मोती पालन: 25 साल से Organic Pearl Farming कर रहे अशोक मनवानी, मोती की खेती पर Exclusive बात

आज की तारीख में अशोक मनवानी अपने मोती पालन (Pearl Farming) के इनोवेशन और सीपों पर उनकी रिसर्च के लिए जाने जाते हैं। उनका सपना है कि भारत मोती पालन के मामले में पहले पायदान पर पहुंचे।

मोती पालन 25 साल से Organic Pearl Farming

Moti Ki Kheti | Pearl Farming | आज से 25 साल पहले की बात है, एक 23 साल का युवा धूप और गर्मी के थपेड़ों से बचने के लिए एक यूनिवर्सिटी में जा पहुंचा। इस यूनिवर्सिटी का नाम था डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषी विद्यापीठ, जो महाराष्ट्र के अकोला में है। यहां की लाइब्रेरी में पहुंचते ही इस युवा की नज़र ब्रिटिश काल की कुछ किताबों पर पड़ी। उन किताबों में ज़िक्र था मोती पालन का। फिर जो हुआ उसकी कहानी मैं आपको इस लेख में बताने जा रही हूं। ऐसी कहानी, जिसमें मेहनत, लगन, जज़्बा, संघर्ष और कामयाबी की इबारत है। ये कहानी है महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने वाले अशोक मनवानी की।

मोती पालन 25 साल से Organic Pearl Farming
तस्वीर साभार: Ashok Manwani

भारत को मोती पालन में नंबर वन बनाने का सपना (Pearl Farming In India)

आज की तारीख में अशोक मनवानी अपने मोती पालन के इनोवेशन और सीपों पर उनकी रिसर्च के लिए जाने जाते हैं। उनके इस योगदान के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है। उनके शोध कार्य अभी भी बदस्तूर जारी है। उनका सपना है कि भारत मोती पालन के मामले में पहले पायदान पर पहुंचे। इसी सपने को साकार करने के लिए वो दिन-रात रिसर्च में लगे रहते हैं। उनके इस काम में उनकी पत्नी कुलंजन दुबे मनवानी भी उनका बखूबी साथ दे रही हैं। 

मोती पालन 25 साल से Organic Pearl Farming

मोती पालन पर 25 साल से रिसर्च और देते हैं ट्रेनिंग (Pearl Farming Training)

कुलंजन और अशोक मनवानी मिलकर अब तक 18 राज्यों में मोती पालन कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मेघालय, असम, कर्नाटक, केरल जैसे राज्यों में न सिर्फ़ खुद मोती पालन किया, बल्कि कई युवाओं और किसानों को मोती पालन के गुर भी सिखा रहे हैं। 

अशोक मनवानी कहते हैं कि 300 साल से मोती पालन भूविज्ञान (Geology) का विषय रहा है, लेकिन कभी किसी ने इसका अध्ययन करने की नहीं सोची। लोगों को नहीं पता कि कितने प्रकार की सीपें भारत में पाईं जाती हैं। इसके लिए वो जंगलों में जा-जाकर शोध कार्य करते हैं। सीपों और मोतियों पर खुद फ़ील्ड रिसर्च करते हैं। खुद के खर्चे पर मोती पालन का प्रचार-प्रसार और कई शोध उन्होंने किए हैं। इसके अलावा, सरकार के साथ मिलकर भी उन्होंने मोती पालन को लेकर कई कार्यक्रम किए हैं। 

मोती पालन 25 साल से Organic Pearl Farming
तस्वीर साभार: Ashok Manwani

मोती पालन: 25 साल से Organic Pearl Farming कर रहे अशोक मनवानी, मोती की खेती पर Exclusive बात

मोती पालन की तकनीकों पर किया काम (Pearl Farming Techniques)

अशोक मनवानी बताते हैं कि गाँव में लोगों को जो सीप मिलती है, उन सीपियों को लाकर वो उनका ऑपरेशन करते हैं। उनमें कई तरह के डिज़ाइन में आने वाले न्यूक्लियस को डाला जाता है। इसे कल्चर्ड प्रक्रिया कहते हैं, जो प्राकृतिक ही है। इसमें मोती को अपने हिसाब से आकार और डिज़ाइन देने के लिए सीप में औज़ार (Tools) की मदद से मेटल आदि की डाई रखी जाती है ताकि उस पर इस मेटल की चमकदार परत चढ़ सके। बता दें कि सीप के अंदर जैसे ही कोई पार्टिकल अंदर जाता है वो उसे बाहर निकालने के लिए एक लिक्विड छोड़ती है। इस लिक्विड को नेकर कहा जाता है। धीरे-धीरे उस पार्टिकल पर सीप परत दर परत एक चमकदार कोटिंग बना देती है और फिर एक वक़्त बाद यही मोती बन जाता है।

