Menthol Mint Cultivation: जानिए कैसे जापानी पुदीने की खेती किसानों के लिए हो सकती है फ़ायदेमंद
मेंथा के नाम से भी जाना जाता है जापानी पुदीना
मेंथा को पुदीना, मिंट, मेंथॉल मिंट आदि नामों से भी जाना जाता है। यह एक सुगंधित जड़ी-बूटी है जिसका इस्तेमाल कई चीज़ों में होता है, मगर इसका उत्पादन खासतौर पर सुगंधित तेल बनाने के लिए किया जाता है। जापानी पुदीने की खेती से जुड़ी अहम बातें जानिए इस लेख में।
पुदीने की खेती भारत में बड़े पैमाने पर होती है। दुनिया में सबसे ज़्यादा पुदीने का निर्यात भारत ही करता है और मेंथॉल मिंट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश भारत ही है। पुदीने की खेती ख़ासतौर पर इससे तेल प्राप्त करने के लिए की जाती है, जिसे मेंथॉल का तेल कहा जाता है। इसकी मांग भारत के साथ ही विदेशों में भी है। इस तेल में एंटीमाइक्रोबियल, एंटीवायरल और एंटीट्यूमर गुण होते हैं, जो सेहत के लिए बहुत फ़ायदेमंद है। तेल के अलावा, पुदीने का इस्तेमाल माउथवॉश, टूथपेस्ट, कफ सीरप व अन्य दवा, कॉस्मेटिक्स, हेयर ऑयल, टेल्कम पाउडर आदि बनाने में भी किया जाता है। यानी इसकी मांग हमेशा रहती है। ऐसे में किसान उन्नत कृषि तकनीक अपनाकर मेंथॉल मिंट यानी जापानी पुदीने की खेती से अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
पुदीने की खेती में जलवायु और मिट्टी
पुदीने की खेती के लिए गर्म जलवायु चाहिए। वैसे इसकी खेती बहुत अधिक ठंड वाले महीने को छोड़कर पूरे साल की जा सकती है। अच्छी उपज के लिए ऐसी मिट्टी चाहिए जो पानी को ज़्यादा अवशोषित करे। साथ ही खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। मिट्टी का पी.एच. मान 7-8.5 होना चाहिए। पुदीने की कुछ उन्नत किस्में सिम-उन्नति, सिम-क्रांति, सिम-सरयू और कोसी हैं।

खेत करें तैयार
पुदीने की पहले नर्सरी तैयार की जाती है और फिर पौधों को खेतों में लगाया जाता है। खेत तैयार करने के लिए पहले इसकी दो बार गहरी जुताई करें और अंतिम जुताई से पहले 20-25 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से गोबर की सड़ी खाद खेत में मिलाएं। ध्यान रहे गोबर की खाद अच्छी तरह से सड़ी हो, वरना दीमक लगने का डर रहता है। इसके अलावा, नाइट्रोजन 58 किलो, फॉस्फोरस 32-40 किलो और पोटाश 20 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से मिलाकर खेत को बुवाई के लिए तैयार करें।
सिंचाई है ज़रूरी
पुदीना या मेंथा, एक शाकीय पौधा है इसलिए इसे अधिक पानी की ज़रूरत होती है। समय-समय पर इसकी सिंचाई करते रहें। शुरुआत में 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहें, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि खेत में पानी जमा न हो। कटाई से 8-10 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें। समय पर सिंचाई से पौधों का उचित विकास होता है।
खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?
पुदीने की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए खरपतवारों का नियंत्रण भी ज़रूरी है, वरना इससे तेल उत्पादन कम होगा। खरपतवारों की वजह से तेल के उत्पादन में 60-80 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। ध्यान रहे बुवाई से 30-75 दिन के भीतर खेत में खरपतवार नहीं होने चाहिए। पहली निराई के 25-30 दिन बाद दो-तीन निराई करें।

अन्य फसलों के साथ पुदीने की खेती
पुदीने की खेती पारंपरिक व व्यावसायिक फसलों के साथ करना किसानों के लिए फ़ायदेमंद फ़ायदेमंद होता है। अगेती धान और सरसों के साथ पुदीना उगा सकते हैं। मक्का और आलू के साथ भी पुदीने की खेती की जा सकती है। अगेती धान और आलू के साथ भी पुदीना उगाया जा सकता है। अरहर की फसल के साथ भी पुदीने की खेती करना फ़ायदेमंद होगा।
पुदीने की फसल की कब करें कटाई?
जब पुदीने की पत्तियां नीचे से पीली होने लगे और ऊपर की पत्तिया छोटी रहे, तो ज़मीन से 5 सेंटीमीटर की ऊंचाई से पौधों की कटाई करनी चाहिए। कटाई के बाद फसल को छाया में 2 दिन तक सुखा लेना चाहिए। इससे करीब 5 प्रतिशत तेल का नुकसान होने से रोका जा सकता है।

कितना होता है तेल का उत्पादन
पुदीने की दो कटाई से 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तेल का उत्पादन होता है और एक कटाई के बाद 100-125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तेल प्राप्त होता है।
कितना होता है मुनाफा
मेंथॉल मिंट की दो कटाई में औसतन 50 हज़ार रुपये का खर्च आता है और इसे बेचकर किसान 2 लाख रुपये की कमाई कर सकते हैं यानी 1.5 लाख का शुद्ध लाभ प्राप्त होता है। पुदीने के मांग देश के साथ ही विदेशों में भी बढ़ रही है, ऐसे में छोटे किसान भी इसकी खेती से अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
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