गणेश दत्त ने पहाड़ी इलाके में शुरू की लहसुन की खेती, जानिए कहां से लिए बीज, क्या है लागत-मुनाफ़ा?

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर ज़िले के रहने वाले गणेश दत्त लहसुन की खेती कर रहे हैं। गणेश पिछले 10 साल से लहसुन की खेती कर रहे हैं। खर्चा लगभग 25 हज़ार के आस-पास आ जाता है। लहसुन की खेती में दो बीघा में 2 लाख रुपये का मुनाफ़ा मिल जाता है। इसके साथ ही वो सब्जियों फलों और गेहूं की खेती कर रहे हैं।

लहसुन की खेती

देश में कृषि के क्षेत्र में लगातार परिवर्तन हो रहा है। किसानों की मेहनत कृषि को नए आयाम पर ले जाने का काम कर रही है। इसी क्रम में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर ज़िले के रहने वाले गणेश दत्त लहसुन की खेती (Garlic Farming) कर रहे हैं। गणेश पिछले 10 साल से लहसुन की खेती कर रहे हैं। इसके साथ ही वो सब्जियों फलों और गेहूं की खेती कर रहे हैं। किसान ऑफ इंडिया से बातचीत में गणेश दत्त ने लहसुन की खेती से जुड़ी कई बातें साझा की।

लहसुन की खेती की शुरुआत कैसे की?

गणेश दत्त बतातें है कि उन्होंने करीब 10 साल पहले लहसुन की खेती दो बिस्वा से की थी। उन्होंने आगे कहा कि मैंने दूसरे किसानों को देखकर लहसुन की खेती की शुरुआत की। लहसुन की खेती से होने वाला मुनाफ़ा उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बना। पहले दो बिस्वा में लहसुन को लगाया। इसकी खेती में जैसे-जैसे मुनाफ़ा बढ़ता गया, वैसे-वैसे लहसुन की वुबाई का रकबा बढ़ाया। इस समय दो बीघा के खेत में लहसुन लगा रखा है।

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लहसुन की खेती
पहाड़ी इलाके में लहसुन की खेती (Photo: KOI)

लहसुन की खेती में कितनी लागत और मुनाफ़ा?

गणेश बताते हैं कि वो दो बीघा के खेत में ढाई से तीन क्विंटल बीज का इस्तेमाल करते हैं। हमारे यहां बीज जम्मू से आते हैं। बीज की कीमत 165 रुपये प्रति किलो ग्राम रहती है। कुछ खाद में खर्चा आता है। इन सब का खर्चा लगभग 25 हज़ार के आस-पास आ जाता है। लहसुन की खेती में दो बीघा में 2 लाख रुपये का मुनाफ़ा मिल जाता है।

लहसुन की खेती में किन बीजों का इस्तेमाल?

अच्छी क्वालिटी का बीज होना चाहिए, जिससे पहाड़ी इलाके के किसानों को फ़ायदा मिले। बीज को खरीदते समय बीजों को ध्यान से देखना चाहिए। लहसुन का बीज कटा नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही बीज सड़ा-गला नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही किसान को उन्नत बीजों का इस्तेमाल करना चाहिए।

लहसुन की खेती
लहसुन की खेती – Garlic Farming (Photo: KOI)

लहसुन की खेती में किन बातों का रखे ध्यान?

लहसुन की खेती में बीजों के साथ-साथ कई तरह की देखभाल की ज़रूरत पड़ती है। गणेश लहसुन की खेती जैविक तरीके से करते हैं। रासायनिक दवा का इस्तेमाल नहीं करते।

  • लहसुन के पौधों के पत्तों में टेढ़ापन आ जाता है। मार्च-अप्रैल के महीने में ये बीमारी लहसुन के पौधे में लगती है। इसके इलाज के लिए खट्टी लस्सी का इस्तेमाल करते हैं। खट्टी लस्सी का छिड़काव 15 से 20 दिनों में करते रहते हैं। अगर ज़्यादा बीमारी लग जाती है तो हमारे ब्लॉक में मिलने वाली साइन दवा का इस्तेमाल करते हैं।
  • लहसुन की खेती में जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं। वो समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके खेत से खरपतवार को निकालते हैं। इसके साथ ही सिंचाई भी समय पर करनी चाहिए। इससे फसल के उत्पादन की संभावनाएं बढ़ जाती है।
  • फसल को जानवरों से ज़्यादा नुकसान पहुंचता है। जानवरों से बचाने के लिए नेट का उपयोग करते हैं।

लहसुन की खेती की बुवाई और कटाई का सही समय

जब नया किसान खेती में आता है समय का अभाव होता है। गणेश ने बताया कि लहसुन की फसल की बुवाई नवंबर और दिसंबर के महीने में हो जाती है। लहसुन की कटाई जून के महीने में की जाती है।

लहसुन की खेती
Garlic Farmer Ganesh Dutt, From Sirmaur district of Himachal Pradesh (Photo: KOI)

लहसुन की खेती में पहाड़ी इलाकों में क्या हैं सिंचाई के साधन?