अमूमन में एक या डेढ़ साल में सीप के अंदर मोती बन जाते हैं। हालांकि, मनवानी दंपति के मुताबिक अलग-अलग मौसम और पानी के हिसाब से मोती बनने का समय तय होता है। अशोक मनवानी ने बताया कि कई बड़े शहर ऐसे हैं जहां की जलवायु का असर मोती उत्पादन में पड़ा है। कई बड़े शहर ऐसे हैं, जहां मोती उत्पादन खत्म होने की कगार पर है, क्योंकि उस जगह का पानी और वातावरण उसके लिए उपयुक्त नहीं रहा।

मोती पालन 25 साल से Organic Pearl Farming

मोती पालन को दिया अपना सब कुछ

अशोक मनवानी ने मोती पालन से जुड़ी ट्रेनिंग, इसे जुड़ी बारीकियों के बारे में भुवनेश्वर स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ्रेशवॉटर एक्वाकल्चर (CIFA, Central Institute of Freshwater Aquaculture) में जाना। यहां उन्होंने मोती उत्पादन/मोती की खेती/मोती पालन की असीमित संभावनाओं के बारे में जानकारी मिली। 

अशोक मनवानी डॉ. जानकी रमन को अपना गुरु मानते हैं। वो कहते हैं कि उन्होंने मोती पालन से जुड़ी कई समस्याओं के बारे में बताया। बस फिर किया था, इस चुनौती को लेते हुए उन्होंने अपनी ज़िंदगी के दो दशक से ऊपर उन समस्याओं को दूर करने में समर्पित कर दिए और अभी भी वो उस निष्ठा के साथ मोती पालन के शोधकार्यों में लगे हुए हैं। 

मोती पालन 25 साल से Organic Pearl Farming
तस्वीर साभार: Ashok Manwani

मोती पालन: 25 साल से Organic Pearl Farming कर रहे अशोक मनवानी, मोती की खेती पर Exclusive बात

मोती पालन की टूल किट तैयार की

मोती पालन को लेकर अपनी रिसर्च के साथ ही अशोक अपने इनोवेशन के लिए भी जाने जाते हैं। उन्होंने एक खास टूल किट तैयार की। अशोक मनवानी बताते हैं कि मोती पालन या सीप को ऑपरेट करने के टूल भारत में थे ही नहीं। जो थे वो इतने महंगे होते कि हर किसी के लिए उसे खरीद पान मुश्किल होता। अशोक बताते हैं कि आज की तारीख में उन्होंने सीप को ऑपरेट करने के सारे टूल्स तैयार कर लिए हैं। इसमें उनका करीबन 20 लाख रुपये का खर्चा आया। एक योजना के तहत उन्हें ये फंड मिला। उन्होंने जो टूल किट बनाई है, उसकी कीमत 500 से 800 रुपये के बीच में है। अपनी टूल किट के लिए उन्हें सरकार से सम्मान भी मिल चूका है।

अशोक और उनकी पत्नी कुलंजन मिलकर ‘इंडियन पर्ल कल्चर’ नाम से एक संस्था भी चलाते हैं। साल 2001 में उन्होंने ‘इंडियन पर्ल कल्चर’ को शुरू किया था और आज उसके बैनर तले वो सैकड़ों लोगों को मोती पालन के लिए ट्रेन कर चुके हैं।

मोती पालन 25 साल से Organic Pearl Farming

जैविक तरीके से करते हैं मोती पालन

अशोक बताते हैं कि दुनिया में उनका फ़ार्म एकलौता ऐसा है, जो जैविक तरीके से मोती पालन करता है। उन्होंने कहा कि अभी जहां भी मोती पालन हो रहा है, वहां ज़्यादातर लोग एक निश्चित समय बाद सीपों को मारकर मोती निकालते हैं। इस प्रक्रिया में वो सीपों को वक़्त से पहले ही मार देते हैं। सीप जितना मोती बनाने में काम आते हैं, उससे कई ज़्यादा पर्यावरण के लिए भी ज़रूरी है।

“सीप हमारा मित्र, करें उसकी सेवा”

