जैसलमेर में कपास की खेती में ड्रिप इरीगेशन अपनाने से बढ़ेगी किसान की आमदनी

जैसलमेर ज़िले में कपास की खेती में अपार सम्भावनाएँ हैं। इसे देखते हुए ही किसानों को कम पानी का इस्तेमाल करके कपास की अच्छी पैदावार लेने के लिए प्रेरित करने की रणनीति बनायी गयी है।

कपास की खेती

बेहद कम बारिश वाले राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में कपास की खेती को आधुनिक तकनीक से जोड़कर प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके तहत कृषि विज्ञान केन्द्र, जैसलमेर  (KVK Jaisalmer) में जल्द ही कपास की खेती को ड्रिप इरीगेशन यानी बूँद-बूँद सिंचाई से जोड़ने की व्यवस्था विकसित करके इच्छुक किसानों को प्रशिक्षत करने का काम शुरू किया जा रहा है।

ताकि कपास की खेती करने वाले किसानों को लागत घटाने और आमदनी बढ़ाने की तकनीक से जोड़ा जा सके।

जैसलमेर में कपास की खेती में ड्रिप इरीगेशन अपनाने से बढ़ेगी किसान की आमदनी
डॉ दीपक चतुर्वेदी, वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रभारी, कृषि विकास केन्द्र जैसलमेर-1

कृषि विज्ञान केन्द्र, जैसलमेर के प्रभारी और वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ दीपक चतुर्वेदी का मानना है कि ज़िले में कपास की खेती में अपार सम्भावनाएँ हैं। इसे देखते हुए ही किसानों को कम पानी का इस्तेमाल करके कपास की अच्छी पैदावार लेने के लिए प्रेरित करने की रणनीति बनायी गयी है। इसीलिए KVK Jaisalmer में जल्द ही ड्रिप इरीगेशन मॉडल को स्थापित किया जा रहा है।

मई है कपास की बुआई का वक़्त

डॉ चतुर्वेदी ने बताया कि जैसलमेर में कपास की बुआई का उचित समय मई महीना ही है। यहाँ के कपास उत्पादकों के लिए RST-9, मरु विकास और बीकानेरी नरमा जैसे किस्में सबसे उम्दा हैं। ज़िले की खेती मुख्य रूप से भूजल पर निर्भर रहती है और भूजल की स्तर बेहद नीचा होने की वजह से किसानों को ज़्यादा दमदार पम्पिंग सेट का इस्तेमाल करना पड़ता है।

कपास का सही दाम मिलने का भरोसा

राजस्थान में पानी की चुनौती को देखते हुए जहाँ सोलर पम्प लगाने वाली कुसुम योजना से ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को जोड़े जाने की ज़रूरत है, वहीं ड्रिप इरीगेशन का इस्तेमाल भी किसानों के लिए बहुत मदद हो सकता है। सुखद ये भी राजस्थान में किसानों और सरकार ने केन्द्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की शानदार योजना का फ़ायदा उठाने की दिशा में अग्रणी भूमिका निभायी है।

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कपास की खेती की एक अच्छाई ये है कि फसल तैयार होने के बाद इसका सही दाम मिलने की उम्मीद बनी रहती है, क्योंकि कपास जैसी नगदी फसल है जिसे केन्द्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के दायरे में रखा है। जबकि नगदी फसल होने के बावजूद सब्ज़ी वग़ैरह पैदा करने वाले किसान कई बार माँग और पूर्ति के भँवर में ऐसा फँसते हैं कि उपज की लागत पाना भी मुहाल हो जाता है।

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