जंगली गेंदे की खेती है बेजोड़, प्रति हेक्टेयर 35 हज़ार लागत और 75 हज़ार रुपये मुनाफ़ा

दक्षिण अफ्रीका के बाद भारत, जंगली गेंदे के तेल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। देश में फ़िलहाल, जंगली गेंदे के तेल का कुल सालाना उत्पादन क़रीब 5 टन है। बीते दशकों में उत्तर भारत के पहाड़ी और मैदानी इलाकों जैसे हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर तथा उत्तर प्रदेश के तराई के इलाकों में जंगली गेंदे की व्यावसायिक खेती की लोकप्रियता बढ़ी है।

जंगली गेंदे की खेती

जंगली गेंदे की खेती अपने शानदार मुनाफ़े की वजह से किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। किसानों के लिए जंगली गेंदे की खेती एक ऐसे प्राकृतिक बाड़बन्दी ‘सुरक्षा कवच’ की भी भूमिका निभाती है, क्योंकि इसकी गन्ध जंगली पशुओं को खेतों से दूर रखती है और वो खड़ी फ़सल को नुकसान नहीं पहुँचाते हैं। इसकी खेती इसका सुगन्धित तेल प्राप्त करने के लिए की जाती है, जो इसके फूलों और पत्तों में पाया जाता है। इसे आसवन विधि से प्राप्त करते हैं।

वनस्पति जगत में जंगली गेंदा का नाम है ‘टेजटस माइन्यूटा’। इसकी व्यावसायिक खेती दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया में ख़ूब प्रचलित है। दक्षिण अफ्रीका के बाद भारत, जंगली गेंदे के तेल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। देश में फ़िलहाल, जंगली गेंदे के तेल का कुल सालाना उत्पादन क़रीब 5 टन है। बीते दशकों में उत्तर भारत के पहाड़ी और मैदानी इलाकों जैसे हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर तथा उत्तर प्रदेश के तराई के इलाकों में जंगली गेंदे की व्यावसायिक खेती की लोकप्रियता बढ़ी है।

ज़ाहिर है, सगन्ध पौधों की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ा है क्योंकि इसमें उन्हें कमाई की अच्छी सम्भावना नज़र आती है। CSIR- केन्द्रीय औषधीय और सगन्ध पौधा संस्थान, लखनऊ के विशेषज्ञों के अनुसार, जंगली गेंदे की फ़सल के उत्पादन लागत क़रीब 35 हज़ार रुपये प्रति हेक्टेयर बैठती है। इसकी उपज को बेचने पर क़रीब 75 हज़ार रुपये का शुद्ध लाभ प्राप्त हो सकता है। यदि किसान इसका तेल निकालकर बेच सकें तो कमाई कई गुना बढ़ जाती है।

जंगली गेंदे की खेती
तस्वीर साभार: ICAR

भूमि और जलवायु

जंगली गेंदे को शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। इसे मैदानी और पहाड़ी इलाकों के निचले भागों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। जंगली गेंदे के बीजों को जमाव के लिए कम तापमान और पौधों की बढ़वार के लिए गर्मी के लम्बे दिनों की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए जल निकासी के उचित प्रबन्ध और कार्बनिक पदार्थों की प्रचुरता वाली ऐसी बलुई दोमट या दोमट भूमि अच्छी होती है जिसका pH मान 4.5-7.5 हो।

ये भी पढ़ें – Geranium Cultivation: दोमट और बलुई दोमट ज़मीन के लिए वरदान है जिरेनियम, तेल बनाकर करें बेजोड़ कमाई

नर्सरी और बीजाई

उत्तर भारत के मैदानी भागों में जंगली गेंदे की खेती के लिए बीजों की सीधे बुआई अक्टूबर में की जा सकती है। पहाड़ी इलाकों में इसकी नर्सरी को मार्च से अप्रैल में तैयार करना चाहिए और जब पौधे 10-15 सेंटीमीटर लम्बे हो जाएँ तो खेतों में उनकी रोपाई करनी चाहिए। सीधी बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर 2 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता होती है। बीजों में थोड़ी मिट्टी मिलाकर इन्हें पंक्तियों में छिड़ककर बोआई की जा सकती है। नर्सरी में पौधे तैयार करके रोपाई करने के लिए प्रति हेक्टेयर 750 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। रोपाई के वक़्त कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।

सिंचाई

जंगली गेंदे की फ़सल की रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करना आवश्यक है। पूरी फ़सल के दौरान मैदानी इलाकों में 3-4 सिंचाईयों की ज़रूरत पड़ती है जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में आमतौर पर जंगली गेंदे की खेती वर्षा आधारित ही होती है।

ये भी पढ़ें – Menthol Mint Cultivation: जानिए कैसे जापानी पुदीने की खेती किसानों के लिए हो सकती है फ़ायदेमंद

Kisan of india facebook

खाद व उर्वरक

खेत की तैयारी के समय अन्तिम जुताई पर 10-12 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद मिलानी चाहिए। अच्छी पैदावार के लिए 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। नाइट्रोजन को दो बराबर भागों में पहली निराई यानी 30-40 दिन के बाद तथा दूसरी बार इसके भी क़रीब एक महीने बाद देना चाहिए।

फ़सल की कटाई

मैदानी इलाकों में अक्टूबर में लगायी गयी फ़सल मार्च के अन्त से लेकर मध्य अप्रैल तक और पहाड़ी क्षेत्रों में जून-जुलाई में लगायी गयी फ़सल सितम्बर-अक्टूबर तक कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई के वक़्त ज़मीन से क़रीब एक फ़ीट ऊपर हंसिया या दरांती से पौधों को काटना चाहिए।

उन्नत किस्म और पैदावार

जंगली गेंदे की उन्नत किस्म का नाम ‘वन-फूल’ है। इसे सीमैप यानी CSIR- केन्द्रीय औषधीय और सगन्ध पौधा संस्थान, लखनऊ ने विकसित किया है। इस किस्म की खेती से प्रति हेक्टेयर कर 300 से 500 क्विंटल शाकीय भाग यानी ‘हर्ब’ की उपज प्राप्त होती है। हर्ब का आसवन यथाशीघ्र कर लेना चाहिए। इससे 40 से 50 किलोग्राम तक जंगली गेंदे का तेल प्राप्त हो जाता है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top