पॉलीहाउस में स्ट्रॉबेरी और शिमला मिर्च की खेती करने वाली रीना सिंह है महिला सशक्तिकरण की मिसाल

पॉलीहाउस में स्ट्रॉबेरी और शिमला मिर्च की खेती कर रही रीना सिंह ने आधुनिक तकनीक से बागवानी को बनाया लाभदायक व्यवसाय।

पॉलीहाउस में स्ट्रॉबेरी और शिमला मिर्च की खेती Cultivation of strawberry and capsicum in polyhouse

किसान अगर थोड़ी समझदारी से फ़सलों का चुनाव करें और आधुनिक तकनीक इस्तेमाल करे, तो खेती से अच्छी कमाई कर सकता है, जैसा कि उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के महरौला गांव की महिला किसान रीना सिंह कर रही हैं। रीना सिंह को बचपन से ही बागवानी का शौक रहा है तो उन्होंने अपने बचपन के शौक को एक सफल व्यवसाय में तब्दील कर दिया। कभी घर के गमलों में सब्ज़ियां उगाने वाली रीना सिंह आज 2 पॉलीहाउस में शिमला मिर्च और स्ट्रॉबेरी की खेती (Strawberry cultivation) कर रही हैं। अपने इस सफ़र के बारे में उन्होंने विस्तार से बात की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।

गमलों से पॉलीहाउस तक का सफ़र

किसी ने सच ही कहा कि अगर दिल में कुछ कर गुज़रने का जज़्बा हो रास्ते अपने आप मिल जाते हैं। लखनऊ से 30-35 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के महरौला गांव कि रहने वाली महिला किसान रीना सिंह को पौधों से लगाव तो बचपन से ही था और इसलिए पहले वो घर के गमलों में ही सब्ज़ियां उगाकर अपना शौक पूरा कर लेती थीं, मगर उस वक्त खुद उन्हें भी शायद पता नहीं होगा कि उनका ये शौक उन्हें एक प्रगतिशील किसान और सफल महिला उद्यमी बना देगा।

आज वो एक एकड़ के पॉलीहाउस में लाल, पीले और हरे शिमला मिर्च की खेती (Capsicum cultivation) कर रही हैं और एक एकड़ के दूसरे पॉलीहाउस में स्ट्रॉबेरी भी उगा रही हैं। रीना बताती हैं कि पॉलीहाउस में सबसे पहले तो उन्होंने जरबेरा फूल की खेती की थी, जिसका रिजल्ट उन्हें बहुत अच्छा मिला। उसके बाद उन्होंने स्ट्रॉबेरी उगाया। फिर शिमला मिर्च की खेती (Capsicum cultivation) की, जिसका उन्हें बेहतरीन परिणाम मिल रहा है।

सफलता की कुंजी

तकनीक के इस दौर में खेती में सफल होने के लिए भी इसका इस्तेमाल ज़रूरी है और रीना ने वही किया। मेहनत तो उन्होंने की ही साथ ही ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी आधुनिक तकनीक का भी इस्तेमाल किया, जिससे पौधों को पानी और पोषण पर्याप्त मात्रा में मिलता है। इससे उनका विकास अच्छी तरह होता है और फ़सल भी अधिक होती है। वो बताती हैं कि उनके पॉलीहाउस में 10 हजार पौधे लगे हुए हैं जिनमें फर्टिलाइज़र, खाद आदि सभी ड्रिप सिस्टम से ही जाता है। पौधों में यदि कोई रोग या कीट लग जाता है तो कीटनाशक भी ड्रिप सिस्टम से ही डाला जाता है।

कब होती है शिमला मिर्च की रोपाई

नर्सरी बनाकर सबसे पहले शिमला मिर्च के बीज से पौधे तैयार किए जाते हैं और इन पौधों को पॉलीहाउस में अगस्त-सितंबर महीने में लगाया जाता है। रोपाई के बाद 50-60 दिनों में फल आने लगते हैं और 90 दिनों में इनका पूरा कलर आ जाता है और शिमला मिर्च बेचने के लिए तैयार हो जाती है। रीना बताती हैं कि लखनऊ के मार्केट में में लाल और पीले रंग की शिमला मिर्च की अच्छी मांग है। तो इन्हें तोड़कर बाज़ार ले जाने पर ये हाथों हाथ बिक जातें है। हर दूसरे-तीसरे दिन वो शिमला मिर्च तोड़कर बाज़ार में ले जाती हैं और ये आसानी से बिक जाती है, उनके लिए मार्केटिंग की कोई समस्या नहीं है।

कैसे बनाया पॉलीहाउस?

