद्धति में मिट्टी की सतह पर पुराने फसल अवशेषों को छोड़ दिया जाता है, जिससे ये प्राकृतिक खाद के रूप में काम करता है और मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।

  ज़ीरो टिलेज फ़ार्मिंग के फायदे

जब जगदीश यादव ने जीरो टिलेज तकनीक से धान की बुवाई की, तो उन्हें कई फायदे नजर आए:

कम लागत, ज्यादा मुनाफा –
इस तकनीक में ट्रैक्टर से जुताई की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे डीजल और मजदूरी की लागत कम हो जाती है।

जल की बचत – मिट्टी की सतह पर फसल अवशेषों की परत होने से पानी का वाष्पीकरण कम होता है, जिससे खेत की नमी बनी रहती है।
समय की बचत – पारंपरिक खेती में जहां खेत तैयार करने में समय लगता है, वहीं जीरो टिलेज में सीधे बुवाई की जा सकती है।

मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है – बिना जुताई की खेती में मिट्टी में रहने वाले लाभदायक सूक्ष्मजीव और जैविक तत्व नष्ट नहीं होते, जिससे मिट्टी अधिक उपजाऊ बनी रहती है।

जलवायु परिवर्तन में मददगार – कम जुताई से कार्बन उत्सर्जन कम होता है, जिससे पर्यावरण को भी फायदा होता है।

उच्च उत्पादन – इस तकनीक से गेहूं और धान जैसी फसलों की पैदावार पारंपरिक विधि की तुलना में अधिक होती है।

ज़ीरो टिलेज के कई फ़ायदे हैं, लेकिन इसकी कुछ चुनौतियां भी हैं

शुरुआती लागत अधिक होती है – किसानों को नो-टिल ड्रिल मशीन खरीदने या किराए पर लेने की जरूरत पड़ती है।

खरपतवार की समस्या – चूंकि खेत की जुताई नहीं होती, इसलिए खरपतवार अधिक बढ़ सकते हैं, जिनका प्रबंधन करना जरूरी होता है।
रोगों का ख़तरा – पुराने फसल अवशेषों के कारण कुछ बीमारियां खेत में बनी रह सकती हैं।

हालांकि, उचित प्रबंधन और आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से इन चुनौतियों से आसानी से निपटा जा सकता है।

 भारत में ज़ीरो टिलेज फ़ार्मिंग की स्थिति और सरकारी मदद

भारत के कई राज्यों में ज़ीरो टिलेज तकनीक को तेजी से अपनाया जा रहा है। बिहार, झारखंड, असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में जहां बाढ़ का ख़तरा अधिक रहता है, वहां यह तकनीक किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। सरकार भी किसानों को इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। केंद्र और राज्य सरकारें किसानों को ज़ीरो टिलेज मशीन पर सब्सिडी प्रदान कर रही हैं।

जगदीश यादव की सफलता

जगदीश यादव ने अपनी जमीन पर ज़ीरो टिलेज तकनीक से चावल और गेहूं की खेती शुरू की। पहली ही फसल में उन्होंने देखा कि उनकी उत्पादन लागत में 25% तक की कमी आई और उपज भी बढ़ी। पहले जहां उन्हें 1 एकड़ में 18-20 क्विंटल गेहूं मिलता था, अब उन्हें 22-24 क्विंटल तक गेहूं मिलने लगा।

उन्होंने अपने आस-पास के किसानों को भी इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रेरित किया और आज उनके गांव में कई किसान ज़ीरो टिलेज को अपनाकर मुनाफ़ा कमा रहे हैं।

ज़ीरो टिलेज फ़ार्मिंग भारतीय किसानों की ई उम्मीद की किरण

जीरो टिलेज फार्मिंग भारतीय किसानों के लिए एक नई उम्मीद की किरण है। ये तकनीक न केवल लागत और समय की बचत करती है, बल्कि किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में भी मदद करती है।

ज़ीरो टिलेज तकनीक एक शानदार विकल्प

अगर किसान खेती में लागत घटाकर मुनाफा बढ़ाना चाहते हैं, तो जीरो टिलेज तकनीक को अपनाना एक शानदार विकल्प चुन सकते हैं। अब समय आ गया है कि हम परंपरागत तरीकों से आगे बढ़कर नई तकनीकों को अपनाएं।


सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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