गणेश दत्त कहते हैं कि पहाड़ी इलाकों में सबसे ज़्यादा समस्या पानी की आती है। हम लोग बरसात के पानी पर निर्भर रहते हैं। बरसात के पानी का विकल्प संग्रह किया हुआ पानी काम में आता है। लहसुन की खेती में हर 15 दिन में सिंचाई की ज़रुरत पड़ती है। कटाई से पहले भी एक बार सिंचाई की ज़रुरत पड़ती है।

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कृषि में कृषि विज्ञान केन्द्र की भूमिका

गणेश का कहना है ब्लॉक केवीके (कृषि विज्ञान केन्द्र) की तरफ़ से काफ़ी मदद मिलती है। वहां के वैज्ञानिक हमारी मदद करते हैं। इससे हमको खेती करने में आसानी होती है। हमारे ब्लॉक में सारी सब्जियों के बीज मिलते हैं। हमको किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ मिलता है। ब्लॉक स्तर पर जैविक खाद की किट मिल जाती है। इसके साथ ही केंचुआ खाद बनाने की ट्रेनिंग भी दी गई। ब्लॉक की तरफ़ से केंचुआ भी उपलब्ध कराए गए।

लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टियां

गणेश कहते हैं कि लहसुन की खेती में किसान को अच्छा मुनाफ़ा मिल जाता है। उनके इलाके की काली मिट्टी है। काली मिट्टी में लहसुन का उत्पादन अच्छा हो जाता है। लाल मिट्टी में भी लहसुन का उत्पादन सही हो जाता है। दोनों मिट्टियां लहसुन के लिए उपयुक्त हैं।

लहसुन की खेती का बाज़ार

गणेश दत्त बतातेें हैं कि लहसुन को सोलन मंडी में भेजते हैं। कई बार घर से ही लहसुन बिक जाता है। मंडी जाने की ज़रूरत नहीं होती।

लहसुन की खेती
लहसुन की खेती करने वाले हिमाचल प्रदेश के सिरमौर ज़िले के रहने वाले किसान, गणेश दत्त (Photo: KOI)

मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त लहसुन की किस्में

लहसुन की खेती में गणेश की तरह कई किसान मुनाफ़ा कमा रहे हैं। लहसुन में कई तरह की किस्में आती हैं। आइए नज़र डालते हैं मैदानी क्षेत्रों की किस्मों पर।

भीम ओंकार (Bhima Omkar Garlic)

भीम ओंकार किस्म को दिल्ली, गुजरात, हरियाणा और राजस्थान राज्यों में खेती के लिए अनुशंसित किया गया है। ये 120-135 दिनों में पक जाती है।औसत उपज 8-14 टन/हेक्टेयर होती है। ये मध्यम आकार के कॉम्पैक्ट सफेद बल्ब पैदा करता है।

भीम पर्पल (Bheem Purple)

आकर्षित बैंगनी छिलके वाले बल्बों वाली भीम पर्पल को आंध्र प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तर प्रदेश राज्यों में खेती के लिए इस्तेमाल किया गया है। ये 120-135 दिनों में पक जाती है और औसत उपज 6-7 टन/हेक्टेयर होती है।

पहाड़ी इलाकों में लहसुन की खेती
पहाड़ी इलाकों में लहसुन की खेती (Graphic: KOI)

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पहाड़ी इलाकों में लहसुन की खेती में इस्तेमाल होने वाली किस्में

वीएल लहसुन 1 (VL Garlic 1)

वीएल लहसुन 1 किस्म सफ़ेद रंग की होती है। ये किस्म हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, उत्तराखंड में इस्तेमाल की जा सकती है। ये किस्म 180-190 दिनों में पक जाती है। इसका औसतन उत्पादन 14-15 टन/ हेक्टयर होती है।

वीएल लहसुन 2

वीएल लहसुन 2 किस्म सफ़ेद रंग की होती है। ये किस्म हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड में इस्तेमाल किया जा सकता है। ये किस्म 190-200 दिनों में पक जाती है। इसका औसतन उत्पादन 14-16 टन/ हेक्टयर होता है।

अग्रीभूत पार्वती (Agrifound Parvati)

अग्रीभूत पार्वती किस्म बैंगनी रंग की होती है। ये किस्म हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर की पहाड़ियां और सिक्किम में खेती की जाता है। ये किस्म 165-175 दिनों में पक जाती है। इसका औसतन उत्पादन 17-18 टन/ हेक्टयर होता है।

एग्रीफाउंड पार्वती-2 (G-408) (Agrifound Parvati -2 (G-408) 

एग्रीफाउंड पार्वती-2 (G-408) सफ़ेद रंग की होती है। ये किस्म हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर की पहाड़ियाँ और सिक्किम में खेती की जाती है। ये किस्म 165-175 दिनों में पक जाती है। इसका औसतन उत्पादन 17-22टन/ हेक्टयर होता है।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल। 

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