सरकारी योजनाओं और जिले के बागवानी विभाग की मदद से रीना ने अपने पॉलीहाउस की शुरुआत की। वो बताती हैं कि सबसे पहले तो पॉलीहाउस में लगने वाले उपकरण, मेंटेनेंस खर्च का हिसाब करके लिस्ट बनानी होती है, पॉलीहाउस के लिए जो भी चीज़ें लगनी हैं या जो भी खर्च होना है उसका रिकॉर्ड रखना होता है।

बागवानी विभाग के अधिकार साइट पर आते हैं और वो स्टेप बाय स्टेप बताते हैं कि कैसे सभी खर्च को लिखना है और प्रोजेक्ट फाइल में अटैच करके उन्हें देना है। एक बार फाइल उन्हें देने के बाद वो लोग बैंक से लोन दिलवाने में मदद करते हैं और लोन मिलने के बाद सरकार की ओर से सब्सिडी मिल जाती है पॉलीहाउस के लिए।

महिला सशक्तिकरण की मिसाल

रीना सिंह खुद तो आत्मनिर्भर बन ही चुकी हैं और अपने साथ 8-10 महिलाओं को भी आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का काम कर रही हैं। वो बताती हैं कि उन्होंने 8-10 महिलाओं को रोज़गार दिया हुआ है, जो शिमला मिर्च की तुड़ाई से लेकर पैकेजिंग तक का काम करती हैं, इससे उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ है। रीना नारी सशक्तिकरण कार्यक्रम से भी जुड़ी हुई हैं।

लखनऊ के लिए स्ट्रॉबेरी की उपयुक्त किस्म

शिमला मिर्च के साथ ही रीना पॉलीहाउस में स्ट्रॉबेरी भी उगा रही हैं। वो बताती हैं कि वैसे तो स्ट्रॉबेरी की स्वीट चार्ली और विंटर डॉन दोनों ही किस्में अच्छी है, मगर लखनऊ के मौसम और जलवायु के हिसाब से विंटर डॉन ज़्यादा उपयुक्त है। उन्होंने पिछले साल भी इसे ही लगाया था और अच्छी फ़सल मिलने के बाद दोबारा इसी किस्म को लगाया। वो बताती हैं कि पॉलीहाउस में स्ट्रॉबेरी की खेती (Strawberry cultivation) के लिए पहले इसकी पौध तैयार करनी होती है जिसे वो पॉलीहाउस में ही तैयार करती हैं और फिर 15 सितंबर से इनकी रोपाई की जाती है। रोपाई के 50 दिन बाद स्ट्रॉबेरी के फल आने लगते हैं।

पॉलीहाउस के फायदे

पॉलीहाउस में शिमला मिर्च और स्ट्रॉबेरी के साथ ही खीरा, टमाटर आदि की भी खेती की जाती है। पॉलीहाउस में खेती की शुरुआती लागत भले ही थोड़ी अधिक आती है, मगर लंबे समय में फायदेमंद ही साबित होती है।

  • फ़सल पर मौसम की मार नहीं पड़ती यानी अधिक गर्मी, पाला, अधिक बरसात से फ़सल को नुकसान नहीं होता है।
  • पॉलीहाउस के अंदर के वातावरण को नियंत्रित किया जा सकता है जिससे पैदावार अधिक होती है
  • इसमें पूरे साल किसी भी फ़सल को उगाया जा सकता है।
  • पॉलीहाउस में कीट और बीमारियों का खतरा कम रहता है, चारों तरफ से बंद रहने की वजह से फ़सलों को बीमारियों और कीटों से बचाया जा सकता है।
  • इसमें उच्च गुणवत्ता वाली फ़सल प्राप्त होती है।

पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की खेती के लिए ध्यान रखने योग्य बातें

  • शिमला मिर्च की फ़सल ठंडे मौसम में होती है। इसलिए पॉलीहाउस का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस के बीच रखना चाहिए।
  • मिट्टी का पीएच मान 6.0 से 6.5 के बीच होना चाहिए।
  • पॉलीहाउस में शिमला मिर्च के पौधों को एक ही क्यारी पर दो पंक्तियों में लगाया जाता है, जिसमें पौध से पौधे के बीच 45 से 50 सेमी. और पंक्तियों के बीच 50 सेमी. की दूरी होनी चाहिए।
  • शिमला मिर्च की बुवाई फरवरी-मार्च या अप्रैल-मई में की जाती है।
  • फ़सल तैयार होने के बाद 2-3 दिन में इसकी कटाई करें।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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