अशोक मनवानी ने बताया कि सीप एक ऐसा मित्र जीव है, जो पानी को फ़िल्टर करता है, लेकिन लोगों ने इसे दुश्मन समझकर इसके अस्तित्व को नुकसान पहुंचाया। पर अब स्थितियां ज़रूर बदल रही है। अब लोगों में जागरूकता आई है। अशोक मनवानी इसी जागरूकता को जन-जन तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। वो हमेशा सीपों की प्राकृतिक मौत के बाद ही मोती निकालते हैं। इस तरह आज उनके फ़ार्म में प्राकृतिक और जैविक मोती का ही उत्पादन होता है और ये उनकी सबसे बड़ी ख़ासियत है। अशोक मनवानी कहते हैं कि जितनी सीप की सेवा करेंगे वो उतना अच्छा मोती देगा। उन्होंने कई इनोवेशन्स को लेकर पेटेंट के लिए भी अप्लाई किया हुआ है। 

सीपों की मृत्यु दर को किया कम

अशोक मनवानी बताते हैं कि सीपों में मृत्यु दर बढ़ने के मुख्य कारण होते हैं, सही जानकारी और सही औजारों का न होना। इसलिए उन्होंने इन दोनों पर ही काम किया और लोगों तक सही जानकारी और सही टूल्स पहुंचाए।

मोती पालन 25 साल से Organic Pearl Farming

Pearl Tourism में बहुत कुछ जानने को मिलता है

आज उनका फ़ार्म देखने के लिए दूर-दराज इलाकों और दूसरे राज्यों से लोग आते हैं, जिसकी करीब 6 हज़ार रुपये फ़ीस है। उनका फ़ार्म एक ऐसा मॉडल है, जहां लोगों को मोती की खेती या कहे मोती पालन की सारी जानकारियां जानने को मिलती हैं। इसे उन्होंने नाम दिया है Pearl Tourism। 

कई कृषि संस्थान से जुड़े अशोक मनवानी

मनवानी दम्पत्ति, कृषि विज्ञान केन्द्र (Krishi Vigyan Kendra, KVK), आत्मा (Agricultural Technology Management Agency (ATMA), कृषि विषविद्यालयों (Agriculture Universities) जैसे कृषि संस्थानों के माध्यम से भी किसानों को मोती उत्पादन की बारीकियां सिखाते हैं। 

मोती पालन में सीप की समझ होना बहुत ज़रूरी

अशोक मनवानी कहते हैं कि कई ऐसे होते हैं, जिन्हें मोती पालन सिर्फ़ इसलिए करना है क्योंकि वो पैसा कमाना चाहते हैं। काम को लेकर प्रेम उनमें नहीं होता। वो रिसर्च से भागते हैं। अशोक मनवानी खुद फील्ड में उतरकर जंगल-दर-जंगल जाकर ट्रेनिंग देते हैं। वो कहते हैं कि मोती पालन में सीप के स्वभाव को समझना, उसके आहार को समझना और वातावरण की समझ होना बहुत ज़रूरी है। 

मोती निकालने के बाद सीप का क्या?

अशोक मनवानी सीप के शैल यानी कवच से ज्वेलरी, दीये, होल्डर जैसी कई हैंडीक्राफ्ट चीज़ें बनाई जाती हैं, जिनकी बाज़ार में अच्छी कीमत में मिलती है। इस तरह से ये किसानों के लिए एक अतिरिक्त आय का साधन हो जाता है।

मोती पालन 25 साल से Organic Pearl Farming
तस्वीर साभार: Ashok Manwani

मिल चुके हैं 70 से ज़्यादा सम्मान

मोती पालन पर कई साल की रिसर्च और उनकी अथक मेहनत के लिए अशोक और कुलंजन को 70 से भी ज़्यादा सम्मानों से नवाज़ा जा चूका है। 

मोती पालन 25 साल से Organic Pearl Farming

मोती की कीमत कैसे तय होती है?

हज़ार स्क्वायर फ़ीट तालाब से एक बार में तकरीबन दो हज़ार मोती का उत्पादन लिया जा सकता है। जहां तक बात है मोती की कीमत की, तो वो उसकी बनावट, आकार, वजन, रंग, चमक जैसे मानकों पर तय होती है। अशोक बताते हैं कि एक मोती को तैयार करने में 300 से 400 रुपये की लागत आती है। डिज़ाइनर मोती की कीमत 2 से 3 हज़ार रुपये रहती है। वैसे देश में ऐसे उदाहरण भी हैं जब एक ही मोती की कीमत लाख रुपये से ऊपर भी पहुंची है। 

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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